1

सोना तपता आग में , और निखरता रूप ।

कभी न रुकते साहसी , छाया हो या धूप ।।

छाया हो या धूप , बहुत सी बाधा आयें  ।

कभी न बनें अधीर ,नहीं मन में घवरायें  ।

‘ठकुरेला’ कविराय , दुखों से कैसा रोना  ।

निखरे सहकर कष्ट , आदमी हो या सोना  ।।

2

होता है मुश्किल वही, जिसे कठिन लें मान ।

करें अगर अभ्यास तो, सब कुछ है आसान ।।

सब कुछ है आसान, बहे पत्थर से पानी ।

यदि खुद करे प्रयास , मूर्ख बन जाता ज्ञानी ।

‘ठकुरेला’ कविराय , सहज पढ़ जाता तोता ।

कुछ भी नहीं अगम्य, पहुँच में सब कुछ होता ।।

3

भातीं सब बातें  तभी ,जब  हो  स्वस्थ शरीर ।

लगे  बसंत  सुहावना , सुख से  भरे समीर ।।

सुख से  भरे समीर ,मेघ  मन  को  हर  लेते ।

कोयल ,चातक  मोर , सभी  अगणित सुख  देते ।

‘ठकुरेला’  कविराय , बहारें  दौड़ी  आतीं ।

तन ,मन  रहे अस्वस्थ , कौन  सी  बातें  भातीं ।।

4

हँसना सेहत के लिए  , अति हितकारी मीत ।

कभी  न  करें  मुकाबला , मधु ,मेवा , नवनीत ।।

मधु ,मेवा ,नवनीत ,दूध ,दधि ,कुछ  भी खायेँ ।

अवसर  हो  उपयुक्त , साथियो  हँसे – हँसायें ।

‘ठकुरेला’ कविराय  ,पास हँसमुख के बसना ।

रखो समय  का ध्यान , कभी असमय मत  हँसना ।।

5

जीवन जीना है कला , जो जाता पहचान ।

विकट परिस्थिति भी उसे , लगती है आसान ।।

लगती है आसान , नहीं दुःख से घबराता ।

ढूढ़े  मार्ग अनेक , और बढ़ता ही जाता ।

‘ठकुरेला’ कविराय ,नहीं होता विचलित मन ।

सुख-दुख , छाया-धूप , सहज बन जाता जीवन ।।

त्रिलोक सिंह ठकुरेला समकालीन छंद-आधारित कविता के चर्चित नाम हैं. चार पुस्तकें प्रकाशित. आधा दर्जन पुस्तकों का संपादन. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - trilokthakurela@gmail.com

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