यांत्रिक या “औपचारिक” तर्क का अध्ययन गणितज्ञों के साथ प्राचीन काल में शुरू हुआ। गणितीय तर्क के अध्ययन ने कंप्यूटर वैज्ञानिक “एलन ट्यूरिंग” के “कंप्यूटर सिद्धांत” को जन्म दिया। इस सिद्धांत का मानना है की मशीन, “0” और “1” जैसे सरल चिह्न, को जोड़-तोड़ कर के कोई भी बोधगम्य गणना कर सकती है। वह यह भी कहता है की आज के साधारण कंप्यूटर ऐसी मशीने हैं। यह मानते हुए कि कंप्यूटर औपचारिक तर्क की किसी भी प्रक्रिया का अनुकरण कर सकते हैं, ट्यूरिंग ने प्रस्तावित किया कि “यदि कोई मनुष्य मशीन और मानव से प्रतिक्रियाओं के बीच अंतर नहीं कर सकता है, तो मशीन को “मानव की तरह बुद्धिमान” माना जा सकता है।
भले ही मशीनों के बुद्धि विकसित करने के शोध की शुरूआत 1943 हुई हो, लेकिन कृत्रिम बुद्धि के आविष्कारक जॉन मैकार्थी थे जिन्होंने 1956 में डार्टमथ कॉलेज में अपने सहकर्मी मार्विन मिंस्की , हरबर्ट साइमन और एलेन के साथ मिलकर कृत्रिम बुद्धि से जुड़े अनुसंधान की स्थापना के लिए एक कार्यशाला आयोजित की और पहली बार आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस अर्थात कृत्रिम बुद्धि शब्द का प्रयोग करते हुए कहा था कि विज्ञान और अभियांत्रिकी का इस्तेमाल करके एक ऐसा कम्प्यूटर बनाया जा सकता है जो खुद से ही सोचकर समझकर निर्णय ले सके। 
इसलिए जॉन मैकार्थी को ही कृत्रिम बुद्धि के पिता के रूप में माना जाता है। जॉन मैकार्थी ने जब इस पर कार्य शुरु किया था उस समय तकनीक का इतना विकास नहीं हुआ था। लेकिन अब उन्नत एल्गोरिथम, कम्प्यूटिंग पावर और स्टोरेज में प्रगति के कारण कृत्रिम बुद्धि को लोकप्रिय और कामयाब बनाया जा सका है।
कृत्रिम बुद्धि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई मानव और अन्य जन्तुओं द्वारा प्रदर्शित प्राकृतिक बुद्धि के विपरीत मशीनों द्वारा प्रदर्शित बुद्धि है। यह मशीनों को मानव बुद्धि की तरह सोचना और काम करना सिखाती है। जब एक मशीन इंसानों के “संज्ञानात्मक” कार्यों की नकल करती है तब “कृत्रिम बुद्धि” शब्द लागू होता है। 
ऐंड्रेआस कापलान और माइकेल हेंलेन कृत्रिम बुद्धि को किसी प्रणाली के बाह्य डेटा को सही ढंग से व्याख्या करने, ऐसे डेटा से सीखने, और सुविधाजनक रूपांतरण के माध्यम से विशिष्ट लक्ष्यों और कार्यों को पूरा करने में उन सीखों का उपयोग करने की क्षमता के रूप में परिभाषित करते हैं। 
मानव सोचने-विश्लेषण करने व याद रखने का काम भी अपने दिमाग के स्थान पर कम्प्यूटर से कराना चाहता है। कृत्रिम बुद्धि के जरिए कम्प्यूटर या मशीनों को इस तरह से बनाया जा रहा है कि वे इंसानों द्वारा किए जाने वाले कार्य न केवल आसानी से कर सकें बल्कि इंसानों की तरह निर्णय भी ले सकें।
कृत्रिम बुद्धि के पारंपरिक लक्ष्यों में तर्क, ज्ञान प्रतिनिधित्व, योजना, सीखना, भाषा समझना, धारणा और वस्तुओं को कुशलतापूर्वक उपयोग करने की क्षमता शामिल है। आज, यह प्रौद्योगिकी उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा बन गया है। महसूस करने या समझने, तर्कसंगत ढंग से सोचने, सीखने, समस्याओं को हल करने और यहाँ तक रचनात्मकता का इस्तेमाल इसके दायरे में आते हैं।
