उद्देश्य : इस आलेख में हम न्यू मीडिया जिसे आम भाषा में सोशल मीडिया या वेब मीडिया भी कहा जाता है, के माध्यम से वैश्विक फलक पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी की वर्तमान स्थिति को समझने का प्रयास करेंगे. हिंदी का वैश्विक वितान फिर चाहे वह बोलचाल की भाषा के रूप में हो या अध्ययन एवं अध्यापन के रूप में हो, हिंदी फिल्मों का प्रचार-प्रसार हो या रेडियो पर हिंदी कार्यक्रमों के प्रसारण हों या फिर इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी सीखना, हिंदी लिखना एवं पढ़ना हो, हिंदी में विदेशी भाषाओँ की सामग्री का अनुवाद हो या फिर विदेशी फिल्मों का हिंदी में डब करके रिलीज़ करना हो – इन सभी पहलुओं को हम न्यू मीडिया के मंच के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे. 
मनुष्य और भाषा : करीब 2300 वर्ष पहले महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने कहा था – “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है.” मनुष्य अकेले अपना जीवनयापन नहीं कर सकता और इसलिए उसे एक  समाज की आवश्यकता होती जिसके माध्यम से वह अपनी तमाम आवश्यकताओं की संतुष्टि कर पाता है. अपनी तमाम आवश्यकताओं को बताने के लिए उसे स्वयं को अभिव्यक्त करना पड़ता है.
प्रारंभ में मनुष्य स्वयं को हाव-भाव से व्यक्त करता रहा. फिर धीरे-धीरे उसने पत्तों एवं चट्टानों पर आकृतियाँ बनाना शुरू किया. और इस तरह धीरे-धीरे हजारों वर्षों की सतत प्रक्रिया से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न काल-खण्डों में विभिन्न भाषाओँ की उत्पत्ति हुई जो कि मनुष्य की अभिव्यक्ति का माध्यम बनीं.
भाषा एवं भाषा का माध्यम : भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है और मीडिया भाषा के व्यवहार का माध्यम बनता है. हजारों वर्षों तक भाषा केवल वाचिक परंपरा के माध्यम से व्यवहृत होती रही. उसके बाद ताम्रपत्रों, शिलाओं और पत्तों पर भाषा को लिखित रूप दिया जाने लगा. नौंवी शताब्दी में चीन में लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से मुद्रण का प्रमाण मिलता है. 868 ईसवीं में चीन में तांग वंश (618-9-9) के शासन के दौरान  ‘स्वर्ण सूत्र’ नाम से एक पुस्तक मुद्रित की गई जो करीब एक हजार वर्ष एक गुफा में पड़े रहने के बाद सन 1900 में मिली और फ़िलहाल ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन में है.  लकड़ी के ब्लॉक से छपाई का यह तरीका आठवीं-नौंवी शताब्दी में जापान और कोरिया में भी प्रयोग किया गया. वही फिर पंद्रहवीं सदी के मध्य में पहली मशीनी मुद्रण प्रणाली जोन्स गुटेनबर्ग द्वारा विकसित की गई. 
हिंदी और मुद्रण : मुद्रण मशीन आ जाने से भाषाओँ का व्यव्हार विस्तृत रूप से होने लगा. हिंदी के व्यव्हार को मुद्रण माध्यम का लाभ थोडा देर से मिलना शुरू हुआ. 30 मई 1826 को देश का पहला हिंदी समाचार पत्र (साप्ताहिक) पंडित जुगल किशोर शुक्ला ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में शुरू किया. और इसके साथ ही हिंदी भाषा के विस्तार ने गति पकड़नी शुरू की. आज हिंदी में छपने वाले पत्र-पत्रिकाओं की संख्या हजारों में और उनके पाठक करोड़ों में हैं. 
बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में रेडियो और उत्तरार्ध में टीवी प्रसारण की शुरुआत होने से हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओँ के व्यव्हार और विस्तार को बढ़ावा मिला. 
बीसवीं सदी के आखिरी दशक में इन्टरनेट ने देश में प्रवेश किया और बीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में हिंदी ने इन्टरनेट की दुनिया में प्रवेश किया और इसके साथ शुरू हुआ हिंदी भूमंडलीकरण. इन्टरनेट पर हिंदी भाषा के प्रयोग से विश्व भर में हिंदी की पहुँच क्षण भर में होने लगी. देश के किसी भी कोने से ब्लॉग, फेसबुक या व्हाट्सऐप पर हिंदी में लिखी-बोली गई बात पल भर में विश्व व्यापी हो जाती है. विश्व के किसी भी देश के किसी भी कोने से उस बात तक इन्टरनेट के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. 
इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्ध में हम सूचना-विस्फोट के युग में जी रहे हैं. सूचना विस्फोट के साथ-साथ ये युग सूचना-आक्रमण, सूचना-आघात और सूचना-प्रतिघात का भी है. अब मात्र सूचना के हथियार से बड़ी से बड़ी लड़ाई और बड़े से बड़ा युद्ध लड़ा जा सकता है.
आज के युग में सूचना नामक इस हथियार से तेजी से लक्ष्य भेदने के लिए तीव्र- मिसाइल का काम किया है इन्टरनेट आधारित न्यू मीडिया ने. इस न्यू मीडिया ने जहाँ एक ओर सूचना को तीव्रतम गति से पहुँचाना संभव किया वहीँ यह भी सुनिश्चित किया कि सूचना के इस हथियार का प्रयोग अधिकाधिक लोग कर सकें. अब सूचना कुछ गिने चुने सम्पन्न लोगों के इशारे पर चलने वाला प्यादा नहीं रहा. सूचना का लोकतंत्रीकरण हो रहा है और सूचना अब रूप से विचरण कर रही है. सूचना की इस उन्मुक्तता को संभव बनाया है ‘न्यू मीडिया’ ने. 
न्यू मीडिया क्या है?
“न्यू मीडिया क्या है?” इस सवाल का जवाब जानने के लिए न्यू मीडिया को ही खंगाला गया. हिदी में इस सवाल के जवाब में न्यू मीडिया के गूगल गुरु की खोज में 26,20,000 (छब्बीस लाख बीस हजार) परिणाम प्राप्त हुए. ध्यान देने वाली बात यह है कि यही प्रश्न जब गूगल खोज में अंग्रेजी में (What is New Media) पूछा गया तो 1,61,00,00,000 (एक अरब इकसठ करोड़) परिणाम प्राप्त हुए. यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी में प्राप्त होने वाले परिणाम 614 गुना अधिक हैं. कारण बिलकुल स्पष्ट है कि अभी इस न्यू मीडिया जगत में अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है.
न्यू मीडिया का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मंच और अब तक के मानव इतिहास का सबसे बड़ा, सबसे ज्यादा लोगों द्वारा तैयार किया गया, सबसे अधिक भाषाओँ में उपलब्ध, और सब से अधिक पढ़ा जाने वाला इनसाइक्लोपीडिया – ‘विकीपीडिया’ हिंदी खोज में पहले नंबर पर और अंग्रेजी में दूसरे नम्बर पर रहा. अंग्रेजी में (What is New Media) खोजने पर परिणामों में पहले नंबर पर www.newmedia.org  का लिंक www.newmedia.org/what-is-newmedia.html  रहा. वो और बात है कि न्यू मीडिया का परिभाषा के लिए इस वेबसाईट को भी विकिपीडिया की शरण में जाना पड़ता है.  
