नाज़िश की कलम से मजरूह सुल्तानपुरी की याद
फिल्म थी शाहजहाँ। गाना जो उस वक़्त हर ग्रामोफोन पर बजा- जब दिल ही टूट गया। हम जी के क्या करेंगें।
उन्हीं दिनों ज़िंदगी में किसी नाज़नीं की आमद हुई। अब महबूबा के अब्बा को शिकायत ठहरी। असरार ने शहर छोड़ दिया। सबका इलाज करने वाला जब मर्ज़ ए इश्क़ में मुब्तिला हुआ तो कोई चारागर (डॉक्टर) ना मिला।
मन में ज़हर डॉलर के बसा के,
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