अप्रैल में हिन्दी एवं बांग्ला फिल्मों के बड़े फिल्ममेकर शक्ति सामंत की पुण्यतिथि पड़ती है. शक्ति दा का जन्म वर्धमान के एक गांव में हुआ था. परिवार ने प्रारंभिक शिक्षा हेतु उन्हे देहरादून भेजा .पढाई पूरी कर वापस कलकत्ता लौटे और कलकत्ता विश्वविद्यालय के ‘कला संकाय’ मे दाखिला लिया, शक्ति दा में ‘बांग्ला’ के साथ-साथ अन्य भाषाओं को सीखने का रुझान था . पढाई करने के क्रम मे उर्दू और हिन्दी को दक्षता से सीख लिया. हिन्दी-उर्दू की जानकारी ने आगे चलकर ‘बेहतरीन’ सिनेमा स्थापित करने का हौसला दिया. ख़ासकर फ़िल्म के संवाद तथा गीतों को संवारने मे यह जानकारी कारगर रही.गीत संगीत एवम डायलॉग्स शक्ति सामंत की फिल्मों को एक ख़ास पहचान बने.
हज़ारों महत्वाकांक्षी युवाओं की तरह फ़िल्मो में क़िस्मत आजमाने, एक्टर बनने के सपने लिए युवा शक्ति सामंत मायानगरी मुंबई चले आए थे.
फ़िल्मों मे काम मिलने की प्रक्रिया सोच के मुताबिक नहीं होती, अपने हिस्से का कठिन संघर्ष हर किसी को काटना होता है .अपनी कहानी हर किसी को लिखनी होती है. शक्ति दा का संघर्ष ‘उर्दू टीचर’ से शुरु हुआ, आपने हिम्मत नहीं हारी. फ़िल्मों की ओर रुझान को समय देते हुए शक्ति दा अक्सर ‘बाम्बे टाकीज़’ स्टुडियो जाया करते. स्टूडियो में क्लाकारों फनकारों का आना जाना लगा रहता था . बॉम्बे टॉकीज सितारों का एक बड़ा ठिकाना था. आपकी मुलाकात जाने-माने अभिनेता अशोक कुमार से हुई . अशोक कुमार को जब उन्होंने अपनी तीव्र इच्छा से परिचित कराया तो दादामुनी ने ‘एक्टर’ बनने की चाहत को ‘त्याग’ कर निर्देशन में जाने का मशवरा दिया . दादा मुनी की सलाह को ताबीज़ की तरह बांध लिया. फ़िल्मकार फ़णि मजूमदार और ज्ञान मुखर्जी के ‘असिस्टेंट’ के रुप मे कैरियर का आगाज़ किया. फिल्म मेकिंग के तकनीकी पक्ष को धीरे धीरे सीखते हुए कैमरे के पीछे आ गए. निर्देशक के तौर पर पहली फिल्म ‘बहू’ (1954) थी. शक्ति सामंत बांग्ला व हिन्दी मे सक्रिय रहे. कुछ फ़िल्मे द्विभाषी थी : अमानुष (उत्तम कुमार), आनंद आश्रम (उत्तम कुमार).
शक्ति दा ने सन 1956 में‘शक्ति फ़िल्मस’ की स्थापना की. बैनर का उद्देश्य सामाजिक फ़िल्मो का निर्माण करना था. हिन्दी सिनेमा के स्वर्णिम युग में शक्ति दा की फिल्मों का अपना स्थान है . आपका मानना था कि ‘कहानी’, ‘गीत-संगीत’ और ‘रुमानियत’ का फ़लसफ़ा किसी फ़िल्म को हिट कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारतीय सिनेमा की कई क्लासिक फ़िल्मो के सफ़ल होने मे यह अवधारणा काम कर गई. ह्यूमन वैल्यूज ‘शक्ति फ़िल्मस’ की पहचान रही . शक्ति सामंत का नाम बिमल राय एवं हृषिकेश मुखर्जी के समानांतर इसलिए भी लिया जाता है. बतौर निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत की पहली फ़िल्म क्राइम थ्रिलर ‘हावडा ब्रिज’ थी. फ़िल्म में अशोक कुमार, मधुबाला तथा के एन सिंह जैसे क्लाकारो, यादगार गीतों , बढ़िया कहानी और सुंदर निर्देशन का उम्दा समन्वय था. फ़िल्म की क्वालिटी से शक्ति दा ने शायद कभी समझौता नहीं किया, यही कारण अपनी फ़िल्मों में कथा,पटकथा,संवाद,गीत और संगीत के साथ ‘कैरेक्टर’ मे ‘फ़िट’ बैठने वाले एक्टर्स का चयन करने के पक्षधर रहे. एक्टर्स में राजेश खन्ना,शम्मी कपूर,अशोक कुमार,उत्तम कुमार,संजीव कुमार तथा विनोद मेहरा शक्ति फ़िल्मस कैंप के मुख्य चेहरे बने.
