“अम्मा जी! ननदोई जी के साथ हम होली नहीं खेलेंगे, उनके ढंग ठीक नहीं हैं।वो होली के बहाने इधर–उधर छूने लगते हैं!”
कहते–कहते शिप्रा का चेहरा क्रोध से भर गया …
“देख बहू! ननदोई बड़े आदमी हैं तुम्हारे.. अगर जरा-बहुत हाथ लग भी जाए , तो इग्नोर कर दिया करो, ऐसी बातें कही नहीं जाती हैं , औरतों को थोड़ा सहनशील होना चाहिये।” अपने मुँह में पान की गिलौरी रखते हुए शिप्रा की सास ने जवाब दिया …
“नहीं दादी! अबकि अगर फूफा जी ने मम्मी को जरा भी रंग लगाया तो जान लेना …सलाद की जगह उनका हाथ काट डालूॅंगी और सबूत भी नहीं छोड़ूँगी! खबरदार ! जो किसी ने मेरी माँ की तरफ आँख भी उठाई तो।”
अपने हाथ से चाकू की धार को छूते हुए शिप्रा की बेटी, जो कि एक शेफ थी, बीच में बोल पड़ी …
एक चुभन भरा सन्नाटा चीख पड़ा।

रश्मि लहर की लघुकथा - विरोध 3

रश्मि लहर
इक्षुपुरी कालोनी,
लखनऊ उत्तर प्रदेश
मो.9794473806

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