साहित्यकार अपनी रचना का सृजन करता है और तत्काल पाठक या श्रोता से उसके प्रतिसादकी अपेक्षा करने लगता है, इसलिए वह आभासी परिवेश या प्रिंट/ सोशल मीडिया तक अपनी पहुंच बनाने का प्रयास भी करता है।
यदि वही रचना(गीत) किसी दृश्य विशेष को लेकर रची गई हो और सृजक चाहे कि उसकी रचना दृश्य विशेष की सेलिब्रिटी तक पहुँच जाए, तो क्या बात है। अलबत्ता यह रचनाकार की महत्वाकांक्षा है, क्योंकि वह दृश्य निर्देशन और अपनी रचना क्षमता के बीच समानता को देख रहा होता है।
उसकी यह महत्वाकांक्षा तब तक बलवती रहती है, जब तक वह रचना अपने गंतव्य तक न पहुँच जाए।
किसी रचना या गीत की सृजन से गंतव्य तक की यात्रा.लगभग चार दशक से भी लम्बी रही हो, तो अविश्वसनीय सा लगता है, किन्तु प्रयोजन सिद्धि पर प्राप्त होने वाली अनुभूति कितनी अधिक सुखद हो सकती है, इसका अनुमान लगाया जाना कठिन है।
मुझे ऐसी सुखानुभूति मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। सिप्पी साहब द्वारा निर्देशित फिल्म “शोले” बहुचर्चित तथा बहु-प्रशंसित फिल्म रही है, जिसे मेरे जैसे व्यक्ति सहित असंख्य लोगों ने कई बार देखा होगा।
इस फिल्म में होली का एक दृश्य फिल्माया गया था, जिसे आसानी से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है एक भाग में धर्मेंद्र-.हेमा जी जो कोरस में रंगारंग होली खेलते हुए दर्शाए गए हैं और दूसरे भाग में अमित – जया जी का भावों- संवेदनाओं का दृश्य उकेरा गया है।
उन संवेदनाओं के ज्वार के उठकर उतरने के दृश्य-विशेष को लेकर मन, कागज और कलम के सहयोग से यह गीत साकार हो उठा।दृश्य में सतही तौर पर अवसाद और विवशता का मंजर था, किन्तु दोनों के अंतस में जो उथल- पुथल मची थी , उसी को मैने इस गीत में शब्दचित्रों के माध्यम से अ़कित करने का प्रयास किया है।
मैं मंच पर भी इसकी कई बार प्रस्तुति दे चुकी थी।यह सब इसलिए होता रहा,क्योंकि गीत वांछित गंतव्य तक पहुंच ही नहीं पाया।और न ही संभावनाएं ही प्रतीत होती लग रही थी।
लगभग 46 वर्ष की लम्बी प्रतीक्षा के पश्चात एक अवसर ने दरवाजे परदस्तक दी और मैंने उसका सहर्ष स्वागत किया। :
मेरी पुत्रवधू मोनि के परिवार की एक बच्ची का चयन जूनियर के. बी. सी. के लिए हुआ, जो मेरे लिए भी बहु-प्रतीक्षित अवसर बनकर सामने आ गया।
शूटिंग के दौरान मेरी पुत्रवधू ने मेरा संदर्भ देते हुए मेरा गीत तथा तद्-विषयक पत्र दोनों के. बी. सी. संचालक तथा सिने दुनिया के महानायक ‘अमिताभ बच्चन‘ को व्यक्तिगत तौर पर भेंट किया तथा उन्हें अवगत कराया कि यह गीत आपके व जया जी दोनों के लिए है।
प्रत्युतर में उन्होंने कहा..
“मैं जया जी को भी जरूर दिखाऊंगा।”
मेरी ओर से प्रेषित और अमिताभ जी द्वारा हस्ताक्षरित पत्र की प्रति भी यहाँ प्रस्तुत है, जो मेरे पास हमेशा सुरक्षित रहेगीः-
अँखियों ने अँखियों संग कीन्हीं बरजोरी। पलकन चिक डारी, पकडी न जाए चोरी।
अँखियों ने अबीर भरी नज़रें जो डारी, सुर्ख भया गात-गात, सुर्ख भई सारी। गोरी भई श्याम और श्याम भए गोरी। अँखियों ने अँखियों संग कीन्हीं बरजोरी।
फाग खेले अँखियाँ अखियन संग, उड़े़ चहुँ ओर बादल गुलाल रंग। इतउत बरसाए नेह अँखियाँ हमजोली। अँखियों ने अँखियों संग कीन्हीं बरजोरी।
आ पहुंची चुपके से हिरदे के द्वार तक, होने न दी तनिक आने की आहट तक। भीग गए द्वार सब भीगी कुठरिया कोरी। अँखियों ने अँखियों संग कीन्हीं बरजोरी।
रंगों की धार चली, जल की फुहार भी, ठगे-ठगे रहे सब बाग भी बहार भी। भूल गई अँखियाँ सब, याद रही होरी। अँखियों ने अँखियों संग कीन्हीं बरजोरी।