हिन्दी ग़ज़लों का इतिहास बहुत पुराना है। जिस तरह आज की उर्दू ग़ज़लों का विकास एक बहर वाली कविता जिसे अरबी में बैत एवं फ़ारसी में शेर कहते हैं के साथ शुरू हुआ था ठीक उसी तरह हिन्दी ग़ज़लों का विकास भी दोहेनुमा कविता से शुरू हुआ था । हिन्दी ग़ज़ल के इतिहास में दृष्टि डालें तो पता चलता है कि हिन्दी में ग़ज़ल लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। कविता में अंत्यानुप्रास / तुकांत परंपरा की शुरुआत सन 690 के आसपास सिद्ध सरहपा ने की थी। जिसे आधुनिक कविता का प्रारम्भिक रूप माना जा सकता है। सिद्ध सरहपा द्वारा रचित दोहे शेर/बैत के समान ही थे।

उदाहरण के तौर पर – जेहि वन पवन न सचरई , रवि ससि नाह प्रवेस। तेहि वट चित्त विश्राम करूँ , सरहे करिय उवेस।। कबीर (1398-1518) की निम्नलिखित ग़ज़ल पर सबसे पहले डॉ॰गोविंद त्रिगुनायत का ध्यान गया । जिसके आधार पर कबीर को पहला हिन्दी ग़ज़लकार माना गया। हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या , रहें आज़ाद यों जग में हमन दुनियाँ से यारी क्या , कबीरा इश्क का मारा दुई को दूर कर दिल से ,जो चलना राह नाजुक है हमन सिर बोझ भारी क्या । हालांकि बाद के कवियों ने भी कबीर की तरह छंदबद्ध कविताओं को समृद्ध किया है। रहीम (1556-1627)का दोहा- रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिर फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार ।। एकै साधे सब सधे ,सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सीचिबों, फूलें फलै अघाय ।। बिहारी(1603-1664) ने भी अच्छे दोहे लिखे- सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर । देखन में छोटे लगैं ,घाव करें गंभीर ।।

जिस तरह हिन्दी दोहों से हिन्दी गज़लों का विकास हुआ ठीक उसी तरह बैत या शेर से उर्दू ग़ज़लों का विकास हुआ है। आरंभिक उर्दू ग़ज़लों के उद्गम की तुलना तुकांत हिन्दी कविताओं (दोहो) से की जा सकती है।  बहुत से समीक्षक भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885) को पहली हिन्दी ग़ज़ल लिखने वाला कवि मानते हैं।बानगी के तौर पर उनकी ग़ज़ल का एक शेर – रुखे रौशन पे  उनके गेसू-ए-शबगूं लटकते हैं, क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन में भटकते हैं। निराला (1896-1961) की ग़ज़लें हिन्दी ग़ज़लों के बहुत करीब दिखाई देती हैं जैसे – जमाने  की रफ़्तार में कैसा तूफाँ ,मरे जा रहे हैं जिये जा रहे हैं ,खुला भेद विजयी कहाए हुए जो, लहू दूसरों का पिये जा रहे हैं।

बहुत से कवियों ने बेहतरीन हिन्दी ग़ज़लें (हिंदकी) लिखीं हैं एवं आज भी लिख रहे हैं। जिनकी रचना धर्मिता से हिन्दी ग़ज़ल संसार समृद्ध हुआ है और निरंतर हो रहा है लेकिन हिन्दी काव्य संसार में ‘साये में धूप’ के माध्यम से इसे स्थापित करने का श्रेय स्वर्गीय दुष्यंत कुमार को दिया जाता है।उनकी हिन्दी ग़ज़लों को जो लोकप्रियता हासिल हुई उससे साहित्य जगत में हिन्दी ग़ज़लों की सशक्त उपस्थिति दर्ज़ हुई। इसका परिणाम यह भी हुआ कि उर्दू लिखने वालों ने इसका जमकर विरोध किया। उर्दू व्याकरण शास्त्र का हवाला देते हुये दुष्यंत की हिन्दी ग़ज़लों को ख़ारिज़ कर दिया गया। हिन्दी ग़ज़लों के विरुद्ध तब से चला ये अभियान आज भी ज़ारी है। इसका मुख्य कारण है हिन्दी ग़ज़ल लिखने के लिए छंद विधान का न होना।

