विज्ञान व्रत की पाँच ग़ज़लें
कुछ नायाब ख़ज़ाने रख
जिनका तू दीवाना हो
आख़िर अपने घर में तो
मुझसे मिलने – जुलने को
वरना गुम हो जाएगा
वो सितमगर है तो है
आप भी हैं मैं भी हूँ
जो हमारे दिल में था
दुश्मनों की राह में
एक सच है मौत भी
पूजता हूँ बस उसे
मैं था तनहा एक तरफ़
तू जो मेरा हो जाता
अब तू मेरा हिस्सा बन
यों मैं एक हक़ीक़त हूँ
फिर उससे सौ बार मिला
जुगनू ही दीवाने निकले
ऊँचे लोग सयाने निकले
वो तो सबकी ही ज़द में था
आहों का अंदाज़ नया था
जिनको पकड़ा हाथ समझ कर
मैं जब ख़ुद को समझा और
यानी एक तजुरबा और
होती मेरी दुनिया और
मुझको कुछ कहना था और
मेरे अर्थ कई थे काश
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विज्ञान व्रत नाम थोड़ा अजीब लगा ।हम तो विषय समझे थे।
यह वास्तविक नाम है या उपनाम है यह जानने की उत्सुकता है?
पाँचो ही गजलें बहुत अच्छी लगी। और पांचो की गजलों से एक-एक शेर-
वरना गुम हो जाएगा
ख़ुद को ठीक ठिकाने रख।
आप भी हैं मैं भी हूँ
अब जो बेहतर है तो है।
फिर उससे सौ बार मिला
पहला लम्हा एक तरफ।
आहों का अंदाज नया था
लेकिन ज़ख्म पुराने निकले।
मेरे अर्थ कई थे काश!
तू जो मुझको पढ़ता और।
बेहतरीन गजलों के लिए आपको बहुत-बहुत सारी बधाइयाँ। और पढ़वाने के लिए पुरवाई का शुक्रिया तो बनता है।
हर शेर पर दाद देने को जी चाहे।उम्दा गजलें कही हैं विज्ञान जी ने।आपकी और भी गजलें पढ़ने की ख़्वाहिश जगी है।