प्रो. सरोज शर्मा
अध्यक्ष
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान
नोएडा, उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान विश्व का सबसे बड़ा मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान है और वैश्विक स्तर पर इसकी पहचान में निरंतर वृद्धि हो रही है। स्कूली शिक्षा को नई दिशा देने के लिए अनेक नवाचार किये जा रहे हैं। जैसे– समसामयिक पाठ्यक्रमों का निर्माण, सांकेतिक भाषा का शिक्षण, भारतीय ज्ञान परंपरा एवं संस्कृति का अध्यापन, सूचना और प्रोद्योगिकी के माध्यम से सरल तरीके से शिक्षा की व्यवस्था इत्यादि। इसी क्रम में एक विशेष पहल है ‘विदेशों में हिंदी भाषा और संस्कृति का प्रसार’l देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में स्पष्ट रूप से निर्देशित है कि भारतीय भाषाओँ और परंपराओं के संवर्धन के लिए विशेष प्रयास होने चाहिए और यह संस्थान इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प है।
भाषा मात्र अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम ही नहीं है बल्कि व्यक्ति के भावों, विचारों, विश्वासों, रीति-रिवाज़ों, सभ्यता और संस्कृति की संवाहिका भी है। यदि भारत की संस्कृति और आचार-विचार के विभिन्न आयामों को जानना-समझना है तो हिन्दी भाषा और साहित्य को सीखना आवश्यक हो जाता है। साथ ही, यदि भारतीय जनमानस तक अपनी बात पहुँचानी हो तो हिंदी की शरण लेनी ही होगी। दैनिक जीवन में, राजनीति में, व्‍यवसाय में, टी.वी.चैनलों में, सोशल मीडिया में, फिल्मों में और इसी प्रकार के विविध क्षेत्रों में हिंदी का प्रभाव व्याप्त है।
यह परिलक्षित हो रहा है कि हिंदी धीरे-धीरे विश्‍व-भाषा का गौरव प्राप्त कर रही है। विश्‍व के अनेक देशों में हिंदी पढ़ी, लिखी ,बोली और समझी जाती है। यह विश्‍व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। आज हिंदी में विश्‍व की रुचि भारत में वैश्विक रुचि से प्रत्‍यक्ष रूप से संबंधित है। विदेशी भारत में काम करना चाहते हैं, अध्‍ययन करना चाहते हैं, नए कौशल सीखना चाहते हैं। यदि वे हिंदी जानते हैं तो उनके लिए किसी अन्‍य भाषा की भांति एक पूर्णतया नई दुनिया के द्वार खुल जाते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध भारत को देखने की उत्कंठा से बहुत बड़ी संख्या में पर्यटक भारत आते हैं। विदेशी नागरिक भारतीय समाज का प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहते हैं, भारतीय संस्‍कृति और रीति-रिवाज़ों को जानना चाहते हैं। हिन्दी सीखे बगैर भारत की धड़कन को समझना संभव नहीं है।
अपनी लोकप्रियता के कारण हिंदी बहुत समय से विश्‍व पटल पर छाई है। विश्व भर में रोजगार के लिए गए भारतीयों ने हिन्दी के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजीवित रखा है। हिन्दी के महत्व को देखते हुए विश्‍व के कई देशों, जैसे- मॉरीशस, अमेरिका, ट्रिनिडाड और टोबैगो तथा दुबई के रेडियो से हिंदी में समाचार व हिंदी फिल्‍मों के गीतों और वार्ता के प्रसारण का चलन भी बढ़ा है। इससे हिंदी की लोकप्रियता और अधिक बढ़ी है। नेशनल ज्‍यौग्राफिक और डिस्‍कवरी जैसे चैनल भी ज्ञान-विज्ञान से जुड़े अपने कार्यक्रम हिंदी में प्रसारित कर रहे हैं। विश्व भर में हिंदी की लोकप्रियता को बढ़ाने में फिल्मों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में