इस साल 2021 में सम्पन्न हुये टोक्यो ओलंपिक में 23 वर्षीय एथलीट नीरज चोपड़ा ने  भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक जीतने का पिछले 100 साल से भी अधिक का इंतजार समाप्त कर दिया। इस जीत से नीरज चोपड़ा ने न केवल इतिहास रचा बल्कि हमारे राष्ट्र भारत को भी गौरान्वित किया है। जैसे ही यह घोषणा हुयी मन प्रफुल्लित हो गया । सभी खेल प्रेमी आपस में बधाई देने लग गये। सभी खेल प्रेमियों ने अपने अपने ट्विटर पर या फिर फेसबुक पर बधाई संदेश पोष्ट करने शुरू कर दिये । स्वर्ण पदक जीतने के बाद उसने अपनी  इस उपलब्धि को  महान धावक दिवंगत मिल्खा सिंह को समर्पित करते हुये कहा, ”मिल्खा सिंह स्टेडियम में राष्ट्रगान सुनना चाहते थे। वह अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनका सपना पूरा हो गया।” उसकी  इस अद्भुत खेल भावना वाले  कृत्य के लिये भी ये निश्चित  तौर पर बधाई के पात्र हैं ।
यहाँ एक और तथ्य सांझा करना चाहूँगा वो यह है कि इस बार वाला ओलंपिक हम सभी के लिये बहुत ही गौरव वाला रहा है क्योंकि पहली बार ओलंपिक इतिहास के 125 साल में  हमारे राष्ट्र भारत के लिये सर्वाधिक 7 पदक जीते गये  हैं क्योंकि अभी तक ओलंपिक में 6 पदक तक ही जीत पाये थे। इसके अलावा तीन महिलाओं ने भी पदक जीते हैं वो भी अभी तक ओलंपिक इतिहास में सर्वाधिक हैं।  
 
जैसा आप सभी जानते हैं इस बार आजके प्रधानमन्त्री ने ओलंपिक में भागीदारी निभाने वाले प्रत्येक खिलाड़ी से समय समय पर  बात कर उन सभी का न केवल हौसला बढ़ाया बल्कि स्वाधीनता दिवस पर सभी खिलाड़ियों को लाल किले वाले कार्यक्रम में आमन्त्रित भी किया । इसके अलावा  अपने आवास पर चाय पर भी बुलाकर जीते हुये को बधाई और बाकी सब की भी अनेकों तरीके से प्रशंसा कर जो कदम प्रस्तुत किया वह कृत्य सरकार की खेल के प्रति रुचि दर्शाता है। साथ ही साथ खेल जगत से हर क्षेत्र के खिलाड़ीयों ने खेल भावना प्रदर्शित करते हुये सोशल मीडिया पर लगातार सभी भारतीय खिलाड़ियों को बधाइयाँ दीं, यह अवर्णनीय खेल भावना को प्रकट तो करता ही है साथ ही साथ धर्मों, रंगों और सीमाओं को अप्रासंगिक बना देता है।
 
अब जब मैं खेल भावना की बात करता हूँ  तो आप सभी प्रबुद्ध पाठकों के ध्यान में दो अनोखी अद्भुत खेल भावना वाले कृत्य को बताना चाहता हूँ यानि खेल भावना का ऐसा अद्भुत नजारा जिसे शायद कभी किसी ने नहीं देखा होगा साथ ही साथ ये दोनों [ 2 महान ] घटनाएं खेल जगत में स्वर्णिम इतिहास बन गईं। ये दोनों अद्भुत खेल भावना वाले कृत्य इस प्रकार है – 
 
1] पहला वाकया घटा स्पेन में 2012 के एक क्षेत्रपार दौड़ प्रतिस्पर्धा [ क्रॉस कंट्री रेस इवेंट ] आयोजन स्थल पर । 
 
हुआ यूँ कि रेस के दौरान केन्या के  सुप्रसिद्ध धावक [ रेसर ] अबेल म्यूताई आगे चल रहे थे और उनके पीछे थे स्पेन के इवान फर्नांडिज। लेकिन  समापन रेखा [ फिनिशिंग लाइन ] से कुछ मीटर पहले ही अचानक आगे चल रहे अबेल म्यूताई रुक गए और उन्हें लगा कि समापन रेखा पार कर ली है लेकिन पीछे आ  रहे इवान आगे नहीं निकले बल्कि उन्होंने चिल्लाते हुए केन्याई धावक को समझाने की कोशिश की। परन्तु स्पेनिश भाषा नहीं समझ आने के चलते केन्याई धावक कुछ समझ नहीं पा रहा था । 
और इस मौके पर उत्कृष्ट खेल भावना का प्रदर्शन करते हुये स्पेनिश धावक ने आगे निकलने की बजाय केन्या के म्यूताई को धक्का देकर समापन रेखा जिसे विनिंग लाइन कहते हैं पार  करवा दी। यानि स्पेन के इवान फर्नांडिज  ने अपनी जीत को दरकिनार करते हुए अद्भुत खेल भावना दिखाई और खुद से आगे चल रहे केन्या के अबेल म्यूताई  को धक्का देकर समापन रेखा पार करवा दी । 
 
इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा क्रमांक आया। पत्रकारों ने इव्हान से पूछा तुमने ऐसा क्यों किया ? मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया ?
 