हिन्दी ग़ज़लों की व्याख्या समय समय पर हिन्दी ग़ज़लकारों द्वारा इसे अलग अलग नाम देकर की जाती रही है – गीतिका, मुक्तिका, अनुगीत , तेवरी, नई ग़ज़ल, नव ग़ज़ल, नागरी ग़ज़ल, द्विपदिका, हज़ल, नविता (नई कविता का एक रूप ) आदि। दुष्यंत ने स्वयं इसे नई कविता की एक विधा माना था। कुछ लोगों ने इसके गीत एवं नवगीत के करीब होने की बात कही थी । हिन्दी एवं विभिन्न भाषाओ में लिखी जा रहीं ग़ज़लों का अवलोकन करने के पश्चात मैंने हिन्दी ग़ज़ल लेखन के लिए नये छंद की  रचना करके उसे हिंदकी नाम दिया है और एक साधारण मानक स्वरूप तैयार किया है।

इसके अन्वेषण का मुख्य उद्देश्य हिन्दी एवं आम बोलचाल की भाषा में लिखी जा रही ग़ज़लनुमा रचनाओं को हिंदकी छंद के रूप में मान्यता दिलाना, बढ़ावा देना, एवं हिंदुस्तान में उर्दू ग़ज़लों से अलग नई पहचान दिलाना है। छंदों की उत्पत्ति वेदों से हुई है अरबी,फ़ारसी एवं उर्दू भाषाएँ बहुत बाद की भाषाएँ हैं। हिंदकी छंद आयातित छंदों जैसे रुबाई ,ग़ज़ल, मुक्त छंद, नवगीत, प्रयोगवदी कविता एवं हाइकु से भिन्न, पूरी तरह हिंदुस्तानी अर्थात भारतीय छंद है। 

हिंदकी छंद –  हिंदकी ( हिन्दी ग़ज़ल) मात्रिक छंद की वह विधा है जिसमें चार से अधिक पद होते हैं। प्रथम युग्म सानुप्रास होता(तुकांत) है  एवं शेष युग्म के दूसरे पद (चरण या पंक्ति) का तुक पहले युग्म के दोनों पदों के तुक से मिलता है। युग्मों की न्यूनतम संख्या  तीन एवं अधिकतम संख्या सुविधानुसार कितनी भी बढ़ाई जा सकती है। कवि यदि चाहे तो अंतिम पद में अपने नाम का प्रयोग कर सकता है लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है । हिंदकी मात्रिक छंद को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है । सम मात्रिक छंद एवं विषम मात्रिक छंद। 

सममात्रिक हिंदकी छंद (युक्तिका) – इसकी संरचना निश्चित मात्रा भार पर आधारित होती है इसमे सभी पद 8 से 40 मात्राओं में निबद्ध हो सकते हैं ।समान्यतः 12 से 36 मात्रिक हिंदकी छंद प्रभावशाली लिखने में आसान होते हैं।ये छंद स्वभाव में नयी कविता , गीत एवं नवगीत के करीब होते हैं।इसमे तुकांत के पश्चात पदांत हो भी सकता है और नहीं भी। उदाहरण –  

गाँव छोड़ा नहीं करते शहर के डर से

 नांव छोड़ा नहीं करते लहर के डर से

जड़ों को सींचते रहना फलों की ख़ातिर

छाँव छोड़ा नहीं करते कहर के डर से

हौसला रखने से ही मिलती है मंज़िल

पाँव मोड़ा नहीं करते सफ़र के डर से 

विकास के लिये उद्योग भी ज़रूरी हैं 

ठाँव छोड़ा नहीं करते बसर के डर से

वक़्त लगता है हर रूप को सँवरने में

चाव छोड़ा नहीं करते नज़र के डर से 

फैसला छोड़ दिया जाता है किस्मत पर 

दाँव छोड़ा नहीं करते दहर के डर से 

उपरोक्त पदों में शहर ,लहर, कहर – तुकांत एवं डर से – पदांत हैं । 

विषम मात्रिक हिंदकी छंद(मुक्तिका) – इसकी संरचना निश्चित मात्रा भार पर आधारित नहीं होती।इसमे सभी पदों की मात्राएं विषम होती है ( आंशिक अंतर होता है)। विषम मात्रिक छंदों मे शब्दों का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि मात्रा का अंतर दो या तीन से अधिक न हो।ये छंद स्वभाव में नई कविता के करीब होते हैं लेकिन अंतर केवल इतना होता है कि इन्हें सम मात्रिक हिंदकी छंद की तरह आसानी से गाया जा सकता है। इसमे भी तुकांत के पश्चात पदांत हो भी सकता है और नहीं भी। उदाहरण- 

