Sunday, May 19, 2024
होमकवितारश्मि लहर की कविता - विकल आखर

रश्मि लहर की कविता – विकल आखर

अचानक एक
निर्वस्त्र सदी को देख
फटने लगता है
स्तब्ध बादलों का मन
बढ़ जाती है
रुग्ण वेदना की उलझन
लहू चू पड़ता है
पीढ़ियों की
लहुलुहान ऑंखों से
बन्दी बने भाव
माथा पीटने लगते हैं
बेबसी की सलाखों से।
सपनों के खेत में
दहशत से भरी मिलती हैं
कुछ अन-अकुवाई कल्पनाऍं।
वर्तमान के कटीले पथ पर
दाॅंत भींचे टहलती रहती है
सभ्यता
भाग्य रेखाओं को कुरेदती हुई
विचलित हैं
कुछ थरथराती
उॅंगलियों की तटस्थता।
यथार्थ के निस्तेज मुख पर
फैलती जा रही है
बेबसी की झाइयाॅं
संवेदनाओं की कर्ण-भेदी चीखें
विचारों की धरा पर
दरार पैदा कर रही हैं।
विद्रोह की पदचाप सुनकर
काॅंप गये हैं
कुछ ऐतिहासिक कृत्य।
आत्महंता न बनने को
कटिबद्ध हो चुके हैं
कुछ पारदर्शी सत्य।

रश्मि लहर
इक्षुपुरी कालोनी,
लखनऊ उत्तर प्रदेश
मो.9794473806
रश्मि लहर
रश्मि लहर
संपर्क - leher1812@gmail.com
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest

Latest