विकिपीडिया (अंग्रेजी) पर न्यू मीडिया (New Media) के बारे में दी गई जानकारी के अनुसार “न्यू मीडिया सामान्यत: वह सामग्री है जो इन्टरनेट के माध्यम से जब चाहो तब उपलब्ध हो जाती है, जिस तक किसी भी डिजिटल उपकरण के माध्यम से पहुंचा जा सकता है, और इसमें आमतौर पर प्रयोक्ता की ओर से अंतर्क्रियात्मक फीडबैक और सृजनात्मक भागीदारी होगी है. न्यू मीडिया के आम उदाहरणों में ऑनलाइन समाचार पत्र, ब्लॉग, विकी, विडियो गेम, कंप्यूटर मल्टीमीडिया, सीडी रोम, डीवीडी और सोशल मीडिया जैसी वेब साईट शामिल हैं. न्यू मीडिया की एक खास विशेषता संवाद है. न्यू मीडिया संपर्कों और वार्तालाप के माध्यम से सामग्री प्रसारित करता है. यह विश्व भर के लोगों को विभिन्न विषयों पर विचारों को साझा करने, उन पर टिपण्णी करने और चर्चा करने में सक्षम बनाता है. पुरानी तकनीको से बिलकुल अलग, न्यू मीडिया अंतर्क्रियात्मक समुदाय पर आधारित है.” 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि न्यू मीडिया वह संवादात्मक डिजिटल मीडिया है, जिसे इन्टरनेट का प्रयोग करते हुए कंप्यूटर और मोबाइल जैसे डिजिटल उपकरणों के माध्यम से प्रयोग में लाया जाता है. इसके प्रयोक्ता को सामग्री का सृजन करने, सुधार करने, चयन करने, प्रतिक्रिया करने की सुविधा होती है. इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपयोगिता यह है कि इसकी सुविधाओं का लाभ कहीं भी उठाया जा सकता है, चाहे आप अपने घर में हों या फिर घर के बाहर, चाहे आप अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के पास गए हों या फिर कहीं पर्यटन पर, चाहे आप बस में हों या ट्रेन में – हर जगह न्यू मीडिया तक पहुँच कर इसके माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है, जरूरत है तो बस केवल इन्टरनेट युक्त एक उपकरण की आवश्यकता है फिर चाहे वो कंप्यूटर हो या लैपटॉप, इन्टरनेट सुविधा वाला मोबाइल हो या फिर टेबलेट. 
हिंदी की वर्तमान स्थिति
एक समय था जब कहा जाता था कि “ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता” और अब एक समय ऐसा आ गया है कि जब हम गर्व से कह सकते हैं कि  “हिंदी का सूर्य कभी अस्त नहीं होता है.” ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं. हिंदी ने अपनी उपयोगिता और स्वत: स्फूर्त उर्जा से वह स्थान प्राप्त किया है जिसे करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने ताकत, क्रूरता, हिंसा, दमन आदि का प्रयोग किया गया। 
विश्व में भारतीय लोग और हिंदी :  विश्व के 150 से अधिक देशों में भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं. उनमे से एक बड़ी संख्या ऐसी है जो मातृभाषा या दूसरी भाषा के रूप में हिंदी जानते हैं. इन विभिन्न भाषा-भाषी प्रवासी भारतियों में से अधिकांश आपस में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं. इतना ही नहीं इनमे से बहुत से ऐसे लोग हैं जो हिंदी में साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं या ऐसी गतिविधियों में शामिल होते हैं.
विश्व की भाषाएँ और हिंदी : विश्व में करीब 6000 भाषाएँ हैं. बहुत से ऐसी भाषाएँ भी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या बहुत कम है. वहीँ कुछ भाषाएँ ऐसी भी हैं जो विश्व के कई देशों में बोली और सीखी जाती हैं. विश्व की दस सबसे प्रभावशाली भाषाओँ में से हिंदी एक है. अमेरिका के चिकित्सकों के बीच अंग्रेजी और स्पेनिश के बाद तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा हिंदी है।
विश्व की भाषाओँ में हिंदी का स्थान : दुनिया के डेढ सॊ से अधिक देशों में दो करोड़ से अधिक भारतीय लोग निवास करते हैं। अधिकांश प्रवासी भारतीय आर्थिक रूप से समृध्द हैं। 1999 में मशीन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में में टोकियो विश्वद्यालय के प्रो. होजुमि तनाका ने जो भाषाई आंकड़े प्रस्तुत किए थे, उनके अनुसार विश्व में चीनी भाषा बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिन्दी का द्वितीय तथा अंग्रेजी का तृतीय है। 
विश्व में हिंदी लेखन-पठन : हिंदी साहित्य विश्व के सौ से अधिक देशों में लिखा-पढ़ा जा रहा है. सूचना तकनीक के विकास के कारण एक देश में हो रहे लेखन को विभिन्न देशों में रहने वाले पाठक आसानी से पढ़ पा रहे हैं. हिंदी का जितना प्रचार प्रसार पिछले दो दशकों में हुआ है उतना उससे पहले के कई सौ वर्षों में नहीं हो पाया था.
