बीते 1 अगस्त, 2020 को चिलटर्न क्रेमेटोरियम, एमेरशैम कथा यूके के अध्यक्ष कैलाश बुधवार की अंत्येष्टि संपन्न हुई। इस मौके पर हमारे सम्पादक तेजेंद्र शर्मा वहाँ मौजूद थे, तो वहाँ से उन्होंने पूरे कार्यक्रम की एक रिपोर्ट भेजी है, जो कि निम्नवत है – मॉडरेटर
कैलाश बुधवार जी को 11 तारीख़ से कुछ ख़ास ही लगाव था। इस धरती पर उन्होंने 11 अप्रैल 1932 को अवतार लिया और 11 जुलाई 2020 को अपनी अंतिम यात्रा पर चल निकले। कैलाश जी को धार्मिक अनुष्ठानों में किसी प्रकार का विश्वास नहीं था इसलिये उनकी अंतिम यात्रा के लिये किसी पुजारी को आमंत्रित नहीं किया गया।
कैलाश जी की पत्नी विनोदिनी जी के अलावा, बेटियां ममता, अर्चना और धुन और पुत्र अभिनय बुधवार अपने अपने परिवारों के साथ वहां मौजूद थे।
कैलाश जी का अंतिम संस्कार चिलटर्न क्रेमेटोरियम, एमेरशैम में किया गया। कोविद-19 के चलते अंतिम संस्कार के लिये केवल 30 व्यक्तियों के इकट्ठे होने की इजाज़त दी गयी थी। परिवार एवं रिश्तेदारों के अतिरिक्त केवल विजय राणा (पूर्व बीबीसी) को बुलाया गया था। Vimeo के ज़रिये कैलाश जी का अंतिम संस्कार पूरे विश्व में देखा गया।
कार्यक्रम का संचालन कैलाश जी के सुपुत्र अभिनय बुधवार ने किया। कैलाश जी के बेटे बेटियां उन्हें “अप्पा जी” कह कर बुलाते हैं। अपने संबोधन में अभिनय ने अपने अप्पा के बारे में अपनी यादें साझा करते हुए हिन्दी भाषा के प्रति उनके स्नेह को विशेष तौर पर रेखांकित किया। माहौल कैलाश जी की यादों से भीगा हुआ था।
उसके बाद कैलाश जी के नाती नातिन – इज़ाबेल, जेक, नमन और ललसा ने अपने नाना जी को याद करते हुए अपने उद्गार रखे।
फिर विजय राणा ने पूरी गंभीरता से कैलाश जी के साथ बीबीसी के अपने दिनों की यादें साझा कीं। कैलाश जी ने किस तरह बीबीसी में नौकरी के लिये उनका इंटरव्यू दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में लिया। और किस तरह उन्हें एक प्राध्यापक से मीडियाकर्मी बनाने में किरदार अदा किया। कैलाश जी के कार्यक्रम लंदन से पत्र पर पृथ्वीराज कपूर की प्रतिक्रिया का भी उन्होंने ज़िक्र किया।
फिर विनोदिनी जी के भाई चन्दर भल्ला ने कैलाश जी के ससुराल की ओर श्रद्धांजलि पेश की। उन्होंने भीगे मन से याद करते हुए कहा कि हैरानी होती है कि पारंपरिक परिवार का लड़का कैसे मीडिया से भारत में जुड़ता है और फिर लंदन जैसे शहर में आकर पूरे परिवार का केन्द्रबिन्दु बन जाता है।
अब बारी मेरी थी। मुझे पाँच मिनट में कैलाश जी के जीवन के बारे में बातें करनी थीं। मैं जानता हूं कि कैलाश जी को ब्रिटेन की सभी हिन्दी से जुड़ी संस्थाएं बहुत सम्मान देती हैं। इसलिये मैंने अपी श्रद्धांजलि यू.के. हिन्दी समिति, वातायन, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स, गीतांजलि बहुभाषीय समूह बर्मिंघम, काव्यरंग नॉटिंघम, काव्यधारा और गुरूकुल की ओर से साझे रूप में दी। इंडियन जर्निलस्ट्स एसोसिएशन एवं कॉमनवेल्थ जर्निलिस्ट्स एसोसिएशन की ओर से दिये गये बयान साझा किये। कथा यू.के. से जुड़े संस्मरण याद किये।
