उस छोटे से शहर के एक मात्र  वृद्धाश्रम में आज रोज की अपेक्षा कुछ ज्यादा चहल-पहल थी। सुबह से ही वृद्धाश्रम को फूलों से सजाया जा रहा था। शहर के सबसे धनी व्यवसायी विजय चंद्र और विमल चंद्र अपने स्वर्गीय पिता की पुण्य स्मृति में वृद्धाश्रम आ रहे थे ।वृद्धाश्रम में आज हर किसी की जुबान पर उसी के चर्चे हो रहे थे। जमुना ताई कह रही थी।
 “सुना है वे लोग फल मिठाई के साथ-साथ कपड़े भी बांट रहे हैं। ” 
जमुना ताई की बात को बीच में ही काट कर लाजवंती ने कहा ।
“अच्छा हो वो लोग कंबल की जगह साडी बांटे। मेरे पास तो कोई नई साड़ी भी नहीं है यह जो साड़ी है वह भी कई जगह से फट चुकी है ।”
अभी तक इन दोनों बुढियो की बात चुपचाप सुन रहे सरजू दादा से अब चुप ना रहा गया । वे भी बीच में ही बोल पड़े ।
“भाई तुम औरतें रहोगी तो कम अक्ल की कम अक्ल ही , चाहे बाल सफेद क्यों ना हो जाए, अरे अक्ल की मारियो अगले महीने से जाड़े शुरू होने वाले हैं कंबल बँटे वही ज्यादा सही रहेगा है। हमें उसकी ज्यादा जरूरत है ।”
वहां बैठे अन्य बुजुर्गों ने भी उनकी हां में हां मिलाई ।उन सभी के बीच उषा देवी बडे  निर्विकार भाव सी बैठी थी। जमुना ताई के अचानक से कुछ प्रश्न पूछने पर वह अचकचा सी गई।  
तभी कार की आवाज सुनाई दी और सभी लोग उस आवाज की दिशा में देखने लगे । एक बड़ी सी काले रंग की कार आकर वहां रुकी। उस में से दोनों भाई उतरें। उन्हें देखकर सभी बुर्जुगो के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे । देखने में वह दोनों भाई राजकुमार सरीखे से दिख रहे थे ।रईसी उनके चेहरे से साफ झलक रही थी ।उन दोनों भाइयों ने अपने कर्मचारी से इशारे में कुछ कहा। वह कर्मचारी तुरंत ही बिजली की गति से दौड़ कर गया और दूसरी गाड़ी में रखा सामान निकालना शुरू किया । उधर वृद्धाश्रम के सारे बुजुर्गों ने उन दोनों भाइयों से मिलने वाले उपहार की आस में उन्हें घेर सा लिया था , दूर खड़ी उषा देवी यह सब बड़े गौर से देख रही थी । 
वह खड़े – खड़े अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी। पास ही खड़े बुजुर्गों ने उन्हें संभाला और पास के कमरे में पडी एक चारपाई पर उन्हें लिटा दिया। जमुना ताई ने उन पर पानी के छींटे मारे तो वह कुछ होश में आई ।उनकी आंखों के सामने  पिछले दृश्य एक-एक करके घूम रहे थे।
 उषिया, उषिया कहा मर गई। कानों में मां की आवाज़ गूंज रही थी। उन्हें याद आ रहा था अपना बचपन।  जब वह  छोटी थी तो  मां अक्सर बीमार रहती थी इस वजह से  अपने छोटे बहनों और भाइयों की देखभाल की अनौपचारिक रूप से उनकी ही जिम्मेदारी थी , चौका बर्तन और छोटे भाई बहनों की देखभाल में ही उनका बचपन गुजर गया । इस वजह से वे कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाई। विवाह योग्य होने पर दूर की एक बुआ उनके लिए एक रिश्ता लेकर आई।  माता-बाप को वह रिश्ता बहुत पसंद आ गया और उनकी चट मंगनी पट ब्याह कर दिया गया।
विवाह के बाद उन्हें पता चला उनके पति किसी और लड़की को पसंद करते हैं इसीलिए उन्हें पति का प्रेम और सानिध्य कम ही मिला। इसी बीच वे एक लड़की की मां बन चुकी थी ।मां बनने के बाद उन्होंने सोचा अब शायद  उनके पति कुछ बदल जाए। मगर यह क्या?  उस लड़की के प्रेम में पहले से ही पागल उनके पति उस लड़की की दूसरी जगह शादी होने से और भी पागल हो गए और एक दिन इसी पागलपन में उन्होंने आत्महत्या कर ली ।
उन पर जैसे  मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा । ससुराल वालों ने उन्हें अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें और उनकी दुधमुंही बच्ची को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
वह अपनी लुटी – पिटी किस्मत  को लेकर  अपने मायके आ गई ।महीनों तक घर की चारदीवारी के अंदर वे रोती सिसकती  और अपनी किस्मत को कोसती रही। समय बीतने के साथ-साथ उनके भाभियो  का बर्ताव भी बदलने लगा। अब वे उनके के साथ और भी रुखाई से पेश आने लगी। इधर उनके मां बाप की आंखों की नींद उड़  चुकी थी उन्हें अपनी बेटी के ससुराल वालों को दिखाना था कि वे अपनी बेटी का घर फिर से बसा सकते है ऐसी स्थिति में वे रात दिन उनके लिए रिश्ता तलाश रहे थे।