आपने राजेश खन्ना के अलावा संजीव कुमार(चरित्रहीन), सुनील दत्त(जाग उठा इंसान), मनोज कुमार(सावन की घटा), उत्तम कुमार(अमानुष),अमिताभ बच्चन (बरसात की एक रात) को लीड रोल दिए. एक्ट्रेसेज में शर्मिला टैगोर, सायरा बानो, मौसमी चटर्जी,आशा पारेख ने अच्छी फ़िल्में दी . शर्मिला टैगोर काफ़ी समय तक शक्ति फ़िल्मस का ‘चहरा’ बनी रहीं— आराधना, अमानुष,अमर प्रेम, कश्मीर की कली, एन इवनिंग इन पेरिस, आनंद आश्रम जैसी फिल्मों की वो पहचान थी. शक्ति दा ने कई कलाकारों की ‘क्षमता’ एवं ‘दक्षता’ को पहचान कर उन्हें अपने बैनर का हिस्सा बनाया. शक्ति सामंत के कलाकारों के साथ लम्बे अरसे तक प्रगाढ संबंध रहे. अशोक कुमार ने हांलाकि शक्ति दा के साथ ‘हावडा ब्रिज’ सहित कुल नौ फ़िल्मे की पर वह आजीवन ‘सलाहकार’ एवं मार्गदर्शक जैसे रहे. इसी तरह शम्मी कपूर,राजेश खन्ना,शर्मिला टैगोर के साथ काफ़ी समय के लिए अच्छे रिश्ते रहे.बॉलीवुड में यश चोपड़ा को किंग ऑफ रोमांस की उपाधि मिली हुई है۔ शक्ति सामंत को भावनाओं को मास्टर प्रेजेंटर कहा जाना चाहिए۔ राजेश खन्ना शर्मिला टैगोर की अमर प्रेम इस हकीक़त का एक जीवंत दस्तावेज़ है۔ आराधना, कटी पतंग, अमानुष जैसी फ़िल्मों की चमक आज भी फीकी नहीं पड़ी है.
शम्मी कपूर- शक्ति सामंता का सिने सफ़र ‘चाईना टाऊन’ कश्मीर की कली, ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ जैसी फिल्मों के ज़रिए मुकाम पे पहुंचा .शक्ति फ़िल्मस की ‘आराधना’ ने अभिनेता राजेश खन्ना को जन-जन में लोकप्रिय बना दिया . सिनेमा को ‘कविताई’ का लोकप्रिय माध्यम मानने वाले शक्ति सामंता ने ज़िंदगी ‘सामाजिक’ संदर्भ से युक्त फिल्में बनाने संकल्प लिया.इस पहल में ‘रुमानियत’ को सामाजिक पहलू से जोडा और ‘आराधना’ बनाई, फ़िल्म ने ‘रुमानियत’ का पक्ष रख सफ़लता को रचा .शक्ति दा की ‘कटी पतंग’, तथा ‘अमर प्रेम’ में सोशल मेसेज का प्रयोग देखा जा सकता है . शक्ति फ़िल्मस-राजेश खन्ना-सचिन व राहुल देव बर्मन-आनंद बक्शी-किशोर कुमार की टीम ने हिन्दी सिनेमा में ‘एहसास’ की नई इबारत को जोड़ा. कडी में राजेश खन्ना की फिल्मों का नाम लिया जा सकता है. क्यों शक्ति सामंत को याद किया जाना चहिए ?
