Tuesday, October 15, 2024
होमकहानीएस. भाग्यम शर्मा द्वारा तमिल से अनूदित कहानी - रायर जी का...

एस. भाग्यम शर्मा द्वारा तमिल से अनूदित कहानी – रायर जी का कमरा

इस कहानी की मूल तमिल लेखिका इन्दुमति हैंइसका हिंदी अनुवाद एस भाग्यम शर्मा ने किया है

राय साहब खाली हाथ ना आकर एक छोटे स्टील के प्लेट में तीन एप्पल, केले, पान सुपारी, फूल सबको रख कर उसके ऊपर एक निमंत्रण पत्र रखकर मुझे दिया।
मेरी कुछ समझ में नहीं आया। रायर जी का एक ही लड़का है उसकी शादी हो चुकी है। अभी यह किसका निमंत्रण पत्र? शायद रॉय जी का 60 साल पूरे हुए होंगे क्या? नहीं। तीन चार साल पहले ही नई धोती और शर्ट पहन कर मुस्कुराते हुए आए थे वह बात मेरे ध्यान में आ गया।
“क्या बात है रॉय जी, चमक रहे हो दामाद जैसे ?”
इस उम्र में भी वे शर्मा कर हंसते हुए, “आज मैं 60 साल का हो जाऊंगा” बोले थे।
बस इतना ही रायर रसोईया हैं रायर की पत्नी छोटे-मोटे काम करने वाली है इसे मैं भूल गया। अंदर से पत्नी को बुलाया और मैंने बोला नई साड़ी उसके साथ ब्लाउज दोनों लेकर आओ। और मेरे पास जो नई धोती रखी थी उसे उसके ऊपर 500 रुपये रखकर उन्हें दिया।
रायर जी बड़े खुश हुए। “यह क्या है…?
“60 साल होने पर देने वाला एक छोटा सा यह सम्मान है !”
“मेरे लड़के ने भी मेरे लिए नहीं किया !”
“उससे क्या होता है ? इस लड़के ने कर दिया ऐसा सोच लीजिएगा…”
बहुत ही खुश होकर कांपते हुए हाथों से वे उसे लेकर गए।
इसलिए इस समय फल-फूल के साथ यह जो रायर जी ने मुझे दिया है निमंत्रण पत्र 60 साल के लिए नहीं है तो यह तो पक्का हो गया, धीरे से मैंने पूछा “क्या बात है रायर जी अचानक निमंत्रण पत्र दे रहे हो? क्या बात है?”
“मेरा लड़का मकान बनवा कर उसका गृह प्रवेश कर रहा है।” रायर जी का चेहरा बड़े ही गर्व और बड़प्पन से चमक रहा था ‌।
“अरे अरे ! ऐसा है क्या? बहुत खुशी हुई। लक्ष्मी इधर आओ। रायर जी बुला रहे हैं देखो!” 
अपने गीले हाथों को साड़ी के पल्ले से पोंछती हुए रसोई से बाहर आई | उनकी पत्नी का चेहरा रायर जी को देखकर खिला। “आइए रायर जी!” बोलते समय उन्होंने रायर जी के हाथ में है प्लेट को देखकर पूछा “यह सब क्या है”
“रायर जी निमंत्रण पत्र देने आए हैं !” मैंने बोला।
“क्या बात है ?” बड़े आश्चर्य से मेरी पत्नी ने पूछा।
“इनके बेटे ने मकान बनाया है।”
“कहां पर….”
“इरोड में”
“यहां से आपका लड़का की इरोड कहां चला गया ?”
“शादी के कामों के लिए अक्सर मैं इरोड जाता था ना, मैंने कमाए हुए रुपयों से जमीन खरीद रखा था। उसी पर उसने मकान बनाया है !”
“कब ले लिया था रायर जी। आपने तो बताया नहीं ?”
“उसे लिए दस साल हो गए हैं । मेरे ससुर इरोड में थे ना, उन्होंने बातें करके पक्का कर एडवांस दे रखा था। मैंने उन्हें थोड़ा-थोड़ा रुपए देकर जमीन के रुपयों को देकर हिसाब पूरा कर दिया। अब लड़के ने उस जमीन पर लोन लेकर मकान बना दिया…”
“जमीन आपकी है ! आपके मेहनत की कमाई से लिया हुआ है। उसी जमीन को गिरवी रख कर ही तो इस मकान को बनाया है! आप बोल रहे लड़के ने बनाया है । मेहनत के रुपए तो आपके हैं, नाम उसका ?”