सशक्‍तता से विकसित करने के लिए विदेशियों और हिंदीतर भाषी लोगों के लिये हिंदी का पठन-पाठन अत्‍यंत आवश्‍यक है। ऐसा देखा गया है कि औपचारिक विद्यालयी शिक्षा प्रणाली में भाषा अध्‍ययन करने के बाद भी हिंदीतर भाषी शिक्षार्थी परीक्षा तो पास कर लेते हैं, परंतु भाषा के व्यावहारिक उपयोग में कुशलता प्राप्‍त नहीं कर पाते। अनौपचारिक रूप से सीखी हिंदी औपचारिक विद्यालयों में द्वितीय भाषा के रूप में सीखी हिंदी से अधिक कारगर सिद्ध होती है।
भाषा एक प्रमुख उपकरण है जिसे हम वास्‍तविक समाज में व्‍यवहार करने के लिए सीखते हैं। द्वितीय भाषा के शिक्षार्थी को भी हिंदी भाषा का वास्‍तविक स्थितियों में प्रयोग करना आना चाहिए। कोई भाषा सीखना केवल शब्‍दों को जानना, व्याकरणिक अभ्‍यास करना मात्र ही नहीं, अपितु भाषा में सोचने के लिए अभिप्रेरित करना भी है। अतःऐसी पाठ्यचर्या तैयार की जाने की आवश्यकता है जो द्वितीय या तृतीय भाषा के रूप में संप्रे‍षण के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।
इसी संदर्भ में उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान ने एक नूतन प्रयोग करते हुए प्रारंभिक स्तर पर छहमाह की अवधि के लिए ‘आरंभिका’ पाठ्यक्रम विकसित किया है। इस पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषियों के साथ सामान्य बातचीत करने की क्षमता विकसित करना, आवश्यकताओं को व्यक्त करने की क्षमता विकसित करना है। साथ ही, अभिवादन, दैनिक गतिविधियों, सामान्य वस्तुओं की खरीदारी जैसी रोजमर्रा की स्थितियों में बातचीत करने की क्षमता विकसित करने के अलावा यह बाजारों, पर्यटन स्थलों आदि जहां हिंदी भाषा प्रचलित है, वहां स्वतंत्र रूप से व्यापार करने की क्षमता विकसित करने में सहायता करेगा। हिंदी के माध्यम से भारतीय समाज, जीवनशैली, संस्कृति, भोजन आदि का ज्ञान प्रदान करना भी इसका एक प्रमुख उद्देश्य है।
इस पाठ्यक्रम का लक्ष्य समूह किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति है जो प्रारंभिक स्तर पर हिंदी बोलना और वास्तविक परिस्थितियों में इसका उपयोग करना चाहता है। इसमें विदेशी नागरिक, विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के लोग और वे भारतीय जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है और हिंदी सीखना चाहते हैं, वे सभी शामिल हैं।
पाठ्यक्रम के विषय बहुत ही रुचिकर और ज्ञानवर्धक हैंl जैसे – मेरा परिचय, मेरा शहर, मेरा देश, मेरा घर, भारत का सफर, सिनेमा में हिन्दी फिल्म , त्योहारों का मौसम, ऋतुएं आदि। इन विषयों के माध्यम से एक ओर हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त होगा और दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पक्षों से परिचय भी होगा।
विश्व हिंदी सम्मेलन में ‘आरंभिका’ का लोकार्पण फ़िजी के राष्ट्रपति महामहिम रातु विलियम मायवालिली कातोनिवेरे और भारत के माननीय विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर के कर-कमलों द्वारा किया गया। ‘आरंभिका’ पाठ्यक्रम उन सभी व्यक्तियों के लिए लाभदायक है जो हिंदी सीखना चाहते हैं और जिनकी प्रथम भाषा या मातृभाषा हिंदी नहीं है। इस पाठ्यक्रम के माध्यम से वे विभिन्न स्थितियों में हिंदी में सामान्य वार्तालाप कर सकेंगे और भारत के रहन-सहन और संस्कृति की भी एक झलक प्राप्त करेंगे। संवाद शैली में तैयार किया गया यह पाठ्यक्रम अन्य देशों के नागरिकों के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों को भी भारत से जुड़ने का अवसर प्रदान करेगा। इसके प्रवेश पोर्टल का शुभारंभ किया गया
जिसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं:
  • इस पोर्टल के माध्यम से विश्व के किसी भी हिस्से से इस पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया जा सकता है।
  • इसमें प्रवेश पूरी तरह से ऑनलाइन है।
  • शिक्षार्थियों का मूल्यांकन भी ऑनलाइन किया जाएगा।
  • पाठ्यक्रम के माध्यम से हिन्दी भाषा सीखने के साथ–साथ भारतीय संस्कृति की भी झलक प्राप्त करेंगे।
  • संवाद शैली में तैयार किया गया यह पाठ्यक्रम अन्य देशों के नागरिकों के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों को भी भारत से जुड़ने का अवसर प्रदान करेगा।
विदेशों में भाषा एवं संस्कृति के प्रसार के लिए प्रवासी भारतीय प्रकोष्ठ की स्थापना भी की गयी है। इसके माध्यम से हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए पिछले तीन वर्षो में अनेक संगोष्ठियो का आयोजन किया गया, जिनमें 20-25 देशों के राजदूत, हिंदी विद्वान और बच्चों ने हिस्सा लिया।
एनआईओएस द्वारा अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से विविध देशों में हिंदी भाषा के प्रसार और भारतीय संस्कृति से परिचित कराने का लक्ष्य है। साथ ही ‘आरंभिका’ पाठ्यक्रम को प्रसारित करने की योजना है ताकि अधिक से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो सकें। इसी प्रकार के अन्य उपयोगी कदम भाषा और संस्कृति के पोषक बनेंगे।

1 टिप्पणी

  1. कल ही हमने आचार्य राजेश कुमार जी से मुक्त विद्यालय के बारे में जानना चाहा था।
    वे राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षण संस्थान भारत सरकार के २०१७ तक निदेशक रहे। और आस विद्यालय मुंबई के परामर्शदाता रहे। हम दोनों के ही बारे में जानना चाहते थे और आज ही यहाँ पर विस्तृत जानकारी मिल गई।
    आदरणीय सरोज शर्मा जी! आपका तहेदिल से शुक्रिया। यह एक बेहतरीन पहल है ।काश कि हम इसमें कुछ सहयोग कर पाते।
    बहुत विस्तार से आपने इसे समझाया है।
    इस जानकारी को उपलब्ध कराने के लिए पुरवाई का, विशेष तौर से तेजेंद्र जी का बहुत-बहुत शुक्रिया, आभार।
    हिंदी के लिए कितने काम हो रहे हैं लेकिन फिर भी एक बात समझ में नहीं आती; अगर हिंदी विश्व की तीसरी भाषा है। तो यह देश की पहली भाषा क्यों नहीं बन पा रही और इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं मिल रहा? इस क्षेत्र में भी प्रयास करना जरूरी है!
    हमें इंग्लिश बहुत अच्छी नहीं आती इस बात का बहुत दुख है लेकिन शर्म नहीं आती। हिंदी हमें बहुत अच्छे से आती है इस बात पर हमें गर्व है।
    पर फिर भी सभी भाषाएँ सीखने योग्य हैं जितना आप सीख सकें। हिंदी भाषा की एक खासियत है कि अगर आपकी हिंदी अच्छी है तो थोड़ी भी सही लेकिन आप भारत की अन्य कई भाषाओं को भी समझ सकते हैं
    एक बार पुनः शुक्रिया पुरवाई का। वैश्विक स्तर पर इसका प्रचार इतने अच्छे से हो रहा है यह पढ़कर अच्छा लगा।
    आपका यह लेख हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।

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