कृत्रिम बुद्धि को लेकर वैश्विक स्तर पर अलग-अलग राय है। कुछ विद्वान इसे ऐसी बदलावकारी तकनीक मानते हैं, जो ग्रोथ और उत्पादकता की रफ्तार तेज करेगी। इसके विरोध में यह तर्क रखा जाता है कि कृत्रिम बुद्धि मानव की सृष्टि है और वह किसी भी स्थिति में मानव बुद्धि की स्थानापन्न या समानांतर नहीं हो सकती। केवल मनुष्य ही वास्तविक बुद्धि संपन्न हो सकता है मशीन के पास आत्मा नहीं हो सकती इसलिए मशीन मनुष्य की तरह नहीं सोच सकती। 
कृत्रिम बुद्धि उसी तरह से कृत्रिम है जैसे प्लास्टिक का फूल कृत्रिम होता है। उसमें असली पुष्प के आवश्यक गुण नहीं समाहित होते पर केवल बाह्य साम्य के कारण वह कृत्रिम पुष्प ही कहलाता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य लोगों की राय में इसका नकारात्मक परिणाम बड़े पैमाने पर रोजगार को नुकसान देने वाला होगा। 
कृत्रिम बुद्धि को प्रौद्योगिकी की प्रगति के रूप में परिभाषित करने वाले प्रारंभिक मानक अब पुराने हो गए हैं। क्योंकि मशीनें तेजी से सक्षम हो रही हैं, जिन कार्यों के लिए पहले कृत्रिम बुद्धि उपयोगी सक्षम हो चुकी हैं, कि आज कल कृत्रिम बुद्धि के दायरे में आने वाले कार्य, लिखे हुए शब्दों को पहचानने से कहीं अधिक आगे, इंसानी वाणी को समझने, शतरंज के खेल में माहिर इंसानों से भी जीतने, बिना ड्राइवर के गाड़ी और विमान चलाने जैसे हो गए हैं।
कृत्रिम बुद्धि के संभावित अनुप्रयोग प्रचुर मात्रा में हैं। कृत्रिम बुद्धि हमारी जीवन शैली बदल सकती है। स्वास्थ्य-देखभाल, नव निर्माण, खेल, अंतरिक्ष अभियान और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में इसका प्रयोग हो रहा है। चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे अधिक बदलाव आया है। बीमारियों की समय से पहले पहचान, बेहतर निदान, असरदार दवाओं का विकास और शल्य चिकित्सा जैसे जटिल तकनीकी क्षेत्रों में कायाकल्प हो रहा है। 
यूके में नेशनल हेल्थ सर्विस में जहाँ लाखों की संख्या में रोगी वेटिंग लिस्ट में लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहे हैं, आशा बँधती है कि कृत्रिम बुद्धि की सहायता से अस्पतालों के प्रशासनिक कार्यभार त्वरित गति से सम्पन्न किए जा सकेंगे और डॉक्टर और नर्सों के पास रोगियों के इलाज तथा देखभाल करने के लिए अधिक समय होगा। कृत्रिम बुद्धि पर आधारित एक उपकरण बच्चे के चेहरे का चित्र देखकर उसके त्वचा और नेत्रों की बीमारी सहित नब्बे प्रकार की बीमारियों का निदान कर सकता है। 
इसी प्रकार नेत्र के चित्रों की शृंखला के आधार पर मोतियाबिंद और नेत्र सम्बंधित अन्य बीमारियों की आशंका के बारे में बीमारी होने के वर्षों पहले बताया जा सकता है। डेनमार्क के डॉक्टरों ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है जिससे वे टेलीफोन पर व्यक्ति की आवाज़ सुनकर यह बता सकते हैं कि उसको दिल का दौरा पड़ा होगा या पड़ रहा है। 