“मेहनत करके बचाओ, सब उसके लिए ही तो है” कहकर निमंत्रण पत्र को मेरी तरफ बड़े भव्यता के साथ देते हुए वे बोले “आप दोनों को जरूर आना है !”
“किस दिन ?”
“शुक्रवार को सुबह है 7:30 बजे।”
“आज सोमवार है। अब तो ट्रेन में टिकट भी बुक नहीं कर सकते रायर जी…?”
“आपके पास तो कार है। रेल के टिकट के पैसों से पेट्रोल डलवा कर आ जाइएगा। पहले दिन रात को ही आ जाइयेगा। आपके लिए ऑक्सफोर्ड में ए.सी. रूम बुक करवा रखा है।”
“अरे भगवान, क्यों ऐसा किया रायर जी। आपने क्यों तकलीफ की ?”
“इसमें तकलीफ क्या है ? मेरे लिए आने वाले आप ही हैं डॉक्टर । जरूर आ जाइएगा। मुझे मत धोखा दीजिएगा!”
“नहीं धोखा नहीं दूंगा, आ जाएंगे !”
पत्नी की तरफ मुड़ कर “अम्मा आपको भी आना हैं !” कहकर वे गए।
मैंने पत्नी से कहा “हम इरोड जाकर आ जाएंगे।”
“क्यों जी, आप पागल हो गए क्या ? वह रायर अपना रिश्तेदार है क्या? नहीं तो कोई विशेष मित्र है ? कोई अपने घर के विशेष समारोह में खाना बनाने के लिए आने वाला आदमी हैं और आपको ढूंढ कर मुफत में दवाई लेने के लिए अस्पताल में आते हैं। ऐसे लोगों के लिए कार ले जाकर हमें इरोड तक जाना है?” 
गुस्से से बोली पत्नी को मैंने देखा। “यह देखो लक्ष्मी, रायर मेरा पेशेंट है। अपने घर विशेष समारोह में खाना बनाने आते हैं। इसके लिए हमें  उनके घर जाना है ऐसा मैं नहीं कह रहा….”
“फिर क्या कह रहे हो ?”
“एक मेहनती व्यक्ति को सम्मान देने के लिए !”
“समझ में नहीं आया।” लक्ष्मी बोली।
“रायर जी को तुम अभी जानती हो ! मैं उन्हें अपने बचपन से ही जानता हूं। चूल्हे में चूल्हे की लकड़ियों जैसे वे साथ जलने वाले वे हैं। रायर जी का खाना बोले तो सुपर होता है। कितने शादी, कितने जन्मदिन, कितने गोद भराई, कितने सगाईयां, गृह प्रवेश, जनेऊ आदि में उन्होंने खाना बनाया उनकी पसीने से ही आज उनके मकान का गृह प्रवेश है!”
लक्ष्मी मौन होकर मुझे ऊपर से नीचे तक देखा।
“यह बड़प्पन सिर्फ रायर का ही नहीं, मेहनत का ही सम्मान है। उनके इस मेहनत की कद्र हमें भी करना चाहिए लक्ष्मी। उन्हें गौरवान्वित करना है ! इसीलिए ही मैंने जाने की बात कही। उस मेहनत को सम्मान देने के लिए हमें 40 लीटर पेट्रोल का खर्चा करना पड़ें तो कोई गलत नहीं है लक्ष्मी…”
“ठीक है चलेंगे।” लक्ष्मी भी मान ही गई।
गुरुवार के दोपहर को खाना खाने के बाद हम दोनों रवाना हुए। घर से कार से रवाना होने के पहले, “निमंत्रण पत्र ले लिया लक्ष्मी….?” मैंने उसे याद दिलाया।
“ले लिया।”
“एड्रेस की जरूरत नहीं है, वह तो मैंने पूछ लिया था ना” मैं बोला।
हमारे इरोड पहुंचने के थोड़े पहले हमारा मोबाइल बजा बात की तो रायर जी ही थे! “कहां हो डॉक्टर साहब….?”