बहुत कोशिश करने के बाद एक अच्छा रिश्ता उनके हाथ आया । शहर के नामी व्यवसायी रतनचंद जिनकी  पत्नी की अभी हाल में ही कैंसर से मृत्यु हुई थी । वे अपने बच्चों की देखभाल और अपनी अधूरी गृहस्थी को पूरा करने के लिए उनसे शादी करने को तैयार थे मगर उनकी शर्त थी कि वे उनकी बेटी को नहीं अपनाएंगे । उनके ससुराल वालों को दिखाने की सनक मे उनके मां बाप ने उनसे पूछे वगैर उनकी इस नाजायज शर्त को भी मान लिया। वे किसी भी कीमत पर हाथ आए इस रिश्ते को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। सो वे क्या चाहती है यह जानने की जहमत ही नही उठाई।
मगर वे अपने बच्ची से अलग नहीं होना चाहती थी सो कभी न मुंह खोलने वाली ने पहली बार अपना मुंह खोला मगर मां बाप ने उन्हें समाज और अपनी इज्जत की दुहाई देकर उनका मुंह बंद कर दिया।
विदाई के बाद अपने कलेजे के टुकड़े को मां बाप को सौंपकर वह अपने इस नये संसार मे आ गई । पहली ही रात की शुरुआत जिस प्रकार से हुई उसने उनके भविष्य की रुपरेखा बता दी थी।
सुहाग सेज पर बैठी उनके पति ने उनसे स्पष्ट शब्दों में कह दिया  “यह शादी मैंने बच्चों को मां का प्यार देने के लिए की है ।”और यह कहकर वह करवट बदलकर सो गए।
वे सोच में पड़ गई “यह कैसा इंसान है जो एक तरफ मुझसे अपने बच्चों को मां का प्यार देने के लिए शादी कर रहा है वहीं दूसरी तरफ एक मासूम बच्ची को उसकी मां के प्यार से वंचित कर रहा है।”
फिर भी उन्होंने अपने जी को कडा करके उन बच्चों को अपनी ममता से सींचना चाहा मगर माथे पर चिपके सौतेली मां के टैग की वजह से उन बच्चों ने कभी उन्हें अपनी मां नहीं माना।
इधर बेटी से मिलने मायके जाने के लिए पति से अनुमति लेने पर वह झुझंला उठते ।
“तुम्हें जब देखो तब मायके जाने की पडी रहती है अभी कुछ दिनों पहले ही तो गई थी ।इस घर को तो तुम अपना समझती ही नही हो ।”
वह मन मसोसकर रह जाती है। वह उन्हें कैसे समझाये? तुम तो अपने बच्चों के साथ रहते हो मगर मेरी बच्ची तो मुझसे दूर है तुम मेरा दर्द क्यों नही समझते । 
वह कई -कई दिनों तक अपनी बच्ची से मिल नही पाती। मां और बेटी दोनों एक दूसरे से मिलने को तडपती रहती ।
उनका मन होता “काश मेरे पंख होते तो मैं उडकर अपनी बच्ची के पास पहुंच पाती । उसे जीभर कर देख पाती।उसका मुख चुम पाती…।”
इधर वह अपने पति के बच्चों को जितना अपना बनाने का प्रयास करती बच्चे उतने ही अधिक उनके प्रति उग्र व्यवहार करते और पति अपने काम धंधे में इतने व्यस्त रहते कि उनके पास बैठकर बात करने की फुरसत तक नही होती।
इसी बीच वे गर्भवती हो गई जैसे ही उनके पति को पता चला तो वो भडक गये ।
“मुझे ये बच्चा नहीं चाहिए। तुम अभी चलो मेरे साथ डॉक्टर के पास ।” 
लाख गिडागिडाने पर भी उनकी एक न सुनी गई। अस्पताल में जब आँख खुली तो पेट पर टाँके के निशान देखकर उन्हें कुछ समझ में नही आया घबराकर नर्स से पूछा तो उसने बताया 
” तुम्हारा ऑपरेशन हुआ है।”
“किसका “उन्होंने असंमजस से पूछा।
“नसबंदी का” नर्स कहकर चली गई।
इसतरह खुद को छले जाने पर वह अंदर से बुरी तरह से टुट सी गई मगर वहां उनके टुटे हुए मन को समझने वाला कोई न था।उस दिन के बाद  से वह चुप – चुप सी रहने लगी।उसके बाद बसंत के कई मौसम गुजरे मगर उनके जीवन में फिर कोई बसंत नही आया।
वक्त अपनी रफ्तार से गुजर रहा था देखते ही देखते बच्चे बडे हो गए थे । एक दिन मायके से मां का फोन आया उनकी बेटी की शादी तय कर दी  है । शादी में आ जाना। उस दिन वह बेटी की तस्वीर को छाती से चिपकाकर खूब रोयी। 
“आज मेरी बेटी इतनी बडी हो गई  है कि उसकी शादी हो रही है। “वे बुदबुदाये जा रही थी।
शाम को जब पति घर आए तो उन्होंने बेटी की शादी में जाने की बात की ,इस पर वह भडक पडे ।
” तुम्हें यह नहीं दिखाई दे रहा है कि विमल की तबीयत खराब है और विजय के एग्जाम चल रहे हैं ।तुम्हें तो बस अपनी बेटी की शादी में जाने की पड़ी है हां जाओ तुम खूब मजे करो।यह तुम्हारे बेटे थोड़े हैं जो तुम्हें इनकी चिंता होगी ।”
ऐसा कहकर उन्होंने जैसे उसकी ममता को थप्पड़ सा जड़  दिया था । सारी दुनिया उसे सौतेली मां कहती ।स्वयं बच्चे भी उसे मां नहीं समझते  लेकिन यह क्या?  उसका अपना पति ही उसकी ममता पर सवाल उठा रहा है ऐसे में वह क्या करें?
