समीक्षक – नीरज नीर
स्मृतियों के बहुरंगी आवरण में लिपटे पारिवारिक संबंधों, संस्कारों , व्यावसायिक रणनीतियो, जीवन मूल्यों , संघर्षों एवं सफलता की उत्कृष्टता पर पहुँचने की कहानी कहती हुई किताब का नाम है “हीरो की कहानी”। 
यह किताब भारत की साइकिल एवं मोटर साइकिल बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी हीरो के संस्थापकों की तीन पीढ़ियों के संघर्षों एवं सफलता का एक जीवंत दस्तावेज है। अपनी जिजीविषा एवं जीतने की प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर कैसे अपने मूल से जबरन उखाड़ दिए जाने के बाद भी सफलता के उत्कर्ष को उन्होंने प्राप्त किया, इसका रोचक विवरण इस किताब में दर्ज किया गया है।  
मनुष्य के साहस और उसकी के इच्छा के आगे परिस्थितियों का हर हिमालय बौना ही प्रतीत होता है । विश्व इतिहास में ऐसे उदाहरण बार-बार हमारे सामने आते रहे हैं, जिसमें लक्ष्य के प्रति दृढ़ता, विश्वास, सहनशीलता, उदारता, श्रमशीलता, हर परिस्थिति में अडिगता, त्याग और समर्पण  के बदौलत  कुछ लोग असंभव से दिखने वाले कार्य को संभव कर दिखाते हैं। हीरो के बनने की कहानी ऐसे ही उदाहरणों की कड़ी में एक जाजलव्यमान उदाहरण है।  
भारत-पाकिस्तान बंटवारा मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में एक है। मजहब के नाम पर एक मुल्क बनाना और करोड़ों लोगों को वहाँ से बेदखल करने का ऐसा वीभत्स दृष्टांत दुनिया में शायद ही कहीं है। यह विस्थापन न केवल एक भूमि से दूसरी भूमि तक का विस्थापन था बल्कि सदियों के विश्वास, सहजीविता, परंपराओं , मान्यताओं का बुरी तरह ध्वस्त होना भी था। लेकिन साथ ही इन्हीं विस्थापितों के द्वारा तत्पश्चात सफलता की बेहतरीन इबारतें लिखने का दूसरा उदाहरण भी शायद ही कहीं मिलता है। आज का जो भारत है, जो भारत की आर्थिक प्रगति है, उसमें बँटवारे के समय पाकिस्तान से भारत आए लोगों का योगदान बहुत बड़ा है। जो लोग मुल्क के बँटवारे के बाद दारुल-इस्लाम की चाहत में पाकिस्तान चले गए उनकी तुलना में भारत आए लोगों की सफलता, उनकी उपलब्धियां तो निश्चित रूप से बहुत बड़ी है। जबकि पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता भारत से कहीं ज्यादा थी। 
इस किताब में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व एवं उसके पश्चात की राजनैतिक, आर्थिक , सामाजिक स्थितियों का अनुभवजनित विवेचन , जिसे अत्यंत रोचक अंदाज में लिखा गया है, पढ़ने को मिलता है। यह किताब दरअसल मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गयी किताब “ The Making of Hero” का हिन्दी रूपांतरण है, लेकिन यह रूपांतरण इतना सहज और प्रवाही है कि इसे पढ़ते हुए यकीन करना मुश्किल है कि यह एक अनूदित किताब है। अंग्रेजी में इस किताब के लेखक हैं सुनील कान्त मुंजाल, जो हीरो समूह के संस्थापक बृजमोहन लाल मुंजाल के सबसे छोटे पुत्र एवं हीरो एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हैं। किताब को हिन्दी में अनूदित किया है सुधीर दीक्षित एवं जोगेन्द्र सिंह ने। जोगेन्द्र सिंह हीरो मोटर के प्रेसीडेंट हैं, उन्होंने ही यह किताब मुझ तक भेजी है। 
