लैंप पोस्ट के पास रात के अँधेरे में
वह खड़ी थी किसी का इंतज़ार करती
हाथ में एक बेग लिए , बड़ा-सा काला
कभी उसे कंधे पर झुलाती कभी हाथ में
लैंप पोस्ट की झीनी-झीनी सुनहरी रौशनी में
छरहरी काया और नितम्बों तक लहराते बाल
जैसे मौजें अंगड़ाई ले रहीं हों दूसरे किनारे
जिन्हें वह बार-बार सवाँरती हुई घड़ी देखती
कभी पीछे मुड़ती ,कभी इधर-उधर कुछ टटोलती
सड़क के दूसरी ओर मैं खड़ा था बस के इंतज़ार में
सड़क लगती मानों दोनों के बीच समुंदर का फ़ासला
साँझ के बाद गहरी रात से पहले चाँद ने दस्तक दे दी थी
उसकी रंगत में रौनक भर आई थी चाँद की किरणों में
उसकी सफ़ेद ड्रेस और दुपट्टा चाँदनी में नहा गया
वह सहज होने की कोशिश कर रही थी या डरी हुई
सामने चाँद और मैं चकोर एक कशिश रूह में उतरती
कुछ नहीं था फिर भी क्यों रिश्ता जुड़ता महसूस हो रहा था
मैं हर रोज़ इसी शहर, इसी सड़क, इसी वक्त आता हूँ
आज कुदरत के साथ इस मंजर, इस लम्हे में बंध गया हूँ
कोई इशारा दे रहा है, रुक जाओ आज यहीं थोड़ी देर।
लैंप पोस्ट के पास खड़ी लड़की शायद बैचेन है मैंने सोचा
मुझे एहसास हुआ मैं भावनाओं में यूँही बहकर दूर निकला।
बस आती दिखी ,मैं चला उधर ,ठहरा, अब बस चली गई
कोसने लगा खुद को,जैसे पानी का ज़र्रा देख धुप को बौखलाए।
वह थी अब भी वहीँ , अब उसने बस के जाने के बाद मुझे देखा
मेरा दिल जोर से धड़का ,क्या सोचती होगी सड़क छाप मंजनू।
लड़की की देह ने लहराना बंद कर दिया और तन गई मुझे देख।
तभी एक कार तेज़ी से आती दिखी,लड़की मुड़ी हाथ दिखाती
मानो चेता रही सँभल जाओ, उस कार में से दो जिस्म बाहर आए
कार की दूसरी ओर कुछ हुआ,कार तेज़ी से घूम नदारत हुई
उस लड़की की छरहरी काया लुढ़क पड़ी सड़क किनारे चीखती
लैंप पोस्ट के पास रात के अँधेरे में सूनसान सड़क पर
अब मैं भागा तेज़ी से सड़क का समुन्दर पार करता उधर
मजनुओं की तरह उस अनजान रिश्ते को अंज़ाम देता
उसकी चीख बंद हो चुकी थी और मेरी गूँजती वातावरण में
सुबह ही अखबार में पढ़ा था, लड़कियों के ख़िलाफ बढ़ती हिंसा !!!