Monday, May 20, 2024
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संपादकीय – ब्रिटेन में सेक्युलेरिज़्म ख़तरे में नहीं पड़ता

एक भारतवंशी होने के नाते जो कि आज ब्रिटिश नागरिक है, मैंने लंदन का हर समाचारपत्र खंगाल मारा, किसी भी अख़बार में कहीं भी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की इस यात्रा पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। यहां किसी विपक्षी नेता ने किसी प्रकार का फ़तवा जारी नहीं किया था। यह देश है जहां चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड का महत्वपूर्ण किरदार है। मगर ऐसा है यह देश कि उसे अपने देश के प्रधानमंत्री को स्वयं को हिन्दू कहने में किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है।

मित्रो अपनी पत्नी इंदु की मृत्यु से पहले मैं रोज़ाना नहाने के बाद पूजा किया करता था। घर की रसोई में ही एक छोटा सा मंदिर बना रखा था। इंदु के जाने के बाद भी शायद कुछ महीने तक पूजा का सिलसिला जारी रहा। इंदु आर्यसमाजी थी मगर मेरे साथ भगवान शिव की पूजा करने में उसे कभी किसी प्रकार की कठिनाई महसूस नहीं हुई।
हम मुंबई के यारी रोड, वरसोवा इलाके में रहते थे। हमारी बिल्डिंग के ठीक साथ वाली बिल्डिंग में एक छोटी सी मस्जिद थी जहां सुबह दोपहर शाम रात अज़ान लाऊडस्पीकर के ज़रिये सुनाई देती थी और एकदम झटका सा लगता था। कुछ ऐसा महसूस होता था कि लाउडस्पीकर हमारे घर में बज रहा हो।
मैं एअर इंडिया में फ़्लाइट परसर के पद पर कार्यरत था और मेरी छवि एक ख़ासे मॉडर्न किस्म के इन्सान की थी जो पूरी दुनिया में घूमा करता था। एक दिन मैं नहा कर निकला और दरवाज़े पर घंटी बजी। मैं अपनी सोसाइटी का चेयरमैन भी था। सामने एक मुस्लिम लड़का खड़ा था। उसने मुझ से कहा कि सोसाइटी के बारे में कुछ बात करनी है। मैंने बहुत प्यार से जवाब दिया, “बेटा मैं नहा कर निकला हूं। बस दस पंद्रह मिनट पूजा में लगेंगे। आप बीस मिनट के बाद आइयेगा और हम आराम से आपकी बात सुनेंगे।”
मेरा जवाब सुन कर उस लड़के के चेहरे पर ख़ासी हैरानी के भाव उभर आए, “अंकल, आप भी पूजा करते हैं? आप तो इतने मॉडर्न आदमी हैं!”
और मैं हैरान था कि दिन में दो या तीन बार मस्जिद जाकर नमाज़ पढ़ने वाले युवा को मेरा पूजा करना कुछ अजीब सा लगा। क्या वह ऐसा ही सवाल किसी मुस्लिम से पूछ सकता था कि अंकल आप तो इतने मॉडर्न हैं फिर आप मस्जिद जाकर नमाज़ क्यों पढ़ते हैं?
तो मुंबई जैसे महानगर की भी सोच ही है कि किसी पढ़े लिखे मॉडर्न हिन्दू को पूजा नहीं करनी चाहिये। केवल पिछड़े वर्ग के हिन्दू ही पूजा-अर्चना करते हैं। और ख़ास तौर पर हिन्दी बेल्ट में तो हिन्दुओं के मंदिर जाने से सेक्युलरिज़्म ख़तरे में पड़ जाता है। अपने निजी कारणों से मैं अब नहाने के बाद पूजा नहीं करता मगर यह मैं किसी डर या अपराधबोध के कारण नहीं करता… बस इंदु के जाने के बाद पूजा करने में दिल नहीं लगता था।
मैंने अपने जीवन की यह घटना अपने पाठकों के साथ इसलिये साझा की क्योंकि अचानक एक व्यक्ति के मोरारी बापू की रामकथा में शामिल होने से भारतीय मीडिया में काफ़ी हलचल सी मच गई है। हुआ कुछ यूं है कि मोरारी बापू केंब्रिज इलाके में रामकथा कर रहे थे और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक वहां मोरारी बापू से कथा सुनने और उनका आशीर्वाद लेने के लिये पहुंच गये। कमाल की बात यह है कि ब्रिटेन के अंग्रेज़ों को इससे किसी प्रकार असहजता नहीं महसूस हुई और न ही विपक्षी दलों ने अपने प्रधानमंत्री पर तंज़ कसे।

