Monday, May 20, 2024
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प्रो. सरोज शर्मा का लेख – भारतीय ज्ञान परंपरा का सार्वभौमीकरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में

भारतीय ज्ञान परंपरा के सार्वभौमीकरण का तात्पर्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और विविधता लिए हुए भारतीय  प्राचीन ज्ञान विरासत के प्रसार, संरक्षण और वैश्विक प्रचार से है। भारत में ज्ञान की सदियों पुरानी परंपरा है, जिसमें दर्शन, गणित, विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य, कला और आध्यात्मिकता जैसे लगभग सभी क्षेत्रों में योगदान शामिल है। आज हम जिन परंपराओं,प्रथाओं, विश्वासों और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, वे सभी हजारों साल से चली आ रही हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा’ पर ही आधारित हैं। 
आज हम देख रहें हैं कि भौतिकतावाद की अंधी दौड़ में मनुष्य बहुत ही अशांत है। जिसकी वजह से वर्तमान में हिंसा, आतंकवाद, देशों का आपसी टकराव और अशांति का वातावरण बढ़ा है। रूस-यूक्रेन विवाद, इजराइल-फिलिस्तीन विवाद इसके समसामयिक उदाहरण हैं।  ऐसे समय में विश्व को भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित भारतीय संस्कृति के वैश्विक मूल्यों को अपनाने की अत्यधिक आवश्यकता है। सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में जोड़ने वाली भारतीय ज्ञान परंपरा में माना गया है कि- अयं निजः परो वेति, गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु, वसुधैवकुटुम्बकम्॥ अर्थात् भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार,यह उसका है, यह मेरा है, इस तरह की दृष्टि को संकुचित माना गया है और कहा गया है कि उदार चरित रखने वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती एक परिवार ही है। इसके साथ ही ऋग्वैदिक ऋषि कहते हैं कि- ‘आ नो भद्रा: क्रतवों यंतु विश्वत:’ अर्थात विश्व के सभी कल्याणकारी विचार हमारी तरफ आयें। 
आज हम देख रहे हैं कि वैश्वीकरण के उदय के साथ विभिन्न देशों की स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रभाव कम हो रहा है। परंतु भारतीय ज्ञान परंपरा की एक समृद्ध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि रही है और हमारी संस्कृति का गौरव पूरे विश्व में आज भी प्रासंगिक है।
इस दिशा में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अनेक अभिनव प्रयास किये जा रहे हैं। भारत में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 ने प्राचीन और शाश्वत् भारतीय ज्ञान की समृद्ध विरासत को इसके निर्माण में मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में वर्णित किया है। यह शिक्षा नीति भारतीय शिक्षा प्रणाली की चारित्रिक विशेषता पर ध्यान केंद्रित करती है। एनईपी-2020, पैरा 4.27, भारतीय ज्ञान परंपरा के अर्थ की विस्तृत व्याख्या करता है जिसमे प्राचीन भारत के ज्ञान का आधुनिक भारत में इसके योगदान और इसकी सफलताओं, चुनौतियों और शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि के संबंध में भविष्य के भारत की आकांक्षाओं की स्पष्ट समझ शामिल है।
एनईपी-2020 के आलोक में वर्तमान शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भारतीय दृष्टिकोण को विकसित करने तथा प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को देश-विदेश तक पहुंचाने और इसे पुनर्जीवित करने के लिए अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। इसी क्रम में  शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार  ने एआईसीटीई, नई दिल्ली में अक्तूबर 2020 में एक अभिनव पहल करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा डिवीजन की स्थापना की है जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के सभी पहलुओं पर अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा देना और भारतीय ज्ञान परंपरा के विषयों को संरक्षित और प्रसारित करना है। यह डिवीजन कला और साहित्य, कृषि, बुनियादी विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में हमारे देश की समृद्ध विरासत और पारंपरिक ज्ञान को फैलाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
आज शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के साथ साथ अनेक विभागों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों आदि का न केवल राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया जाता रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आयोजनों में प्रतिभागिता की जाती रही है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक दर्शकों के लिए भारतीय ज्ञान के विभिन्न पहलुओं, जैसे कला, संगीत, नृत्य और दर्शन आदि को प्रदर्शित किया जाता रहा है जो कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सर्वभौमीकरण में एक आवश्यक कदम है। भारतीय ज्ञान प्रणालियों के तत्वों को भारत और विदेश दोनों में मुख्यधारा की शिक्षा में एकीकृत किये जाने के प्रयास भी किये जा  रहे हैं।  यह शिक्षण संस्थानों में भारतीय दर्शन, इतिहास और संस्कृति आदि पर अनेक पाठ्यक्रम तैयार करने के प्रयास किया जा रहै हैं।  
