1 – आएगा मधुमास…
वह सूरत
जिसे आंख बंद कर
याद किया करता है कोई
दिन की गुनगुनी धूप में
महसूस करता है
सर्द रातों की ठिठुरन में
झांकता है कई बार
मन का वह कोना
जिसमें है गतिमान
एक चाँद
मानो कह रहा हो मुस्कुराकर
मैं यही हूं
छोड़कर न जाने वाला कहीं
औ’ मैं निश्चिंत सा
सेकता हूं धूप
होता हूं प्रफुल्लित
करता हूं इंतजार
मधुमास का
महसूसता हूं
जीवन के बसंत को
जो कर देगा
हमारी प्रकृति को हरा-भरा
सुगंधित-सुशोभित फूलों से
दिग-दिगंत तक…
2 – क्या तुम भी…
मैं करूंगी तुम्हें प्रेम
क्या तुम भी कर पाओगे
जिसकी मुझे आस है…?
करती हैं ओस की बूंदें
हरी-भरी बिछली घास से
करती हैं प्रेमिल उन्हें
चमकाती हैं
खोकर अपना अस्तित्व
क्या तुम भी खो पाओगे…?
करता है भंवर
कुमुद से
खिंचा चला आता है
प्रेम में
हो जाता है पंखुड़ी में
सदा के लिए बंद
क्या तुम भी हो पाओगे…?
करता है चांद
चांदनी से
होकर उसमें विलीन
देकर अपना तेज
बिखेरता है आभा अप्रतिम
निखर जाती है प्रकृति
निविड़ रैन में भी
क्या तुम भी निखार पाओगे…?
3 – पौधा चाहत का
चाहा इतना कि
और की चाहत ही ना रही
अब इस ठूंठ में
फूटने लगी हैं
कोपलें फिर से
कोई बता दे जरा
कैसे बचाएं इसे धूप से
यह बचा रहेगा
या फिर झुलसती गर्मी से
खो देगा अस्तित्व अपना
उम्मीदों का दामन
नहीं छोड़ना है
हां इसे होगा फलना-फूलना
वट-वृक्ष सदृश
इक दिन होगा ये
बसेरा पखेरुओं का
सहारा लतिकाओं का
थके-मांदे बटोही
जीवन-पथ पर
बैठ इसकी छांव तले
मिटायेंगे अपनी थकान
पाएंगे भरपूर छांव
हां जतन कर अपार
बचाना ही होगा इसे
ताकि फैल सकें
इसके बीच पूरे संसार में
4 – नामुमकिन सा…
उम्र के इस पड़ाव में
याद आने लगा है
वह प्रेम
जो साथ था
किशोरावस्था से प्रौढ़ावस्था तक
कर गया था आहत
टूटकर रोया मैं
बिखरने नहीं दिया
संभालना जो था परिवार
मां, पापा, छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी ने
बना दिया था
असमय ही मेच्योर
पर अब मैं
खोता जा रहा मैच्योरिटी…
उम्र के इस पड़ाव में
कर रहा हूं उसे याद
फेसबुक, इंस्टाग्राम में
ढूंढ रही हैं आंखें
सर्च करती उंगलियां मेरी
उस गुमशुदा चेहरे को
बहुत प्रयासरत हूं
लेकिन असफल सा
अंतर्मन की सुनसान घाटी में
होने लगा हूं गुम