शिक्षा के क्षेत्र में इसका उपयोग कक्षा में पाठ्यक्रम की योजना और भिन्न-भिन्न योग्यता वाले छात्रों के लिए व्यक्तिगत पाठ्यक्रम की योजना करने के साथ योग्यता का आकलन और रिपोर्ट लेखन आदि के लिए किया जा रहा है। हाँगकाँग की प्रसिद्ध बच्चों के खिलौनों की कंपनी वीटेक ने घोषणा की है कि वे एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने वाले हैं जो बच्चों के नाम, स्कूल के नाम आदि व्यक्तिगत जानकारी रखेगा और उनको मनपसंद बेडटाइम कहानियाँ पढ़ कर सुनाएगा। बाल-संरक्षण चैरिटी 5 राइट्स फाऊंडेशन इस सूचना से अत्यंत चिंतित हैं। उनका सोचना है कि इस प्रकार के अनुभव बालकों को सत्य और कल्पना में अंतर करने की क्षमता को विकृत कर देगा। 
खेलों में इसका प्रयोग खेल-क्षेत्र की स्थिति और रणनीति के बारे में सुझाव भी दिए जाते हैं। हाल में संकटापन्न पक्षियों और पशुओं की गणना करने में मानव की सीमाओं में कृत्रिम बुद्धि सहायक प्रमाणित हुई है। अंतरिक्ष से जुड़े अंवेषणों में भी इस तकनीक का उपयोग अत्यंत कुशलता से हो रहा है। 
मनोरंजन उद्योग के लिए, कंप्यूटर खेलों और रोबोट आदि, अस्पतालों, बैंकों और बीमा आदि बड़े प्रतिष्ठानों में ग्राहक-व्यवहार की भविष्यवाणी और रुझानों का पता लगाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। एप्पल का सिरी और एलेक्सा प्राकृतिक भाषा के प्रश्नों और अनुरोध को समझाने में सक्षम है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एक उदाहरण है। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) के अनुमानों के मुताबिक, कृत्रिम बुद्धि का 15.7 खरब डॉलर का अतिरिक्त बाजार है और यह तेजी से बदल रही अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा व्यावसायिक मौका है। इसका इतनी त्वरित गति से बढ़ना यह प्रमाणित करता है कि कृत्रिम बुद्धि अब भविष्य की परिकल्पना न होकर हमारे वर्तमान का यथार्थ बन गई है और इसके साथ जुड़े प्रश्नों को भविष्य पर नहीं छोड़ा जा सकता है। 
ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक के परामर्श दाता ने मानव जाति पर इसके संभावित ख़तरे की भयावहता को रेखांकित करते हुए कहा, ‘हमने वस्तुत: एक ऐसी प्रजाति सृजित की है जिसकी बुद्धि मानव से अधिक है।’ कृत्रिम बुद्धि के दुरुपयोग का एक उदाहरण हाल ही में हुए एक कोर्ट के केस में अपना अपराध स्वीकार करने वाले जसवंत सिंह चैल नामक आरोपी के बयान में देखने को मिला।
जसवंत सिंह पर आरोप था कि वह विंडसर कासल में रानी एलिज़ाबेथ की हत्या करने के उद्देश्य से उनके कक्ष में घुसा था और अपना उद्देश्य पूरा करने से पहले ही पकड़ा गया था। कोर्ट में न्यायाधीश के सामने अपना अपराध स्वीकार करते समय उसने अपने बयान में बताया कि उसे अपनी साजिश की प्रेरणा अपनी कृत्रिम बुद्धि की आभासी प्रेमिका कम्प्यूटर के प्रोग्राम चैटबॉट से मिली थी कानून के इतिहास में यह ऐसी पहली वारदात मानी जा रही है जिसमें कृत्रिम बुद्धि द्वारा आरोपी को अपराध करने को उकसाने की बात स्वीकारी गई है।
यह सच है कि कृत्रिम बुद्धि की उपयोगिता की सूची बहुत विस्तृत है, लेकिन यह मानवता के लिए तभी तक कल्याणकारी रहेगी जब तक मानव द्वारा अनुशासित रहेगी। साथ ही मानव-जैसी बुद्धि के साथ कृत्रिम प्राणियों के निर्माण के नैतिकता के बारे में प्रश्न उठता है। यदि अनावश्यक रूप से प्रगति करके एक दिन कृत्रिम बुद्धि मानव बुद्धि की क्षमता का अतिक्रमण कर गई तो मानवता के अस्तित्व पर सबसे बड़ा ख़तरा सिद्ध हो सकती है। 
