Saturday, July 27, 2024
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हरदीप सबरवाल की कविताएँ

1. जहां जाति नहीं थी
जिस देश में जाति नहीं थी
वहां रंग हाजिर रहा
जहां रंग के भेद नहीं थे
वहां नस्ल और भाषा बोलती रही
दो सीढ़ियां ऊपर चढ़ते ही
वर्ग भेद सिर पर चढ़ने लगा,
ऐसा भी नहीं कि लिंगभेद एक तरफा रहा
दूसरे पक्ष का भी जहां जोर चला, खूब चला
जंगल में सदा धूप पर बड़े वृक्ष काबिज रहे
जितने भी कदम बढ़े, घास को रौंद कर ही बढ़े
कितना ही लंबा सफर तय किया जाए धरती पर
ऐसा कोई कोना नहीं रहा जहां समता हाजिर रही…
2. वारिस
साउथ हॉल में बढ़ रहे भारतीयों की गिनती देख
गोरे वहां से बेच बाच कर दूसरे इलाकों की ओर चले गए
पंजाब के एक कस्बे के मोहल्ले में बस रहे प्रवासी मजदूरों से परेशान
पंजाबी परिवार नई कॉलोनियों का रुख कर गए
इस विस्थापन के लिए कौन जिम्मेदार !
आ कर बसने वाले या जाने वाले
देश, प्रांत, शहर, क्षेत्र के असली वारिस कौन !
आकर बसने वाले या विस्थापित होने वाले…
3. मजबूती
कमजोर आदमी उत्सुक होता है
मजबूत आदमी की कमजोरी जानने को
मजबूत आदमी कहीं ज्यादा उत्सुक
कमजोर आदमी की कमजोर नस पहचाननें को
आखिर दूसरे की कमजोरी
हमारी मजबूती बन कर उभर आती
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