तस्वीर को हकीकत में बनाने का श्रेयफ्रेंच वैज्ञानिक जोसेफ नाइसफोर और लुइस डॉगेर को ही जाता है। इन्होंने डॉगोरोटाइप प्रक्रिया का आविष्कार 1820 के करीब किया था। यह फोटोग्राफी की सबसे पहली प्रक्रिया है। इसकी मदद से ही दुनिया का पहला तस्वीर 1826 में कैप्चर की गई।पहली तस्वीर लेने में 8 घंटे लगे थे। इसे जोसेफ नाइसफोर ने अपने घर की खिड़की से लिया था। 1855 में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल द्वारा सुझाए गए तीन-रंग विधि द्वारा बनाई गई। पहली रंगीन तस्वीर, 1861 में थॉमस सटन द्वारा ली गई थी। विषय एक रंगीन रिबन है, जिसे आमतौर पर टार्टन रिबन के रूप में वर्णित किया जाता है।
पहला रिफ्लैक्स कैमरा 1928 में टीएलआर के रूप में आया। यह काफी पॉपुलर हुआ। सन् 1933 में एसएलआर का डिजाइन बनना शुरू हुआ, जिसमें 127 रॉलफिल्म लगी हुई थीं। 3 साल बाद 135 फिल्म्स के साथ एक नया मॉडल आया।
मोबाइल फोन ने फोटोग्राफी कला का विस्तार किया है। आम जनमानस की सोच इनमें दिखती है।हर फोटो कुछ कहती है।चित्र जनसंप्रेषण के सशक्त माध्यम होते हैं। चित्रों की प्रमाणिकता को साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती। चित्र खुद-ब-खुद प्रमाण होते हैं। चित्र मानव की सौंदर्यानुभूति की विशिष्ट प्रस्तुति भी होते हैं। प्राचीन काल से ही मनुष्य ने अपने भावों को चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। विविध प्रागैतिहासिक और प्राचीन कालीन गुफा तथा भित्तिचित्र इसके सशक्त उदाहरण है। मनुष्य जीवन और प्रकृति से जुड़ी जिन उपस्थिति को देखता है और जो उन्हें आकर्षित करती है, उसे वह चित्रों के रूप में उतार लेता है। चित्रकारी मानव की मूल प्रवृत्ति रही है। लेकिन सजीव फोटो उतारने का काम कैमरे की मदद से किया जाता है। फोटो जीवंत इतिहास होते हैं। मानव की सौंदर्यानुभूति को सहेज कर रखने का काम करते हैं। फोटो को शब्दों का विकल्प भी कहा गया है। एक फोटोग्राफ एक हजार शब्दों की व्याख्या कर देता है। चित्रअभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम है, जहां शब्दों की जरूरत नहीं होती।तस्वीर एक साथ कहानी कहने और गवाही देने का कार्य करती है।कभी-कभी जिंदगी से जुड़े चित्र इतनी गहरे मन में उतर जाते है कि व्यक्ति सोचने परविवश हो जाता है। हमें संसार के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर कर देते हैं।
कैमरा तस्वीर खींचने में क्षण भर ही तो लगाता है। कितना सत्यवादी होता है। जैसा देखता है वैसा ही फोटो लेता है। आपकी आंखों से देखता है और आपके मस्तिष्क की सोची हुई बात को अंकित करता जाता है। उसे दुख-सुख,छोटा-बड़ा,अमीर-गरीब,सुंदर-कुरूप का बिल्कुल ही भान नहीं होता। तस्वीरें भी कैमरे की तरह कभी झूठन हीं बोलती। अपनी कहानी खुद कहती है। केवल वर्तमान की ही नहीं वरन भूत और भविष्य की भी कहानी कह देती है।
तस्वीर कभी बोलती नहीं,चाहे जितनी भी जीवंत प्रतीत हो। जीवित हो या मृत,हर दृष्टि से तस्वीर सदैव निर्जीव ही है। जीवित या मृत व्यक्ति के छायाचित्र में कोई अंतर नहीं होता। दोनों ही स्थिति में छायाचित्र हमेशा मुक,अविचल और स्थित होता है। तस्वीर केवल सुख ही नहीं बल्कि दुख के क्षणों को भी स्मरण करा देती है। यदि छाया चित्र बोलता है सांत्वना देता है,वह केवल तस्वीर देखने वाले व्यक्ति की खुद की सोच पर निर्भर करता है।
फोटोग्राफी विशिष्ट कलात्मक विद्या है जो अतिरिक्त सतर्कता और त्वरित निर्णय क्षमता की मांग करती है। कैमरे के माध्यम से भावना को आंदोलित कर सकने वाले लक्षणों को कैद करना आसान काम नहीं है। एक सजीव फोटोग्राफ पाने के लिए अनेक चित्र खींचना पड़ता है। इंतजार करना पड़ता है। इसलिए फोटोग्राफर के लिए धैर्यवान होना अत्यंत आवश्यक है। सही चित्र को उसके आकर्षक रूप में प्राप्त करने और प्रस्तुत करने के लिए तकनीकी दक्षता तथा रंग, प्रकाश का ज्ञान भी फोटोग्राफर के लिए जरूरी है।
फोटो समाचार पत्र को आकर्षक तथा विश्वसनीय बनाते हैं। फोटो प्रामाणिक इतिहास होते हैं। बीते हुए समय के चित्र से जीवंत और विश्वसनीय प्रमाण और कुछ भी नहीं हो सकता। चित्रों की अपनी भाषा होती है जिसको समझने के लिए किसी संकेत चिन्ह की जरूरत नहीं पड़ती। चित्र अपने आप में मानवीय अनुभूति को उद्वेलित कर उसकी भावुकता को प्रवाह देने में सक्षम होते हैं। समाचारों की दृष्टि से चित्रों का विशेष महत्व होता है। फोटो समाचार की विश्वसनीयता और जीवन्तता को बढ़ाते हैं। विवादास्पद बातों पर फोटो द्वारा की गई अभिव्यक्ति निर्णायक होती है। पाठक फोटो युक्त समाचार को ज्यादा सुगमता पूर्वक ग्रहण करते हैं तथा यह उनके मस्तिष्क पटल में अपेक्षाकृत दीर्घ अवधि तक सुरक्षित रहता है।
डॉ नन्दकिशोर साह
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लेखन में रुचि रखते हैं।