केशों की महिमा से ग्रन्थ भरे पड़े हैं .रविंद्रनाथ टैगोर की विदा कहानी में जहाँ कन्या के दीर्घ श्याम केशों को बांध सवांर कर जुड़े में जरी गूंथने की बात है वहीँ पर लड़कों की ओर से बारम्बार विवाह का प्रस्ताव होने पर उनके पिता पक्ष के चांदी के सामान श्वेत और खिजाब की महिमा से बारम्बार श्याम वर्ण हो जाते केशों की चर्चा है .स्वयं भगवान कृष्ण भी तो अत्यंत सुन्दर केशों के कारन केशव कहलाते हैं .तो ऐसे केशों की महिमा से भरे मन को वह दृश्य बहुत अनोखा लगा जब मैं मदुरै पहुंची .मीनाक्षी अम्मन मंदिर में दर्शन करने को बाहर लाइन में मैं भी लग गई. तभी मेरी निगाह तमिल में कुछ कह कर बेचने वाली एक स्त्री पर गई .वो जो कुछ बेच रही थी उसे देख कर कुतूहल और बsढा. वह केश बेच रही थी.केशों के गुच्छेउसके हाथों में देख कर न जाने कैसा तो लगा .लेकिन मेरे लेखक मन की भाव प्रवणता प्रगल्भ हो चली.किसी तरह उसके बारे में जानू इसी चेष्टा में मैं लगी थी .तभी लाइन का चलना प्रारंभ हो गया .अन्दर जाकर श्रद्धा के सैलाब में मै उस महिला को भूल ही गई .दर्शन करने के बाद मंदिर के प्रांगन को पार करके जैसे मैं बाहर निकलने को हुई वो केशनी मुझे फिर दिखाई दी.अपने पति की आग उगलती आँखों की परवाह किये बिना मैं उसकी ओर बढ़ गई .फिर बगल के एक दुकानदार की टूटी फूटी हिंदी और उसकी तमिल में मैंने उसकी कहानी सुनी.
मेरे सामने एकाकार हो गया तमिलनाडु का एक छोटा सा गाँव ,अत्तापत्ति कतेम्पत्ति ब्लाक का एक छोटा सा गाँव .यहीं पर घर था शोभा का .शोभा का पति एक गरीब मजदूर था और शोभा मंदिर में अपने केश अर्पित करने वाले भक्तों के बालों से बने हुए विग उन लोगों को बेचती थी जिन्हें किसी कारण वश बाल नहीं थे या बहुत कम थे .
ये केश वह काफी सस्ते में बेचती थी मुश्किल से २०० रुपये या कभी कभी ३०० रुपये. जबकि मैंने बड़े सलूनो में ये केश २५ से ३० हज़ार तक बिकते हुए देखे हैं .हाँ इन बालों को स्ट्रेटनिंग ,सिस्टीनट्रीटमेंट नहीं मिला न ही रेशम की तरह कोमल बनाने वाला कंडीशनर .
तो चलते हैं फिर शोभा की तरफ .गाँव के उस छोटे से घर पर चूल्हे पर पक रहा है नरम डोसा ,जिसे खाने के लिए नन्ही मुन्नी गंगा बड़े उत्सुक नेत्रों से तक रही है .गंगा शोभा की आठ वर्षीय नन्ही सी बेटी है और एक साल का छोटा मानव उसका भाई .गंगा नन्ही है लेकिन शोभा के बाहर जाने पर मानव को वही संभालती है .दुलारती है ,ध्यान रखती है एक मां की तरह .ये छोटी सी मां अभी एकाग्रता से चूल्हे पर सिंकते हुए दोसे को देख रही है बहुत तेज भूख लगी है उसे.
शोभा और उसका पति रामय्या कल खाली हाथ ही लौटे और घर पर कुछ खाना नहीं पका .मानव को बचे हुए बासी भात को खिलाकर और गंगा को पानी पिलाकर ही शोभा ने रात निकाली. रोज की दिहाड़ी पर जीने वाले मज़दूर की पत्नी और क्या करती .कल उसका एक भी केश नहीं बिका. आज सुबह पड़ोस की राजम्मा के घर से दोसे का घोल मांगकर उसने अपने बच्चों की भूख मिटाने के बारे में सोचा .राजम्मा मंदिर के बाहर खड़े लोगों को नमकीन बेचती थी. दर्शन की लाइन में लगे लोगों को केश की जरुरत भले न हो लेकिन नमकीन की जरुरत तो रहती ही थी अतएव राजम्मा की बिक्री अच्छी ही हो जाती थी .
