
ग़ज़ल का नाम लिया जाए और चन्दन दा का ज़िक्र ना हो ऐसा कतई संभव नहीं. ग़ज़ल का शोक मुझे उन दिनों से हैं जब मैं स्कूल जाता था. मैं करीब 14-15 साल का ही होगा जब उन्हें पहली मर्तबा सुना था.मैं उनसे पहली मर्तबा करीब पांच साल पहले मिला था जब वो 2017 में त्रिमूर्ति भवन अपनी उम्दा फनकारी को पेश करने के लिए वहां आये थे.वैसे तो मैं उन्हें लगभग 30 सालो से लगातार सुनता रहा हूँ किन्तु मैं उनसे कभी रूबरू हो सकूंगा ये मेरी एक धुंधली ख्वाहिश थी जो उस रोज़ यानी फरवरी 2017 में उन्होंने पूरी की थी.2015 के अंत में मैंने किसी रोज़ उन्हें एफ़बी पर मेसेज किया कि मैं उनका भक्त हूँ और एक मर्तबा उनके दर्शनों की इच्छा है.यदि संभव हो सके तो मुझे अपने कीमती 2 पल दीजिएगा.मैं जवाब के इंतज़ार में बैठा रहा तभी एक रोज़ जैसे ही मुझे उनका जवाब मिला तो मुझे बिलकुल विश्वास नहीं हुआ.
चन्दन दास ग़ज़ल गायकी का बड़ा नाम है जिन्होंने ग़ज़ल गायन क्षेत्र में करीब 40 साल से अधिक समय दिया है. ’ग़ज़ल उसने छेड़ी’,’अरमान’,’गुज़ारिश,’सदा’,’इनायत’,’कितने ही रंग’,’दीवानगी’ आदि कितने ही ग़ज़ल संग्रह में उनकी सैकड़ों ग़ज़ले हैं. उम्दा स्वर जैसे ही बेहतरीन साजों पर उतरते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो देह के भीतर सुखद अहसास हो रहा हो.
ग़ज़ल सम्राट चन्दन दास का जन्म 12 मार्च 1965 को दिल्ली में हुआ था. प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ ने पहली मर्तबा उन्हें 1982 में म्यूजिक इंडिया कम्पनी में गवाया था.उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक से एक बेहतर ग़ज़ल एल्बम दी.अरमान मेरा पसंदीदा ग़ज़ल संग्रह है जिसकी सभी 7 ग़ज़ले निहायत सुन्दर हैं जिन्हें सुनकर लगता हैं जैसे कोई पुण्य आत्मा ने अपनी आवाज़ दी हो. उर्दू हिंदी शब्दों की ऐसी कलाकारी और संगीत का प्रयोग अप्रतिम है. ‘हल्का हल्का सुरूर है साकी बात ...’ग़ज़ल उसने छेड़ी एल्बम की पहली ग़ज़ल थी जिसे मैं कभी पहली मर्तबा सुना था तब से चन्दन जी मेरे ह्रदय में किसी श्रद्धेय की भांति बस गए थे.अरमान सुनने के बाद उनके प्रति आत्मीयता और अधिक बढ़ने लगी थी.ये इश्वर का आशीर्वाद ही रहा जिन्होंने उस रोज़ मुझे मेरे प्रिय ग़ज़ल गायक से मिलवा दिया था.
उस रोज़ शाम करीब 5 बजे मैं त्रिमूर्ति भवन के करीब था . मेरा दिल
उन्हें देखने को लालायित था मेरी नज़र हर चेहरे में उन्हें ही ख़ोज रही थी. सफ़ेद पीली रौशनी में नहाया औडिटोरियम भरता जा रहा था हर कुर्सी पर बैठे शख्स की आँखे स्टेज पर उन्हें(चन्दन दा) ढूढ रही थी.हर और गहरी भीड़ थी लाल पीले पुष्पों की माला पीछे दीवारों पर लहरा रही थी.धीरे धीरे सभागार में हल्का उजाला रह गया मैं भी सीध में चलता हुआ एक कुर्सी पर बैठ गया. साथ वाली कुर्सी पर एक पर्स लुढका पड़ा था पर वहां कोई नहीं था.स्टेज़ के नज़दीक सफ़ेद गलीचे बिछे थे जिसके ऊपर गोल लम्बे तकिये लेटे थे. उस दृश्य को देखते ही मेरा ह्रदय एक पल के लिए हिंदी के रीतिकाल में पहुँच गया था जिसमे पद्माकर कवि ने इसी तरह के दृश्य का उस वक़्त वर्णन निम्नलिखित दोहे के माध्यम से किया था.
