जब कभी ख़ामोश रात की तन्हाई में सर्द हवा का इक झोंका मुहब्बत के किसी अनजान मौसम का कोई गीत गाता है तो मैं अपने माज़ी के वर्क पलटती हूं तह-दर-तह यादों के जज़ीरे पर जून की किसी गरम दोपहर की तरह मुझे अब भी तुम्हारे लम्स की गर्मी वहां महसूस होती है और लगता है तुम मेरे क़रीब हो…