मैं बोलता तेरी तर्जुमानी है,
मेरे शब्द उस अधीरे की कहानी हैं।
जो मजदूर बिखरा दिन भर,
अन्न पाया बस मुट्ठी भर।
मेरे शब्द उसकी मौन बानीं है।
राह के दरख़्त सब काट दिये,
समतल मग सब पाट दिये।
उनकी असमय मौत मेरी जुबानी है।
शिक्षा कुछ काम ना आई,
सब डूब गई जो की थी पढ़ाई।
उस साक्षर की कथा बनानी है।
सुंदर पर भीतर से जो काले हैं,
गिनती में नहीं और मुॅंह पे तालें है।
इन अच्छे बुरों की बात सबको बतानी है।
हेमन्त कुमार शर्मा की कविता - मैं बोलता तेरी तर्जुमानी 3
हेमन्त कुमार शर्मा
ग्राम – कोना
पोस्ट – नानकपुर
हरियाणा।

1 टिप्पणी

  1. सुंदर पर भीतर से जो काले हैं,
    गिनती में नहीं और मुॅंह पे तालें है।
    इन अच्छे बुरों की बात सबको बतानी है।

    बहुत अच्छी रचना!

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