“गुल गुली गिल में गुनिजन है चांदनी है चिक है चिरागां की माला है !!
कहे पद्माकर गजक गिजा है सजी सेज है सुराही है सुरा है और प्याला है…”
मैं हलकी रौशनी में अपने इर्द गिर्द देखता रहा साथ वाली खाली कुर्सी पर पर्स अभी भी गिरा पडा था. यामिनी दास जी अपनी साड़ी को सहेजती खाली कुर्सी के नज़दीक आ गयी. उनको यकायक अपने करीब देखकर मेरा चेहरा खिल गया और मेरी आँखे खुली रह गयी व पलके मानो एक पल के लिए थम गयी हों.वो किसी से फोन पर बात कर रही थी पर उनकी आँखे मुझे देख रही थी. उन्होंने जैसे ही फ़ोन रखा मैंने कुर्सी पर बेजान पर्स को हाथो में लेकर उनकी और इशारा किया क्या वो इस पर्स को तो नहीं तलाश रही हैं? उनके होठो पर नर्म मुस्कान थी और वो आँखे जो अब तक पर्स के गम हो जाने पर कुछ मुरझाई हुई थी अब चमकने लगी,अरे मनोज आप? आप आये हैं? उन्होंने मुझे पहचान लिया. आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मेरे बैग को सहेज कर रखा हुआ था ये कहते हुए उनकी आँखों में चमक आ गयी.यामिनी जी चन्दन जी की गृह लक्ष्मी है जो अच्छी ग़ज़लकार के साथ-साथ उम्दा कलाकार भी है फिल्म ‘सुई धागे’ में उनके किरदार को खूब सराहा गया था.मैं कुर्सी के करीब ही खड़ा खड़ा उन्हें निहारता रहा.
आप चन्दन दा से मिले हैं ? यामिनी जी ने मेरी और देखते हुए पूछा.
नहीं मैडम! मैं विस्मय से उनके हिलते होठो को देखता रहा.पिंक साड़ी में वो खूब खिल रही थी.
उन्होंने अपने पीछे मुझे आने का इशारा दिया मैं सफ़ेद गलियारे में से होता हुआ उनके पीछे–पीछे हो लिया.
सभागार के बाहर भी चन्दन दा की ग़ज़लें गूँज रही थी.
“तन्हा ना अपने आप को अब पाइए जनाब
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब..”
यामिन जी मुझे एक कमरे में ले गयी जहाँ दो तीन कुर्सियां दीवार के नज़दीक रखी थी.हम मुश्किल से 3 मिनट ही बैठे थे कि अधखुले दरवाजे को ठेलते हुए चन्दन दास जी अन्दर आये और एकाग्रता से मेरे चेहरे की और देखने लगे.कत्थई रंग की शेरवानी में उनका चेहरा चमक रहा था.आप तो मनोज हैं ना ?और उनके होठ हिलने लगे.
मैं एक पल के लिए उनके चेहरे में खो गया मानो आत्मा परमात्मा में मिल गयी हो.मैं जडवत-सा अपलक नेत्रों से उस दिव्य मूर्ति को देखता रहा जैसे एक क्षण के लिए शून्य में पहुँच गया हो. उनकी आँखों में गहरी चमक थी और चेहरे पर आज के शो के प्रति खासा आत्मविश्वास झलक रहा था.
जी सर. मैं उनकी आँखों में देखता हुआ बोला और उनके पैरो में उसके आशीर्वाद के लिए झुक गया.यामिनी जी व्यस्तता के बावजूद हमे देखती रही. पीली रौशनी में उनका रोम-रोम पुलकित हो रहा था.चन्दन जी ने बीच में ही मुझे रोकते हुए अपने गले से लगा लिया.मैं क्षण भर उनके भीतर के कम्पन को महसूस करता रहा.
आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई मनोज जी.उनके होठ प्रेमवश हिल रहे थे.यामिनी जी ने जैसे ही पर्स गुम हो जाने वाली घटना से उन्हें अवगत करवाया उनके हाथ मेरी पीठ को सहलाने लगे.वो उस रोज़ बहुत खुश थे. कॉफ़ी के प्यालो को लिए एक बैरा वहां कब आया कुछ पता ना चला.मैंने और यामिनी जी ने कॉफ़ी की घूँट भरते हुए बहुत सी बाते की.बाद में चन्दन दास जी ने मेरे साथ कुछ फोटो भी खिचवाये .शायद ये उस उम्दा फनकार का मेरे प्रति गहरा प्यार था जिसे इस जीवन में मेरे लिए भुलाना नामुमकीन ही होगा.
