“माई नेम इज गौहर जान।… मेरे गाने को सुनें’’। यह पहली भारतीय आवाज थी जो दमदम, कलकत्ता की ‘द ग्रामोफोन कंपनी’ की फैक्ट्री में पहले ग्रामोफोन रिकॉर्ड के बजने पर सुनी गई। यह एक काला डिस्क था जिसके ऊपर लिखा था- ‘हिज मास्टर्स वॉइस’। यह रिकॉर्ड एक दूसरी इकाई के साथ जिसकी एक पतली सूई डिस्क के साथ मिलती थी, बजाया गया। और एक मानवीय ध्वनि गूंज उठी, जो गा रही थी। वह दिन था -5 नवंबर 1902 का और वह आवाज थी गौहर जान की। बहुमुखी प्रतिभा और सृजनात्मकता की शिखर आवाज-
“माय नेम इज गौहर जान!”
गौहर जान की कहानी संगीत भरे जीवन की कहानी है जो संघर्षों के बीच गाई जाती है। गौहर जान के जीवन से गुजरते हुए हम जैसे जीवन के हर एक जज्बात से गुजरते हैं। राजसी ठाठ-बाट, शानो-शौकत , लाव-लश्कर को गुजरते देखते हैं तो वहीं अकेलेपन और गुमनामी के डर से भी गुजरते हैं। सही शब्दों में, गौहर जान की जिंदगी एक कहानी है जिसे सुना और सुनाया जाना चाहिए।
गौहर जान स्टार थीं। जिस किसी महफिल में गातीं और नाचतीं सुनने-देखने वालों की भीड़ जमा हो जाती। ‘फर्स्ट डांसिंग गर्ल’, ‘फर्स्ट इंडियन इंटरनेशनल स्टार’, और साउथ एशिया की ग्रामोफोन पर रिकॉर्डेड पहली भारतीय गायिका का समां ऐसे ही बंधना चाहिए कि लोग-बाग इतने उमड़ पड़ें कि उनके बैठने-खड़े होने की जगह न हो।..-‘ मोरा नाहक लाए गवनवा….’, ….’रस के भरे तोरे नैन’,
….’ मेरे दर्द-ए- जिगर…’ सुनने के बाद कई-कई दिनों तक दिल-दिमाग पर तारी रहते थे। उनका नाम ऐसे छाया था कि ऑस्ट्रिया में बनने वाली माचिस की डिब्बियों पर उनकी तस्वीर होती थी। पोस्टकार्डों पर भी उनकी तस्वीर छपी होती थी। पुरुष प्रधान समाज में एक महिला होकर , तवायफ होकर , शोहरत और दौलत कमाना एक बहुत बड़ी बात थी और उससे भी बड़ी बात थी अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना! तमाम तरह के शोषण और धोखे के बीच अपने भीतर के कलाकार को जिंदा रखना , निखारना और बचा ले जाना!
गौहर जान की कहानी -जिंदगानी एक प्रेरणा भी है। 13 साल की अबोध उम्र में यौन शोषण के बाद जैसे छम-छम, छुम-छुम, छमकते हुए पाजेब टूट गए। घुँघुरुओं के टूटने और बिखर जाने से निराश होने के बजाय गौहर ने एक-एक घुंघरु दुबारा इकट्ठा किए।पिरोया और पहनकर ऐसा नाचीं, इतना गाईं कि उनकी आवाज जैसे सहस्राब्दियों तक फैल गयी।
दूर-दूर तक वह एक मुक्कमल आवाज बन छा गई।
गौहर जान बहुत ही जज्बे वाली महिला थीं। उनका बचपन बहुत ही तंगहाली और रोजमर्रा की परेशानियों के बीच गुजरा तो बाकी उम्र एक किस्म के खालीपन के साथ। गौहर के जन्म का नाम एंजेलिना योवार्ड था। पिता , विलियम योवार्ड एक अर्मेनियाई थे और माँ विक्टोरिया, एक प्रशिक्षित गायिका और नर्तकी थीं। गौहर ने नृत्य और गायन की प्रारंभिक शिक्षा अपनी माँ से ही ली। 26 जून,1873 को आजमगढ़ ,उत्तर प्रदेश में जन्मी गौहर जब 6 साल की थीं तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया। विक्टोरिया ने मलक जान नाम के शख्स से शादी कर ली ; इस्लाम धर्म अपना लिया और इनका नाम मलक जान और एंजेलिना का गौहर जान हो गया। मलका जान अपने समय की स्थापित कलाकार थीं। वे कलकत्ता में नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में नियुक्त हो गईं।