भारत का विभाजन ऐसी घटना थी जिसमें राजनीति ने मानवता की पीठ पर दुःख, दर्द, पीड़ा, विस्थापन, बिछोह के ऐसे गहरे घाव दिए थे जिसका आसानी से भरना संभव नहीं था। लेकिन, भारत का इतिहास देखें तो हर तरह की त्रासदी से उभर कर पुनः तन कर खड़े हो जाना, इसकी विशेषता है। मुंजाल परिवार के फर्श से अर्श तक पहुँचने की कहानी इसी भारतीय जिजीविषा का बेहतरीन उदाहरण है। दर्द और भय की कोख से निकलकर सृजन की नई इबारत लिखने वाले लोग ही अक्सर इतिहास बनाते हैं और इस किताब में हम ऐसा ही इतिहास बनते हुए देखते हैं, जिसने भारतीय सड़कों पर चलने वाले दो पहिया वाहनों की तस्वीर बदल दी। किफायती मूल्य पर विश्वसनीय दोपहिया सवारी उपलब्ध कराने का करिश्मा मुंजाल परिवार ने किस तरह सरंजाम दिया यह वाकई काबिले तारीफ है। 
हमारे शहर में एक दुकान है “कमालिया सेल्स”। पहले मैं समझता था कि दुकानदार का सरनेम कमालिया होगा। लेकिन इस किताब पढ़कर पता चला कि कमालिया नाम की एक जगह है, पाकिस्तान के फ़ैसलाबाद (पुराना नाम लायलपुर) में । मुंजाल परिवार बीसवीं सदी के चौथे दशक में इसी कमालिया में निवास करता था जहाँ वे साइकिल के कल पुर्जे का व्यवसाय करते थे। तब साइकिल भारत में नई-नई आई थी एवं उसके सारे पुर्जे भी विदेश से आयात होते थे। कमालिया से विस्थापित होकर इधर-उधर भटकने के बाद वे अंततः लुधियाना में अपने कारोबार को पुनर्स्थापित करते हैं, जहाँ आर्य समाज के सिद्धांतों में विश्वास करने वाला परिवार एक लंबे समय तक संयुक्त रूप से व्यवसाय करता रहा । 
बंटवारे की विभीषिका का बड़ा ही मार्मिक व लोमहर्षक चित्रण भी हमें इस किताब में पढ़ने को मिल जाता है। बँटवारे के समय हुए दंगों में बृजमोहन मुंजाल को गोली लग गई थी, जिसमे वे किसी तरह बच गए। कैसे अपनी संपत्ति गंवा कर जान बचाकर भागते डरे सहमे लोगों की भीड़ पर हथियार बंद लोग हमले करते थे एवं उनकी हत्या करके उनकी लड़कियों को उठाकर ले जाते थे, इन घटनाओं का आँखों देखा हाल प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से इसमे वर्णित है। पाकिस्तान की सेना ने भी हिंदुओं पर हमले किये। उनके रेफ्यूजी कैंप्स पर हमले किये गए। ऐसे पीड़ित , मजलूम लोगों के द्वारा फिर से न केवल उठकर खड़े हो जाना बल्कि देश के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान देना, भारतीय जन मानस के लिए हमेशा ही प्रेरणास्पद रहेगा एवं इसलिए इनकी कहानियाँ आम जन खासकर युवायों तक अवश्य पहुंचनी चाहिए। 
साइकिल बनाने वाली कंपनी के लुधियाना में एक छोटे से पौधे से लेकर आज एक विशालकाय वटवृक्ष बनने की कहानी के साथ ही साथ विगत 75 वर्षों में भारत  की औद्योगिक नीति एवं भारतीय उद्योगों के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में खड़े होने की कहानी को समझने में इस किताब से हमे काफी मदद मिलती है। यह किताब अधिक रुचिकर इसलिए भी बन जाती है कि इसके माध्यम से हमें कई दिलचस्प जानकारियाँ मिलती हैं। मसलन “हीरो” नाम से लुधियाना में एक आदमी पहले साइकिल की सीटें बनाया करता था, जिससे मुंजाल परिवार सीटें खरीदा करता था। 