चन्दन दास जी को छह बजे अपना कार्यक्रम आरम्भ करना था. वो यामिनी जी के करीब गए और मुझे उनके करीब यानी VVIP खेमे में बिठलाने का विनम्र आग्रह किया. अच्छा मनोज भाई मैं अपनी पर्फोर्मांस के लिए चलता हूँ और वो आत्मीयता से देखते हुए स्टेज पर जाने लगे .मैं अपनी कॉफ़ी पी चुका था जबकि यामिनी जी अभी भी कॉफ़ी का अंतिम घूँट भर रही थी.कमरे की हलकी रौशनी में उनका मुस्कुराता चेहरा उत्साह से भरा दिखाई दे रहा था.उन्होंने जल्दी से कप सामने रखी तिपाई पर सरकाया और मुझे स्टेज की और चलने के लिए कहा.मैं गलियारे से होता हुआ अब VVIP के खेमे में आ चुका था.
स्टेज पर सभी साज़ धारक अपने अपने वाद्य यंत्रों का मुयायना कर रहे थे.कोई दौलक के पेंच पर मरोड़ी चढ़ा रहा था तो कोई दुसरा गिटार पर तरंगे बदल बदल कर रियाज़ कर रहे था.सामने बैठे तबला वादक एक छोटी सी हथोडी से टेबल की जगह-जगह पर पिटाई किये जा रहे थे.सभागार से बैठे अधिकतर लोग उस नज़ारे को बड़ी ही तल्लिन्न्ता से देख रहे थे. इतने में सफ़ेद चादरों के ऊपर गहरे लाल बिछोने पर चन्दन जी ने आकर सभागार में बैठे सभी दर्शकों को झुककर आदाब किया और अगल बगल में बैठे सभी साज़ धारकों की तरफ देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे. वो कुछ देर सभागार में चारो तरफ बैठे सामायिनो को देखते रहे फिर उन्होंने बड़ी चतुराई से सितार वादक को देखा और आँखों आँखों ही में कुछ कहा. सितार वादक क्षण भर उनकी आँखे और होठ देखकर पहचान गया की चन्दन दा किस ग़ज़ल से आग़ाज़ चाहते हैं.
मंद मंद सितार के अलग अलग वाद्य यंत्र भी अपनी ताल फूंकने लगे एक लम्बे आलाप के बाद चन्दन दास जी ने अपनी आँखे खोली और पहली ग़ज़ल गुनगुनाने लगे.
“ इस तरह महोब्बत की शरुआत कीजिए
इक बार अकेले में मुलाक़ात कीजिए……..”
साज़ साथ-साथ चलते रहे सामायीन ग़ज़ल में खोने लगे.सबकी नज़रे चन्दन दास जी के कांपते होठों से निकलते बदलते सुरों पर थी. क्या अंदाज़ था क्या आदायगी थी. पहले एक फिर दो तीन और उसके बाद कई ग़ज़लों को गाया गया.सारा ऑडिटोरियम झूम रहा था
“खुदा का ज़िक्र करें या तुम्हारी बात करें
हमे तो इश्क से मतलब उसी की बात करें…..”
सभी ग़ज़लों के बोल एक से बढकर एक. वसीम बरेलबी ,सुदर्शन फाकिर, यामिनी दास की ग़ज़लों को बोल एक से बढकर .नज़्म और ग़ज़ल अपने उनवान पर थी.मैं अपने प्रिय ग़ज़ल गायक के चेहरे के एक एक भाव और अदा देखकर मंत्रमुग्ध हो चुका था. उर्दू के अशआर को किस ख़ास नजाकत और अंदाज़ से पढ़ा जा सकता है ये तो कोई इस उम्दा फनकार से जाने. ग़ज़ल का दौर यूंही चलता रहा .मैं सफ़ेद गलीचे पर बैठा मंद मंद गुनगुना रहा था कि पीछे से मेरी पीठ पर हल्की-सी थपकी दी क्षण भर उस नाज़ुक स्पर्श की सिहरन से कांपता रहा पर जैसे ही मैंने अपने पीछे यामिनी जी के मुस्कुराते चेहरे को देखा तो मेरे चेहरे पर भी उसी तरह की भीनी मुस्कराहट आ गयी. वो पल भर मुझे देखती रही.
”फिर कहा कैसा लग रहा है चन्दन जी का कार्यक्रम ? वो मुझे देखती रहीं.
और हाँ आप चन्दन दा और मुझसे मिलकर ज़रूर जाना. उनके होठ फैले थे और चेरे पर नर्म मुस्कराहट थी.
