नलिनी कुछ दिनों से बेचैन सी है । उसका घर या ऑफिस किसी काम में मन नहीं लग रहा है । वह एक अजीब सी कशमकश से घिरी हुई है।जब से भास्कर ने उसे एक सेक्स वर्कर की मदद करने की बात कही है तभी से उसे सुनकर उसका मन कुछ कसैला सा हो उठा है।
“भास्कर तुम्हारे सेक्स वर्करों से संबंध है। ” उसने घोर आपत्ति भरे स्वर में भास्कर से पूछा।
“अरे यार तुम लड़कियों के साथ यही समस्या है कोई भी बात पूरी तरह से सुनती हो नहीं और अपना राग अलापने लगती हो । मेरे उस सेक्स वर्कर से कोई रिलेशन नही है । हा ये बात सही है कि मैं उसे पहले से जानता हूं ।मुझे उस सेक्सवर्कर के साथ काम करनेवाली उसकी एक सेक्सवर्कर साथी ने बताया कि उस सेक्सवर्कर का पथरी का ऑपरेशन हुआ है और वह बहुत आर्थिक तंगी से गुजर रही है । इसीलिए मैं उसके घर गया और उसकी कुछ रुपये पैसे देकर मदद की ।उस बेचारी का तो देह ही व्यवसाय है। उसी से उसकी रोजीरोटी चलती है पथरी के ऑपरेशन की वजह से डॉक्टर ने उसे अपने स्वास्थ्य को लेकर सख्त हिदायत दी ।इस वजह से वह अपना देह व्यापार नहीं कर पा रही है । इससे उसके घर के हालात बहुत खराब हो गए थे ।…”
इससे आगे भास्कर ने क्या कहा यह सुनने की शक्ति अब उसमें नहीं बची थी उसे समझ में नहीं आ रहा था वह इस पर कैसे रियेक्ट करें । उसे भास्कर की बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि भास्कर सेक्सवर्करों को जानता है । वह उनके संपर्क मे क्यों है ? यह बात उसे हजम नहीं हो रही थी ।फिर उसे अपनी बुद्धि पर हंसी आई ।एक पुरुष सेक्सवर्करों से क्यों संपर्क रखेगा। और वैसे भी भास्कर कोई समाज सेवक तो है नहीं जो उनके पास समाज सेवा या उनके उद्धार के लिए जायेगा ।
उसे यह सोच कर खुद से घिन सी आने लगी कि छि: वह ऐसे व्यक्ति के साथ अपना जिंदगी शुरू करने जा रही थी।जिसके सेक्सवर्करों के साथ संबंध है । वह खुद को कोस रही थी कि वह भास्कर को पहचान क्यों नहीं पाई।वह तो उसके साथ अपने भविष्य के सपने भी बुनने लगी थी …
भास्कर का एक चेहरा ऐसा भी होगा यह सोचकर उसे झुरझुरी सी आ गई। मनुष्य का चरित्र कितने बाह्य आवरणों से ढका हुआ होता है। यह उसे भास्कर के चरित्र से समझ में आई।
कहने को तो वह और भास्कर दोनों एक ही शहर ग्वालियर से थे पर अपने शहर में रहते हुए वह कभी नहीं मिले । दोनों की पहचान एक सोशल मीडिया साइट के जरिए हुई। एक ही शहर के होने की वजह से जल्द ही दोनों गहरे दोस्त बन गए। दोनों घंटों अपने शहर ग्वालियर वहां के दोस्तों और वहां बिताये अपने बचपन स्कूल और कॉलेज के बारे में बतियाते रहते और उनकी यह दोस्ती अब दोस्ती के दायरे से बहुत आगे बढ गई थी, दोनों ही अपनी दोस्ती के इस रिश्ते को एक नया मुकाम देने की सोच रहे थे। भास्कर ने तो अपने घरवालों को उसके संग अपने रिश्ते के बारे में सभी को बता भी दिया था पर वह ही अपने घरवालों को बताने मे हिचक रही थी। वैसे उसे पूर्ण विश्वास था कि उसके घरवाले भास्कर के लिए मान जायेंगे क्योंकि भास्कर कोई निठल्ला इंसान तो था नही जबलपुर में नारकोटिक्स विभाग में नारकोटिक्स अफसर के रूप में पदस्थ था।समाज में उसकी अपनी एक पहचान है। और वह भी स्वयं भोपाल के इस नामी एजुकेशन इंस्टीट्यूट में कम्प्यूटर सांइस पढाती है। उसे लगता था कि सही समय आने पर वह भी अपने परिवार वालों को इस रिश्ते के बारे में जरूर बता देगी।
