पद्मावती जानती है, लुम्मेर वाहन चलाने का चस्का नहीं छोड़ेगा लेकिन जब भी बुकिंग पर जाने लगता है, दोहराती है, ‘‘रास्ता बड़ा कठिन है। ड्राइवरी छोड़ दो। दूसरा काम पकड़ो।’’
लुम्मेर भड़क जाता है, ‘‘निकालो पूँजी। सब्जी या किराने की दुकान लगा लॅं।’’
‘‘पूँजी नहीं है।’’
‘‘तब गाड़ी चलाने दो।’’
लुम्मेर के पिता टैक्सी चलाते थे। हफ्ता-दस दिन तक घर न लौटते। लुम्मेर कल्पना करता पिता सेठ की कीमती गाड़ी चलाते हुये खूब मौज-मजा करते होंगे। होटेल में खाते होंगे। बड़ा होकर वह भी कीमती गाड़ी चलायेगा। पिता को गाड़ी चलाते देख कर लुम्मेर बिना प्रशिक्षण के स्वतः गाड़ी चलाना सीख गया।
पिता ने नहीं पूछा – गाड़ी चलाना कब सीखा ?
उसने नहीं बताया – यूँ ही सीख लिया।
पिता टैक्सी चलाते हुये दुर्घटनाग्रस्त होकर जब बोमडिला की सात हजार फीट गहरी घाटी में विलय हुये, वाहन चालन में दक्ष लुम्मेर बीस-इक्कीस साल का लम्बा युवक हो चुका था। आज ड्राइवरी करते हुये उसे दस बरस हो रहे हैं। एक सेठ की बुलेरो (टैक्सी) चलाता है। चालक सीट पर बैठते ही खुद को पायलेट समझने लगता है। हाव-भाव में एक किस्म की बादशाही तारी हो जाती है। हैसियत कुछ नहीं है लेकिन अच्छे पिकअप के साथ संतुलित गति से वाहन चलाने को हैसियत बल्कि उपलब्धि बल्कि गौरव की तरह लेता है। गौरव उसकी उत्सवी हॅंसी और चपल मुद्राओं से निःस्त्रत होता रहता है।
पर्यटक समूह में यदि लड़कियाँ हैं तो उनका ध्यान खींचने के लिये हरकतें तेज कर लेता है। भूल जाता है उसका दो बच्चियों वाला परिवार है। इस बीच उसके सेलफोन पर पद्मावती का कॉल आ जाये तो उसका जोश और जज्बा खंडित होने लगता है। दरअसल पर्यटक समूह के साथ हफ्ता-दस दिन बिताते हुये उसे उनके साथ रहने की आदत हो जाती है। उनसे विदा लेते हुये निराशा सी होती है। घर पहुँच कर लगता है एक अच्छी दुनिया से कम अच्छी दुनिया में आ गया है। पर्यटक समूह में लड़कियाँ हों तब तो निराश बढ़ जाती है।
पद्मावती का पतला मुख देखता है तो लगता है – एक अच्छा सपना देख रहा था जो ठीक अभी टूट गया। पर्यटक समूह कृपण हो, यथोचित बख्शीश न दे, इसके बताये होटेल में न ठहरकर इसके कमीशन में बट्टा लगाये तब उनसे विदा लेते हुये यह निराश नहीं कुपित हो जाता है। कितने बेवकूफ लोग हैं। मॅंहगे होटेल में ठहरते थे लेकिन बख्शीश देते हुये प्राण सूख रहे थे।
ऑफ़ सीज़न होने से इन दिनों लुम्मेर की व्यस्तता कम है। यही वक्त होता है जब वह अतिरिक्त आय कर सकता है। ऐसे लोगों, जिनके पास वाहन हैं लेकिन चालक नहीं हैं, को उसने अपना सेल नम्बर दे रखा है। लोग इसे यात्रा के लिये दैनिक भत्ते पर नियुक्त कर लेते हैं। एक मारवाड़ी परिवार को लेकर एक सप्ताह के लिये अरुणाचल प्रदेश जाना है और मालिक अचानक बता रहा है तेजपुर से तवांग के लिये बुकिंग हुई है। लुम्मेर ने तारीखों का हिसाब लगाया। तेजपुर की पार्टी को आठवें दिन वापस लायेगा तब बीच में दो दिन शेष होंगे। नींद पूरी कर लेगा फिर मारवाड़ी परिवार के साथ चला जायेगा।