संगीत को लेकर करीबी नज़र रखने वाले शक्ति दा ने अपना काफ़ी समय सिनेमा एवं संगीत के ‘शोध’ को दिया, उनकी इच्छा रही कि फ़िल्मों के गाने जरूर बेहतर हो .शक्ति सामंत ने गीतकार आनंद बक्शी, किशोर कुमार एवं जाने-माने संगीतकारों सचिन व राहुल देव बर्मन, ओ पी नैयर,शंकर-जयकिशन,मदन मोहन,लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ ‘टीम’ बनाकर अपनी फ़िल्मो का संगीत पक्ष मजबूत कर लिया था. बक्शी साहेब और किशोर कुमार के कुछ सबसे दिलकश गाने ‘ शक्ति फ़िल्मस’ की विरासत में दर्ज़ हुए :– कुछ तो लोग कहेंगे (अमर प्रेम), कोरा कागज़ था मन यह मेरा(आराधना), चिंगारी कोई भडके (अमर प्रेम), यह शाम मस्तानी (कटी पतंग), प्यार दीवाना होता है(कटी पतंग), मेरे नयना सावन भादो (मेहबूबा) जैसे गाने आज भी अपना मुकाम रखते हैं. एक तरीके से शक्ति दा ने कला को अपना जीवन समर्पित कर दिया था۔ प्रेम के प्रति उनका यह सौंदर्य उनकी फिल्मों में देखा जा सकता है۔
आराधना,कटी पतंग, अनुरोध एवम अमर प्रेम शक्ति सामंत के समाजवाद को समझने के उदाहरण हैं۔ हिंदी सिनेमा को पहला सुपरस्टार देने का श्रेय आपको जाता है. प्रोफेशनल रिश्ते की वजह राजेश खन्ना शक्ति सामंत के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. एक्टर्स के साथ साथ कहानीकारों,संगीतकार, गीतकारों से आपका अच्छा रिश्ता कायम हो गया था. पंचम दा आपसे अक्सर आ कर मिला करते थे. जिस रात आपकी मौत हुई उस रात भी आप शक्ति सामंत के घर से लौट रहे थे.संगीत की जरूरत को लेकर शक्ति दा क्लियर थे. बांसुरी के साथ आप कमाल थे. गाना भी अच्छा जानते थे.आराधना की मेकिंग दरम्यान आप राजेश खन्ना, आनंद बख्शी,पंचम दा जैसे लोगों के करीब आ गए थे. अमर प्रेम इसी साथ का ईनाम था.किशोर कुमार और लता मंगेशकर को ऐसे गाने मिले जो हमेशा पसंद किए जाएंगे. लता दी का रैना बीती जाए आज भी क्लासिक है. किशोर दा का चिंगारी कोई भड़के, कुछ तो लोग कहेंगे पीढ़ियों तक सुने जाएंगे.
आराधना: एक मुलाकात के बाद अरुण और वंदना के दरम्यान नजदीकियां बन जाती हैं. वो जल्द शादी के बंधन में बंध जाते हैं. दुखद रूप से एयर पायलट अरूण की एयर क्रैश में मौत हो जाती है . वंदना इस आकस्मिक हादसे से उबर नहीं पाती. वो साबित नहीं कर सकेगी कि उसके पेट में पल रहा बच्चा अरुण का है. हालांकि वो बच्चे को जन्म देने का फैसला लेती है. सूरज को अमीर मां बाप गोद ले लेते हैं. वंदना आया बन कर जिंदगी गुजारने लगती है. सब ठीक चल रहा होता कि एक दिन श्याम की बुरी नज़र उस पे पड़ जाती है. इस घिनौने कृत्य के लिए सूरज श्याम को मार देता है. सूरज का जुर्म अपने माथे ले वंदना उसे बचा लेती है. श्याम के कत्ल के लिए उसे जेल हो जाती है . सज़ा पूरी हो जाने पर जेलर उसे अपने घर ले जाता है जहां उसकी मुकाकात रेणु और सूरज से हो जाती है. फिल्म के अंत में मां और बेटे एक हो जाते हैं . वंदना की आराधना सफल हुई .
