होम कविता रश्मि लहर की कविता – विकल आखर कविता रश्मि लहर की कविता – विकल आखर द्वारा रश्मि लहर - August 13, 2023 73 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet अचानक एक निर्वस्त्र सदी को देख फटने लगता है स्तब्ध बादलों का मन बढ़ जाती है रुग्ण वेदना की उलझन लहू चू पड़ता है पीढ़ियों की लहुलुहान ऑंखों से बन्दी बने भाव माथा पीटने लगते हैं बेबसी की सलाखों से। सपनों के खेत में दहशत से भरी मिलती हैं कुछ अन-अकुवाई कल्पनाऍं। वर्तमान के कटीले पथ पर दाॅंत भींचे टहलती रहती है सभ्यता भाग्य रेखाओं को कुरेदती हुई विचलित हैं कुछ थरथराती उॅंगलियों की तटस्थता। यथार्थ के निस्तेज मुख पर फैलती जा रही है बेबसी की झाइयाॅं संवेदनाओं की कर्ण-भेदी चीखें विचारों की धरा पर दरार पैदा कर रही हैं। विद्रोह की पदचाप सुनकर काॅंप गये हैं कुछ ऐतिहासिक कृत्य। आत्महंता न बनने को कटिबद्ध हो चुके हैं कुछ पारदर्शी सत्य। रश्मि लहर इक्षुपुरी कालोनी, लखनऊ उत्तर प्रदेश मो.9794473806 संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं मनवीन कौर पाहवा की कविताएँ शोभा प्रसाद की तीन कविताएँ सावित्री शर्मा ‘सवि’ की कविता – चुनावी रंग कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.