……….लुम्मेर निर्धारित तिथि पर पर्यटक परिवार को लेकर तेजपुर से तवांग की यात्रा पर चला। परिवार के मुखिया शर्मा जी, लुम्मेर के साथ आगे वाली सीट पर विराजमान हुये। बीच की सीट पर उनकी पत्नी राजसी, युवा पुत्रियाँ मराल व मृणाल बैठीं। पीछे की सीट पर राजसी के छोटे भाई छैल बिहारी व कुंज बिहारी सामान सहित अॅंट गये। युवतियों का दीदार होते ही लुम्मेर स्फूर्त हो उठा। वाहन यूँ हिफाजत और नफासत से चलाना चाहता था कि युवतियों को छोटा सा धक्का न लगे। लेकिन दुर्गम पहाड़ी पथ पर हिफाजत-नफासत काम नहीं आती। छैल बिहारी बोला ‘‘बहुत खराब रास्ता है।’’
लुम्मेर को लगा उसकी ड्राइविंग की आलोचना हो गई है। बोला -‘‘पहाड़ पर कैसा रास्ता होगा ? आपको तवांग तक फिसलन, चढ़ाई, लैण्ड स्लाइड और खराब रास्ता ही मिलेगा।’’
सुनकर मराल घबरा गई ‘‘पापा, हम लोगों ने तवांग घूमने के लिये गलत समय चुना। कल रात बारिश हुई। बहुत फिसलन है।’’
शर्मा जी ने पीछे मुड़ कर सालों को देखा ‘‘तुम्हारे मामा कुसूरवार हैं। तेजपुर आये और तुम्हारी माँ ने जिद पकड़ ली, मेरे भाई तवांग घूमने आये हैं।’’
लुम्मेर ने चैंका दिया ‘‘आप सही समय पर आया है। ऑफ़-सीजन है। कम पइसा में तवांग देख लेगा। सीजन (अक्टूबर से मई) में आपको हमारा गाड़ी तीस-पैंतीस हजार में मिलता। अक्टूबर के लिये होटेल में रूम का बुकिंग शुरू हो गया होगा।’’
मराल और मृणाल परस्पर मुस्कुराईं। खुद को बड़ा हुड़-हुड़ दबंग समझ रहा है।
बहुत नीचे उतर आये मेघ, मार्ग में गुबार सा बनाये हुये हैं। धुँधलके में कहीं कोई सुंदर पक्षी बैठा होता है और लड़कियाँ चमत्कृत हो जाती हैं –
‘‘देख, देख, बर्ड। कैमरा ऑन कर।’’
लुम्मेर का चित्त लड़कियों में लगा है ‘‘लो, बर्ड उड़ गया। फोटो नहीं खींच पाया न ? आगे बहुत याक मिलेगा। मिथुन भी।’’
मृणाल बोली ‘‘एनीमल देखते ही आप गाड़ी रोक लेना। मुझे बहुत फोटो लेने हैं।’’
‘‘हौ, हौ।’’
छैल को यात्रा में बहुत भूख लगती है ‘‘एक भी ढाबा नहीं है कि थोड़ा कुछ खा लें।’’
झोल-झटके से आँतों में होती हलचल के कारण राजसी को बोलने में अड़चन हो रही है लेकिन बोली ‘‘ऐसे सुनसान रास्ते में ढाबा कौन बनायेगा छैल ? इतना खराब रास्ता। लगता है सड़क सुधार का काम कभी नहीं होता।’’
लुम्मेर ने पीछे मुड़कर भली प्रकार युवतियों के दीदार किये ‘‘पूरा साल काम चलता है। पहाड़ पर इतना टूट-फूट होता है कि काम दिखाई नहीं देता। वह देखिये, लेबर काम कर रहा है।’’
सड़क के किनारे बैठी चार-पाँच मजदूरिनें तन्मयता से गिट्टियाँ तोड़ रही थीं। शर्माजी हैरत में –
‘‘मजदूरिनें हैं। मजदूर नहीं दिख रहे हैं।’’
प्रश्नों का उत्तर देने की नैतिक जिम्मेदारी लुम्मेर ने ले रखी है ‘‘यहाँ औरतें अधिक काम करती हैं। आदमी जुआ खेलते, सराब पीते, घर में बैठे रहते हैं।’’
मराल, मजदूरिनों की फोटो लेने लगी ‘‘ये लोग बस्ती से इतनी दूर कैसे आती हैं ?’’