“अरे, आप ज्योतिषी हो क्या….. अभी इरोड के अंदर प्रवेश कर रहे हैं।”
“सीधे एक्सपोर्ट होटल में आ जाइए। आपके कमरे की चाबी के साथ मैं बाहर खड़ा हूं।”
“आप क्यों परेशान हो रहे हो रायर जी ?”
मेरे पूरे बोलने के पहले ही रायर जी बोले “डॉक्टर साहब…. आपके यहां आने में मुझे कोई परेशानी नहीं है। आप नहीं आए तो परेशानी होती !”
रायर जी जैसे बड़ा मन सिर्फ कुछ लोगों का ही होता है ऐसे मुझे लगा।
रायर जी जैसे बोले थे वैसे ही होटल में हमारा इंतजार कर रहे थे। होटल में जितने लोग थे उन सब को वे जानते थे ऐसा लगा। जो सामने दिखा “डॉक्टर मुथुकुमार चेन्नई से गृह प्रवेश के लिए आए हैं।” खिले हुए मुंह से सबसे कह रहे थे। “गलत मत समझना डॉक्टर साहब मैं यहां कुछ दिन रसोईया बन कर रहा!” वे बोले।
कमरे तक स्वयं सूटकेस को लेकर आए, उसे रखकर,” कमरा ठीक है ना डॉक्टर साहब…?” पूछ कर, “कितनी दूर कार चला कर आए हो थक गए होंगे! नहा कर खाना खाकर सो जाइए। सुबह 7:00 बजे तक घर आ जाइएगा डॉक्टर साहब । अच्छा अम्मा मैं चलता हूं।” हाथ जोड़कर चलें गए।
दूसरे दिन सुबह। उन्होंने जैसा कहा था वैसे ही हम 7:00 बजे घर पर पहुंच गए। मकान इरोड से थोड़ी दूर पर था। एक रसोईया का मकान इसे ना कह सकते थे वह काफी विशाल था।
“क्यों जी, कोई छोटा सा घर होगा सोचा पर यह तो बहुत बड़ा है !” पत्नी बोली।
“यह देखो, लक्ष्मी मकान बनाना, शादी करना दोनों जीवन में एक बार ही होता है। उसे अच्छी तरह करना ही बुद्धिमता है।”
हमें देख भाग कर आए रायर जी। बहुत से बड़े लोग आए हुए थे। जो शामियाना डाला था वह कम पड़ रहा था। हरे, लाल, सफेद आभूषण चमक रहे थे। बाहर की सीढ़ियां पर ग्रेनाइट लगा हुआ था।
“क्या है जी, ग्रेनाइट…!”
“शू ! चुपचाप आओ।” पत्नी को डांटा।
अंदर घुसते ही अपने बेटे से “देख, राघवेंद्र अपने डॉक्टर साहब…” भीड़ के बीच में खड़े लड़के को बुलाया।
उसके लापरवाही को महसूस ना करके रायर जी, “मुझे और तुम्हारी अम्मा का इलाज करने वाले ई.एस.जी के डॉक्टर हैं, दवाई गोलियां सब फ्री में दे कर हमारी मदद करते हैं….”
“ठीक है अप्पा !” कहकर उसकी आवाज नीचे हुई, आपने फ्री फंड में जो ट्रीटमेंट करवाया वह सारी दुनिया को बताना है…?”
“ऐसा नहीं है रे… वह…”
“छोड़ो अप्पा…!”
वे जल्दी से चुप हो गए । जो बड़े लोग वहां आए थे उन्हें देखकर “आइए मकान को पूरा देखते हैं।” रायर के कहते ही लड़का मुझसे भी “आइए” बोला।
मैं और मेरी पत्नी संकोच कर रहे थे उसे देख रायर जी “आइए डॉक्टर, आइए अम्मा…” बुलाया, मना ना कर पाने के कारण घर को देखने वाले भीड़ के साथ हम भी चले। रायर भी साथ आए।
“शी इज मैई वाइफ रोहिणी !” होठों पर लिपस्टिक और पार्लर के मेकअप से परिपूर्ण उसकी पत्नी का सबसे परिचय कराया रायर के लड़के ने । वह सबको हाथ जोड़कर “आइए…” बोली।
रायर की पत्नी नहीं दिखी। हो सकता है रसोई में हो…?