1950 के दशक में उसने भारत छोड़कर पाकिस्तान जा बसने का निर्णय लिया और भारत छोड़ने के पूर्व वह मुंजाल परिवार से, जिनसे उसकी अच्छी मित्रता थी, मिलने आया। मुंजाल परिवार ने उस व्यक्ति से हीरो नाम का इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी, जिसे उसने सहर्ष ही दे दिया और इस तरह भारत में हीरो ब्रांड का जन्म हुआ, लेकिन तब कौन जानता था कि यही हीरो एक दिन दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिल एवं मोटर साइकिल बनाने वाली कंपनी बनेगी। 
एक लंबी गुलामी के कारण भारत तकनीकि रूप से अत्यंत पिछड़ा हुआ था। काफी समय तक साइकिल के पुर्जे भारत में नहीं बनाए जा सके थे। मुंजाल परिवार ने छोटी छोटी धमन भट्ठियाँ लगाकर रामगढ़िया जाति के लोहारों के साथ मिलकर, जो अत्यंत कुशल कारीगर हुआ करते थे, कुछ पुर्जे बनाने की शुरुआत अपने घर के पिछवाड़े के खाली स्थान से की थी। बाद के समय में सरकारी नीतियों एवं लाइसेन्स राज से जूझते हुए बेहतर तकनीक के लिए विदेशी कंपनियों से साझेदारी करके जिसमें ऑस्ट्रीया की पुक, जापान की होंडा से साझेदारी शामिल है, कैसे हीरो ने नए मुकाम हासिल किए इसका अत्यंत दिलचस्प विवरण इस किताब में हमें मिलता है। यह उत्पादन के क्षेत्र में उच्च कार्यकुशलता एवं दिए गए वचन पर खरा उतरने की संस्कृति का पालन एवं मानवीय तरीके से व्यापार करते हुए भी वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने एवं स्वयं को सतत प्रासंगिक बनाए रखने की अद्भुत कहानी है। महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ठीक ही लिखते हैं कि “एक ऐसे वक्त में जब भारतीय उत्पादन उद्योग के पास खड़े होने के लिए आधार ही नहीं था, तब हीरो साइकिल्स ने और इसके बाद हीरो होंडा ने दिखा दिया कि एक शक्तिशाली मस्तिष्क और उससे भी ज्यादा शक्तिशाली हृदय से मजबूती से कैसे खड़ा हुआ जा सकता है”। 
हीरो परिवार का खासकर ओमप्रकाश मुंजाल का उर्दू अदब के प्रति बहुत प्रेम था। शुरुआती दौर में कंपनी हीरो डायरी प्रकाशित करती थी, जिसमे उर्दू के चुनिंदा शेर या सूक्तियाँ लिखी होती थी। वे प्रत्येक वर्ष एक बड़ा मुशायरा भी आयोजित करवाते थे, जिसमे अपने दौर के सभी बड़े शोअरा शामिल हुआ करते थे। 
कुल मिलाकर इस किताब को पढ़ना स्वतंत्रता के पश्चात भारत निर्माण के इतिहास से गुजरना है। यद्यपि कि किताब औद्योगिक घराने के परिवार की कहानी है, लेकिन कहीं भी किताब नीरस नहीं होती और न ही कहीं भी नकारात्मकता चाहे वो प्रतिस्पर्धात्मक ही हो, का हल्का सा भी पुट मिलता है। 
किताब मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित है और इसका मूल्य 499 रुपये है।

2 टिप्पणी

  1. नीरज नीर जी ने हीरो, सच्चे हीरो पर लिखी गई किताब की अच्छी समीक्षा की है। बधाई व शुभकामनाएँ

  2. मेरी कहानियों की किताब “संन्यासी” की समीक्षा प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद लें।

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