हिंदू धर्म के अनुयायी और भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने मोरारी बापू की व्यास पीठ पर पुष्पांजलि अर्पित की और जय श्रीराम का नारा भी लगाया। सुनक ने ‘रामकथा’ में जुटी भीड़ के सामने अपना संबोधन शुरू करते हुए कहा, ‘‘बापू, मैं यहां पर एक प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि एक हिन्दू के तौर पर आया हूं। ”
ऋषि सुनक आम आदमी की तरह बापू के सामने कुर्सी पर बैठे। उन्होंने मोरारी बापू को संबोधित करते हुए कहा कि एक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करना बड़ा कठिन होता है, इसलिए मुझे आशीर्वाद दें। उन्होंने कहा कि मुरारी बापू की रामकथा में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर उपस्थित होना मेरे लिए सम्मान और खुशी की बात है।
ऋषि सुनक ने मुरारी बापू से कहा कि जैसे आपके मंच पर गोल्डन हनुमान जी का चित्र है, उसी तरह 10 डाउनिंग स्ट्रीट में, मैं अपनी डैस्क पर भगवान गणेश जी की एक मूर्ति रखता हूं और इस पर मुझे गर्व है। उन्होंने कहा, “बापू आपके आशीर्वाद से हमारे ग्रंथों ने जो एक लीडर के लिए काम सुझाए हैं, वो मैं करने का प्रयास कर रहा हूं। आपकी ऊर्जा मुझे प्रेरणा देती है। आपने पिछले हफ़्ते भारत में बारह ज्योतिर्लिंग में घूम घूमकर रामकथा की और इसके लिए बारह हज़ार किलोमीटर का भ्रमण किया। मैं सोचता रहा कि काश मैं भी उस यात्रा में वहां मौजूद होता।”
ब्रिटिश प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए मोरारी बापू ने भगवान हनुमान का आशीर्वाद लिया और सुनक के ज़िम्मेदारियों को सुविधाजनक बनाने के लिए शक्ति की कामना की। कथा की शुरूआत में उन्होंने ऋषि सुनक की सराहना भारतीय मूल एक इन्सान के रूप में की। उन्होंने बताया कि सुनक का नाम श्रद्धेय ऋषि शौनक से लिया गया है। उन्हें सुनक को प्रधानमंत्री की भूमिका में देखकर बहुत ख़ुशी मिलती है। मोरारी बापू ने प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को सोमनाथ से लाया गया एक पवित्र शिवलिंग भी भेंट किया।
इस अवसर पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि उनकी हिंदू आस्था उनके जीवन के सभी पहलुओं का मार्गदर्शन करती है और देश के शासनाध्यक्ष के तौर पर बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती है।
कार्यक्रम के दौरान ऋषि सुनक ने कहा कि उन्हें ब्रिटिश और हिंदू होने पर गर्व है। इस दौरान प्रधानमंत्री सुनक ने अपने बचपन के उस समय को याद किया जब वह अपने परिवार के साथ मंदिर जाया करते थे। उन्होंने रामकथा के बाद मंच पर आयोजित आरती कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।
ऋषि सुनक ने कहा, “धर्म को लेकर विश्वास मेरे लिए बहुत व्यक्तिगत विषय है। यह मेरे जीवन के हर पहलू में मेरा मार्गदर्शन करता है। प्रधानमंत्री बनना एक बड़ा सम्मान है, लेकिन यह एक आसान काम नहीं है। कठिन निर्णय लेने होते हैं, कठिन विकल्पों का सामना करना पड़ता है। मेरा विश्वास है ये मुझमें अपने देश के लिए सर्वश्रेष्ठ करने का साहस, शक्ति और लचीलापन देता है.”
अपने परिवार के आप्रवासी इतिहास का संदर्भ देते हुए, सुनक ने बताया कि कथा में एकत्रित सैकड़ों लोगों में से कितने लोगों के माता-पिता और दादा-दादी थे, जो भारत और पूर्वी अफ्रीका से बहुत कम पैसे लेकर ब्रिटेन आए थे और उन्होंने अपनी पीढ़ी को अब तक के सबसे महान अवसर देने के लिए काम किया।
अपने बचपन को याद करते हुए ऋषि सुनक ने कहा, “बड़े होते हुए, मेरे पास साउथेम्प्टन में हमारे स्थानीय मंदिर में जाने की बहुत अच्छी यादें हैं। मेरे माता-पिता और परिवार हवन, पूजा, आरती का आयोजन करते थे। उसके बाद, मैं अपने भाई-बहन और चचेरे भाइयों के साथ दोपहर का भोजन और प्रसाद परोसने में मदद करता था।”
और यही काम उन्होंने मुरारी बापू की रामकथा के दौरान भी किया। वे भक्तों को अपने हाथों से भोजन परोस कर दे रहे थे। भक्तों को अवश्य ही उस दिन का प्रसाद अधिक स्वादिष्ट लगा होगा क्योंकि भोजन परोसने वाला और कोई नहीं उनके देश का प्रधानमंत्री था।
एक भारतवंशी होने के नाते जो कि आज ब्रिटिश नागरिक है, मैंने लंदन का हर समाचारपत्र खंगाल मारा, किसी भी अख़बार में कहीं भी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की इस यात्रा पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। यहां किसी विपक्षी नेता ने किसी प्रकार का फ़तवा जारी नहीं किया था। यह देश है जहां चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड का महत्वपूर्ण किरदार है। मगर ऐसा है यह देश कि उसे अपने देश के प्रधानमंत्री को स्वयं को हिन्दू कहने में किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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64 टिप्पणी