‘‘छोटे ट्रक इन्हें बस्ती से लाते, ले जाते हैं।’’
‘‘इनका फैशन तो देखो। कमीज पहने हैं। सिर पर स्कार्फ, आँखों में काजल। मैंने ऐसी शौकीन मजदूरिनें नहीं देखी।’’
मृणाल की बात पर लुम्मेर खुल कर हॅंसा ‘‘यहाँ औरतें यही पहनता है …….. अच्छा, आगे भालूक पोंग है। वहाँ इनर लाइन परमिट बनेगा। अरुणाचल प्रदेश जाने के लिये परमिट बनवाना पड़ता है। यदि चेकिंग होगी, परिमट दिखाना होगा।’’
भालूक पोंग।
मुख्य पथ पर दोनों ओर दुकानें और परमिट बनाने वाला दुकाननुमा छोटा सा सरकारी दफ्तर। लुम्मेर द्रुत गति से गया और द्रुत गति से लौटा ‘‘साहब, बच्चे को स्कूल से लाने गया है। रुकना पड़ेगा।’’
शर्मा जी उकता गये ‘‘यह कैसा ऑफीसर है ?’’
लुम्मेर ने युवतियों पर नजर डाली ‘‘ऑफीसर ऐसा ही होता है। साहब को आप कुछ दे दोगे तो परमिट जल्दी बनेगा। नहीं तो कोई कमी बताकर आपको परेसान करेगा।’’
प्रति व्यक्ति सौ रुपिया नजराना देकर परमिट प्राप्त हुआ। चाय वगैरह पीकर शर्मा परिवार लौटा। बोलेरो की बीच वाली सीट पर लुम्मेर निद्रालीन था। चार पहिये के साथ बसर करते हुये यह इसी तरह अपनी नींद और भूख का प्रबंध करता होगा। कुंज कहने लगा ‘‘इसने बड़ी अच्छी नींद पाई है। परेशानी में भी सो लेता है।’’
छैल बोला ‘‘अभ्यस्त और अनभ्यस्त में यही फर्क है। हमारे लिये जो अनुभव अनोखे हैं, इसके लिये कॉमन हैं। हम जिस तरह परेशानी महसूस कर रहे हैं, यह न करता होगा। इसे उठाना पड़ेगा ………लुम्मेर जी ………।’’
लुम्मेर स्प्रिंग की तरह उछल कर बैठ गया ‘‘अच्छा नींद आया। फ्रेस हो गया।’’
यात्रा पुनः शुरू हुई।
लेकिन पहाड़ की यात्रा सुगम नहीं होती। भूस्खलन के कारण लुम्मेर ने वाहन रोक लिया –
‘‘परमिट बनवाने में टाइम वेस्ट हुआ अब यह लैंड स्लाइडिंग।’’
मराल के चेहरे पर कौतुक ‘‘गॉड। पहली बार लैंड स्लाइड देख रही हूँ।’’
लुम्मेर, मराल का कौतुक देख मुग्ध हो गया ‘‘अभी हम बिहार की पार्टी के साथ जा रहा था। बहुत बड़ा लैण्ड स्लाइड हो गया। अॅंधेरा हो चुका था। अॅंधेरे में मलबा हटाने का काम नहीं होता है। बिहारी बाबू बोला वापिस चलो। रात भर यहाँ नहीं रह सकते। हम वापिस लौटे। उधर भी लैंण्ड स्लाइड हो गया था। दोनों तरफ रास्ता बंद। हम लोग रात भर गाड़ी में पड़ा रहा।’’
राजसी दहशत में ‘‘अभी जहाँ हम हैं, वहाँ लैण्ड स्लाइड हो जाये तो कहाँ भागेंगे ? आगे-पीछे इतनी गाड़ियाँ लगी हैं कि कहीं नहीं जा सकते।’’
लुम्मेर निर्भीक बना रहा ‘‘ऐसा डेथ होना है तो होगा। हम तो रोज इसी रास्ते पर चलता है। डरेगा तो पेट कैसे भरेगा ?’’