कैलाश जी को याद करते हुए हमें साहित्यकारों, पत्रकारों के अतिरिक्त भारत के विदेश मंत्रालय से विकास स्वरूप, विरेन्द्र शर्मा ब्रिटिश सांसद, लॉर्ड मेघनाद देसाई, लॉर्ड रमी रेंजर, बैरोनेस श्रीला फ़्लैदर, बैरोनेस उषा पराशर, भारतीय उच्चायोग के मंत्री समन्वय श्री मनमीत सिंह नारंग, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी, हिन्दी अधिकारी तरुण कुमार एवं बीबीसी के मार्क टली के संदेश प्राप्त हुए।
अब बारी थी कैलाश जी के सैनिक स्कूल के छात्र दीपक कश्यप की जो कि बड़े होकर उनके दामाद बन गये। उन्होंने सैनिक स्कूल के ज़माने में अपने अध्यापक को याद किया। उन्होंने बताया कि कैलाश जी के कितने विद्यार्थी भारतीय सेना में जनरल, राज्यों के मुख्यमंत्री और डिप्लोमैट बन कर निकले। जब भी कैलाश जी भारत जाते तो उनके सम्मान में उनके पुराने छात्र एक सम्मान समारोह का आयोजन करते।
एक बार फिर कैलाश जी के नाती नातिन जैक और एमा ने अपने नाना जी को याद किया। और कार्यक्रम का अन्त अभिनय ने हरिवंश राय बच्चन की कविता से किया जो बचपन से कैलाश जी उन्हें सुनाया करते थे – “जो बीत गई सो बात गई / जीवन में एक सितारा था /माना वह बेहद प्यारा था / वह डूब गया तो डूब गया / अम्बर के आनन को देखो / कितने इसके तारे टूटे / कितने इसके प्यारे छूटे / जो छूट गए फिर कहाँ मिले / पर बोलो टूटे तारों पर /कब अम्बर शोक मनाता है /जो बीत गई सो बात गई।”
ब्रिटेन में एक रिवाज है कि किसी भी अंत्येष्टि के बाद परिवार के सदस्य और करीबी मित्र किसी पब में बैठ कर भोजन करते हैं और दिवंगत आत्मा की उपलब्धियों की चर्चा करते हैं। कोविद-19 के चलते 30 लोगों का इकट्ठे किसी पब या रेस्टॉरेण्ट में जा पाना संभव नहीं था। इसलिये कैलाश जी से प्यार करने वाले सभी लोग उनकी पुत्री धुन के घर पिन्नर में एकत्रित हुए जहां लंच का इंतज़ाम था। हम सब कैलाश जी को याद करते रहे।
कैलाश जी ने मुझे कहा था, “तेजेन्द्र, हर नौकरी की कोई ना कोई रिटायरमेण्ट एज होती है। भाई अब मुझे भी कथा यू.के. के अध्यक्ष पद से रिटायरमेण्ट दे दो।” मेरा जवाब था, “सर हर नौकरी से इन्सान को रिटायरमेण्ट मिल सकती है। मगर हम अपने पिता को कैसे उसके पद से रिटायर कर सकते हैं?”
कैलाश जी खुल कर हँस पड़े थे। आज आसमान की तरफ़ देखता हूं तो उनकी वो हँसी सुनाई देती है और उनका वाक्य याद आता है, “चले आओ दोस्त, एक कप चाय पियेंगे।”
आपकी भावभीनी रिपोर्ट का अन्त आँख में डबडबाए आँसुओं को ढुलकने से रोक नहीं पाया। स्मृतिशेष पितृतुल्य कैलाश जी को विनम्र श्रद्धांजलि।