  1. संपादकीय – ब्रिटेन में सेक्युलेरिज़्म ख़तरे में नहीं पड़ता!!! जी हां,विकसित विकासशील और अविकसित राष्ट्रों और उनके निवासियों को आईना दिखाया एक और बेजोड़ बेमिसाल नज़ीर पेश करते ,ये कलम का इंद्रधनुष! काश भारतीय मीडिया भी हम इसी धरती के लोगों को यही अहसास सत्यता के खरे पन से ओतप्रोत करता। हिंदू एक संस्कृति एक जीवन शैली और सभी को समेटने में पूर्णतया सक्षम ,,,यही साबित होता है,,,,यह देश की संस्कृति को भी मजबूती से उकेरता है कि धर्म या अपनी सहज भाषा उर्दू में मज़हब कहां है यहां!?
    बस आत्मनिर्भरता ,अमृतकाल और वैसुधैव कुटुम्बकम के शंखनाद में सभी कुछ छोड़ कर अपने और राष्ट्र के कल्याण और फिर एक विश्व और एक नागरिक बनना और बनाना है।
    आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी को हृदय से आभार और बधाई ।

    • आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है भाई सूर्यकांत जी। यह संपादकीय को समझने में मदद करेगी। आभार।

  2. हमारे देश में खुद को हिन्दू कह देने भर से सेकुलरिज्म खतरे में पड जाता है और जय श्री राम बोलना आतंकवाद कहलाता है।असल में हमारे देश में हिन्दू अपने.धर्म के प्रति आस्था भी नहीं जता सकता क्योंकि यहाँ के बुद्धिजीवियों ने ऐसा ही माहौल तैयार किया है।हिन्दू धर्म के प्रति घृणा का भाव इसके पीछे का मूल कारण है।
    ऋषि सूनक एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री हैं जहाँ चर्च का स्थान महत्वपूर्ण है लेकिन इसके बावजूद वहाँ पर ऋषि सूनक का अपने धर्म के प्रति आस्थावान होना किसी विवाद की वजह नहीं बना।
    यह एक परिपक्व सोच वाले देश में ही संभव है।
    बहुत अच्छा संपादकीय है सर।

  3. बहुत अच्छा सम्पादकीय। यह हमारी आस्था को बल देता है। हृदय की विशालता भारतीयता और हिन्दू धर्म की पहचान है।

  4. अरे जो देश नई-नई विचारधाराओं को जन्म देता है उनके लिए सतयुग कलयुग की पुरातन विचारधारा कोई मायने नहीं रखती और वे इसका विरोध भी नहीं करते यह बात आपको अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए।
    जब अंग्रेज लोग भारत में 300 वर्षों तक रहे थे तो हम सब जानते हैं उनमें से कितने लोग हिंदू विचारधारा से प्रभावित होकर हिंदू हो गए आपका आलेख संप्रदायिकता से भरा पड़ा है इसमें अपने अहंकार की झलक नजर आती है