हिंदी और उसका मीडिया : प्रारंभ में हिंदी भाषा और साहित्य वाचिक परंपरा से प्रचारित-प्रसारित होते रहे. आदिकाल एवं मध्यकाल के हिंदी साहित्य के बहुत कम लिखित प्रमाण मिलते हैं. और जो मिलते भी उनके प्रमाणिक रूप के बारे में कुछ भी निश्चित रूप कहना मुश्किल रहता है. खैर. इसके बाद देश में अठारहवी शताब्दी के अंतिम दशक में मुद्रण सुविधा शुरू हुई और उन्नीसवीं सदी के तीसरे दशक में जुगल किशोर शुक्ल के ‘उदन्त मार्तंड’ के साथ मुद्रण माध्यम ने हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार को गति दी. 
बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में रेडियो और बीसवी सदी के उत्तरार्ध में टीवी ने हिंदी भाषा और साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बीसवीं सदी के अंतिम दशक और इक्कीसवी सदी में इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार तीव्र गति से हो रहा है. 
हिंदी की प्रमुख वेबसाइट : अनुभूति, अनुरोध, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, गीत पहल, भारत दर्शन, शब्दांकन, सृजनगाथा, स्वर्गविभा, पूर्वाभास, साहित्यकुंज, समयांतर, हिंदी चेतना, गर्भनाल, हिंदी समय, कविता कोश, गद्य कोश आदि जैसी सैकड़ों ऐसी वेबसाइट हैं जिन पर हिंदी साहित्य विभिन्न विधाओं में प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है और साथ ही इन वेबसाइट पर प्रकाशित साहित्य को विश्व भर में पढ़ा जा रहा.
हिंदी और बाजार : विकसित देशों में भी हिंदी को लेकर ललक बढ़ रही है. कारण यह है कि किसी भ बहुराष्ट्रीय कम्पनी या देश को अपना उत्पाद बेचने के लिए आम आदमी तक पहुँचना होगा और इसके लिए जनभाषा ही सबसे सशक्त माध्यम है. यही कारक हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहायक सिद्ध हो रहा है.     
हिंदी का अध्ययन-अध्यापन : विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी पढाई जा रही हैं। भारत से बाहर जिन देशों में हिन्दी का बोलने, लिखने-पढने तथा अध्ययन और अध्यापक की दृष्टि से प्रयोग होता है, उन्हें हम इन वर्गों में बांट सकते हैं – 
  1. जहां भारतीय मूल के लोग अधिक संख्या में रहते हैं, जैसे – पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव आदि। 
  2. भारतीय संस्कृति से प्रभावित दक्षिण पूर्वी एशियाई देश, जैसे- इंडोनेशिया, मलेशया, थाईलैंड, चीन, मंगोलिया, कोरिया तथा जापान आदि। 
  3. जहां हिन्दी को विश्व की आधुनिक भाषा के रूप में पढाया जाता है अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के देश। 
  4. अरब और अन्य इस्लामी देश, जैसे- संयुक्त अरब अमरीरात (दुबई) अफगानिस्तान, कतर, मिस्र, उजबेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि।
जिन विदेशी विश्वविद्यालयों मे हिन्दी अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्थाएं हैं, उनकी आर्थिक व्यवस्था भले ही उन देशों की सरकारों की ओर से होती हो, पर अनेकानेक विदेशी हिन्दी विद्वान हिन्दी और भारतीय संस्कृति के अनुराग में इतने रम गए हैं कि उन्होंने अपनी जीवनचर्या को ही हिन्दी के प्रति समर्पित कर लिया है। उनमें इतना सच्चा और गहरा हिन्दी अनुराग है कि ये हिन्दी का काम ही नहीं करते बल्कि जब जब हिन्दी इस देश में बढ़ती है, उनमें प्रसन्नता होती है, जब जब हिन्दी पीछे धकेली जाती है, उन्हें पीड़ा होती है। हिन्दी के इन अनुरागी विदेशी विद्वानों के प्रति यह देश कृतज्ञ है।
हाल ही में अनवर अशरफ, संवाददाता, बीबीसी हिंदी ने जर्मनी में विस्तृत स्तर पर एक अध्ययन किया जिसके अनुसार जर्मनी में हिंदी को बड़े स्तर पर पसंद किया जा रहा है. जर्मनी के लोगों को हिन्दी इतनी भा गई है कि वहां की लगभग 14 यूनिवर्सिटीज़ में हिन्दी सीखाई जा रही है.  
