“जीवन धन “
जीवन में पैसे का स्थान
है बिल्कुल नमक समान
नमक बिन भोजन स्वादहीन
पैसे बिन है जीवन दीन हीन
गर नमक हो जाये ज्यादा
तो भोजन हो जाये बेस्वादा
गर पैसा हो जाये कुछ ज्यादा
जीवन का चैन खोने को आमादा
भोजन में नमक डालें स्वादानुसार
पैसा खर्चें आवश्यकतानुसार
न बन सकता बिन नमक भोजन
न बन सकता सिर्फ नमक भोजन
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“बिन बरसे ही”
बादल आये,
उमड़ घुमड़कर
गरज गरजकर
चले गये
बिन बरसे
रह गयी
धरती प्यासी
लाख समझाये
पर मन
तरसे
ज्यों
आये नेता
गाँव गाँव
गली गली
जुबाँ पर मिश्री
तन पर खादी
जनता में
आस जगी
छोड़ गये नेता
रह गई
जनता
ठगी ठगी
संध्या गोयल सुरम्या
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