आज अमिताभ बच्चन ने जीवन के अठहत्तर वसंत पूरे कर लिए हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व में थकान का कोई चिन्ह आपको कभी नहीं दिखाई देगा। कितने ही युवा कलाकारों से अधिक वे इस उम्र में भी सक्रिय हैं। और ये सक्रियता केवल कहने की नहीं है बल्कि एक से बढ़कर एक चुनौतीपूर्ण और विविधवर्णी किरदारों को निभाने की है।

परम्परागत रूप से भारतीय समाज के अवचेतन की बनावट ऐसी रही है कि वो नायक की खोज और प्रतिष्ठा में संतुष्ट होता है। यही कारण है कि कला, विज्ञान, खेल, राजनीति आदि देश के लगभग हर क्षेत्र में आपको सहज ही नायक मिल जाएंगे। सिनेमा पर भी यह बात लागू होती है, लेकिन चमकदमक वाले इस क्षेत्र में एक समय के बाद नायकों की भीड़सी खड़ी हो गयी, सो लोगों के लिए यहाँ नायकत्व में कोई विशिष्टताबोध नहीं रह गया।
ऐसे में भारतीय जनमानस ने सिनेमा क्षेत्र मेंमहानायककी कल्पना की, जिसकी खोज भारतीय सिनेमा को अपने अभिनय अंदाज से एक नया आयाम देने वाले अमिताभ बच्चन पर जाकर पूरी हुई और सिनेमा जगत में अपने पचास साल पूरे कर चुके बच्चन साहब जनसामान्य की कसौटियों उम्मीदों पर सतत खरे उतरते हुए आज भी सदी के महानायकके रूप में प्रतिष्ठित हैं।               
आज अमिताभ बच्चन ने जीवन के अठहत्तर वसंत पूरे कर लिए हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व में थकान का कोई चिन्ह आपको कभी नहीं दिखाई देगा। कितने ही युवा कलाकारों से अधिक वे इस उम्र में भी सक्रिय हैं। और ये सक्रियता केवल कहने की नहीं है बल्कि एक से बढ़कर एक चुनौतीपूर्ण और विविधवर्णी किरदारों को निभाने की है।
अमिताभ के विविधवर्णी किरदार
हालांकि ऐसा नहीं है कि उनका अबतक का सफर बहुत आसान और केवल सफलताओं से भरा रहा है। अपने अबतक के करियर में उन्होंने सफलता और विफलता दोनों के दौर देखें हैं। शुरूआती संघर्ष तो रहा ही, सफल होने के बाद भी पिछली सदी के अंतिम दशक में उनके जीवन में विफलताओं का जो दौर आया तो बस आता ही गया।
फिल्मों का चलना, एबीसीएल की बर्बादी जैसी तमाम मुश्किलें बीती सदी के आखिर और इस सदी की शुरुआत तक में बच्चन साहब को परेशान करती रहीं, लेकिन उनका हौसला था कि वे टूटे नहीं और मुश्किलों से जूझते हुए पार पाया। इस तरह आज वे सफलता के उस शीर्ष पर पहुँच गए हैं, जहां कोई सफलताविफलता उनके लिए मायने नहीं रखती। अब तो बस उन्हें खुलकर अपने अभिनय को जीना और उसका लुत्फ़ उठाना है, जो कि वे कर भी रहे हैं।      
जनमानस में प्रतिष्ठित बच्चन साहब के महानायकत्व में उनका सिनेमाई योगदान तो प्रमुख कारण है ही, परन्तु साथ ही परदे से बाहर के उनके व्यक्तित्व की भी इसमें कम भूमिका नहीं है। गौर करें तो भारतीय सिनेमा में बच्चन साहब जितना सहज, शालीन और विनम्र कलाकार शायद ही कोई दूसरा होगा। कहा जाता है कि आप अपने छोटों के साथ कैसे पेश आते हैं, इससे आपके बड़प्पन का अंदाजा मिलता है। अमिताभ बच्चन हर मंच और हर मौके पर अपनेसे बहुत छोटे कलाकारों के साथ भी जिस सम्मानजनक ढंग का व्यवहार करते हैं, वो उनके व्यक्तित्व की विशालता को ही दर्शाता है।
अपने से छोटे से छोटे कलाकार को भीतुमकहते हुए उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो, उनका संबोधन हमेशाआपहोता है। कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में आयुष्मान खुराना की चर्चा आने पर जब वे कहते हैं किइनके साथ काम करने का सौभाग्य मुझे भी मिलातो ये अपने से छोटे कलाकारों के प्रति उनकी सम्मानदृष्टि के सिवा और क्या है! वर्ना तो कभी नयी पीढ़ी का अमिताभ बच्चन बनने का स्वप्न देखने वाले शाहरुख़ भी हमारे सामने हैं, जो अक्सर अनेक मंचों पर नए कलाकारों कोतूतूकरते नजर आते हैं। 