शर्माजी असहज थे ‘‘रास्ता सॅंकरा है। गाड़ियाँ कैसे क्रॉस होंगी ?’’
लुम्मेर को लगा उसका अवमूल्यन किया जा रहा है ‘‘हमारा रोज का प्रैक्टिस है। हम देखता हूँ रास्ता साफ होने में कितना वक्त लगेगा।’’
लुम्मेर लंगूर की तरह वाहन से कूद कर उतर गया।
‘‘मामा, मैं भी लैण्ड स्लाइड देखूँगी।’’
मराल के प्रस्ताव पर लुम्मेर उत्सुक हो गया ‘‘आइये। तमाम लोग देख रहे हैं।’’
शर्मा जी और राजसी वाहन में बैठे रहे। लुम्मेर के नेतृत्व में मराल, मृणाल, कुंज, छैल चले और एक दूरी से दृश्य देखने लगे। दक्ष चालकों द्वारा चलाये जा रहे क्रेन और जे.सी.बी. की मदद से चट्टानों को ठेल कर घाटी में फेंका जा रहा था। वहाँ से गुजर रहा कॉनवाय (फौजी ट्रकों का समूह) भी भू- स्खलन के कारण रुका हुआ था। फौजी तत्परता से निर्देश दे रहे थे और मलबा हटाने में सहायता कर रहे थे। मृणाल के लिये बहुत नया अनुभव था –
‘‘मैं पहली बार फौजियों को इतने पास से और इस तरह काम करते देख रही हूँ।’’
लुम्मेर ने बात लपक ली ‘‘हौ, हौ। दिरांग, टैंगा, सिरसा, मुन्ना, लोहू, जंग कई जगह मिलिट्री बेस हैं। बरसात में यहाँ बहुत जोंक हो जाता है। फौजियों का सिस्टेमेटिक तरीके से काम करने का आदत होता है, इसलिये ये लोग कहीं भी रहने में घबराता नहीं है।’’
काम तेजी से चल रहा था फिर भी मार्ग खुलने तक अॅंधेरा होने लगा।
बोमडिला पहॅुचने तक गहन अॅंधेरा हो चुका था। मुख्य पथ से लगे होटेल के सम्मुख वाहन रोक कर लुम्मेर, शर्मा जी से बोला –
‘‘रूम देख लीजिये।’’
होटेल में होटेल मालकिन और दो सहायक युवतियाँ। टी.वी. देख रही थीं। लुम्मेर ने अपनी क्षेत्रीय बोली में होटेल मालकिन को प्रयोजन बताया। अच्छी हिंदी जानने वाली मालकिन, शर्मा जी से सम्बोधित हुई, ‘‘रूम रेंट सात सौ रुपिया। कितना रूम चाहिये ?’’
‘‘दो।’’
‘‘कितने लोग हैं।’’
‘‘छह।’’
‘‘तीन रूम लो।’’
लुम्मेर अड़ गया ‘‘एक्स्ट्रा बेड डाल देना। एक रूम में तीन लोग रह लेंगे।’’
‘‘आफ़-सीजन है। तुम कहते हो तो एडजस्ट हो जायेगा।’’
श्रेय ग्रहण कर लुम्मेर सहायक युवती से बोला ‘‘सामान रूम में रखवाओ और साहब लोगों को चाय पिलाओ।’’
युवती ने सादगी से कहा ‘‘काली चाय। दूध नहीं है।’’
लुम्मेर ने मराल और मृणाल को बारी-बारी से विलोका ‘‘मिल्क पाउडर क्यों नहीं रखती ?’’
राजसी बोल पड़ी ‘‘काली चाय रहने दो। खाना तो मिलेगा ?’’
मालकिन ने आश्वस्त किया ‘‘लड़कियाँ दाल, चावल, सब्जी बना देंगी।’’
सुबह पूरी बाँह की साफ धुली टी शर्ट में लुम्मेर खुद को तरोताजा और व्यवस्थित महसूस कर रहा था। उसने मराल और मृणाल को मुस्कुरा कर देखा –
‘‘नींद आया ? ठंड लगा ? हम एक पार्टी को यहाँ ठहराया था। उन लोगों ने बहुत हल्ला किया कि इतना ठंड है और गीजर नहीं है। जबकि मैडम (मालकिन) नहाने के लिये गरम पानी देता है। आपको दिया न ? यह जगह सेफ है। तभी हम आप लोगों को लाया। दिक्कत तो नहीं हुआ ?’’