पर जबसे भास्कर ने उसे सेक्सवर्कर वाली बात बताई है । तभी से उसे भास्कर के इस नये चेहरे से डर सा लगने लगा है । इस वक्त वह एक अजीब से अंर्तद्वंद से गुजर रही है। कभी उसे भास्कर अपना तो कभी अजनबी सा लगने लगता वैसे तो वह और भास्कर दोनों पिछले तीन बर्षों से एक दूसरे को जानते है।पर इन तीन बर्षों मे वे दोनों महज एक बार ही मिले है वो भी पांच सात मिनट के लिए ।अपनी उस मुलाकात को याद कर नलिनी की आँखें चमक उठती है।
वो फरवरी का महीना था प्रेम के उत्सव का महीना। इसी प्रेम के महीने की एक शाम में वह अपने भास्कर से मिली थी।
उस वक्त वह एक क्रॉफेन्स में थी जब भास्कर का फोन आया
” हैलो नलिनी हाऊ आर यू “उसने फोन पर सबसे पहले यही शब्द कहे थे।
“आई एम फाइन “नलिनी ने उदास स्वर में कहा।
वाट हैपन नलिनी क्या हुआ तुम दुखी क्यों हो
कुछ नही यार हम लोग कब से मिलने की सोच रहे है
पर तुम्हें समय ही नही है मिलने का
आज भी तुम मिलने वाले थे पर मिलना नही हुआ
सॉरी नलिनी आज इतना बिजी शेड्यूल था कि तुमसे मिलने की तमन्ना अधूरी ही रह गई।कोई बात नहीं हम जल्द ही मिलेंगे
“अच्छा गुडबाय तुम जाओ” उसने भारी मन से कहा
कुछ देर बाद फिर मोबाइल की घंटी बजी
“तुम कितने बजे कॉन्फ्रेंस से घर के लिए निकल रही हो ।”
“यही कोई 5:00 बजे ” नलिनी ने कहा
“चलो कोई बात नहीं ,तुम आराम से घर जाना” भास्कर ने उससे कहा।
“तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो।” नलिनी ने उससे पूछा।
“कुछ नहीं मेरी ट्रेन 40 मिनट लेट आ रही है
और अभी 4:00 बज रहे है लेकिन तुम 5:00 बजे फ्री होगी ।खैर जाने दो हम फिर मिलेंगे ।”
“मैं तुमसे मिलने आ रही हूं भास्कर” कहकर नलिनी ने फोन रख दिया है और झट से एक टैक्सी पकड़कर रेलवे स्टेशन की ओर चल दी ।कॉन्फ्रेंस स्थल से रेलवे स्टेशन तक पहुंचने में उसे लगभग बीस मिनट लगे पर बेसब्र नलिनी को यह बीस मिनट बीस वर्षों जैसे लग रहे थे। भास्कर से मिलने की जल्दबाजी में वह रेलवे स्टेशन के मुख्य गेट पर ना उतरकर उससे काफी पहले ही उतर चुकी थी।
“लो हो गया कबाड़ा, जल्दी पहुंचने के चक्कर में और लेट हो गई” उसने स्वयं से कहा ।
लंबे-लंबे डग भरते हुए उसने भास्कर को कॉल किया।
” अरे तुम आ रही हो मैंने तो तुम्हें मना किया था क्यों परेशान हो रही हो ? ” भास्कर ने अपनी खुशी छुपाते हुए उससे कहा ।
” अभी तुम किस जगह खड़ी हो ।”
“मैं प्लेटफार्म नं. एक पर खडी हूं।”
“मैं प्लेटफार्म नंबर चार पर खड़ा हूं।”
“एक मिनट तुम रुको ,मैं वहीं आता हूं।”
“नही मैं आ रही हूं।” उसने बच्चों सी जिद करते हुए उससे कहा और प्लेटफार्म नंबर एक और प्लेटफार्म नंबर चार को जोडते हुए रेलवे ब्रिज की ओर तेज कदमों से चलते हुए वह फोन पर भास्कर से उसकी लोकेशन पूछती हुई आगे बढ़ने लगी ।
रेलवे ब्रिज पर पहुंचने से पहले ही भास्कर रेलवे ब्रिज की सीढियां उतर कर प्लेटफार्म नंबर एक पर आ चुका था। दोनों की नजरें एक दूसरे से टकराई और वह उसे एकटक देखती रह गई ।दूसरे क्षण ही स्त्री सुलभ लज्जा से उसकी पलकें शर्म से झुक गई ।