हाल मौसम का बरसात बता देती है

रिश्तों की आयु मुलाक़ात बता देती है 

मिलने जुलने का सलीक़ा भी ज़रूरी है

ज़बाँ पलभर में औक़ात बता देती है 

सफ़र में मायने रखती नहीं रफ़्तार कभी 

चाह मंज़िल की शुरुआत बता देती है 

कभी सेहत से दक्षता न आँका करिए

कौन जीतेगा ये बिसात बता देती है 

बोला करते नहीं तन के कीमती जेवर

चमक चेहरे की सौगात बता देती है 

लक्ष्य को छूने का गर ज़ुनून मन में हो

रास्ता जाने का हयात बता देती है 

चलने और बैठने से मिज़ाज दिखता है 

बंदगी आदमी की ज़ात बता देती है  

उक्तिका यदि विषम मात्रा भार का अंतर तीन से अधिक हो , युग्मों के तुक भी न मिलते हों तो इसे उक्तिका की श्रेणी मे रखा जाएगा। उदाहरण-

हश्र होता है शहीदों का बुरा उस देश में 

जहाँ रहते हैं भगोड़े संतरी के भेष में 

जो सहीं है वो हमें निर्भीक लिखना चाहिये

क्या हुआ है ये सभी को साफ़ दिखना चाहिये 

राजनीति के सहारे आप भी तर जाओगे 

पर शहीदों का कभी चुक्ता न ऋण कर पाओगे  

हम जुटा न पाये हैं दो फूल वीरों के लिये

हो गए हैं जो वतन के उन फ़कीरों के लिये 

हर जगह इस मुल्क में आतंक है अलगाव है 

लग रहा है ये मिली आज़ादी का बदलाव है 

मात्रा गणना – हिंदकी छंद की मात्रा गणना हिन्दी छंद शास्त्र के अनुसार होनी चाहिए । 

अंत्यानुप्रास या तुक – हिंदकी छंद में हिन्दी में प्रचलित विभिन्न प्रकार के तुकों को अलग अलग या एक रचना में संयुक्त रूप से प्रयोग किया जा सकता है। शर्त ये है कि कम से कम आखिरी के दो अक्षर का तुक जरूर मिलना चाहिए।  जैसे- मुलाक़ात, बरसात, औक़ात, शुरुआत, बिसात, सौगात, हयात, बात, घात, रात, साथ, कायनात / हिला ,खिला, मिला, काफिला, सिलसिला / दूर, नूर, हूर दस्तूर आदि। अंत्यानुप्रास या तुक को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है । उत्तम तुक (राम, नाम, काम, धाम, दाम आदि), मध्यम तुक- (कहार, बहार, कतार, अहार, डकार आदि) एवं निकृष्ट तुक (मांगिए, फेंकिए ,ढूंढिए ,पूछिए,चीख़िए आदि)। 

हिंदकी छंद की विशेषता भाषा सरल, सहज एवं सुबोध । प्रतीक,बिम्ब एवं मुहावरों का सटीक प्रयोग। अभिव्यक्ति की कलात्मकता, विषय वस्तु की मौलिक गरिमा, मानव जीवन से जुड़ी समस्याओं की अधिकता , मार्मिकता का जीवन के संस्कारों एवं संस्कृति से गहरा एवं गंभीर सरोकार होना चाहिए । आम बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होने वाली किसी भी भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।  हिंदकी के प्रत्येक युग्म के भाव एक भी हो सकते हैं और अलग अलग भी। । छंद में निहित गति,लय एवं प्रवाह के कारण यह गीत की तरह गेय अर्थात गाने योग्य है। इस छंद में लिखी रचना को शीर्षक दिया जा सकता है।हिंदकी का अभिप्राय है – हिन्द की,हिन्दी की ,हिंदुस्तानी या आम बोलचाल की भाषा। 