जवाब युवतियों ने नहीं, शर्मा जी ने दिया ‘‘नहीं। चलने की तैयारी करो। तवांग दूर है।’’
‘‘हौ, हौ।’’
दुर्गम पथ।
लुम्मेर की कमेंटरी जारी रही ‘‘उधर कमेंग दी देखिये। आपको कमेंग और लैंड स्लाइड कभी भी, कहीं भी मिल जायेगा। फौजी मिलेगा और झरना मिलेगा। ……….. उधर पहाड़ से पानी गिर रहा है। मैडम फोटो लो। यह सब बार-बार देखने को नहीं मिलता।’’
मराल ने अचानक कहा –
‘‘गाड़ी रोको। झरने के पानी में औरतें बरतन धो रही है। उनकी तस्वीर खींचना है।’’
लुम्मेर ने वाहन रोक दिया ‘‘बादल हैं। रोशनी कम है। फोटो अच्छा हो न हो, यादगार होगा।’’
मृणाल जैसे स्वयं से कह रही हो ‘‘सचमुच बादल बहुत नीचे आ गये हैं। कहानियों में पढ़ती थी परियाँ बादलों के देश में रहती हैं। आज हम लोग बादलों की सैर कर रहे हैं।’’
कुंज ने हस्तक्षेप किया ‘‘बादलों की सैर में इतने धक्के लग रहे हैं कि आँतें कमजोर हो जायेंगी। हो सकता है मैं अस्पताल में भर्ती किया जाऊॅं।’’
मराल ने तंज कसा ‘‘मामा, तुमने ही इंटरनेट पर सर्च कर तवांग को डेस्टीनेशन बनाया है। मजा लीजिये।’’
लुम्मेर ने रुचि दिखाने में चूक नहीं की ‘‘हौ, हौ। तवांग देखेगा तो सचमुच मजा लीजियेगा।’’
नूरा, सेलापास, जसवंतगढ़, जंग होते हुये तवांग पहॅंुचने तक अॅंधेरा होने लगा। तवांग पहॅंुचने से पहले लुम्मेर ने मुख्य पथ से लगे एक घर से वाहन में डीजल भरवाया। शर्मा जी ने पॅूछा –
‘‘यह कैसा फिलिंग स्टेशन है ?’’
लुम्मेर ने स्पष्ट किया ‘‘यहाँ कुछ लोग चोरी से डीजल बेचता है। थोड़ा भरवा लिया। बीच में डीजल चुक जाये तो दिक्कत होता है।’’
तवांग।
मार्ग की दुरुहता और लुम्मेर की वाचाल वृत्ति ने शर्मा परिवार को यूँ पस्त किया कि होटेल पहुँचते ही वे जल्दी सो गये। सुबह माधुरी झील देखने गये। माधुरी झील का मार्ग सामरिक क्षेत्र से होकर गया है। लुम्मेर मुस्तैदी से जानकारी देता रहा –
‘‘ ………….. देखिये बंकर। यहाँ खच्चर सामान पहुँचाता है …………… इधर गोलाबारी का प्रैक्टिस होता ………….. इगलू देखिये ………… ना, ना, फोटो नहीं लेना। मना है। ड्यूटी दे रहा फौजी देखेगा तो झंझट करेगा ………. जाइये, माधुरी लेक देखिये ………… मौसम खराब है …………. जल्दी लौटना है ………….।’’
शर्मा परिवार ने माधुरी झील में एक घंटा बिताया। इस एक घंटे में बहुत कुछ बदल गया। उन लोगों ने लौट कर देखा लुम्मेर के हाव-भाव पूरी तरह बदल कर रहस्यमय हो गये हैं। यह लुम्मेर वह नहीं है, जो अब तक था। छह सदस्यीय परिवार को घाटी में संकट की अनुगूँज सुनाई देने लगी। दुर्घटनायें इसी तरह होती हैं। सम्पूर्ण एंकांत क्षेत्र। दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा है। न रास्ता मालूम है, न मंजिल का पता। यदि इसने दुर्भावनावश कुछ षडयंत्रकारियों को बुलाया होगा और वे आकर पूरे परिवार को हजारों फीट की गहराई में फेंक दें तो किसी को ज्ञात न होगा यह दुर्घटना है या षड़यंत्र।
‘‘आप लोग लौट आया ?’’
