आज कल tv सिरिअल्स पर इंस्टेंट tea कॉफ़ी के बहुत चर्चा होती रहती है। इंस्टेंट चाय या कॉफ़ी तो हम समझ सकते हैं लेकिन इंस्टेंट जिंदगी क्या है? हर चीज़ में इंस्टेंट मेन्टेन करना यानी मिलाया, घोलाया और पी लिया। ये सिर्फ चाय कॉफ़ी ही नही हर चीज़ में जैसे कप नूडल्स और पैकेट फ़ूड, पैकेट गरम पानी में डालो और खाना तैयार, या तो होटल से मंगवालो। कौन इतना झंझट लेता है कि घंटों रसोई में खड़े हो कर खाना पकाओ। फिर बर्तन धो।
आजकल स्त्रियाँ भी नौकरी करने लगी हैं, साथ में उन्हें घर के काम के लिए भी वक्त कहाँ मिलता है? इसलिये तो बना बनाया चाय, कॉफी खाना-पीना और बस यूज़ एंड थ्रो लाइफ बन गयी है। यही तो इंस्टेंट जिंदगी है।
लोग आजकल इंस्टेंट जिंदगी पसंद करने लगे हैं। क्योंकि भाग-दौड़ की जिंदगी में एक दूसरे से आगे निकल जाने की चाह में कौन भला पीछे रहना चाहता है? कोई भी अपनी जिंदगी में रुकावट नहीं चाहता। यहाँ तक कि घर हो तो भी इंस्टेंट। अपना घर बनाने का मतलब एक जगह ठहर जाना। यानी जिंदगी रुक जाना। वहीं लोग रेंट पर कुछ दिन के लिए घर लेते भी हैं फिर जब नई नौकरी लगती है तो दूसरी नौकरी, दूसरा घर। हर समय बदलाव। जिंदगी में कुछ नया करनी है तो जगह बदलो, घर बदलो। एक नौकरी से दूसरी, नया घर नई जगह, नये दोस्त, नए सिस्टम, नया परिसर। फिर कुछ दिन बाद नौकरी बदल लेना। फिर बदलाव…
फिर से नए घर की खोज जो अपने काम के जगह के नजदीक हो और कुछ समय के लिए हर सुख, सुविधाओं से लैस हो। सिर्फ घर ही क्या लोग शादियाँ छोड़ लिव-इन में भी रहने लगे क्योंकि न कोई बंधन, न कोई उलझन। जब तक चाहे साथ रह लिये फिर रास्ता अलग। हर कोई खुले आसमान के मुक्त परिंदे बनाना चाहते हैं। शादी, घर, बंधन रिश्तों से घुटन महसूस करने लगे हैं। कोई किसी बंधन में बंधना नही चाहता तो कोई एक जगह रहना पसंद नही करता, ऐसे में स्थिर प्रॉपर्टी रखने वाले अपनी गाड़ी और घर भाड़े पर दे कर लाखों करडों कमा लेते हैं। बड़े-बड़े शहरों में कई होटलों, रेस्टोरेंट ने कई नई नई सुविधा भी दे रहे हैं, जिन्हें धनवान हर व्यक्ति कुछ दिनों के लिये ही सही खुलकर जीना चाहता है। ऐसी सुविधाओं ने लोगों को चुम्बक की तरह अपनी तरफ आकर्षण करती है। कुछ पैसे दे कर तमाम खुशियाँ पा लेने का मोह से लोग धन लुटाने में सोचते भी नही।
यह सब लोगों को सिर्फ भटकाव देता है। अपनी जिंदगी में स्थिर होना भी जरूरी है। अपना घर, अपना परिवार, बंधु, रिश्तेदार, इन सब से ही तो हम हैं। जवानी में चाहे कितने भी ऐश करलो लेकिन बूढ़ापे की चाबी तो स्थिरीकरण में ही है। कम से कम खर्चे में हर सुविधाओं से मुहैया कराता, अपना ही घर है। कई जिंदगियों के लिए घर सिर्फ सपना बन कर ही रह जाता है। जिंदगी भर एक स्थिर छत के लिये तरश जाते हैं लोग और ऐसी जिंदगी के लिए लाले पड़ जाते हैं जिसमें परिवार के लोग एक साथ एक छत के नीचे अपना बसेरा जमाए।
