डॉक्टर श्री कान्त ने सुनयना को बताया कि विजय और सुमन को उम्र कैद की सजा हुई है।  यह सुन कर    उसके मन में  एक अजीब सी हलचल मची हुई है। उसे नहीं मालूम यह बैचेनी है या अजीब सा सुकून। जैसे कुछ मिला भी है और सब कुछ  खो भी दिया।
सोचते -सोचते वह आईने के सामने खड़ी हो गयी।अपने रूप को देख कर वह खुद ही डर  गयी ! कैसी थी और क्या हो गयी सुनयना !बहुत अधिक रूपवती तो नहीं थी लेकिन एक अच्छे व्यक्तित्व की मालकिन तो थी ही।  ज्यादा देर खड़ी रह ना सकी और बिस्तर पर लेट गयी।
विजय और सुनयना का प्रेम विवाह हुआ था। घर वालों के विरोध के बावजूद उसने विजय को जीवनसाथी के रूप में अपना लिया था।  जबकि विजय की आजीविका कोई ऐसी भी नहीं थी कि जिससे वह दोनों का खर्च वहन कर सके। सुनयना पर तो प्रेम का भूत सवार था। कुछ भी नहीं सुझा बस विजय के सिवा।
दोनों ने घर छोड़ कर मंदिर में विवाह कर लिया।  विजय अपने घर ले कर गया। वहां कोई विरोध नहीं हुआ तो ज्यादा स्वागत भी नहीं हुआ। और विरोध होता भी क्यूँ  ! उनको तो उनके नाकारा बेटे के लिए घर बैठे  ही बहू मिल गयी।
विजय सुबह ही नौकरी के नाम निकल जाता शाम पड़े घर आता। पीछे सुनयना से  काम तो बहुत लिया जाता पर व्यवहार के नाम पर अजनबियत या बाहर  से आयी हुई ही सहन करना पड़ता।
कभी विजय से उसने पूछा भी वह क्या कमाता है या दिन भर कहाँ जाता है तो उसे झिड़क कर चुप करवा दिया जाता। यह तो वह विवाह से भी पहले पूछती थी कि वह क्या करता है। तब भी वह उसकी बात गोल -मोल जाता था।  उसके बद – व्यवहार से  कई बार सुनयना सोचती थी जो प्रेम उसने किया था वो प्रेम क्या हुआ ? कभी वह घर वालों की शिकायत भी करती तो विजय उसे ही उलाहना देता कि  वह बड़े घर की है तो उसके परिवार से सामंजस्य नहीं बैठा रही।  हमारे भारतीय समाज में ऐसा ही होता है , किसी स्त्री को उसका पति नहीं पूछता तो घर में भी कोई पूछ नहीं होती। मायके से भी कोई आस नहीं थी। उन्होंने भी अभी तक नाराजगी का  दामन नहीं छोड़ा था ।
ऐसे ही एक दिन वह बीमार पड़ गयी। उसे अस्पताल ले जाने के बजाय घर पर दवा ला दी। दूसरे  दिन विजय एक औरत को ले कर आया जिसे वह नर्स बता रहा था। उसने सुनयना के एक इंजेक्शन लगाया। लेकिन उसे उन दोनों के रंग-ढंग कुछ अजीब से लगे। नर्स जिसका नाम सुमन  था, वह विजय की और देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और विजय भी। विजय उसको छोड़ने गया तो देर रात ही घर लौटा।
तबियत  ठीक होने के बाद सुनयना के वही दिन और वही रात।
कुछ समय बाद उस की तबियत कुछ गिरी -गिरी सी रहने लगी। थकान सी और हल्का बुखार भी। कभी खाना भी हजम नहीं होता।शरीर  का भार भी तेज़ी से कम होता जा रहा था। लेकिन घर वालों को कोई परवाह नहीं थी।  जब विजय ही उसके प्रति लापवाह था तो और किसी को क्या फिक्र होनी थी। अब तो वह कई बार रात को भी घर नहीं आता। विजय को तो उसके मायके से धन मिलने की जो उम्मीद थी वह तो रही नहीं तो सुनयना में भी रूचि न रही।
एक दिन जब वह  चक्कर खा कर गिर पड़ी तो घर वालों को होश आया और उसे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया।वहां डॉक्टर ने उसकी शारीरिक परिस्थिति भांपते हुए सभी तरह के परिक्षण करवाए।
टेस्ट्स की रिपोर्ट्स देख और सुन कर घर वालों और विजय के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गयी क्यूंकि सुनयना का एच .आई .वी . पोजिटिव था यानी एड्स।