वह अपनी बेटी की शादी में नहीं गई इससे उनकी बेटी उनसे नाराज हो गई ।
“कैसी स्वार्थी मां हो ?अपना घर बसाने के लिए मुझे खुद से दूर कर दिया। मुझे कभी अपने साथ नहीं रखा ऐसी भी क्या मजबूरी कि अपनी बेटी की शादी में शामिल होने की फुरसत तक नहीं मिली।” यह उसने अपनी मां को लिखें लंबे खत में लिखा।
खत को पढ़ कर उनकी आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। सौतेले बेटों ने तो कभी उनको अपना समझा ही नहीं था अब बेटी भी हमेशा- हमेशा के लिए रूठ गई थी। 
इसी गम मे उन्होंने कई दिनों तक खाना नहीं खाया ऐसे ही पड़ी रहती मगर ईट पत्थरों से बने उस बड़े से घर में उनका हाल चाल पूछने वाला कोई न था ।
जिंदगी ऐसे ही गुजर रही थी ।एक दिन अचानक उनके पति को हृदयाघात पडने से निधन हो गया ।तेरहवीं के बाद सारे क्रिया कर्म संपन्न होने के पश्चात वकील ने उनके पति की बनाई वसीयत सुनाई। उसे सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई ।सारी संपत्ति वह अपने बेटों के नाम पर कर गए थे।संपत्ति के नाम पर उन्हें धेला तक नहीं मिला ।
पिता की मृत्यु के पश्चात बेटों ने भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया ।मां तो कभी माना ही नहीं था अब पिता की पत्नी मानना भी बंद कर दिया।
 
जल्द ही उन्हें घर के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ।
घर से बेदखल होने के बाद उन्होंने सोचा कहां जाऊं? मायके वहां तो माता-पिता अब रहे नही हैं फिर मन में बेटी का ख्याल आया पर किस मुंह से उसके पास जाऊं कभी मां होने का कोई धर्म भी तो नहीं निभा पाई ।
शीघ्र ही बेटी की तरफ बढ़ते कदम अचानक से रुक से गए और उन्होंने अपने कदम शहर के बड़े तालाब की ओर बढा दियें ।अब उन्हें अपनी मुक्ति का द्वार वही नजर आ रहा था ।तालाब के किनारे पहुंचकर उन्होंने आंखों में आए आंसुओं को पोछा और आंखें बंद करके तालाब में छलांग लगा दी।
सौभाग्य से सुबह की सैर के लिए निकले कुछ लोगों ने  उन्हें बचा लिया ।
इस घटना से वह थोड़ी सी बदहवास की अवस्था में थी इसीलिए पुलिस द्वारा नाम पता पूछने पर कुछ नहीं बता पा रही थी।
कुछ लोगों द्वारा उन्हें पहचाने जाने पर पुलिस ने उनके बेटों को खबर कर दी। पर उन्होंने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया । तब पुलिस ने उन्हें शहर के इस छोटे से वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया ।
उनकी चेतना रह रह कर आ जा रही थी। आज उन्हीं बच्चों को दोबारा इस वृद्धाश्रम मे देखा तो लगा  यह सब आडम्बर है जीते जी जो बेटा अपने सौतेली मां को दो रोटी नहीं दे पाए। वह दिखावा नहीं तो क्या है ?
 
कठपुतली की तरह सदा दूसरों के इशारों पर नाचते- नाचते जैसे वह थक सी गई थी। उनकी सांसो ने जैसे अब और नाचने से इनकार कर दिया था इसीलिए आज उनकी सांसो की डोर हमेशा हमेशा के लिए टूट गई ।

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