दशकों पहले से रूस में हिंदी फ़िल्में, हिंदी गाने और हिंदी साहित्य लोकप्रिय रहे हैं. लम्बे समय से भारत में रूस का रूस में हिंदी साहित्य पढ़ा, लिखा और अनुवाद किया जाता रहा है. रूस में आज भी हिंदी फिल्मों का जलवा कायम है. 
बीबीसी की हिंदी सेवा : ये हिंदी की उपयोगिता कहें या जरूरत कहें कि आजादी के बहुत पहले ही 11 मई 1940 को बीबीसी ने अपनी हिंदी प्रसारण सेवा शुरू कर दी थी। समय बदला और अन्य संचार माध्यमों की तरह बीबीसी ने वेबसाइट की अहमियत को भी पहचाना और वर्ष 2001 में बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की शुरुआत हुई. इसका उद्देश्य भारत और दुनिया भर के हिंदीभाषी पाठकों तक समाचार और विश्लेषण पहुंचाना था. यह एक 24X7वेबसाइट है और पत्रकारों की एक टीम सप्ताह के सातों दिन, 24 घंटे दुनिया भर के पाठकों के लिए सामग्री उपलब्ध कराती है. बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के पहले पन्ने पर सभी प्रमुख समाचारों को जगह दी जाती है. और इसके अलावा विश्लेषण, जनरुचि की ख़बरों और फ़ीचरों का प्रकाशन किया जाता है. इस वेबसाइट के अन्य इंडेक्स हैं- भारत, पाकिस्तान, चीन, खेल, मनोरंजन, विज्ञान, कारोबार, मल्टीमीडिया, ब्लॉग/फ़ोरम, बीबीसी विशेष और लर्निंग इंगलिश. 
सूचना क्रांति और हिंदी : सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न भाषा भाषियों के बीच में अपने तकनीकि उत्पाद जैसे मोबाइल, कंप्यूटर आदि बेचने के लिए हिंदी बाजार की एक आवश्यकता बन गई है. लगभग सभी बड़ी कंपनियां अपने फोन को अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा में भी उपलब्ध करा रहे हैं। चाइनीज कंपनियां तो पहले से ही अपने हर छोटे-बड़े फोन को हिंदी में भी उपलब्ध करा रहे हैं। हमारे गांवों में जिस किसी के पास भी मल्टीमीडिया फोन होता है वो उसे हिंदी में इस्तेमाल करना ज्यादा सरल समझता है।
स्मार्टफोन और हिंदी :  स्मार्टफोन के लिए कई तरह के ऐप्लीकेशन भी डेवलप किए गए है। इनमें से भले ही अधिकतर अंग्रेजी में हो लेकिन भारत में लोग अभी भी हिंदी भाषा के ऐप्लीकेशन का यूज करते है। इसलिए ऐप में अलग से हिंदी भाषा को भी दिया जाता है। फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी वेबसाइट भी इंडिया और दुनियाभर के यूजर्स को हिंदी में जानकारी उपलब्ध करा रही है।
गूगल और हिंदी : खबर है कि जल्द ही गूगल ई-मेल जैसी अपनी महत्वपूर्ण सर्विस को पूर्णतया हिंदी में भी उपलब्ध कराने वाली है। उदाहरण के लिए, अभी तक आपका ईमेल एड्रेस अंग्रेजी भाषा में होता था। लेकिन कुछ ही दिनों बाद आप अपना ईमेल आईडी हिंदी में भी बना पाएंगे।
हिंदी और सर्च इंजन : आज हिंदी के पंद्रह से भी अधिक सर्च इंजन हैं जो किसी भी वेबसाईट का चंद मिनटों में हिंदी अनुवाद करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं. याहू, गूगल, और फेसबुक भी हिंदी में उपलब्ध हैं. अब कंप्यूटर से निकल कर हिंदी मोबाइल में न केवल पहुँच चुकी है बल्कि भरी संख्या में लोग इसका उपयोग भी कर रहे हैं. मोबाइल तक हिंदी की पहुँच ने देश में देवनागरी लिपि के समक्ष खड़ी चुनौती को काफी हद तक मिटा दिया है. 
