ओ मानव !
वृक्षों के तप को तुम देखो
खड़े निरन्तर चिर काल से
इनके अनुवाद को समझो
ये देते हमको ख़ुशी अपार
रंग रंग के फूलों से सीखो
जीवन किसको कहते हैं
सुबह में ये खिल खिल कर
बस यही संदेश तो देते हैं
खिलना हँसना फिर मुरझाना
ये ही तो जीवन का सार
खिलना ही तो जीवन होता
हैं इस जीवन के रंग हज़ार
तप इस जीवन का आधार
जिसमें छिपे ख़ज़ाने लाख
शिव हो तन में शिव हो मन
शिव की महिमा अपरम्पार
ओ मानव !
देखो ! हमको खड़े हुए हैं
नतमस्तक इस पृथ्वी पर
देते छाया हर पथिक को
और उस चेहरे पर मुस्कान
निःस्वार्थ भाव का जीवन
विफल कभी होता नहीं
लेना तो सब जानते , पर
देने से कम कुछ होता नहीं
कटकर भी काम तुम्हारे आते
फल देकर तुमको ये बताते
प्रकृति की महिमा को समझो
बिन प्रकृति जीवन शव समान …॥
बहुत सुंदर कविता