एकाएक सभी की निगाहों में सुनयना के प्रति घृणा तैरने लगी और उसको कुलटा और ना जाने कैसे-कैसे आरोप लगाये जा रहे थे। सुनयना खुद हैरान थी कि ऐसे कैसे हो गया। कोई उसकी बात सुनने को तैयार ही नहीं था। वह लगभग बेहोश सी हुई जा रही थी।
कुछ देर बाद वह अस्पताल में अकेली थी।  सभी उस पर लांछन की चादर ओढा कर वहीं छोड़ कर जा चुके थे। उसने हिम्मत कर के टैक्सी  पकड़ी और घर गयी लेकिन उस कुलटा का उस घर में कोई स्थान नहीं है, कह कर दरवाजे से ही धकेल दिया गया |
अब एक आस मायके से भी थी ।उसने पड़ोस में जा कर मायके फोन मिलाया तो दूसरी तरफ उसकी माँ थी। जब माँ ने बेटी की व्यथा सुनी तो फफक पड़ी और घर लौट आने को कहा।
मायके पहुँची तब तक उसकी माँ  सारी बात उसके पिता ,भाई और भाभी को बता चुकी थी। माँ ने तो गले लगाया पर पिता ने अभी भी माफ़ नहीं किया था । वे कुछ नहीं बोले ।भाई की नाराज़गी साफ दिखाई दे रही थी। और भाभी तो उसे ऐसे देख रही थी जैसे कोई छूत की बीमारी ही आ गयी।अपने आप को समेट कर खड़ी हो गयी।
उसे उसी वक्त अस्पताल ले जाया गया और वहां से जहाँ पर एड्स रोगियों की देखभाल करने वाली संस्था में भर्ती करवा दिया । क्यूंकि उसे बहुत घृणित  बीमारी थी जो कि समाज की नज़रों में निंदनीय भी थी। उसके वहीं रहने की व्यवस्था कर दी गयी। उसकी जरूरत की वस्तुए उसे पहुंचा  दी जाती। कभी माँ आती तो वह बहुत कुछ सवाल माँ से करना चाहती पर माँ की बेबस और कातर आँखों में झाँक चुप हो जाती।
उसने प्रेम करने का जुर्म किया था। उसी को खमियाजा भी भुगतना पड़ा।
वहां पर डॉक्टर श्रीकांत भी थे।सभी मरीजों से घुलते – मिलते ,  हाल -चाल पूछते ,एक मुस्कुराहट सी रहती थी उनके चेहरे पर। जब उन्होंने सुनयना को एकांत में घुलते हुए देखा तो उसके पास चले आये।और उसके बारे में पूछने लगे। बातों -बातों में उन्होंने पूछा कि  क्या कभी बीमारी के वक्त उसे कोई इंजेक्शन तो नहीं दिया गया था। तब अचानक उसके दिमाग में एक बिजली सी कोंध गयी और वह समझ गयी , उस दिन सुमन ने उसे जो इंजेक्शन लगाया था हो ना हो वही एच . आई . वी. संक्रमित ही था। याद कर वह जोर से रो पड़ी।    डॉक्टर ने उसे सांत्वना देते हुए उसे विजय पर कानूनी कार्यवाही करने की सलाह दी और अपना सहयोग देने का भी वादा किया।
अगले दिन उसने डॉक्टर के साथ जा कर उन दोनों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी। पुलिस के अपनी कार्यवाही करते हुए और दोनों को गिरफ्तार कर लिया और केस दर्ज करवा दिया।
वहां पर उसे यह भी पता चला कि  विजय ने सुमन से विवाह भी कर लिया है। उसे इस बात पर बहुत धक्का पहुंचा और अपने प्रेम  पर बहुत ग्लानि भी हुई कि क्या यही वह व्यक्ति था जस पर उसने भरोसा कर अपना सब कुछ त्याग दिया था। अब वह और भी बीमार रहने लगी थी।
कोर्ट में विजय और सुमन ने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया। जिस दिन कोर्ट में उन दोनों के खिलाफ फैसला सुनाना था, सुनयना की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब थी इसलिए वह जा नहीं पायी।
सुनयना सोचते -सोचते गई।  थोड़ी देर में डॉक्टर श्रीकांत ने उसे देखा तो कुछ चौंके और छू कर देखा।
वह नींद में थी पर ना जागने वाली नींद में एक चिरनिद्रा में। डॉक्टर श्रीकांत का मन भर आया और मन ही मन बोले आज सुनयना को मुक्ति मिल गई  इस दोगली दुनिया से। और चादर से मुहं ढांप दिया।

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