“संदीप दा भी तो बिआ का बाद से कबी ठीक नइ रहता| हेल्थ चला गया| तुम लिपि बोदि को तो कुछ नहीं कहती| … वेसे बी सुचित्रा बोदिकोकौन-सासुखहै?”
“लिपि का बात मत करो| ओ संस्कारी घर का बेटी है| संदीप बीमार पड़ा तो उसका अफसर ससुर –साला डाक्टर-दबाई में कोई कसर नइ छोड़ा| लिपि तुमारा उमर का है| बच्चा है अबी| और बउ … तुमयहाँरहोतोजानो।ओतोमरदपटानेकामंतरजानताहै।तापस कोदेखोगे तो … कैसाजोलट्टूरहताहै।दोनोंकैसाखिचड़ीपकाताहै ! राधे!राधे!”माँकानछूकरसिरहिलातीरही।
‘माँकीझल्लाहटऔरबोदिकोगलतठहराते–ठहरातेअबबाबाकोभीगलतठहरानाकितनागलतहैमाँक्योंनहींसमझती! कैसेसमझाऊँकिअपनीसुखीबगियामेंशककीचिंगारीनफेंके।‘ वह देर तक सोचतीरहगई !
…
‘बाबाचलेगए।माँरोई।अबज्यादारोतीहै।अबसमझआताहैउसे, अबपछतातीहै।बोदकोलेकरअबकड़ेशब्दनहींकहती। “बोदिकीसेवासोमूकररहा।बीमारीलाइलाज़होगया।समयपरइलाजशुरूनइहुआ, होतातोशायदबचजाती।अबतोउम्मीदनइहै|” माँकीआवाज़मेंकरुणाहै।बाबाकेजानेऔरअपनाजीवनबिखरतेदेखकरसमझचुकीहैदर्दबोदिका।अबकभीशिकायतनहींकरती, नहींकहतीबउ नेउनकेबेटोंकोफाँसलियाहै।अकेलेपनकाज़हरपीते–पीतेवहअबबोदिकागुणगातीहैकिकैसेउसनेसजोयकाऔरजेठामाँ–बाबाकासेवाकिया।कैसेपूराघरकोजोड़ेरही, जबकिउसकाघरउजड़गया।…आजकीर्तिने उसघरसेउसके जीवन का आख़िरीपन्नाभीफटजानेकीखबरसुनादी।बोदिचलीगई।दोनोंजवानबच्चोंकोछोड़कर… दूर–बहुतदूर…
स्त्री के संत्रास को व्यक्त करती बहुत ही भावप्रवण कहानी। यह विडम्बना ही है कि केवल स्त्री पर ही उँगली उठाई जाती है, सारी बंदिशें केवल स्त्रियों के लिए हैं।
बेहद मार्मिक समाज की संकीर्णता का चित्रण करती कहानी। जब पठनीयता बनी रहे तो कहानी स्वयं ही अपनी अच्छाई बताती है। बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई
धन्यवाद सुदर्शन जी।
स्त्री के संत्रास को व्यक्त करती बहुत ही भावप्रवण कहानी। यह विडम्बना ही है कि केवल स्त्री पर ही उँगली उठाई जाती है, सारी बंदिशें केवल स्त्रियों के लिए हैं।
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