अमिताभ बच्चन आज जिस मुकाम पर हैं, उसका एक और बड़ा कारण इतने कद्दावर अभिनेता होने के बावजूद उनका अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रतिबद्धता और स्वयं के श्रेष्ठताबोध से मुक्त होकर हर तरह के फ़िल्मी किरदारों को करना है।
मेरे अंगने में गाने में अमिताभ बच्चन
उन्होंने फिल्मों व किरदारों को लेकर बहुत चयनित दृष्टिकोण नहीं अपनाया बल्कि हर तरह की फ़िल्में की हैं और अनेक किरदार तो ऐसे भी किए हैं, जिसके लिए उनके चाहने वाले भी उनकी आलोचना ही करते हैं। फिर चाहें वो बूम के बड़े मिया का किरदार हो या रामगोपाल वर्मा की आग के बब्बन सिंह का किरदार। ‘लावारिस’ के ‘मेरे अंगने में’ गाने के दौरान उनके द्वारा प्रस्तुत चरित्रों को लेकर हुए विवाद और अमिताभ की आलोचना का प्रसंग भी इसीका उदाहरण है
यहाँकॉफ़ी विद करणशो में फिल्मबूमसे जुड़े एक सवालजवाब का जिक्र करना दिलचस्प होगा। कॉफ़ी विद करण के पहले सीजन की बात है। कार्यक्रम के उस एपिसोड में अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन दोनों मेहमान थे। करण ने अभिषेक से पूछा कि अमिताभ बच्चन का कोई ऐसा किरदार बताइए जो आपको पसंद नहीं आया हो, तो इसपर अभिषेक बच्चनबूमफिल्म के उनके किरदार का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ये उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया, क्योंकि अमिताभ बच्चन की जो छवि है, ये उसके अनुरूप नहीं था और उन्हें यह किरदार नहीं करना चाहिए था।
अभिषेक के जवाब पर जब करण अमिताभ की राय पूछते हैं, तो इसपर अमिताभ जो उत्तर देते हैं उसका भाव यह है कि अब सिनेमा जगत का नेतृत्व युवा पीढ़ी कर रही है और ऐसे में उनकी उम्र में हर बार मनोनुकूल किरदारों का चयन संभव नहीं है। यानी कि हर तरह के किरदार करने ही पड़ते हैं। अमिताभ बच्चन का यह उत्तर केवल वास्तविकता को स्वीकारने वाली उनकी दंभमुक्त दृष्टि को दिखाता है बल्कि किरदारों को छोटेबड़े की भावना से परे होकर काम की तरह देखने और ईमानदारी पूर्वक निभाने की उनकी मानसिकता का भी सूचक है।
यह एक बड़ा कारण है कि आज अमिताभ बच्चन के फ़िल्मी करियर पर दृष्टि डालने पर केवल उसमें फिल्मों से लेकर किरदारों तक व्यापक विविधता और अत्यधिक समृद्धि के दर्शन होते हैं, बल्कि वर्तमान में जब उनके कितने साथी कलाकार काम के अभाव में हाशिये पर जा चुके हैं, बच्चन साहब के पास काम ही काम है।            
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला स्थित ग्राम सजांव में जन्मे पीयूष कुमार दुबे हिंदी के युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। दैनिक जागरण, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, पाञ्चजन्य, योजना, नया ज्ञानोदय आदि देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक व साहित्यिक विषयों पर इनके पांच सौ से अधिक आलेख और पचास से अधिक पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। पुरवाई ई-पत्रिका से संपादक मंडल सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। सम्मान : हिंदी की अग्रणी वेबसाइट प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा 'अटल पत्रकारिता सम्मान' तथा भारतीय राष्ट्रीय साहित्य उत्थान समिति द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिए 'शंखनाद सम्मान' से सम्मानित। संप्रति - शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय। ईमेल एवं मोबाइल - sardarpiyush24@gmail.com एवं 8750960603

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