हिंदी और हॉलीवुड :  यह हिंदी की ताकत, हिंदी का महत्व और हिंदी की स्वीकृति ही है कि चाहे वो हॉलीवुड फिल्मों के निर्माता हों या फिर दक्षिण भारतीय भाषाई फिल्मों के – सब अपनी फिल्म को हिंदी में अवश्य रिलीज़ करवाना चाहते हैं. हॉलीवुड की फिल्मों में कई बार यह प्रयास होता है कि उन्हें भारत में अमेरिका से पहले रिलीज़ करने के निर्णय लिए जाते हैं. हॉलीवुड प्रोडक्शन हाउस डिज़नी ने जंगल बुक को भारत में अमेरिका से एक सप्ताह पहले रिलीज़ किया. और यह की पहली बार नहीं हुआ था कि विदेशी स्टूडियो ने भारत में रिलीज़ को अमेरिका से पहले किया. इससे पहले भी वार्नर स्टूडियो की होब्बिट 3 एंड जर्नी 2 भारत में अमेरिका से पहले रिलीज़ की गई. 
हिंदी और विदेशी लेखक : चीन के प्रसिद्ध लेखक अलाई की दो पुस्तकें ‘रेड पोप्पिज़’ और ‘होलो माउंटेन’ हिंदी भाषा में पिछले वर्ष दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में विमोचित की गई. चीनी भाषा में मूल रूप से लिखी गई इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद भारतीय पत्रकार आनंद स्वरुप वर्मा ने किया है.
यह हिंदी के आकर्षण, हिंदी की उपयोगिता और हिंदी के बाजार का ही प्रभाव है कि सैकड़ों विदेशी लेखकों के रचनाओं का हिंदी अनुवाद निरंतर किया जा रहा है. गद्यकोश.ओर्ग के पृष्ठ ‘विदेशी भाषाओँ से अनुदित’ पर चालीस से अधिक लेखकों की रचनाओं के अनुवाद की जानकारी मिलती है.
कविताकोश.ओर्ग के पृष्ठ ‘विदेशी भाषाओँ से अनुदित’ पर साठ से अधिक देशों – अंगोला, इंग्लैंड, अफगानिस्तान, अमेरिका, अरब, अर्जेंटीना, आर्मेनिया, आस्ट्रिया, इटली, इराक, एस्तोनिया, क्यूबा, कजाखिस्तान, कांगो, ग्वाटेमाला, गुयाना, चिली, चीन, जर्मनी, जर्मेका, जापान, तिब्बत, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, निकारागुआ, नेपाल, नोर्वे, पुर्तगाल, पेरू, पोलिश, फ़िनलैंड, फिलिस्तीन, फ़्रांस, बांग्लादेश, बेलारूस, बेल्जियम, ब्राजील, मक्सिको, मोजाम्बिक, यमन, इजराईल, रूमानिया, रूस, रेड इंडिया, लीबिया, लेबनान, वियतनाम, साल्वाडोर, सिंगापूर, सीरिया, सूडान, सेनेगल, स्पेन, स्लोवेनिया, स्विट्ज़रलैंड, सूडान हंगरी जैसे देश शामिल हैं, के सैकड़ों कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद उपलब्ध है. 
निष्कर्ष : 
निष्कर्ष के रूप में कुल मिलकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि न्यू मीडिया पर हिन्दी की उपस्थिति निरंतर बढ़ रही है। हिन्दी के विस्तार की दर अंग्रेजी और चीनी भाषाओं की तुलना में कहीं अधिक तेजी से हो रही है। न्यू मीडिया पर हिन्दी का कंटेन्ट बहुत ही तेजी से सृजित किया जा रहा है। सस्ते स्मार्ट फोन और सस्ते इंटरनेट डाटा के कारण न्यू मीडिया के माध्यम से हिन्दी की पहुँच विश्व के प्रत्येक देश और शहर में हो रही है। 
उपरोक्त सभी तथ्यों के आधार पर यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि हिंदी एक भाषा के रूप में अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच रही है, पहुंचाई जा रही है, अपनाई जा रही है, पढ़ी जा रही है, पढाई जा रही है, हिंदी में बड़े स्तर पर देशी-विदेशी फ़िल्में देखी जा रही हैं, दिखाई जा रही हैं और साथ ही लोग दैनिक बोलचाल की भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं. हिंदी बढ़ रही थी, बढ़ रही है और बढ़ती ही रहेगी, भले ही उसके स्वरुप में उसके प्रयोक्ताओं, समय और स्थान के साथ कुछ परिवर्तन होते रहें.

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