डोसा प्लेट में डालते ही गंगा टूट पड़ी भूख से नन्ही जान बेहाल हो उठी थी.शोभा और उसके पति ने भी एक एक डोसा खाया और अपनी रोजी रोटी की खोज में चल दिए .
आज शोभा जल्दी ही मंदिर पहुँच गई थी और भाग्य से आज उसके चार पांच केश बिक गए .शोभा गुनगुनाती हुई घर लौटी .रास्ते में ही उसने राशन खरीद लिया था .अत वह भोजन की तैयारियों में लग गई .तभी उसे राजम्मा का कराहना सुनाई दिया .शोभा तुरंत राजम्मा के घर आई ,उसने देखा की राजम्मा तेज बुखार में तप रही थी.शोभा ने उसके माथे पर पट्टी रखी.रमय्याके आने पर उसे उसका ध्यान रखने को कह उसने खाना बनाया ,फिर अपने परिवार के साथ राजम्मा को खिलाया .राजम्मा का एक बेटा था जो अपनी पत्नी के साथ किसी दूसरे गाँव में रहता था .उसे अपनी माँ से इतना ही मतलब था की वह कभी कभी लड़ने के लिए आ जाता था .उसे जुआ की लत थी और जब पत्नी घर से भगाती तो माँ के प्राण खाने आ जाता .
दुसरे दिन जब शोभा मंदिर से लौटी तो राजम्मा का कराहना और उसके बेटे का जोर जोर से चिल्लाना सुनाइ दिया. शोभा ने नन्हे मानव की तरफ ध्यान से देखा .आज वो कितनी मेहनत करती है अपने बच्चे को पालने में ,क्या बड़े होकर उसे भी यूँ राजम्मा की तरह नरक भोगना होगा .शोभा की आँखों में आंसू तैर आए जिन्हें उसने धीरे से पोंछ लिया.
खाना लेकर जब वह राजम्मा के घर पहुंची तो उसका बेटा जा चूका था .बुखार में कांपती राजम्मा को किसी तरह उसने उठा कर खाना खिलाया .दूसरे दिन सुबह जब वह राजम्मा को चाय देने पहुंची तो राजम्मा अपने बिस्तर पर बेहोश पड़ी थी. शोभा तुरंत जाकर सरकारी डिस्पेंसरी के कम्पाउण्डर को बुला कर लाई , फिर उसके साथ वह दवा भी लाने गई ,पैसे थे नहीं लेकिन दवा मुफ्त में ही मिल गई .
राजम्मा को दवा देकर उसके लिए दो रोटी सिरहाने रख कर शोभा अपने काम पर निकल पड़ी .गरीब के पास ये वक़्त भी नहीं होता की सेवा कर सके .शाम को राजम्मा का बुखार बहुत बढ़ गया था और वो आयं बायं बकने लगी थी. गाँव के ही कुछ लोगों की मदद से उसे सरकारी अस्पताल में भरती किया गया .लडके को खबर की गई लेकिन वो नहीं आया .शोभा ही घर के काम निबटा कर अस्पताल जाती फिर शाम का खाना भी पहुँचाने जाती .राजम्मा ठीक नहीं हो रही थी आखिर डॉ साहब ने उसे टेस्ट के लिए शहर भेजा ,अपनी ही कार से अपने ड्राईवर के साथ .राजम्मा के भाग्य अच्छे थे की उसे शोभा जैसी सखी मिली थी और डॉ साहब जैसे देवता.
टेस्ट की रिपोर्ट एक हफ्ते में आनी थी .शोभा के हॉस्पिटल पहुँचाने पर आज राजम्मा खुश दिखी.
“कैसी है शोभा तू?मेरी वजह से बड़ी भाग दौड़ हो रही है न?”
‘नहीं राजम्मा ऐसा कुछ भी नहीं .तू बस जल्दी से अच्छी हो जा.”
‘हाँ रिपोर्ट आने में अभी पांच दिन हैं “
शोभा को अच्छा लगा ,आज कितने दिन बाद राजम्मा ने बात की थी.