आज हमें जरूरत है कि इस समृद्ध ज्ञान की धारा को सार्वभौमिक बनाने के लिए इसे वैश्विक स्तर पर सबके लिए सुलभ बनाना, अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत के गहन सार को संरक्षित करना शामिल है। इस सार्थक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आज हमें अनेक स्तरों पर अनेकों प्रयास करने की आवश्यकता है। इस दिशा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में उल्लेख किया गया है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों, पांडुलिपियों और साहित्य की व्यापक डिजिटल रिपॉजिटरी बनाई जानी चाहिए। ऐसा करके इन डिजिटल संसाधनों को दुनिया भर के शिक्षार्थियों, अध्येताओं, विद्वानों और उत्साही लोगों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। डिजिटल रिपॉजिटरी के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक स्तर पर आसान पहुंच बनाई जा सकती है और इसको संरक्षित रखने में भी सहायता मिल सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में शिक्षा मंत्रालय के रोडमैप के अनुसार ऑनलाइन पाठ्यक्रम और ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म विकसित करते हुए एनआईओएस  द्वारा भारतीय ज्ञान प्रणालियों में शिक्षा प्रदान की जा रही है।  ये पाठ्यक्रम दर्शनशास्त्र, योग, ध्यान, आयुर्वेद और बहुत कुछ जैसे विषयों को को लेकर निर्मित किये जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर दुनिया भर के विद्वानों के साथ अनुसंधान सहयोग और अकादमिक आदान-प्रदान की सुविधा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए एनआईओएस द्वारा इंडियन डायसपोरा के साथ जानकारी साझा कर अनुसंधान को आगे बढ़ाया जा रहा है।  इंडियन डायसपोरा  हेतु एनआईओएस द्वारा ‘आरंभिका’ नामक पाठ्यक्रम तैयार किया  गया, जिसका  विमोचन  12 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन, फ़िजी में भारत के विदेश मंत्री माननीय  डॉ एस. जयशंकर जी के द्वारा किया गया। यह भारत की ज्ञान परंपराओं की गहरी समझ को प्रोत्साहित करता है और अंतर-सांस्कृतिक शिक्षा को बढ़ावा देता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में  राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) द्वारा एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुये ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ पाठ्यक्रमों की शुरुआत की गई है। इन पाठ्यक्रमों में माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वेद अध्ययन, भारतीय दर्शन, संस्कृत व्याकरण, संस्कृत साहित्य आदि विषयों का निर्माण किया जा चुका है। इनके अत्यधिक प्रचार-प्रसार हेतु इन विषयों का हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद किया जा चुका है। शास्त्रीय ग्रंथों को व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ बनाने के लिए विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जाना आवश्यक था। अनुवाद के साथ-साथ, पाठकों को ज्ञान के संदर्भ और महत्व को समझने में मदद करने के लिए स्पष्टीकरण और व्याख्याएं भी प्रदान की जा रही हैं।  विदेशों तक भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु एनआईओएस द्वारा इन विषयों का पाँच विदेशी भाषाओं- मंदारिन,  इंडोनेशिया, सिंहली, बर्मीज और नेपाली  माध्यमों में भी अनुवाद किया जाना है। साथ ही एनआईओएस द्वारा प्रारम्भिक स्तर पर ‘मुक्त बेसिक शिक्षा कार्यक्रम’ के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा के 15 विषयों को तीन माध्यमों (हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी) में उपलब्ध कराया गया है। 
इसी क्रम में छ: नए पाठ्यक्रमों जैसे आयुर्वेद, योग, वेद पाठ, न्याय शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, और अनुप्रयुक्त संस्कृत व्याकरण का विकास दोनों ही माध्यमों (हिन्दी और अंग्रेजी) में किया जा रहा है। भविष्य में इनका अनुवाद विदेशी भाषाओं में भी किए जाने की योजना है। इस प्रकार शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के मार्गदर्शन में एनआईओएस विश्व स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका निभा रहा है। नाटक,, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और मूर्तिकला जैसे पारंपरिक भारतीय कलारूपों का समर्थन और प्रचार करने तथा पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एनआईओएस द्वारा माध्यमिक और उच्चतर स्तर पर नाट्यकला नामक पाठ्यक्रम बनाया गया है। । एनआईओएस  द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग तथा सांझेदारी को बढ़ाने हेतु भारतीय ज्ञान परंपरा पर कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सम्मेलनो का आयोजन तथा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी के प्रयास भी किये जा रहे हैं। 
इस तरह आज भारत सरकार द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा को सार्वभौमिक बनाकर वैश्विक सांस्कृतिक संवर्धन और आपसी समझ में योगदान के अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। यह प्रयास न केवल भारत की विशाल और विविध विरासत को संरक्षित करने में मदद करेंगे है बल्कि विविधता में एकता की भावना को भी बढ़ावा देते हैं और राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेंगे। इस तरह भारतीय ज्ञान परंपरा को आधार बनाकर भारत विश्व शांति में अतुलनीय योगदान देने का प्रयास कर रहा है।  
प्रो. सरोज शर्मा
अध्यक्ष
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान
नोएडा, उत्तर प्रदेश
ईमेल –  cm@nios.ac.in 
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