खड़े हुए बरामदे से अंदर गए तो रायर जी के लड़के ने टूरिस्ट गाइड जैसे एक-एक कमरे का वर्णन किया। “यह हमारे आदमियों के लिए बैठक है, वह महिलाओं का बैठक है। यह डाइनिंग रूम है। यह पूजा का कमरा है, यह स्टोर रूम है, यह रसोई घर है। यह वॉशरूम में….!”
कहकर “चलिए ऊपर चलते हैं!” कहते हुए सीढ़ियां चढ़कर “यहां भी एक ड्राइंग रूम है। अगला कमरा मेरे बड़े लड़के श्रीनिवासन का कमरा है, उसके बाद वाला मेरी लड़की रेवती का कमरा है, अगला वाला मेरा सबसे छोटा बेटा श्रीप्रकाश का कमरा है।”
इन सब से बहुत आगे जाकर एक बहुत बड़े बेडरूम में घुसे। वह रायर जी के लड़के का बेडरूम था! 20 बाय 20 का कमरा था ‌। पलंग ड्रेसिंग टेबल, टीवी, डीवीडी प्लेयर, सोफा सेट आदि रायर जी के बेटे के बेडरूम में था। मेरी पत्नी ने मुझे चूंटी कांटी और आंखों से इशारा किया ‘देखा….?’ बोली। उसमें आप भी हैं….? ‘ऐसा एक प्रश्न उसके दिमाग में कौंध रहा हैं ऐसा दिखाई दिया।
ऊपर से नीचे आते समय रायर के लड़के के साथ सब लोग नीचे आए। सामने कुछ कमरे कुत्तों के लिए बनाया गया था ‌। पीछे नौकरों के ठहरने का कमरा दिखाई दिया। देखते हुए आए मुझे बड़ा अजीब सा लगा। मन के अंदर भी कुछ-कुछ होने लगा। सब कुछ ठीक है। परंतु रायर जी के लिए उनकी और उनकी पत्नी के लिए कौन सा कमरा? ऐसा एक कमरा तो बना ही नहीं। वहां कोई एक कमरा बिना बनाया हुआ है ऐसा भी दिखाई नहीं दिया…. फिर रायर जी का कमरा…?
सहन न कर सकने पर मेरी पत्नी ने पूछा।
“यह सब तो ठीक है बच्चे, तुम्हारे अप्पा और अम्मा का कमरा कौन सा है…?”
इस प्रश्न के बारे में उस लड़के ने सोचा ही नहीं। माथे पर बोतल फेंके जैसे प्रश्न का उत्तर ना दे पाने के कारण मुंह बनाने लगा। यह प्रश्न ही बेकार जैसे उसे लगा। जानबूझकर चेन्नई से आए अप्पा के डॉक्टर, उनकी पत्नी मेरा अपमान करने के लिए ही आए ऐसा उसे लगा होगा। अंदर गुस्से के साथ अपने अप्पा की ओर देखा।
रायर जी डर गए। अपने आप आगे आपका “मुझे अलग कमरे की क्या जरूरत? मुझे और मेरी पत्नी को पूरे दिन रसोई में ही रहने की आदत पड़ी हुई है। इसीलिए रसोई में ही सोए तभी हमें नींद आती है!” हमें देख कर मुस्कुराने की कोशिश करने लगे। इससे तो जोर से चिल्ला कर रो देते तो ठीक होता मुझे लगा।
उसके बाद वहां खड़ा होने या खाना खाने की इच्छा नहीं हुई, हम पान सुपारी लेकर बाहर आकर कार में बैठे तो पत्नी ने पूछा “मेहनत के लिए सम्मान कहकर आप मुझे भी लेकर आए। परंतु दुनिया में मेहनत का सम्मान कैसा होता है देखा…..?”
बिना कुछ जवाब दिए मैंने कार को रवाना करते हुए मुझे अपने भविष्य का डर लगा। मेरा एक ही लड़का वह 8 साल का उसे सोच कर!
एस. भाग्यम शर्मा,
बी-41 सेठी कालोनी
जयपुर 302004 मो. 9351646385 
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest