साहित्यिक रूप में यदि उल्लेख किया जाए तो संस्मरणात्मक एक घंटा पांच मिनिट समयावधि का यह नाटक था! जिसमें मुख्य अभिनेता “रमेश शर्मा” ने जीवन के हर दौर का चित्रण बाखूबी से अपने कुशल अपने मझे हुए अभिनय द्वारा दर्शकों को जहाँ भावविभोर भी किया तो करतल ध्वनि से वाहवाही भी लूटी!
सुरेश आचार्य के नाट्यालेख को प्रियंका आर्य ने निर्देशकीय की परिकल्पना में खूबसूरती से साकार किया!
रौद्र रस को छोड़ कर जीवन के सभी रसों को ऊर्जावान रंगकर्मी “रमेश शर्मा” ने अपने पात्र “रामचरण मिश्रा” को आत्मसात करते हुए दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया!
संस्मरणात्मक यह नाटक अपनी पहली नाट्य प्रस्तुति के समय पूर्ण रूप से “सोलो” नाटक था जबकि आज की प्रस्तुति में प्रदीप भटनागर,रेणु जोशी,प्रहलाद सिंह राजपुरोहित, दीपांशु पांडे,रामदयाल राजपुरोहित, यजुर्व पांडे, अनिल बाँदड़ा ने कथानक को अपने-अपने प्रभावी अभिनय से आगे बढ़ाते रहें!
नाटक का पहला दृश्य माईम था तो पटापेक्ष सभी पात्रों का एक ज़िन्दगी का बोध कराते हुए गीत पर लिप्सिंग करते हुए ज़िन्दगी का सार लक्षित करा रहा था!
कुछ कमियों थीं जो मरुधरा थियेटर सोसायटी द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति में गौण कही जा सकती हैं परन्तु ध्यान रखने योग्य हैं, जैसे उच्चारण, दूसरी संतान का कथानक में फिर कोई दृश्य नहीं!
संकल्प नाट्य समिति, बीकानेर के तत्त्ववधान रंगकर्मी-शाईर स्व.आनंद वी.आचार्य जी स्मृति में 19 से 21 फरवरी -2024 तक तीन दिवसीय नाट्य समारोह “रंग आंनद” की यह पहली प्रस्तुति थी!
नाटक एक दृश्य काव्य है ।अगर वह लिखित में पढ़ रहे हों तो उस पर कुछ लिखा भी जा सकता है।पर मंच पर अभिनीत नाटक की समीक्षा पर बिना देखे आपसे सहमत या असहमत होना हमें न्याय संगत नहीं लगता। ऐसा हम सोचते हैं।
पर जैसा कि आपने लिखा कि यह पहली प्रस्तुति थी तो गलतियाँ होना संभावित हो सकता है।
बस हम इतना ही कहेंगे।
रंगमंच पर अभिनय करते हुए बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है ताकि प्रस्तुति में सजीवता लाई जा सके और यह सावधानियाँ कलाकारों के लिए और निर्देशक के लिए आवश्यक होती हैं।
सादर
नाटक एक दृश्य काव्य है ।अगर वह लिखित में पढ़ रहे हों तो उस पर कुछ लिखा भी जा सकता है।पर मंच पर अभिनीत नाटक की समीक्षा पर बिना देखे आपसे सहमत या असहमत होना हमें न्याय संगत नहीं लगता। ऐसा हम सोचते हैं।
पर जैसा कि आपने लिखा कि यह पहली प्रस्तुति थी तो गलतियाँ होना संभावित हो सकता है।
बस हम इतना ही कहेंगे।
रंगमंच पर अभिनय करते हुए बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है ताकि प्रस्तुति में सजीवता लाई जा सके और यह सावधानियाँ कलाकारों के लिए और निर्देशक के लिए आवश्यक होती हैं।
सादर