कोरोना महामारी से जूझते हुए हमारे आसपास ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो मानसिक रूप से कमजोर पड़ते जा रहे हैं। कैसे करें समय पर उनकी मदद? बता रही हैं जयंती रंगनाथन..
कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर से हम सबकी जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई है। आंकड़ों की मानें तो दुनिया भर में इस वक्त 47 प्रतिशत के करीब लोग मानसिक अवसाद और दूसरी बीमारियों से जूझ रहे हैं। हमें यह अहसास ही नहीं होता कि हमारे ही बीच का कोई मानसिक तौर पर कमजोर पड़ता जा रहा है, तनाव का शिकार हो रहा है, एंग्जाइटी में है। जो लोग मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं, उन्हें समय पर दवा के साथ-साथ दिलासे की भी जरूरत है। ऐसा ना होने पर उनकी बीमारी बढ़ सकती है, वे ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं, जहां से वापसी मुश्किल हो सकता है। मानसिक बीमारी को ले कर आज भी हमारे समाज में कई लोग सहज नहीं है। पर वक्त आ गया है, जब हमें किसी शारीरिक बीमारी की ही तरह मानसिक बीमारी को भी पहचान कर उसका इलाज करना होगा। कैसे करें अपनों की मदद, आइए जानते हैं:
सही समय पर सही बात
मनोवैज्ञानिक चिकित्सक अनुजा राजहंस कहती हैं, ‘सबसे पहले तो आपको यह पहचानना होगा कि आपके आसपास कौन है जो मानसिक अवसाद से जूझ रहा है। अगर अचानक किसी ने बोलना कम कर दिया है, मूडी हो रहा है, वजन घट रहा है, ज्यादा सोने लगा है या कम सोने लगा है, खाना नहीं खा रहा या ज्यादा खाने लगा है, हमेशा नेगेटिव बातें करता है, मरने की बातें करता है, डरता है तो इसका मतलब है उसे एंग्जाइटी हो रही है।’ घर-परिवार में अकसर ऐसे लोगों को तवज्जो नहीं दी जाती। उन्हें टोका जाता है, डांटा जाता है। ऐसा करने से उनकी दिक्कत बढ़ने लगती है। आपको चाहिए कि जैसे ही ऐसे व्यक्ति के बारे में पता चले, उससे अकेले में बात करने की कोशिश करें। यह जानने की कोशिश करें कि क्या उसे अपनी मानसिक स्थिति के बारे में पता है? क्या वो ठीक होना चाहता है? आप उसे बातों-बातों में बता सकते हैं कि आप ठीक होने में उसकी मदद कर सकते हैं। पर जब भी आप बात करें, अकेले में बात करें। कई लोग होंगे तो वो खुल नहीं पाएगा, बल्कि डिप्रेशन में चला जाएगा।
पूरी तैयारी के साथ बात करें
इससे पहले कि आप दूसरों की मदद करें, आप अपने आपको तैयार कर लें। किसी मनोचिकित्सक से बात कर पूरी जानकारी लें। आपको पता होना चाहिए कि मानसिक बीमारी या तनाव से जूझ रहे लोगों को कैसे हैंडल करना चाहिए। उनके साथ आपका बर्ताव संवेदनशील होना चाहिए। जोर से ना बोलें, अपना आपा ना खोएं और उनकी बात ना काटें। उन्हें यह समझाना होगा कि इस तरह की स्थिति में वे अकेले नहीं हैं और वो जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।
अपनी राय ना थोपें
आपको लगता है कि कोरोना काल में ऐसा कोई नहीं बचा, जो परेशान ना हुआ हो। जिसका कोई अपना बीमार ना पड़ा हो, ना गुजरा हो। इस आपदा का मुकाबला हर कोई अपने-अपने तरीके से कर रहा है। ऐसे में कुछ लोगों को तनाव ज्यादा क्यों हो रहा है? परिवारों में ऐसे लोगों को कई नामों से बुलाया जाता है। ताने दिए जाते हैं। पर आपको यह समझना होगा कि हर कोई एक जैसा नहीं होता। आप अपनी राय उन पर ना थोपें और जो वैज्ञानिक तौर पर सही है, उसी की राह लें।
पूरी संवेदना रखें
जो लोग अपने में खोए हैं, परेशान हैं, डिप्रेशन में हैं, उनके साथ प्यार से पेश आएं। उनकी दिक्कतों को समझें। हो सकता है, वे एक बार में ना खुलें। आप यह निश्चिंत करें कि उन्हें समय पर दवाई मिले और विशेषज्ञ की राय भी। नियमित व्यायाम, खुले में टहलना, मौसमी फल-सब्जी खाना, पॉजिटिव लोगों के साथ रहना, शांत माहौल, प्रकृति का सान्निध्य फायदा पहुंचाएगा। अगर उनका मन रोने का कर रहा है, अकेले बैठने का कर रहा है तो उन्हें ऐसा करने दें। पर जब भी उनसे बात करें, उन्हें समझाएं कि वे जैसे भी हैं ठीक हैं। अगर तब भी आपकी बात उनकी समझ नहीं आ रही, तो उन्हें जल्द से जल्द किसी अच्छे साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाएं।
ट्रीटमेंट के बारे में बात करें
एंटी डिप्रेशन पिल्स, हैप्पीनेस पिल्स और दूसरी कई दवाइयां मस्तिष्क के तनाव को कम करती है। यह जरूरी है कि आप उन्हें दवाइयों के बारे में सही जानकारी दें। अगर वे अपने मन से और नियमित नहीं लेंगे, तो फायदा नहीं होगा। 
फोलोअप करें
डिप्रेशन, बायपोलार और तनाव से जूझ रहे लोगों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। हमारे आसपास अगर ऐसे लोग हैं तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें बीच में ना छोड़ें। पूरा इलाज करवाएं। डिप्रेशन का समय पर इलाज ना होने पर यह दूसरी कई बीमारियां तक जा पहुंचता है। मानसिक बीमारी कब शारीरिक बीमारी बन जाती है, पता भी नहीं चलता। दिल की धड़कन बढ़ जाने से उच्च रक्तचाप, हार्ट अटैक हो सकता है। किडनी पर इसका असर पड़ सकता है। डिमेंशिया और अल्जमाइर भी तनाव की वजह से हो सकता है।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार, संपादक एवं कहानीकार हैं. संपर्क - jagjayanti@gmail.com

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