इसके साथ ही एक अन्य चिंता का विषय बड़े पैमाने में इसके उपयोग से बेरोज़गारी की समस्या बढ़ने की आशंका है। यह सच है कि कृत्रिम बुद्धि की वजह से ऐसी मशीनें बन सकेंगी जो सारे काम तेज़ गति से करके इंसान का काम आसान कर देंगी\ पर इसका नकारात्मक प्रभाव लोगों की आजीविका पर होगा। विशेषज्ञों के अनुसार यदि रोबोट लोगों की तरह सोचने में सक्षम और बिना थके, कुशलता और त्वरा से काम करेंगे तो मशीनें इंसानों की जगह ले लेंगी। मशीनों पर निर्भरता न केवल व्यक्ति को आलसी बनाएगी बल्कि उनके सोचने की क्षमता को भी शिथिल करेगी। 
कुछ विचारकों का तो यहाँ तक सोचना है कि कृत्रिम बुद्धि अपने प्रोग्रामिंग का स्वयं नियंत्रक बन कर मानव के अस्तित्व को ही विनष्ट कर देगी। इसका दूसरा पक्ष यह है कि कृत्रिम बुद्धि से संबंधित शेयरों के मूल्य आसमान को छू रहे हैं। कुछ तकनीकी शेयरों के मूल्य में 98 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है और यूके, यू एस ए और भारत जैसे अनेक देश कृत्रिम बुद्धि की राजधानी बनने की होड़ में लगे हुए हैं।
कृत्रिम बुद्धि के संभावित ख़तरों की चेतावनी देते हुए कुछ वैज्ञानिक इसे न्यूक्लीयर शक्ति और महामारी से भी अधिक ख़तरनाक मानते है। चैट जीपीटी के प्रबंधक, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डेमिस हस्साबिस ने सरकारों को कृत्रिम बुद्धि द्वारा मानवता के विनाश के ख़तरे को प्रशमित करने की वैश्विक स्तर पर पड़ताल करने को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है। सैम ऑल्टमान के अनुसार सभी क्षेत्रों में सॉफ्टवेयर यदि मानव बुद्धि का अतिक्रमण कर अनियंत्रित हो गया तो अस्तित्व के संकट की संभावना इस दशक में ही यथार्थ बन जाएगी। 
यूके के प्रधानमंत्री, ऋषि सुनक के मुख्य परामर्शदाता के अनुसार, ‘सबसे बड़ी आशंका यह है कि हम एक ऐसी नई प्रजाति की सर्जना कर रहे हैं जिसकी बुद्धि मानव से अधिक है।‘ सच तो यह है कि कृत्रिम बुद्धि की उपयोगिता की संभावनाएँ जितनी असीम हैं उससे जुड़े ख़तरे भी उतने ही चिंताजनक हैं। मानवता के किए यह एक सेवक के रूप में उपयोगी, पर स्वामी के रूप में संहारक भी हो सकती है।
डॉ अरुणा अजितसरिया एम बी ई ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान, स्वर्ण पदक, स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी उपन्यास पर शोध कार्य करके पी एच डी और फ़्रेंच भाषा में डिग्री प्राप्त की। 1971 से यूके में रह कर अध्यापन कार्य, शिक्षण कार्य के लिए महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा एम बी ई, लंदन बरॉ औफ ब्रैंट, इन्डियन हाई कमीशन तथा प्रवासी संसार द्वारा सम्मानित की गई। ब्रूनेल विश्वविद्यालय के अंतर्गत पी जी सी ई का प्रशिक्षण और सम्प्रति केम्ब्रिज विश्वविद्यालय की अंतर्राष्ट्रीय शाखा में हिन्दी की मुख्य परीक्षक के रूप में कार्यरत। संपर्क : arunaajitsaria@yahoo.co.uk

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