Sunday, May 19, 2024
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रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने

तुम मेरे सपने में
उस दिन से बसे हो
जिस पल से
मैंने सपने देखना सीखा,
सपनों का मायना
समझने से पहले ही
मेरे सपने
टूट गए
मुझे बाँध दिया गया
पर कटी परवाजों से
रस्मों- रिवाजों से
पर मैं किसी की आँख का
तारा नहीं बनी
किसी से दिल नहीं मिला
सबसे ठनी
और
अब तुम मुझे मिले
इत्तेफाक से,
कि जब मैंने
सपने देखना ही
छोड़ दिया
मगर
मैंने
ये क्या किया
एक दिन
तुम्हें अपनी उस अल्हड़ उम्र के
मासूम सपने से निकालकर
हक़ीक़त में
तुम्हारे सामने लाकर
खड़ा कर दिया
अपना नुकसान
कितना बड़ा कर दिया
कि
तुम डरने लगे
उस हकीकत से
जो तुम्हारे सपने छीन सकती है
तुमने अदब से
कुछ कहा तो नहीं
मगर तुम्हारी ख़ामोशी को तोड़कर
मैंने फीकी हँसी को ओढ़कर
खुद ही बात बदल दी
या शायद
रब ने ही मुझको अकल दी
कि उम्र भर
जो सपनों में रहा
वो अब
इस मोड़ पर मिलकर
कहीं छूट न जाए
ये सपना टूट न जाए
मैंने कहा-
छोड़ो भी ये बात
तुम भी सोचते होगे ना!
ये भी क्या- क्या बकती है
और
अचानक
तुम मुस्करा उठे
खिल गए मेरे सपने
मन ही मन मैंने तुमसे कहा-
भले तुम
किसी का नूर होना
मुझसे दूर होना
मेरी आँखों में
बसना
ख्वाब के मोती पिरोना
मेरे लिए क़यामत का मतलब है
तुमको खोना
बस तुम
यों ही बिखेरते रहना
अपनी आवाज के जादू के संग
अपनी मुस्कराहट की ख़ुशबू का रंग
एक तुमसे ही तो
मेरी ज़िन्दगी महकती है!
रश्मि विभा त्रिपाठी रिशू
रश्मि विभा त्रिपाठी रिशू
संपर्क - rashmivibhatripathi@gmail.com
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