करीब 7.30 तक प्रोग्राम योहीं चलता रहा. जैसे ही एक ग़ज़ल समाप्त होती सबके चेहरे चन्दन दा को निहारने लगते मानो अपने पसंदीदा ग़ज़ल गायक को पहली मर्तबा सुन रहे हों. अंतिम ग़ज़ल छेड़ते हुए चन्दन दा ने अपने हाथो को हवा में लहराते हुए आँखे मूँद ली और काफी लम्बा आलाप खींचा.स्टेज की रौशनी एक दम से बढ़ने लगी और केंद्र में चन्दन दा का चेहरा था. उनकी आदायगी कितनी सादगी थी जैसे एक-एक अलफ़ाज़ के भीतर छिपे गहरे मायने जैसे दिल की गहराइयों में उतरते जा रहे हों.अब उनके होठों पर आज की शाम की अंतिम ग़ज़ल थी.
“मैं इस उम्मीद में डूबा हु कि तू बचा लेगा
और इसके बाद मेरा इम्तिहाँ क्या लेगा…”
पूरा सभागार once more , once more के लिए आग्रह करने लगा .चन्दन दा खुलकर मुस्कुरा दिए पर हर एक की जुबां पर केवल once more , once more ही था. चन्दन दास जी ने बाई कलाई पर बंधी घड़ी में वक़्त देखा और सबको शांत करते हुए अंतिम अशआर कहने लगे. अशआर बकोल ग़ालिब था जिसको कहने में उनका ख़ास अंदाज़ को कभी नहीं भुलाया जा सकता. अशआर कुछ इस तरह था-
“मेहरबाँ होकर जब भी चाहो इनायत से बुला लो मुझको
मैं कोई गया वक़्त नहीं कि फिर लौट के आ ना सकूं..”
सब जहाँ भी बैठे थे वही खड़े होकर उनका अभिवादन करते रहे कोई उनपर गुलाब की नर्म पंखुड़ियां प्रेमवश गिराते रहे.मैंने भी आगे बढ़कर उनके गले में फूलों की माला दाल दी. उके सभी चाहने वाले अपने अपने खास अंदाज़ से उनसे रूबरू होते रहे. यामिनी जी माथे पर गिरे बालों को सहेजते हुए मेरे करीब आयी और कार्यक्रम के पश्चात मुझे उसी कमरे में जहाँ मैं दो घंटे पूर्व उनसे मिला था वहीँ आने के लिए आग्रह किया.चन्दन दास जी बारी-बारी से सबसे मिलते रहे उनकी खिली आँखों में खास कशिश थी जिसके कारण उनपर से नज़रें हटाना किसी के लिए भी नामुमकीन-सा हो रहा था.यामिनी जी दरवाजे पर हमारी राह जोत रही थी.लोग पतले गलियारे से धीरे धीरे वहां से बाहर की ओर गुनगुनाते हुए निकलने लगे.
चन्दन दास जी मेरे कंधे पर हाथ धरे मेरे साथ उसी कमरे की ओर चल पड़े. पीली रौशनी में उनका चेहरा चमक रहा था. उनके साथ-साथ चलते हुए मैंने एक बार फिर उनकी देह की कांपती हुई सिहरन को अनुभव किया. मैंने उनसे कुछ खास उर्दू अल्फाजों के मायनों को जानना चाहा तो उन्होंने उसे बहुत खूबसूरती व् बारीकी से बताया.
बरहम, इनायत, गुज़ारिश, सदा, सबब आदि काफी अल्फाजों को उन्होंने निहायत सुन्दर तरीके से समझाया जिससे मुझे एक पल लगा की वो उम्दा ग़ज़ल गायक ही नहीं बल्कि अच्छे शिक्षक भी हैं जिन्हें उर्दू का इतना गूढ़ ज्ञान है. वो शाम मेरे जीवन की एक बेहतरीन शाम थी जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता. उस रात उन्होंने मेरे प्रिय ग़ज़ल एल्बम (अरमान) को अपने प्यारे हाथो से भेट किया जिसे मैं जब भी सुनता हूँ क्षण भर के लिए उन्ही की महफ़िल में पहुँच जाता हूँ.
इसके उपरान्त मैं उनसे कई मर्तबा मिला. उनसे अक्सर फ़ोन पर बात होती है. चन्दन दास जी और यामिनी दास जी जब भी दिल्ली आते हैं मुझे जरुर याद करते हैं अब चाहे कमानी ऑडिटोरियम में बज़्म की शाम रही हो या भारतीय विद्या भवन की यादगार शाम उनका वही निराला अंदाज़ से रूबरू हो जाता हूँ.
मनोज शर्मा
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