समय का पहिया बिना रूके चलता है। सुख-दुःख की धूप-छांव हो, परेशानियों के ऊँचे पर्वतों की पंक्तियाँ हों या सुख-सागर में डुबकियाँ लगाता मन हो, जीवन अनवरत चलता है। खुशियों में रचे-बसे दिन कुछ तेज भागते-से लगते हैं जबकि दिक्कत और परेशानियों का समय थोड़ा हौले-हौले खिसकता हुआ-सा महसूस होता है। इसके बावजूद समय ठहर गया है, ऐसा कभी नहीं लगता।
गांव-समाज में हमने खुदको और सीमाओं की परिधि में धरती को बँटवारा कर दिया। इस पर भी धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में रम कर जश्न मनाते हुए हमने खुद पर सीमाओं का पहरा नहीं लगाया। हम आगे से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। आयोजन जीवन का हिस्सा हैं। असल में त्योहारों में लिपटी खुशियाँ, जीवन में उर्जा संचारित करती हैं। उत्सवों से, आयोजनों से मिलने वाली सकारात्मकता को दोनों हाथ फैला कर अपने भीतर समेट लेने को लालायित रहता है मन। खुश रहने की, या खुशी पा लेने की लालसा जाति-धर्म और सीमाओं का भेद भुला कर इंसान को एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होना सिखा देती है।
जिन त्योहारों के लिए पूरे वर्ष इंतज़ार करते हैं, महीनों उन्हें उत्सवमयी बनाने में धन-उर्जा और समय लगाते हैं, उनके बीतने पर भी हम नहीं बीतते। हमारे भीतर का उत्साह कम नहीं होता। यह जानते हुए भी कि अमुक त्योहार इस वर्ष के लिए विदा हो गया है, हम निराश हुए बिना, अगले आयोजन की तैयारियों में जुट जाते हैं।
बीतते पलों के साथ ख़र्च होते हुए भी हम बदले में कितना कुछ पा लेते हैं। दरअसल पर्व या आयोजन कभी-किसी को खाली नहीं करते। पहले से लिखी इबारत में हर बार वे कुछ नई यादें, नए अनुभव या कभी ना भुलाए जाने वाले संस्मरण जोड़ देते हैं। चलायमान जीवन को हर बीतता पल, और अधिक समृद्ध कर देता है।
अंग्रेजीदां कलैंडर पूरे वर्ष साथ निभा कर अब विदा होने को है। आने वाले ऐसे ही अगले बरस में सब अपने-अपने स्तर पर सफलताओं के, रचनात्मकता के, कर्मठता के या जो अब तक नहीं किया गया, ऐसा कुछ अद्भुत करगुजरने को आतुर होंगे। नए साल में अपने जीवन में नए अध्याय लिखने को कृत-संकल्प रहेंगे।
महामारी को धता बता इंसानी कौम जिन लम्हों में रोग पर विजय पताका फहराने को आतुर थी, उसी पल इस महामारी का नया डर, फन फैलाए दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। यक़ीन रखिए, जैसे पिछले दिन बीत गए, इस बार के दिन भी बीत जाएंगे। हम पहले से अधिक सयाने हो गए हैं। अपने सयाने-पन के साथ इस बार के प्रकोप पर भी हम पार पा ही लेंगे। भयानक दिन बीत चुके हैं। आने वाले दिन अपने साथ सुनहरी पैगाम लेकर आने वाले हैं।
बीतते पलों के साथ हम हर दिन अधिक सजग, अधिक बौद्धिक, अधिक अनुभवी हुए हैं। महामारी पर विजय पा लेने के विश्वास में भी, आने वाले पर्व-त्यौहारों, आयोजनों को मनाने में भी समय के साथ परिपक्व हुए हैं।
कैलेंडर के अंक बता रहे हैं कि नया वर्ष बस आने को है यानी यह साल अपनी सौगातें हम पर लुटा कर जाने की तैयारी में है। हम भी आने वाले के इंतज़ार में पलक-पांवड़े बिछाए स्वागत की तैयारी कर चुके हैं। यही जीवन है, यही जीवन-रथ के चलते पहिए हैं।
अति सुंदर लेख वंदना जी। त्योहारों की सार्थकता को बहुत सुंदर तसरीके से वर्णित किया आपने।
राधिका जी प्रतिक्रिया के लिए आभार।