विभिन्न भाषाओं में लिखी जा रहीं ग़ज़लों को पहचान देने के लिए हिंदकी छंद का प्रयोग जरूरी है अन्यथा अलग अलग नाम जैसे गीतिका, मुक्तिका, अनुगीत ,तेवरी, नई ग़ज़ल,नव ग़ज़ल, नागरी ग़ज़ल, द्विपदिका, हज़ल, नविता (नई कविता का एक रूप )आदि देने के बावजूद हिन्दी ग़ज़लें (हिंदकी) उर्दू छंदशास्त्र के आधार पर ख़ारिज होती रहेंगी। 

मुझे किसी धर्म ,जाति ,भाषा या विधा से कोई गुरेज़ नहीं है। सभी का बराबर सम्मान करता हूँ। किसी को छोटा या बड़ा दिखाना मेरा मक़सद नहीं है। मैं यह भी अच्छी तरह जानता हूँ कि आज किसी भी नयी विधा /छंद को स्थापित करना सहज काम नहीं है। एक उम्र भी कम पड़ जाती है। हिंदकी छंद भारतीय परिवेश में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हिन्दी या आम बोलचाल की भाषा अनेक भाषाओं का मिश्रण होती है और यही इसकी ख़ूबसूरती एवं आकर्षण का कारण भी है। उदाहरण स्वरूप एक पैरा देखें जिसमें देश विदेश की भाषाओं का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।   

“एक जुलाई को सुबह जब मैं अपने मित्र के  मकान में हवन करने बैठा उस वक्त तेज़ बारिश हो रही थी किसी ने बावर्ची को  टेलीफोन से सूचित किया कि स्काउट के कुछ शरारती बच्चे कमीज़ उतारकर रिक्शे के ऊपर बिना कारतूस की बंदूक लेकर मटरगश्ती कर रहे हैं, बाल्टी से टमाटर निकालकर रास्ते में फेंक रहे हैं और लोग चाय- तंबाकू का आनंद लेते हुये गुमटी से ये नज़ारा देख रहे हैं।“    मित्र – रूसी

जुलाई – रोमन शब्द            सुबह,मकान – अरबी         हवन – संस्कृत बारिश- फ़ारसी                 बावर्ची, बंदूक – तर्किश टेलीफोन – यूनानी               स्काउट – डच रास्ता,बच्चे –पर्जियन कमीज़ – पुर्तगाली                       रिक्शे – जापानी कारतूस – फ्रांसीसी मटरगश्ती –पश्तो बाल्टी –पुर्चुकी                  टमाटर – मैक्सिकन चाय – चीनी तंबाकू-ब्राज़ील आनंद,गुमटी -हिन्दी नज़ारा, शरारती एवं वक़्त – उर्दू  

इस छोटे से पैरा में 19 विभिन्न भाषाओं के शब्द समाहित हैं। जिस प्रकार विभिन्न नदियों के मिलने से गंगा के ऊपर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ठीक उसी प्रकार विभिन्न भाषाओं के हिन्दी में मिलने से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि उसकी ख़ूबसूरती में बढ़ोतरी होती है। हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है,भारतीय संस्कृति की संवाहिका भी है जो देश विदेश में रह रहे करोड़ों भारतीयों को आपस में जोड़ती है।

यही वजह है कि भारतीय संसद ने सन 2003 में भारतीय भाषाओं के विकास एवं उन्हें बराबर का सम्मान दिलाने के उद्देश्य से आठवीं अनुसूची की योजना जारी की थी जिसमें अभी तक 22 भाषायेँ एवं 11 लिपियाँ सूचीबद्ध हो चुकी हैं। 38 भाषाएँ अनुसूची में शामिल होने की कतार में हैं।  इस छंद को बनाने का मुख्य उद्देश्य आम बोलचाल या प्रचलित भाषा में लिखी जा रहीं हिंदकी अर्थात हिन्दी गज़लों को एक नया नाम देना है नाकि भाषा और विधा के बीच विवाद पैदा करना। हिन्दी एवं उर्दू भाषा का अपना गौरवशाली इतिहास एवं छंद विधान है। कुछ साथियों द्वारा केवल हिन्दी को अपनाने की बातें करना भी हिन्दी के मार्ग में अवरोध पैदा करने का काम कर रहा है।