पूछता हुआ लुम्मेर संदिग्ध लग रहा है। इसे शायद उम्मीद थी देर से लौटेंगे, तब तक इसके लोग आ जायेंगे।
शर्मा जी ने साहस किया ‘‘मौसम खराब है। वापस चलो।’’
लुम्मेर कुछ न बोला। पुतलियाँ तेजी से घुमाते हुये शर्मा जी, छैल, कुंज को देखता रहा। उसका चेहरा परेशान बल्कि बदहवास था। जैसे यह परिवार घेर कर उसे घाटी में फेकेगा और बुलेरो लेकर फरार हो जायेगा। यदि ऐसा होता है तो पूरी ताकत लगा कर भी वह तीन बलिष्ठ पुरुषों की पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पायेगा। शर्मा जी नहीं जानते क्यों पूछ रहे हैं लेकिन पूछा –
‘‘परेशान लग रहे हो।’’
‘‘हमारा मालिक का गाड़ी चोरी हो गया।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘एक पार्टी मणिपुर के लिये गाड़ी बुक किया था। ड्राइवर को मार कर रास्ते में फेंक दिया और गाड़ी ले गया।’’
‘‘किसने बताया ?’’
‘‘अभी मालिक का मेरे मोबाइल पर कॉल था।’’
शर्मा जी की नसों का तनाव कम हुआ। ‘‘गाड़ी कौन बुक कर रहा है, कैसे लोग हैं, मालूम होना चाहिये।’’
‘‘हमारा औकात क्या है जो हम टूरिस्ट से कहें अपना आई.डी. प्रूफ दिखाओ। आपसे कहता तो आप बुरा मानता न। मालिक जहाँ कहें, हमको जाना पड़ता है।’’
‘‘ओह ………।’’
‘‘आप लोगों को तवांग बौद्ध मठ और वार मेमोरियल दिखा दूँ?… बैठिये।’’
वातावरण नकारात्मक हो गया।
चुस्ती-फुर्ती, बुलंदी, गौरव खोकर शिथिल हुआ लुम्मेर ऐसा मौन हो गया जैसे दुर्गम पथ पर वाहन चलाना वीरता का काम बिल्कुल नहीं है। उसे शिद्दत से लगने लगा दुर्गम पथ पर ऊर्जा खोते हुये शक्तिहीन होता जा रहा है। नींद पूरी नहीं होती है। वाहन चलाते हुये एक झपकी आ जाये कि घाटी में समाधि बन जाये। पद्मावती और बच्चियों को कभी इस तरह उसके मरने की खबर मिले तो उनकी क्या दशा होगी ?
तवांग मठ, वार मेमोरियल, बाजार आदि देखने के उपरांत शर्मा जी लुम्मेर से बोले ‘‘कल बूमला (चाइना बार्डर) देखेंगे।’’
लुम्मेर अन्यमनस्क बना रहा ‘‘मालिक परेसान है। जल्दी लौटने को बोला है।’’
‘‘बुकिंग के समय मालिक को बताया था बूमला जायेंगे।’’
‘‘सरकारी ऑफिस जाना पड़ेगा। बूमला के लिये परमीसन लेना पड़ता है।’’
लुम्मेर ने कोई तर्क नहीं किया। जानता था, शनिवार होने से कार्यालय आज आधा दिन ही खुला रहा होगा। कल रविवार की छुट्टी। सोमवार को वापसी है। शाम साढ़े चार बजे शर्मा परिवार को लेकर कार्यालय पहॅुचा। कार्यालय बंद मिला। मराल ने उदास होकर सीधे लुम्मेर से पूछा –
‘‘हम बूमला नहीं देख सकेंगे ?’’
