जाने कितने रूप हैं तेरे,
तेरे कितने ही हैं नाम।
चिल्लर बन छनकता है तो कभी,
बनकर नोट  चमकता है।
जिसके पास भी होता तू
उसको धनवान बना जाता है
बाकी तो बस दारिद ही बन जाता है।
शादी में दहेज तो मंदिर मस्जिद में दान दक्षिणा कहलाता है।
स्कूल-कालेजों में शुल्क है बनता पर कोर्ट कचहरी में जुर्माना बन जाता है।
जिसके पास है आता तू, उसके तो वारे न्यारे हैं।
वरना देने वाला तो लुट सा ही जाता है।
जाने कितने रूप हैं तेरे
तेरे कितने ही हैं नाम।
चिल्लर बन छनकता है तो कभी
बनकर नोट चमकता है।
तलाक बाद जो मिलता धन वो निर्वाह निधि बन जाता है,
बच्चों हेतु मिलने वाला धन भी भत्ता ही तो होता है।
सरकार जब हर पग पर लेती धन वो कर कहलाता है।
किडनेपर इसको फिरौती बतलाता है।

अच्छा बुरा कैसा भी रूप हो तेरा,
जिसके पास तू होता वो ही राजा कहलाता है।
बाकि तो बस रंक ही रह जाता है।
जाने कितने रूप है तेरे
तेरे कितने ही हैं नाम।
चिल्लर बन छनकता है तो कभी
बनकर नोट  चमकता है।

कार्यालय में वेतन नाम है तेरा जो हर महिने ही मिलता है।
मजदूर की मज़दूरी भी तो तू ही बनकर आता है।
बैंक दे तुझको तो ऋण बन जाता है,
किसी और से जो माँगे तो कर्ज तू कहलाता है।
जिसके पास है रहता तू, उसका कान्फिडेंस बढ़ जाता है।
वरना बाकि तो बस मर मर ही जीवन जी पाता है।
जाने कितने रूप है तेरे
तेरे कितने ही हैं नाम।
चिल्लर बन छनकता है तो कभी
बनकर नोट  चमकता है।

1 टिप्पणी

  1. बहुत ही सुंदर
    रुपए की काव्य पंक्तियों में व्याख्या मन मुग्ध कर देती है और साथ में ज्ञानवर्धन भी।

    जगदीश यादव
    9414540015

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