ऐसे लोगों के कारण ही आज आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 17 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के विधान मंडल में हिन्दी को अपनाया गया है। शेष 19 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के विधान मंडल में वहाँ की राजभाषा भले लागू हो लेकिन हिन्दी को नहीं अपनाया गया है इनसे पत्राचार करना है तो अंग्रेजी में ही करना होगा की नीति अपनाई गयी है।आज जरूरत है कि हम एक दूसरे की भाषा ,संस्कृति एवं साहित्य का बराबर सम्मान करें ,आलोचना न करें। हिंदकी छंद का निर्माण तुकांत कविताओं की विकास यात्रा को ध्यान में रखकर किया गया है किसी भाषा विशेष के छंद शास्त्र का विरोध करने के उद्देश्य से कतई नहीं।

दुख होता है जब मैं कुछ मित्रों को यह कहते हुए देखता हूँ कि जो लोग उर्दू ग़ज़ल को साध नहीं पाये वे ही लोग हिन्दी ग़ज़लों की पैरवी कर रहे हैं ।वर्णमान में लिखी जा रहीं बेहतरीन हिन्दी गज़लों को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उर्दू छंद शास्त्र के आधार पर ग़ज़ल लिखना कठिन भले हो लेकिन असंभव नहीं है। मैं भारतीय लोकतंत्र का हिमायती हूँ ,सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता हूँ । मैंने हिंदकी अर्थात हिन्द की ,हिन्दी की या हिंदुस्तान की आम बोलचाल की भाषा में लिखी जा रही सभी प्रकार की गज़लों को हिंदकी कहा है चाहे वो तुकांत कविता के विकास का वर्तमान स्वरूप हो या अरबी,फारसी एवं उर्दू गज़लों के विकास का वर्तमान स्वरूप। अरबी,फारसी और उर्दू ग़ज़लें हार्दिक भावनाओं एवं प्रेम की कामनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति होती हैं लेकिन आज सामाजिक जीवन की विसंगतियों पर भी खूब लिखी जा रहीं हैं।ये हिंदुस्तान की ज़मीन की देन है।

यदि मैं गज़लों के इस बदले हुये स्वरूप को भी हिंदकी अर्थात हिन्द की,हिन्दी की या हिंदुस्तानी( आम बोलचाल की भाषा )का नाम दूँ तो किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए। मुझे दिनांक 17.9.2016 को राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’जयंती समारोह एवं प्रांतीय अधिवेशन में नयी पीढ़ी को छंद विधान एवं ग़ज़ल की बारीकियों से परिचित कराने का अभियान संचालित करने के लिये विधानसभा अध्यक्ष छत्तीसगढ़ शासन के हाथों राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ सम्मान प्रपट हो चुका है।  हिन्दी ग़ज़ल का इतिहास एवं नवछन्द विधान हिंदकी पर कई साहित्यिक व्हाट्सएप समूह में विस्तार से चर्चा भी आयोजित की जा चुकी है । प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले साहित्यकारों एवं संपादकों के सकारात्मक विचारों से मेरे इस अभियान को तीव्र गति मिली यथा- 