‘‘नहीं।’’
लुम्मेर ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। लड़कियों को प्रभावित करने का जज्बा खत्म। ये लड़कियाँ एक अच्छा सपना हैं, बस।
वापसी।
लुम्मेर अप्रतयाशितरूप से चुप है। इतना चुप है कि सबको लगने लगा यह इतना न बोलता तो दुर्गम पथ की अड़चनें अधिक महसूस होतीं। बहुत बोल कर वस्तुतः यह माहौल बना दिया करता है। यह इतना चुप है कि पथ की अड़चनें बहुत साफ नजर आ रही हैं। प्रेरित करने पर भी लुम्मेर चुप रहा। जितनी जल्दी हो सके वह तेजपुर पहॅंुचना चाहता था।
तेजपुर प्रायः पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर था। पीछे से तेज गति से आ रही टाटा सूमो ने ओवर टेक कर लुम्मेर को रोक लिया। सूमो में सामने की सीट पर बैठे यातायात पुलिस के सिपाही को देख लुम्मेर का चेहरा एक बार फिर बदहवास हो गया। सिपाही ने सूमो से उतर कर लुम्मेर से क्षेत्रीय बोली में क्या पूछा, लुम्मेर ने क्या जवाब दिया, शर्मा परिवार नहीं समझ सका। अब सिपाही ने सीधे शर्मा जी से पूछा –
‘‘कहाँ जा रहे हैं ?’’
‘‘तेजपुर।’’
‘‘गाड़ी आपकी है ?’’
‘‘टैक्सी।’’
‘‘नम्बर प्लेट का रंग टैक्सी का नहीं है। ड्राइवर तुम गाड़ी के पेपर्स और अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाओ।’’
‘‘हम तो ड्राइवर हैं मालिक।’’ कहते हुये लुम्मेर ने कागजात और लाइसेंस दिखाया।
सिपाही भड़क गया ‘‘प्राइवेट गाड़ी को टैक्सी में चलाते हो ?’’
‘‘हमारा मालिक ……..
‘‘मालिक को मैं देख लूँगा।’’ कहते हुये लुम्मेर को उपेक्षित कर सिपाही, शर्मा जी की ओर मुड़ा ‘‘हम यह गाड़ी रिक्वीजीशन में ले रहे हैं। आपको तकलीफ होगा लेकिन जंगल में सर्चिंग के लिये हमको ऐसा करना पड़ता है। उग्रवादी सरकारी गाड़ी को पहचान लेते हैं और एलर्ट हो जाते हैं। आप लोग सूमो में आ जायें। ड्राइवर तेजपुर पहुँचा देगा।’’
वरदी पहने हुये, सूमो में बैठे फौजी सिपाही, शर्मा परिवार को अपहरणकर्ता लग रहे थे। अगवा कर पूरे परिवार को कहाँ ले जायेंगे ?
शर्मा जी विनम्र हुये –
‘‘हम तेजपुर पहुँच जायें फिर आप यह गाड़ी लें।’’
सिपाही ने आग्रह स्वीकार न किया ‘‘मेरा सेल नम्बर नोट करें। कोई दिक्कत हो तो मुझे कॉल कीजिये। मजबूरी में हमको यह सब करना पड़ता है।’’
सूमो का चालक, शर्मा जी का सामान सूमो में रखने लगा। फौजी अपना सामान बुलेरो में ले गये। बदहवास लुम्मेर ने मोबाइल पर मालिक से बात की। पद्मावती से बात की। फिर सिपाही के आगे हाथ जोड़े –
‘‘हमको भूख लगा है। दो रात से सोया नहीं। थका है साहब।’’
सिपाही ने लुम्मेर को बिल्कुल महत्व नहीं दिया।
सूमो, शर्मा परिवार को लेकर तेजपुर की ओर चल दी। राजसी ने पीछे मुड़कर लुम्मेर को देखा ‘‘बेचारा थका होगा। इतनी अच्छी गाड़ी चलाता है। कहीं नहीं लगा संतुलन खो रहा है ……… सोचती थी घर पहुँच कर हजार रुपये दे दूँगी पर ………..।’’
उधर लुम्मेर के जेहन में न मराल थी, न मृणाल। पद्मावती थी, बच्चियाँ थी। भूख थी, नींद थी, थकान थी, जोखिम था, अनिश्चय था। वही पथ था जिस पथ से ठीक अभी आया था।