अब वे दोनों चुपचाप ब्रिज की ओर साथ – साथ आगे बढ़ने लगे ।रेलवे ब्रिज की सीढ़ियां चढ़ते हुए भास्कर ने कुछ देर ठहर कर उसे देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे दुनिया ठहर सी गई हो । हृदय के हजारों तार झंकृत हो उठे हो । दोनों अब रेलवे ब्रिज के ऊपर आ चुके थे ।दोनों की नजर एक बार फिर टकराई तो उनका मन उसी प्रकार खिल उठा जैसे सूर्य को देखकर कमलिनी खिल उठती है । वह ब्रिज से नीचे उतरने लगी तो भास्कर ने उसे वहीं रोक लिया ।
“अरे हम यहां नहीं रुकते हैं सीधे प्लेटफार्म नंबर चार पर चलते है तुम्हारी ट्रेन वहीं आनेवाली है हम वही खडे होगे।”
“अरे ऐसे नही आ जायेगी ट्रेन हम यही रुकते।” भास्कर ने उससे कहा
“अगर तुम यही खड़े रहोगे तो तुम्हारी ट्रेन जरूर छूट जाएगी।” नलिनी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए उससे कहा
“ऐसे कैसे छूट जाएगी अभी पूरे 5 मिनट है उसे आने में ।”
दोनों अपने – अपने पक्ष में तर्क दिए जा रहे थे ।
इसी बीच भास्कर ने उसके होठों का चुंबन लेने की एक असफल कोशिश की।
मगर ब्रिज पर बढ़ती भीड़ के कारण वह ऐसा ना कर सका भोपाल टू जबलपुर जाने वाली अमरकंटक एक्सप्रेस गाड़ी नंबर 12854 प्लेटफार्म नंबर चार पर आ चुकी है । एकाएक गाड़ी के आने का अनांउस हो चुका था।
भास्कर ने जल्दी से सीढ़ियां उतरते हुए उससे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो उसने अपने हाथों की मुठ्ठियों को कसकर बांध कर उन्हें पीछे कर लिया जैसे इन हाथों से संस्कारों की गठरी छूटी जा रही हो।
यही वजह है, जब भास्कर ने उसे हाथ हिलाकर अलविदा कहा तो है वह हाथ हिलाकर अलविदा भी न कर सकी। बस मूर्तिवत खडी उसे जाती देखती रही। जब वह आँखों से ओझल हो गया तो दौड़ कर सीढियों से उतरकर पागलों की तरह उसे भीड़ में ढूंढने लगी ।
“टेक केयर नलिनी “भास्कर की आवाज उसे सुनाई दी
उसने पलटकर देखा सामने भास्कर खडा था
उसे देखकर उसका मन मयूर सा नाच उठा।
तभी ट्रेन चल पडी भास्कर ने एक बार फिर उसे हाथ हिलाकर अलविदा किया और दौड़ कर ट्रेन में बैठ गया । वह भी पास मे पडी बैंच पर बैठ गई और तब तक उसे देखती रही जबतक वह आँखों से पूरी तरह से ओझल न हो गया।
लेकिन अब सिर्फ यादों के सिवा उसके जीवन में कुछ भी नही बचा है।
बसंत बीत चुका था और पतझड़ शुरू हो गया था । इंस्टीट्यूट के कैंपस में खड़े दरख्तों से टूटकर गिरते पत्ते बिना किसी अस्तित्व के इधर उधर उड रहे थे । इन पत्तों को गिरते देखकर उसे लगा कि उसकी स्थिति भी तो इन पत्तों जैसी हो गई है । अचानक उसे याद आया अभी कुछ दिन पहले ही तो मिसेज गुप्ता उससे कह रही थी ।
“नलिनी क्या हो गया है तुम्हें ? अपना मुंह तो देखो कैसे इन पत्तों की तरह पीला सा पड़ता जा रहा है । जरा अपना ख्याल रखा करो ।”
उस वक्त वह उनसे हु हूं ये दो शब्द कहकर अपना पीछा छुडा आई थी मगर भास्कर की यादों से कैसे पीछा छुडाये।
जो हर पल उसे सताती रहती है।
होली आने वाली थी मां कई बार उसे घर आने का आग्रह कर के थक चुकी थी उसे लग रहा था जैसे रंग उसके जीवन से कब के विदा हो चुके है फिर भी मां का मन रखने के लिए वह होली के एक दिन पहले अपने घर आ गई ।
दुसरे दिन शाम के पाँच बजे के करीब किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई । मां रसोई से चिल्लाकर बोली
“नलिनी देखना कौन है दरवाजे पर।”
उसने दरवाजा खोला सामने एक पच्चीस या छब्बीस बर्षीय कृषकाय देह की युवती खडी थी।