    • डॉ.माणिक विश्वकर्मा का महत्वपूर्ण आलेख।  – अशोक असफल 
    • आलेख पढ़कर स्वयं को समृद्ध किया ।  –  मनोज जैन ‘मधुर ‘  
    • हिन्दी ग़ज़ल पर डॉ.माणिक विश्वकर्मा का लेख अच्छा लगा इसमें ग़ज़ल विधा की पृष्ठभूमि तो है ही उसके आगामी विकास के कई सूत्र भी पेश किए गए हैं।  –डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी 
    • आलेख डायरी में नोट किया ताकि मुझ जैसे नवोदित भी हिन्दी ग़ज़ल सीख सकें।  – नवीन जैन ‘अकेला’ 
    • आ.माणिक विश्वकर्मा जी का हिन्दी ग़ज़ल का इतिहास पढ़ने को मिला ,निः संदेह ज्ञानवर्धक एवं आज की पीढ़ी के लिए धरोहर स्वरूप है। इस उफर को अपनी डायरी में दर्ज़ कर अपने लिए उफर स्वरूप सँजोकर रखूँगा। माणिक सर को हार्दिक बधाई एवं नमन।  – डॉ.शिव सिंग 
    • विचारणीय ज्ञानवर्धक लेख। सहमत हूँ कि हिन्दी में ग़ज़ल के अपने मापदंड होने चाहिए।माणिक जी ने काफी मेहनत से लिखा। संग्रहणीय। आभार। — खुदेज़ा ख़ान 
    • आ.माणिक विश्वकर्मा जी का हिन्दी ग़ज़ल संबंधी आलेख पढ़कर मन को सांत्वना मिली। निः संदेह आपके इस आलेख से मन में नयी आशा का संचार हुआ है जिससे सृजनात्मकता को सहयोग मिलेगा और हिन्दी ग़ज़ल को जीवित रखने में यह आलेख मील का पत्थर साबित होगा । इसके लिए माणिक विश्वकर्मा जी को हृदय से धन्यवाद एवं आभार।  – सी.पी.सिंह ‘जादौन’ 
    • आदरणीय नवरंग जी को एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण आलेख के लिए हार्दिक बधाई। उनके इस श्रमसाध्य कार्य के फलीभूत होने के लिए शुभकामनाएँ।  — सत्य प्रसन्न 
    • हिंदकी जन्म की बहुत बधाई । अभिनव प्रयास के अभियान में हम साथ हैं । सनातनी सुरक्षा के लिए प्राण भी हाजिर। – सुनीता जैन मैत्रयी
    • सार्थक एवं तथ्यपरक जानकारी। आभार डॉ.माणिक भाई का। – ज्योति खरे 
    • श्रीयुत नवरंग जी का हिन्दी ग़ज़ल के संबंध में विस्तार से शोधपूर्वक तथ्य पढ़कर बहुत सारी जानकारी मिली। बहुत अच्छा आलेख है। – जय राम ‘जय’ 
    • परिवर्तन की दिशा में सार्थक पहल। आपने जो कहा समझ में आया। कोशिश करेंगे हम भी कुछ लिखने की। – नीलिमा करैया 
    • वाकई माणिक जी बेहतरीन लेख है आपका। – चित्रा- 
    • हिन्दी ग़ज़ल का संक्षिप्त इतिहास निश्चित ही सभी ग़ज़ल प्रेमियों के लिए उपयोगी है। नवछन्द विधान पर दृष्टिपात कर उसे गहराई से समझना भी उतना ही आवश्यक है। डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ जी को शुभकामनाएँ।- ज्योति गजभिये  
    • आदरणीय माणिक जी का ज्ञानवर्धक आलेख पढ़ा । अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद माणिक सर। —-पी.एल.दुबे 
    • नवरंग जी आपने अच्छी जानकारी दी धन्यवाद। – धर्मराज देशराज
    • इस सार्थक लेख हेतु बहुत बहुत बधाई। यह ग़ज़ल को समझने में सहायक सिद्ध होगा। – भावना तिवारी
    • डॉ.नवरंग जी ,बहुत उपयोगी जानकारी व आपका सरहनीय प्रयास। बहुत बधाई। – राजेंद्र श्रीवास्तव-
    • वाह,बहुत ही सुंदर जानकारी। – विनोद सागर

  • छत्तीसगढ़ में हिन्दी ग़ज़ल सम्राट के नाम से विख्यात डॉ.माणिक विश्वकर्मा’नवरंग’ को मैं चार दशकों जानता हूँ । उनकी भाषा की सरलता,विचार-गर्भिता,हृदयस्पर्शी भाव ,किसी भी बात को परखने की सूक्ष्म दृष्टि एवं स्पष्टवादिता ने हिन्दी गज़लों को नया स्वरूप प्रदान किया है। उनके कहने का अंदाज़ क़ाबिले तारीफ़ है। उनके द्वारा निर्मित हिंदकी छंद ,हिन्दी ग़ज़ल ही नहीं विभिन्न भाषाओं में लिखी जा रहीं ग़ज़लों के लिए भी उपयोगी है।नए लिखने वालों के लिए तो संजीवनी है। – युनूस दानियालपुरी  

इसी शृंखला में देश के प्रतिनिधि रचनाकारों की हिन्दी गज़लों का संग्रह ‘ हिंदकी’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है।

भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। पूरे विश्व को अनेकता में एकता का  संदेश देता है । मुझे विश्वास है कि बरसों से अलग ढंग से लिखी जा रहीं तुकांत रचनाओं को नव छंद विधान – हिंदकी नाम देने से हिन्दी गजल लेखन को और विस्तार मिलेगा एवं आने वाली पीढ़ी को विधा संबंधित अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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