बचपन से ही गौहर की तालीम बड़े – बड़े उस्तादों के साथ हुई। उन्होंने पटियाला घराने के संस्थापक उस्ताद अली बक्स जनरैल से हिंदुस्तानी गायन सीखा। गुरु बृंदादीन महाराज से कत्थक, सृजनबाई से ध्रुपद और चरणदास से बंगाली कीर्तन में शिक्षा ली। इसके अतिरिक्त रामपुर के उस्ताद वजीर खान और कलकत्ता के प्यारे साहिब से गायन की तालीम हासिल की। इस तरह छोटी उम्र में ही ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और बंगाली कीर्तन में उन्होंने महारत हासिल कर लिया था ।उन्हें रबिंद्र संगीत की भी अच्छी जानकारी हो गई थी।
गौहर ने उत्तम शिक्षा प्राप्त की थी और एक सुसंस्कृत महिला थीं। 1887 में गौहर जान शाही दरभंगा राज में संगीतकार नियुक्त हो गईं। 1896 से उन्होंने कलकत्ते में महफिलें सजानी शुरू कर दीं। चाहनेवालों ने सिर -आँखों पर बिठाया। गौहर संगीत की दुनिया में अपने छाप छोड़ने लगीं।1900 से 1920 तक लोकप्रियता के सबसे ऊँचे शिखर पर रहीं। बंगाली,
हिंदुस्तानी, गुजराती, तमिल, मराठी, अरबी, फारसी, पश्तो, फ्रेंच और अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में गजल, ठुमरी, दादरा, भजन, चैती, तराना आदि गाए। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नये मुकाम दिए। 600 से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए। गौहर जान दक्षिण एशिया की पहली गायिका थीं जिनके गाने ग्रामोफोन कंपनी ने रिकॉर्ड किए। हिंदुस्तानी संगीत को महज तीन मिनट में समेटकर उन्होंने बखूबी गाया और निभाया। हर रिकॉर्ड की समाप्ति पर वो कहतीं- ” माय नेम इज गौहर जान ।” इस तरह गौहर जान देशभर ही नहीं विश्वभर में जानी गईं।
ठाठ-बाट से बन-ठनकर शाही अंदाज में रहना गौहर का शगल था। वे 19वीं शताब्दी के शुरुआती दशक की सबसे महंगी कलाकार थीं।
उस समय वे करोड़पति थीं और आलिशान जिंदगी जीतीं थीं। रानियों की तरह रहती थीं। जहाँ भी जातीं पूरे ताम-झाम और लाव-लश्कर के साथ जातीं। उनके पास घोड़ों वाली बग्घियाँ भी थीं जो उस समय ऊँचे रसूख वाले लोगों के पास ही होती थीं। कहते हैं कि अपनी हर एक रिकॉर्डिंग के समय वे नये कपड़े और जेवर पहनती थीं। लेकिन शोहरत, भव्यता और शान -ओ-शौकत की उनकी आकर्षक दीखती जिंदगी में छुपे हुए कई दर्द थे। वो एक तवायफ थीं, जिनपर धन-दौलत तो खूब लुटाए गए लेकिन वह सम्मान नहीं दिया गया जो दिया जाना चाहिए। उनकी जिंदगी में कई पुरुष आये और गये । गौहर जान ने बार-बार प्यार में धोखा खाया। हर बार तन्हा और अकेली रह गईं। ढलती उम्र में अपनी उम्र से छोटे एक पठान से शादी भी कर ली लेकिन यह भी एक धोखा ही था जिसमें उन्हें कोर्ट-कचहरी तक के चक्कर काटने पड़े और जायदाद का भी काफी नुकसान हो गया। लेकिन जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव के बाद भी गौहर जान ने गाना बंद नहीं किया।
वह गाती रहीं।
1911 में, किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में दिल्ली दरबार में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने शिरकत की और इलाहाबाद की जानकीबाई के साथ गाया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे मैसूर के महाराज कृष्ण राज वाडियार, चतुर्थ के आमंत्रण पर मैसूर चली गईं। 17 जनवरी,1930 को मैसूर में ही उनका निधन हो गया। पीछे रह गया कलकत्ता की सड़कों पर राजसी ठसक के साथ बग्घी में बैठा गौहर जान का समय! और ग्रामोफोन रिकॉर्डों में बजता- “माय नेम इज गौहर जान!”
सविता पांडेय
चित्रकार, लेखिका, कवयित्री, कथाकार, अनुवादक