वह उससे कुछ पूछती उससे पहले ही वह युवती बोल पडी
आप ही नलिनी हो
“हा आप कौन ?” उसने हैरानी भरे स्वर में उससे पूछा।
“जी मैं दीपा हूं। यही दाना ओली लश्कर मे रहती है।”
“मुझे आपसे अकेले में कुछ जरूरी बात करनी है।”
“मुझसे जरूरी बात पर मैं तो तुम्हें जानती तक नही हूं।”
नलिनी ने आश्चर्य जताते हुए कहा।
“जी कहो ” नलिनी ने उस युवती से कहा
“क्या हम अंदर बैठ के बात कर सकते है।” उस युवती ने नलिनी से पूछा
“नही जो भी कहना, यही कहो । ” उसनें आजकल अंजान लोगों द्वारा घर में किये जाने वाले अपराधों को देखते हुए कहा।
“तो क्या हम सडक पर चलते हुए बात कर सकते है ।”उस युवती ने पूछा
“हा ये सही रहेगा । “नलिनी ने हामी भरी
अब दोनों गली से निकल कर मुख्य सडक यूनिवर्सिटी रोड पर आ गई । होली का दिन था इसलिए रोड़ पर रोज की अपेक्षाकृत ज्यादा भीड़ थी। दोनों चुपचाप सडक पर चलने लगी।
हा अब बताओ क्या कहना चाहती थीं नलिनी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।
“भास्कर सर निर्दोष है मैमसाब ।”
“तुम कौन होती हो उसे निर्दोष बताने वाली।”
“मैं वही अभागिन औरत हूं जिसकी सर ने मदद की।”
“ओह तो तुम जैसी औरत को उसने अपनी पैरवी करने को भेजा है इतना गिर गया है भास्कर ।” उसने अफसोस प्रकट करते हुए कहा
“पैरवी नही ये श्रृद्धा और प्रेम है उनके प्रति मेमसाब।”
“हूं मैं अच्छी तरह से जानती हूं तुम और तुम्हारी जैसी औरतों को और भास्कर जैसे रंगीन मिजाज इंसान को भी
जिसे इंसान कहने मे भी मुझे शर्म महसूस होती है।”
“मुझे जितना भला बुरा कहना है कह लीजिये मेमसाहब
क्योंकि हम जैसी औरतें तो बनी ही है कोसने के लिए
पर भास्कर सर को कुछ मत कहिये।हम जैसी औरतो के लिए वो मसीहा है ।मुझे नही पता आप भास्कर सर के बारे में कितना जानती हो लेकिन जितना भी जानती हो, कम ही जानती हो । भास्कर सर ‘आशाएं’ नामक एक एनजीओ चलाते हैं जो हम जैसी सेक्सवर्करों के शिक्षा स्वास्थ्य और पुनर्वास के लिए काम करती है। जो लडकियां इस देह व्यापार से निकलना चाहती है । उनको यह संस्था रोजगार उपलब्ध करवाने का काम करती है। यह संस्था और सर के व्यक्तिगत प्रयासों का नतीजा है कि हमारे बच्चे भी पढ़ पा रहे। सर हम सभी से जुड़े हुए हैं कोई भी परेशानी होने पर सर और संस्था से जुड़े लोग तुरंत हमारी मदद करते है। सर के लिए हम सब परिवार जैसे है।
इस होली सर जब अपने घर आये तो मेरा हालचाल पूछने मेरे घर भी आये। तो काफी उदास लगे।बहुत पूछने पर भी जब उन्होंने कुछ नही बताया तो मैंने उन्हें अपने बेटू जिससे सर को बहुत लगाव है उसकी कसम दी तो वे टूट गए उनकी आँखों में आसूं साफ दिखाई दे रहे थे ।तब मुझे आपके साथ उनका रिश्ता टूटने की बात पता चली। मेरी मदद करने की वजह से सर का आपसे रिश्ता टूट गया ।जबसे मुझे पता चला है…. कहते हुए दीपा का गला रुंध सा गया और वह आगे कुछ न बोल सकी।
अब नलिनी के हाथ दीपा के कंधों पर थे और आँसुओ की धार उसके गालों पर ।
नलिनी घर लौट आई थी पर जैसे गई थी वैसी नही ।
शाम को कॉलोनी में होलिका दहन हो रहा था। होली के पवित्र अग्नि के प्रकाश में उसके मन के सारे संशय जल चुके थे। दूसरे दिन वह रंगों की थाल सजाये चल पडी थी अपने भास्कर के घर की ओर उसे अपने प्रेम के रंग में रंगने को।