Tuesday, October 8, 2024
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बिंदिया नागपाल की कविता – तुम लड़की हो, तुमसे न होगा!

पढ़ने-लिखने का काम सीखना विदेशी ज़ुबान
बाज़ार से लाना सामान
बुढ़ापे में रखना मां-बाप का ध्यान
तुम लड़की हो, तुमसे न होगा!
लड़कों की तरह खेलना, यूं बेबाक हंसना-बोलना
बाहर काम करना व करवाना
पैसे कमाना और घर चलाना
तुम लड़की हो, तुमसे न होगा!
ये कड़ी धूप, कठोर लोग, पैसों का लेन-देन
दुनियादारी का ताम-झाम, न सुरक्षा-न आराम;
बड़ा मुश्किल है बनाना अपना एक नाम
हासिल करना एक मकाम;
जिस राह जाने को बनी ही नहीं, क्यूं होना उसके ख्याल से परेशान?
“शुक्रगुज़ार मैं अपनी कि मैंने हिमाकत कर ली
जो रास्ता आम नहीं, वो राह मैंने चुन ली
फिर पता चला कम न थी हमारी काबिलियत
यह जुमला तो गिलाफ़ था उनका
जो समझते थे हमें अपनी मिल्कीयत
जिन्हें गंवारा न था मक़्दूर हमसे बांटना
जो चाहते न थे इन दूरियों को पाटना!
वरना घर ही नहीं देश भी चलाती हैं लड़कियां
कभी खेलों में, कभी कारोबार में
तो कभी आसमानों में हुनर दिखाती हैं लड़कियां
घरों के अंदर हो या बाहर जिम्मेदारियां खूब निभाती हैं लड़कियां
इनसे नहीं होगा तो किनसे होगा?
अजि़यत के बावजूद हौंसला दिखाती हैं लड़कियां!
नफा ही नफा है, चाहें तो आज़माकर देख लें;
असीर न बनें गर दकियानूसी पैग़ामौं के
पंख लगेंगे लाज़मी अरमानों के,
बदलते हैं लिबास रोज़
एक दफा सोच बदल कर देख लें
मुश्किलें बहुत बढ़ा ली,
थोड़ी मदद करके देख लें बदलेगी मुसव्वरी,
आओ रंग नये भर के देख लें!
बिंदिया नागपाल
बिंदिया नागपाल
Consultant - Education and Equity. संपर्क - [email protected]
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