मन में गीत की पंक्तियां गुनगुनाते हुए-
“हर युग की एक करुण कहानी,
आये रावण रचे कहानी |
नए-नए इतिहास बनाए,
युग-युग को संदेश सुनाए |”
संदेश ! हां सुना तो रहा है संदेश | भय का, आतंक का, खौफ़ का और मौत का | हाS हाS हाS हाS… अट्टाहास कर रहा है | क्या यह कलयुग का रावण है? जो अपना साम्राज्य विस्तार कर सबको मौत की नींद सुलाने आया है और चीन को सोने की लंका बनाने को सोच रहा है | शायद, संभव भी हो कुछ कहा नहीं जा सकता | इतिहास साक्षी है हर युग ने एक नया इतिहास रचा है तभी तो ‘निराला’ के राम की परीक्षा लेने में माँ शक्ति स्वयं न्याय के पक्ष में खड़ी होकर रावण का विरोध करती हैं | अगर इस युग में भी हम ‘राम’ बन जाए तो कैसा रहेगा? अर्थात हमें अपनी दृष्टि को सकारात्मक करना होगा |
आज कोरोना के कारण जनजीवन चरमरा गया है | मानव मन भय और आशंकाओं से भर गया है| जीवन का खतरा बढ़ता चला जा रहा है | न जाने कौन सा क्षण जीवन का अंतिम क्षण बन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता बावजूद इसके मनुष्य अपनी जिजीविषा नहीं छोड़ता और आशा व विश्वास के सहारे आगे बढ़ता रहता है |
आज समय के साथ-साथ इस कोरोना-काल के कारण मनुष्य के भीतर एक सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है| वह अपनी परंपरा और संस्कार से पुनः जुड़ रहा है, जिसे वह थोड़ा विस्मृत कर रहा था |
ऑक्सीजन के अभाव के कारण अब लोगों का ध्यान इस बात पर जा रहा है कि पहले प्रकृति को बचाना होगा तभी हम भी बच पाएंगे | परिस्थितियां हमें पुनः प्रकृति की ओर लौट आ रही हैं | यह एक सकारात्मक संकेत है | हम वृक्षों की पूजा करते आए हैं | यह संस्कार हमें बतलाया जाता रहा है इसलिए कि वृक्ष बचे रहें किन्तु आज औद्योगीकरण, नगरीकरण के कारण इनका कटाव किया जा रहा है|
हमारे शरीर में ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए योग, प्राणायाम के साथ –साथ शरीर के भीतर रोग प्रतिरोधक-क्षमता की वृद्धि हेतु हम पुनः आयुर्वेदिक औषधियों की ओर लौट रहे हैं जैसे- तुलसी, काली-मिर्च, गिलोय, अदरक, मुलेठी, दालचीनी, नींबू, शहद, नीम आदि का सेवन करके अपने शरीर को प्रबलता प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं | यह एक शुभ संकेत है |
हमारी परंपरा में भोजन करने से पूर्व हाथों को धोना व स्नान करना शामिल रहा है किन्तु आज इन सब बातों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है जैसे हाथों को साबुन से धोना व सेनीटाइज करना आदि | बड़ों को हाथ जोड़ कर प्रणाम करना ये भी हमारे संस्कार में शामिल रहा है | जब कि हाथ मिलाने में हम गर्व का अनुभव करते हैं बावजूद इसके आज कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग के कारण दूर से हाथ जोड़ना ही उचित समझा जा रहा है | यह भी एक सकारात्मक पक्ष है |
पर्यावरण को बचाना, लोगों की सेवा करना, प्रेम करना,उनकी चिंता करना, उन्हें विश्वास दिलाना कि हम आपके साथ हैं | हमें ममता और विश्वास से उनके भावनात्मक धरातल को सींचना होगा | आपसी भाईचारे और विश्वबंधुत्व की भावना को आत्मसात करना होगा | स्वयं को स्व के बंधन से मुक्त करना होगा | अपनी दृष्टि को ‘सर्वे भवंतु सुखिन: , सर्वे संतु निरामया’ की भावबोध से अभीसिंचित करना होगा तभी हम इस विषम-परिस्थिति को कमतर साबित कर पाएंगे | कोरोना के संदर्भ में ये मेरी सोच है |
ये मैं आप पर छोड़ती हूँ कि आप क्या सोचते हैं ……