कई बार लोगों के घर होते हुए भी उस घर में रहने का सुख अनुभव नहीं कर पाते। क्यों कि शहर-शहर, गाँव-गाँव नौकरी तलाशते एक जगह से दूसरी जगह बदलते नौकरी में रहते इस सुख से दूर हो जाते हैं। आजकल लोग रिश्ते और बंधनों से भी ऊबने लगे हैं। पुराने रीति रिवाजों से छुटकारा पाने अकेले जिंदगी बसर करने में ही भलाई समझने लगे हैं। रिश्ते, रिवाजों से दूर सुखी जीवन के लिए सब छोड़ कर अकेले रहना पसंद करते देखा भी है। जब अपने लोगों के बनाये नियमों और असूलों से हमारे पैरों में जंजीर डालते हैं तो उन नियमों से पीछा छुड़ाकर स्वतंत्र जीने में ही भलाई समझते हैं। आजकल ऐसे इंस्टेंट जिंदगी जीनेवालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। घर परिवार के मोह माया से अलग एक शांत जिंदगी के लिए इंस्टेंट जिंदगी का सहारा लेते रहे हैं। लेकिन गौर करने की बात यह कि हमारे अपनों से ही हम हैं और हमारे अपने ही हमें स्थिर जीवन दे सकते हैं। एक उम्र के बाद स्थिर जीवन ही हमें एक शांत और सौम्य जीवन प्रदान करती है।
माँ बाप के प्यार के अलावा आजकल हर एक चीज़ बाजार में उपलब्ध है। लेकिन कई बच्चे इस इंस्टैंट जिंदगी के पीछे दौड़ते अपने माँ बाप से भी अलग हो जाते हैं। और एक स्थिर जीवन की आशा रखने वाले माता पिता बृद्धाश्रमों में धक्के खाते फिरते हैं।
इस इंस्टैंट जिंदगी में डिजिटल दुनिया का असर भी बहुत है, छोटे-छोटे शहरों में बड़े-बड़े काम होने लगे हैं। शहर और गाँव का माहौल भी बदल चुका है। पहले तो लैंडलाइन के समय में कई फ़ोन नंबर याद रहते थे, मगर इस डिजिटल दुनिया ने तो वह भी आसान करदी और मोबाइल में अंतरजाल से कुछ भी तलाश करने से एक पल में सब कुछ आंखों के सामने पाते है। एक दिन था बड़े बच्चों को सलाह देते थे और हर काम में उनकी अनुभव काम आता था, लेकिन अब बच्चे बड़ों को अपने उंगलियों से फ़ोन पर और कंप्यूटर में लिखना सीखा रहे हैं। बहुत लोकप्रिय मुहावरा “बाल धूप में तो काला नहीं किया” का मायने भी बदल गए क्यों कि नया नया आया कंप्यूटर भी इंसान के दिमाग से बहुत आगे निकल गया है जैसे तेलुगू में कहते हैं “मुन्दु वचिना चेवुलु कांटे वेनका वचिना कोम्मुलु वाड़ी” मतलब “पहले आये कान से भी बाद में आये सिंग ज्यादा धारदार है।” और ये बदलाव भी जरूरी था।
हाथ मे गैजेट हो तो सोचने या याद रखने की जरूरत ही क्या है? इंसान का दिमाग की जगह अब मशीनें काम करने लगे हैं। हाथ गाड़ी की जगह ट्रक और रिक्शा की जगह कारों ने ले ली। फिर गरीब – गरीब होते गये और धनी और भी धनी। जैसे-जैसे मशीनें काम करने लगे वैसे
– वैसे मेहनत और कृषी पर भरोशा करने वाले मिट्टी जमीन तक ही सीमित रह गये।
कभी कहा जाता था, “मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती”, पर आज का किसान मिट्टी और मौसम पर जीने वाले ही खुदकुशी कर मिट्टी में मिलजाने लगे हैं। कभी मन में ये सवाल उठता है अगर देश में इतनी तकनीकी बढ़ रही है, तो क्यों न किसान के लिये कृत्रिम बारिष करवाने की सोची न जाय, इससे किसान को कई गुणा राहत मिल सकती है।
कहाँ है मेरा सोना उगलने वाला देश कहाँ है वह राम राज्य अब तो महाभारत पीछे छूट चुका है, हमारा देश फिर से कब सोना उगलते हम देखेंगे ये सिर्फ एक सवाल बन कर रह गया है।
यही तो दुनिया है, नयी आती है तो पुराना छूट जाता है। इंस्टैंट खूबसूरती पाने के लिये सिनेस्टार्स बोटॉक्स जैसी खतरनाक जहर को भी आजमाने को तैयार हैं। झुर्रियों से निजात पा कर जवानी में जीने की इंस्टैंट तरीका। वैसे ही बाटूलिनम टोक्सिन नामक जहर कई स्वास्थ्य संबधी दिक्कतों को दूर कराने में सहायता करती है।
दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है, बदलाव हर छोटी चीज़ों में दिखने लगी है, लेकिन इसकी सीमा रेखाएँ कहाँ हैं सोचनीय है। इंसान के बदले रोबट काम करने लगे हैं। इंसान कि शरीर सी बनाये गये रोबोट को लोग शादी करके निजी जीवन में भी अपना रहे हैं। लेकिन सोचनीय यह है, अगर इन रोबोटों ने इंसान को ही परिचालित करने लगे तो क्या हश्र होगा? जरा सोचके देखें कि यह इंस्टेंट जिंदगी हमें किस ओर ले कर जा रहा है।
हमारे संस्कृति, परंपरा, रिश्ते, सब कहीं खो भी जाए तो आश्चर्य नहीं होगी। भारत के रश्मों-रिवाज, परंपराएँ अन्य देशों से भारत को भिन्न करती है। और जहाँ दूसरे देशों ने भारत की परंपरा को सम्मान देते हैं वहीं भारत में उसकी मान्यताएँ कम होती जा रही है।
लता तेजेश्वर ‘रेणुका’
अंग्रेजी और हिंदी के 8 संकलनों में कविता, लघुकथा, उपन्यास के अंश (खट्टे मीठे रिश्ते) संकलित,
करीब 200से ज्यादा रचनाओं का 50से ज्यादा विख्यात पत्र, पत्रिकाओं, अखबारों, ब्लॉग व अंतर्जाल पटल में प्रकाशित, और कई पुस्तक प्रकाशित.
रेडियो – आकशवाणी, राजस्थान रेडियो में कविताएँ प्रसारित,
टीवी चैनलों- कलिंगा tv, इंडिया tv, kcn headlines यूट्यूब चैनल, और मेरे द्वारा ‘साहित्य संकल्प’ नाम से यूट्यूब चैनल स्थापन जिसमें का पर संस्था के रचनाकारों को रचनाएँ पढ़ने का मौका देने के साथ ही अपनी रचनाएँ और ब्लॉग लेखन आदि प्रसारित। कई साक्षात्कार और किताब पर चर्चा आदि प्रसारित।
मेरी स्वलिखित प्रकाशित पुस्तकें और ई-पुस्तकें:
1.मैं साक्षी इस धरती की, काव्यसंग्रह,
2. हवेली, (सस्पेन्स, थ्रिलर काल्पनिक उपन्यास),
3. The waves of Life, अंग्रेजी में काव्य और कहानी संग्रह,
4. चाँदनी रात में तुम, काव्यसंग्रह,
5. सैलाब, (भोपाल के सबसे बड़ा दुर्घटना गैस रिसाव से आधारित उपन्यास),
6. भावनाएँ महकतीं हैं, काव्यसंग्रह,
7. सुनो हे भागीरथी, काव्यसंग्रह,
8. लहराता चाँद, (मानसिक बीमारी स्क्रिज़ोफ्रेनिया और सामाजिक बुराइयों पर केंद्रित उपन्यास),
9. चंद फुहारें, क्षणिका संग्रह, 2023
अन्य दो पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार।
तीन संकलनों का संपादन : 1.सीप के मोती, 2.गुलिस्ताँ(25रचनाकारों के द्वारा संकलित 21भाषाओं की लिपिओं के साथ प्रकाशित), 3. मैं भी सैनिक (लघुकथा संकलन)
matrubharati.com साइट पर दो उपन्यासों ‘सैलाब’, ‘लहराता चाँद’ का सीरियल के तहत प्रकाशन, और पाठकों द्वारा चयनित रीडर्स चॉइस अवार्ड प्राप्त, दो विषयों में आमंत्रित लेखनों को पुरस्कृत। इसके अलावा अन्य कई जगह प्रख्यात ऑनलाइन वेबसाइटों पर जैसे प्रतिलिपि, storymirror,… आदि पर रचनाओं का प्रस्तुतिकरण
प्रमुख सम्मान प्राप्त: 2 राष्ट्र स्तरीय सम्मान, रीडर्स चॉइस अवार्ड, विद्योत्तमा सम्मान , नारी गौरत सम्मान, बहुभाषी लेखिका सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान, सहित कुल 16 सम्मानों से सम्मनित।
- Lata tejeswar ‘renuka’
Navi mumbai – 410206
मोबाइल : 9004762999