1
तुम दिखते हो
सुबह की पहली भोर पर…
मोबाइल में तुम्हारे नाम को झांकता हूं
आंकता हूं तुम्हारे अक्स को
प्याली पर चाय की
सांसों का व्यायाम करते समय
सांस पर कोई और नहीं
सिर्फ तुम दिखते हो…
टहलने जाते हुए
कदमों की एक-एक थाप पर
कदम बढ़ते हैं मंजिलों पर
प्रत्येक कदम पर
पद चिन्ह की तरह
तुम दिखते हो
कोई किसी को इतना क्यों दिखता है
करते समय भोजन
नहाते समय
या किसी और से बात करते समय उसके चेहरे पर
तुम दिखते हो
खयालों में विचारों में
क्षमा याचना में और धन्यवाद में
तुम दिखते हो
दिखते हो तुम तब भी
जब किसी को किसी की मदद करते हुए पाता हूं
या फिर दर्द से पीड़ित तड़फता
कोई अपने की तलाश में बैठा होता है
दिखते हो तुम
तलाश बनकर उसकी अलसायी आंखों की
जब रोता है कोई बच्चा
तो दिखते हो तुम
बन कर ममता का आंचल
अपनी नन्ही अठखेलियां से उसे ले रिझाते हुए
और जब चुप हो जाता है बच्चा
तो उसकी हस्ती मुसकुराती आंखों में
तुम दिखते हो
दिखता है कोई किसी को इतनी बार
जब वह होता है उसके करीब
इतना की टटोल सके बंद आंखों से
महसूस कर सके उसकी हर महकती सांस
बंद करके अपनी पलकों को
या फिर खुली आंखों से घूमते हुए संसार में
देखते हुए सब को पर सब तलाशते खुद को
ढूंढते हुए तुम दिखते हो
प्रार्थना है बंद ना हो दिखना तुम्हारा
क्योंकि जिस पल नहीं दिखते हो
उस पल लगता ह कि विराम आ गया है
बस अब एक ही बात की
प्रतीक्षा मन में रहती है
कि तुम अपने रसीले होंठों से मुझे यह कह सको
कि मेरे भी ख्यालों में ख्वाबों में सवालों में
दिन-रात हर पहर
तुम दिखते हो
तुम दिखते हो…
2
चलो उठो और मुसकुरा दो
कि दिन निकल सके
खिलखिला दो कि
चहक सकें चिड़ियां और
प्राण मिल सकें जगत के प्राणियों को
एक बार हमें भी देख लो
कि हम भी शक्ति
पा सकें संसार से द्वंद्व की
और सांसारिक लड़ाई
से थक कर विश्राम कर सकें
तुम्हारी पलकों की नीचे…..

3 टिप्पणी

  1. वाह आलोक जी । मुस्कुराहट से खिलखिलाहट का सफर महसूस करवाने के लिया आपका धन्यवाग ।

  2. भावों की सुंदर अभिव्यक्ति,,,आज के वैश्विक घर के दौर में ,दूरियों के बाद भी मन के सुंदर भाव और स्वच्छ निर्मल प्रेम की अभिव्यक्ति।शब्दो का बहुत ही यथोचित प्रयोग

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