सुबह घास में पड़ने वाली ओस सूरज की पहली किरण पड़ते ही मोतियों सी चमकने लगी है। अब  सुबह -शाम ठंडक बढ़ने लगी है । अजिया ने कल ही  सारे रजाई- गद्दा धूप में डाल दिए हैं। कह रही थी अब मोटे चद्दर से भी काम नहीं चलेगा, तड़के कुछ ज्यादा ही ठंड हो जाती है।
त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है। नवरात्र चल रही है। दशहरा में मेला लगेगा और रावण जलेगा।  फिर  दीपावली आएगी। घर के कोने-कोने की सफाई होगी और अमावस्या की अंधेरी रात में भगवान राम के स्वागत में घर, आंगन, खेत, खलिहान को दियों से रोशन किया जाएगा। उस दिन बच्चे पटाखे फोड़ेंगे और बनिया नया खाता शुरू करेंगे। इसके बाद पूर्वांचल में लोकआस्था के महापर्व की धूम होगी और हमारे बैसवारा में कतकी गंगा स्नान (कार्तिकी पूर्णिमा) की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। कतकी स्नान के बाद ही त्योहारों का मौसम होली तक के लिए रुक जाएगा।
हालांकि  खेतों में धान के पौधों के तने और पत्तियां अभी भी हरी  हैं लेकिन उनकी  मोटी और  हवा के साथ लहराती बालियां पककर  सोने की रंगत ले चुकी हैं। दूर से देखने पर ऐसे लगता है मानो किसी हरी साड़ी वाली गोरी ने गले में सोने का बड़ा सा हार पहन लिया हो। बाबा कल ही कह रहे थे कि इससे पहले कि आंधी-पानी आए, कोई काज-परोजन पड़े, उससे पहले फसल घर आ जानी चाहिए ।
इसलिए वह धान काटने वालों मजूरों की गिनती  कर आए हैं। मजूर धान काटेंगे,  फिर एक- आध हफ्ता उनको खेत में सूखने में लगेगा।  उसके बाद धान की फसल के बोझ बांधकर  आफर (खलिहान) लाये जाएंगे।
अभी काफी समय है इसलिए बारिश में ऊबड़ खाबड़ हुआ खलिहान  फरुआ (फावड़े) से बराबर किया जा रहा है । जिस दिन धान के बोझ खलिहान आएंगे उसके एक दिन पहले सूरज  चार -छह छीटा गोबर और 10 -12 बाल्टी पानी  खलिहान   में पहुंचा देगा । फिर  दोनों बुआ आकर पूरा खलिहान लीपेंगी।  सूरज भी लीपने में सहयोग करेगा।
लिपाई सूख जाने के बाद बाबा खलिहान के बीचोबीच   तखत, सरावनि या लकड़ी का कोई बड़ा कुंदा (टुकड़ा)  रख देंगे, जिस पर मजूर धान पीट सकेंगे।  वह लोग धान पीटने के बाद पैरा (पुआल ) एक तरफ फेंकते जाएंगे और  धान एक जगह इकट्ठा करके उसकी कूरी (ढेर) बनाई जाएगी।
पूरा धान पीटने और धान एक तरफ और पुआल एक तरफ करने से पहले घर के किसी आदमी का खलिहान में वैसे तो कोई काम नहीं है । लेकिन सूरज कभी मजूरों को पानी पूछने के बहाने, कभी बैलों को धूप में बांधने के बहाने खलिहान की तरफ कनखियों से निहार लेता है।
कातिक का महीना कितना अच्छा  है। मौसम सुहावना है, धूप कोमल है और सर्दी  भी गुलाबी है। त्योहारों की रौनक है और स्कूल में भी  छुट्टी है। रूपा  भी आई है। राम जाने यह कातिक का कमाल है या लंबे अंतराल  के बाद मिलने का असर,
वह पहले से ज्यादा सुंदर और मोहक लग रही है।उसका रंग भी पहले से  कुछ अधिक साफ हो गया है।  जुलाई में जब धान रोपने आई थी, तब कितनी चिलचिलाती गर्मी थी। शायद इसीलिए उसका रंग सांवला हो गया था।
रूपा को सूरज की उपस्थिति का भान हो चुका है। पहले वह सीधे सूरज को बुला लिया करती थी, सबके सामने उससे खुलकर बात भी कर लिया करती थी। लेकिन अब शायद वह बड़ी हो गई है इसलिए  अपनी अम्मा की नजर बचाकर सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा भर देती है और झट से नजर फेर लेती है।
पूरा धान पीटा जा चुका है। पुआल बाहर की तरफ और धान का ढेर खलिहान के बीचोबीच लग चुका है।  अब बाबा आएंगे।  वह  12 डलिया धान एक तरफ रखेंगे और एक डलिया धान रूपा की अम्मा की बोरी या पुरानी लेकर मजबूत धोती या चद्दर में डाल देंगे।  रूपा की अम्मा एक डलिया में कभी नहीं मानी इसलिए बाबा को चौथाई डलिया धान और  देना ही पड़ता है।
 एक बार बाबा ने चौथाई डलिया धान अलग से नहीं डाला था तो अगले साल रूप की अम्मा पूरे 5 दिन बाद धान काटने आई थी।  बिना कुछ कहे वह बाबा को सब कुछ कह गई थी । तबसे बाबा रुपा की अम्मा से कोई पंगा  नहीं लेते।
मजूरी बंट जाने के बाद, सूरज के हिस्से वाला धान झौआ और बोरी में भरकर उसके  घर  पहुंचा दिया जाएगा।  बाबा ने आंगन में ही  पल्ली बिछवा   दी है । फिलहाल धान वहीं रहेगा। उसके बाद उसे मिट्टी की डहरी  में भरकर डहरी  सील कर दी जाएगी। बाद में आवश्यकतानुसार उसे कुटाने  के लिए चक्की ले जाया जाएगा।
खलिहान में  झाड़ू लगाना अशुभ माना जाता है । धान हाथ से या पौली से बटोरना होता है। इसलिए काफी धान खलिहान में छूट जाता है। लेकिन सूरज ने रूपा को इशारे से बता दिया है कि अपनी अम्मा से भी कह देना कि खलिहान का धान बहुत अच्छी तरह से नहीं बटोरना।  रूपा और उसकी अम्मा सूरज के मन की बात जानती हैं इसलिए उन्होंने पर्याप्त धान खलिहान में छोड़ दिया है।
अब शाम होने को है।  रूपा,  रूपा की अम्मा और उनके संगी साथी मजूरी लेकर हंसी-खुशी अपने घर जा रहे हैं । सूरज ने भी बिना बोले इशारे से उन्हें थैंक यू कह दिया है।
आज पूरी रात  सूरज को ठीक से नींद नहीं आएगी । रूपा सपने में आती रहेगी, मुस्कराती रहेगी और सूरज को ख्वाबों की हसीन दुनिया की सैर कराती रहेगी। लेकिन अगली सुबह पौ फटने से पहले सूरज  डेलवा लेकर खलिहान पहुंच जाएगा। खलिहान में बिखरा पड़ा सारा धान वह झाड़ू लगाकर समेट लेगा। फिर उसे डेलवा या बोरी में भरकर घर ले आएगा। यह धान सिर्फ और सिर्फ सूरज  का होगा।
इस  धान के कुछ हिस्से से सूरज अपने लिए कम्पट,  बिस्कुट और चूरन लेगा और बाकी  हिस्से से किसी दिन तिल वाली पट्टी और गरी वाली बर्फ खरीदी जाएगी।
लेखक परिचय
आशा विनय सिंह बैस
संपर्क – vs67126@gmail.com

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