होम कविता तारकेश्वरी ‘सुधि’ की कुछ कह-मुकरियां कविता तारकेश्वरी ‘सुधि’ की कुछ कह-मुकरियां द्वारा तारकेश्वरी सुधि - April 17, 2022 66 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 जैसी हूँ वैसी बतलाए। सत्य बोलना उसे सुहाए। मेरा मुझको करता अर्पण। क्या सखि, साजन? ना सखि, दर्पण। 2 मुझको बाँहो में ले लेती। मीठे प्यारे सपने देती। वह सुख से भर देती अँखियाँ। क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, निंदिया। 3 मेरे चारों और डोलता। जाने क्या क्या शब्द बोलता। बड़े गूढ़ हैं सारे अक्षर। क्या सखी, प्रेमी? ना सखि, मच्छर। 4 जब-जब मेरा तन-मन हारा। दिया सदा ही मुझे सहारा। उसके बिना न आए निंदिया। क्या सखि, साजन? ना सखि,तकिया। 5 रात गए वह घर में आता। सुबह सदा ही जल्दी जाता। दिन में जाने किधर बसेरा। क्या सखि, साजन? नहीं,अँधेरा। 6 सब सुविधाएँ उस पर निर्भर। उसके बिन हो जीवन दूभर। और न दूजा उसके जैसा। क्या सखि,साजन?ना सखि, पैसा। 7 कभी इधर वह उधर घूमता। बार-बार ये गाल चूमता। मिलता चैन न उसे एक पल। क्या सखि, साजन? ना सखि, कुंतल। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉली की दो कविताएँ जितेन्द्र कुमार की व्यंग्य कविता – क्योंकि मैं वरिष्ठ हूँ शैली की कलम से : सावन में शिव से प्रार्थना – जयतु, जयतु महादेव 1 टिप्पणी वाह जवाब दें Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
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