इव्हान ने कहा “मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानवजाति बनाएं जो एक दूसरे को मदद करेगी ना कि उसकी भूल से फायदा उठाएगी। मैने प्रथम क्रमांक नहीं गंवाया।
 
पत्रकार ने फिर कहा लेकिन तुमने केन्याई प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाए ।
 
इस पर इव्हान ने कहा “वह प्रथम था ही, यह प्रतियोगिता उसी की थी।”
 
पत्रकार ने फिर कहा ” लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे” 
 
इस पर इव्हान ने उसे समझाते हुये कहा – “तुम समझते हो उस जीतने का क्या अर्थ होता।मेरे पदक को सम्मान मिलता ? मेरी मां नें  मुझे क्या कहा होता ? संस्कार एक पीढी से दूसरी पीढी तक आगे जाते रहते है। मैने अगली पीढी को क्या दिया होता ?  “दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है।”
 
इसी उत्कृष्ट खेल भावना वाले कदम के चलते  स्पेनिश धावक हार के भी जीत गया और उसी दिन से खेल जगत में उसे नायक [हीरो] वाला सम्मान मिलने लग गया।
2] दुसरा वाकया अभी हाल ही में सम्पन्न हुये टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद के फाइनल का है।
दरअसल हुआ कुछ ऐसा कि ऊंची कूद स्पर्धा के अन्तिम चरण [फाइनल] में इटली के 29 वर्षीय गियानमार्को टम्बेरी और कतर के 30 वर्षीय मुताज एशा बरशीम ने 2.37 मीटर (लगभग 7 फीट 9 इंच) की छलांग लगाई और बराबरी पर रहे । चूँकि दोनों खिलाड़ीयों [ एथलीट्स ] को एक-दूसरे पर बढ़त बनाने के लिए 2.39 मीटर की छलांग पूरी करनी थी इसलिये ओलंपिक अधिकारियों ने उनमें से प्रत्येक को तीन-तीन अतिरिक्त प्रयास के अवसर दिए लेकिन वे दोनों ही 2.37 मीटर से अधिक ऊंचाई की छलांग नहीं लगा पाए यानि तीन प्रयासों के बाद भी कोई भी एथलीट निर्धारित ऊंचाई तक पहुंच नहीं सका ।
इसके बाद उन दोनों को एक अंतिम प्रयास और दिया गया, लेकिन टम्बेरी  के पैर में गंभीर चोट के कारण, उन्होंने स्वयं को अंतिम प्रयास से अलग कर लिया। उस समय जब बरशीम  के सामने कोई दूसरा प्रतिद्वंदी नहीं था, तब वेआसानी से अकेले स्वर्ण पदक  विजेता बन सकते थे ।
लेकिन बर्शिम ने अधिकारी से पूछा, “अगर मैं भी अंतिम प्रयास से पीछे हट जाऊं तो क्या स्वर्ण पदक  हम दोनों के बीच साझा किया जा सकता है ?” 
आधिकारी जाँच के बाद पुष्टि करते हुए कहते हैं “हाँ तो स्वर्ण पदक  और प्रथम स्थान आप दोनों के बीच साझा किया जाएगा”। बर्शिम ने बिना एक पल गंवाए अंतिम प्रयास से हटने की घोषणा कर दी। यह देख इटली का प्रतिद्वन्दी ताम्बरी दौड़ा और बरसीम को गले लगाने के बाद चीख-चीख कर रोने लगा !
बर्शिम ने भले ही गोल्ड मैडल साझा कर लिया हो लेकिन इंसानियत के तौर पे वे बहुत आगे निकल गए और इस खेल की दुनिया में अपना नाम अमर कर लिया।
यह दृश्य हमारे दिलों को छूने वाला और अद्भुत खेल भावना  प्रकट करने वाला है जो धर्मों, रंगों और सीमाओं को बहुत बौना बना देता है, सौहार्द और आपसी साहचर्य ही मानवता की कसौटी है !!!
इसलिये ही कहा जाता है कि खेल के मैदान से अच्छा कोई भावनाओं को जोड़ने का स्थान नहीं ।

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