फिर तो रोज दोनों सहेलियां बस रिपोर्ट के बारे में बातें करती .आखिर वो दिन आया जब रिपोर्ट आनी थी .शोभा अस्पताल पहुंची तो आज रामय्या भी उसके साथ था .दोनों के अन्दर पहुंचते ही डॉ ने उन्हें अन्दर बुलाया .उनका गंभीर चेहरा देख कर शोभा का मन खटका .
डॉ ने शोभा से ही पूछा “ आप उनकी रिश्तेदार हैं क्या?”
‘नहीं मै तो पड़ोसन हूँ.”
“ तो उनकी फॅमिली को बुलवा लीजिये.”
“उनका एक बेटा ही है वो भी बुलाने पर आता नहीं जब मां से कुछ चाहिए तभी आता है .”
“ठीक है लेकिन उन्हें तीमारदारी की जरूरत पड़ेगी “
“आप बताईये न” शोभा ने धड़कते दिल से पूछा .
“आपकी पड़ोसिन को ब्लड कैंसर है .शोभा सुन्न हो गई.
“अभी पहली स्टेज है कीमोथेरेपी से अच्छे होने के चांसेस है “
शोभा को जैसे कुछ सुनाइ नहीं दे रहा था .
रामय्या ने पूछा “खर्च कितना होगा .हम सब तो गरीब लोग हैं .”
“खर्च की परवाह मत करो शहर की कुछ संस्थाएं गरीबों के इलाज में मदद करती हैं .मै बात करूँगा ,लेकिन इनके साथ रहने वाला कोई चाहिए क्योंकि इस चिकित्सा में मरीज़ बड़ी कमजोरी महसूस करता है .” डॉ ने कहा.
गाँव छोटा था पर दिल बड़े थे फिर भी उनके लडके को खबर भेजी गई पर जैसा की अपेक्षित था वो नहीं आया .फिर गाँव के हर घर ने पारी बांध ली की हर घर से एक आदमी उनके पास तीन दिन रहेगा और ये तीन दिन उसके घर का चूल्हा जलाने में बाकि सभी मदद करेंगे .दिन गुजरते रहे .पहले तो राजम्मा को बड़ा ही कष्ट हुआ लगा अब शायद आशा नहीं है पर धीरे धीरे इलाज ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और राजम्मा की हालत धीरे धीरे सुधारने लगी.फिर एक दिन राजम्मा अपने घर लौट आई .
राजम्मा जबसे आई थी अपने सर पर एक कपड़ा बांधे रहती थी .शोभा अभी भी उसे रोज खाना देने जाती थी क्योंकि कमजोर राजम्मा अभी अपना काम करने में सक्षम नहीं थी . इसके पहले शोभा ही राजम्मा के घने बालों में तेल डाल कर चोटी गूंथ देती थी लेकिन अस्पताल से आने के बाद एक दिन भी राजम्मा ने अपने सर में तेल डालने को नहीं कहा.शोभा जानती थी की राजम्मा संकोच कर रही है .आखिर इतने दिनों से शोभा ही उसके खाने का प्रबंध कर रही थी
आखिर शोभा ने पूछ ही लिया “ अक्का आओ आज आपके केश बांध देती हूँ .बहुत दिन से तेल नहीं पड़ा आपके बालों में .”
राजम्मा तुरंत उठकर वहां से चली गई .शोभा को बड़ा अजीब लगा. थोड़ी देर वह राजम्मा के लौटने की आस में बठी रही फिर अपना सा मुंह लेकर चली आई .
दुसरे दिन उसने देखा की राजम्मा अपना सामान लेकर मार्किट निकल रही है .
शोभा का मन नहीं माना “ अक्का अभी आप कमजोर हो क्यों काम पर जा रहे हो “
“ कब तक बैठी रहूंगी शोभा ,हम गरीब हैं इतने दिन तुम लोगों ने मेरा केयर किया यही बहुत है “
राजम्मा निकल पड़ी लेकिन उसके जाने के आधे घंटे बाद शोभा को वह कुंए के किनारे की पगडण्डी पर बैठी मिली. शोभा ने बिना कुछ कहे उसका सामान भी अपने सर के ऊपर उठा लिया .आज उसने अपने केशों के साथ राजम्मा का नमकीन भी बेचा .
शाम को राजम्मा सीधे अपने झोपड़े में चली गई .रात का खाना बना कर जब शोभा उसे खाना देने गई तो राजम्मा दरी पर बैठे बैठे सो गई थी शोभा ने उठाने के लिए आवाज़ देनी चाही तो उसे माथे पर बंधा कपड़ा खुला हुआ दिखाई पड़ा .शोभा उसे बांधने गई तो उसकी चीख निकलते निकलते बची.राजम्मा के घने केशों की जगह चमकती नंगी खोपड़ी उसके सामने थी .कीमोथेरेपी का साइड इफेक्ट्स उसकी प्रिय सखी के केशों की बलि ले चूका था .तभी राजम्मा की आँखें खुली सामने खड़ी सखी के सामने उसकी आँखों से टप टप जलधार बरसने लगी इस जलधार में शोभा के नयन भी भीग चले. उसने कुछ सोचा और वहां से निकल गई . आज रात को उसके हाथ बेचने के लिए केशगुच्छ नहीं बनाने वाले थे बल्कि आज वो अपनी सखी के रोग जर्जरित मन को नयी आशा से भरने के लिए केश गूंथने वाली थी.आज वो एक उजड़े महल को सुसज्जित करने चली थी .आज वो एक ठहरी नदी में तरंग उठाने चली थी .आज सही माँनो में वह केश तरंगिनी थी.
हृदयस्पर्शी रचना।
डॉक्टर कनकलता तिवारी की कहानी केश तरंगिनी एक नए विषय पर लिखी हुई अच्छी कहानी लगी। गरीब लोगों में किस तरह से आपसी मेलजोल होता है, अपने लाभ- हानि की चिंता किए बिना एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते हैं, वह मन भिगो गया। अत्यंत संवेदना पूर्वक लिखी हुई संवेदनशील कहानी है। लेखिका को बधाई।
बेहद मार्मिक कहानी है कनकलता जी! आज तो रिश्ते जिस तरह से टूट रहे हैं वह चिंताजनक है लेकिन गरीबी कैसे एक दूसरे को थाम लेती है यह बात पढ़े-लिखे समझदार और अमीर लोगों को कुछ सिखा सके तो बेहतर है।एक साँस में मानो शुरू से आखिरी तक पढ़ गये।
इसे पढ़ते हुए पंच परमेश्वर कहानी का एक प्रसंग याद आ गया जहाँ
पञ्च जुम्मन के खिलाफ अलगू के पक्ष में फैसला देते हैं।
वहाँ एक कथ्य है-
ऐसे ही अच्छे लोगों के कारण धरती थमी है वरना न जाने कब से रसातल में मिल गई होती।
शराब जुँआ व सट्टा! यह तीन चीज ऐसी है जो लोगों को बर्बाद कर रही हैं। सरकार अगर चाहती है कि लोग बर्बादी से बच जाए तो इन तीनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।
इस बेहतरीन कहानी के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ।
तेजेंद्र जी का शुक्रिया। पुरवाई का आभार।
डा कनक लता तिवारी जी की कहानी “केश तरंगिनी”पुरवाई में पढ़ने को मिली।
इस कहानी को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि कथाकार ने अपनी कथा के लिए एक ऐसे विषय को चुना है जो रिश्तों के फलसफे और उसके मनोविज्ञान को लेकर कुछ ऐसा ताना बाना बुनती है जो पाठकों की संवेदना को बड़ी सरलता से दस्तक दे देती है।
आज के अर्थ प्रधान युग में रिश्तों की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में शायद अर्थ ने भले ही गरीबी को अपना दास बना रखा हो पर वह उनके दिल ओ दिमाग पर हावी नहीं हो पाया है। इसका जीता जागता प्रमाण हैं केश तरंगिनी के पात्र जो हमे कुछ सोचने पर विवश करते हैं। संभवतः कथाकार की भी यही मंशा रही हो जिसमे वे पूर्णतः सफल रही हैं।
डा कनक लता तिवारी जी को बहुत बहुत बधाई।
बहुत मार्मिक कहानी, बड़ी सादगी से आपने बयान की।सच्चाई तो तोड़ देती है पर मरहमलगने वाले भी मिलते हैं जीवन में।