कटी पतंग : कटी पतंग यतीम माधवी के जीवन में उतार चढ़ाव की कहानी है। यतीम माधवी गंगापुर के अपने मामा घर रहती है। माधवी का बोझ अपने सर से हटाने के लिए मामा उसकी बेमेल शादी कर देता है। वो अपने प्रेमी कैलाश के पास लौट जाती है। मगर वो तो किसी और की बाहों में । माधवी को यहां भी सहारा नहीं मिल पाता। घर वापस लौटी तो मामा चल बसे थे। एक बार फिर घर छोड़ने को मजबूर थी वो।
घटनाक्रम में उसकी मुलाक़ात विधवा दोस्त पूनम से होती है. ट्रेन हादसे में पूनम की मौत हो जाने उसे पूनम की पहचान ले लेनी पड़ती है. वो विधवा का जीवन जीने लगती है। कमल और माधवी एक दूसरे के संपर्क में आते हैं. यह पहचान जल्द ही प्यार में बदल जाती है. कमल माधवी को अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता है.
क्या कमल माधवी के जीवन को बदल पाता है. यही कहानी का केंद है.
अमर प्रेम : अमर प्रेम की कहानी इसके नाम के मुताबिक थी. फिल्म यह रेखांकित कर गई कि प्यार की परणिति विवाह और बच्चे तक सीमित नहीं होती. प्रेम स्वयं को कई रूपों में व्यक्त कर सकता है. पुष्पा की जिंदगी में कई उतार चढ़ाव है.पति को उसकी कदर नहीं थी. अमर प्रेम प्यार की बनी बनाई परपाटी को चुनौती देते हुए सुंदर फिल्म बनके उभरती है. आनंद बाबू और नंदू पुष्पा जिन्दगी में उम्मीद बन कर आते हैं. पड़ोस के नंदू से उसे असीम स्नेह बन जाता है. हालांकि कई वजहों से वो फिर से अकेली हो जाती है.
बरसों बाद जीवन के सायंकाल में आनंद बाबू लौट आते हैं. पुष्पा के लिए नंदू का तोहफ़ा लेकर आते हैं. अंत में दोनों का एक होना दरअसल अमर प्रेम का असली संदेश था. अदाकारी से लेकर गीत संगीत भी अमर प्रेम को उसे वो बनाती है, हिंदी सिनेमा में जो स्थान वो रखती है.
अमिताभ बच्चन की ‘एंग्री यंग मैन’ छवि के आने से ‘रोमांस’ केंद्र बिंदु से गायब सा हो चला था, राजेश खन्ना के ‘रुमानियत’ और मैनरिज्म की जगह अमिताभ के ‘आक्रोश’ ने ली थी. समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति आक्रोश एवम उसके समाधान को दर्शकों का खूब प्यार मिला।
अमिताभ बच्चन हिंदी सिनेमा के नए सुपरस्टार बन गए। कहानियों एवम किरदारों को लेकर दर्शकों की रुचि में बदलाव से नए तेवर की फिल्में कामयाब हुई। शक्ति दा हालांकि शुरू से एक्सपेरिमेंटल रहे किंतु उनकी पहचान सॉफ्ट सामाजिक फिल्में बनी। मानवीय पहलू का सोशल सिनेमा मुख्य संदेश रहा। शक्ति सामंत फिल्मों के इतिहास में रहेंगे क्योंकि उनके साथ कई बेहतरीन फनकारों का इतिहास जुड़ा हुआ है। सोशल मेसेज की बड़ी फिल्मों का नाम जुड़ा है। अमर संवादों एवम गीतों का इतिहास जुड़ा हुआ है। हिंदी सिनेमा का कई नजरिए से अध्ययन हुआ है। शक्ति फिल्म्स का नज़रिया इनमें से एक है।

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