  5. आपके संपादकीय कभी चौंकाने हैं.कभी भावुक करते और कभी सोचने पर विवश करते हैं परन्तु आज तो निशब्द हूं..क्या ऐसा भी हो सकता है.जहां राम हों..रामकथा हो.और कोई विवाद न ही..एक भारतीय मूल का प्रधानमंत्री अपनी जडों से जुडकर पूजा में भाग लें .सारे विधान संपन्न करे.यह सुखद आश्चर्य क्यो लगता है आज ? धर्म नितांत व्यक्तिगत है.और होना भी चाहिए..मेरे घर में रामकथा .सुंदरकांड का पाठ .तीज.छठ व्रत जितना स्वाभाविक है उतना ही क्रिसमस पर स्वस्तिक के द्वारा क्रिसमस ट्री सजाना.केक काटना.जो वह स्कूल.में या टीवी पर देखता है..या स्कूल में वेदमंत्रों का पाठ..तो क्या यह राजनीतिक छल है जो सारे विवाद की जड है…आपका संपादकीय सारे.भारत के प्रबुद्ध लोगो और विश्व बंधुत्व की मान्यता को गौरवान्वित करता है..एक बार फिर आपके सूक्ष्म सुलझे दृष्टिकोण की कायल हो गई..बहुत बहुत बधाई. आभार भाई..आपने आज बहुत कुछ सिखाया विश्व को…सादर प्रणाम

  6. हमारा इतिहास गुलामी का इतिहास रहा है इसलिए गर्व से कहना कि हम सनातनी हैं हम भूल चुके हैं । अब हिन्दू होना और उस अस्तित्व को गर्व से स्वीकारना पिछड़ापन या फिर धर्म कट्टरता बन गया है खासकर भारत में ।
    सेकुलरिज्म के नाम पर हिंदू धर्म का विरोध किया जाता है परंतु अब स्थितियां बदल रही हैं । अब हिंदू गर्व से कह पाता है कि वह हिंदू है ।
    आपने बिल्कुल सही कहा कि धर्म किसी का भी व्यक्तिगत मामला है । वह बिना किसी ग्लानि के अपने धर्म में प्रवृत्त हो सकता है परंतु भारत में स्थिति बहुत बुरी है सेकुलरिज्म के नाम पर हिंदू ही हिंदू के विरोध में खड़ा है।
    आपका संपादकीय पढ़कर बहुत अच्छा लगा मन का उबाल शांत हो गया।

  7. आदरणीय संपादक महोदय
    तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ,( सेक्युलर )लोगों के लिए अत्यंत ‘लाभकारी ‘संदेश आपने अपने संपादकीय के माध्यम से दिया है, हार्दिक धन्यवाद एवं बधाइयां!
    मेरा स्पष्ट मत है कि यह थोथा और दिखावटी सेकुलरिज्म केवल ‘दासत्व’ की मानसिकता है !मुगलों और ब्रितानियों ने हम पर शासन करते हुए निरंतर हमारे धर्म को नीचा दिखाने का प्रयत्न किया , हमारी आस्थाओं और प्रथाओं पर चोट कीऔर ‘दास’ जनता उत्पीड़न से या तो धर्म बदल कर मुस्लिम हो गई या लालच में पड़ कर ईसाइयत कबूल कर ली। जो ऐसा न कर सके उनके हृदय में सेक्युलरिज्म उत्पन्न हो गया क्योंकि ना तो उनमें इतना साहस था कि वे धर्म बदलते और ना इतना स्वाभिमान कि वे अपने धर्म को आदर की दृष्टि से देखते।
    जो साहस और स्वाभिमान से परिपूर्ण जनता थी वह आज भी हिंदू है और गर्व से अपने धर्म में आस्था और विश्वास रखती है।
    यहां हमारे देश आजकल टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले साक्षात्कार जब होते हैं ,तब एंकर अतिथि से पूछता है कि ‘देश धर्म से चलना चाहिए या संसद से ?’इस प्रश्न को सुनकर मेरी आत्मा रोती है कि ऐसे लोगों को शायद सनातन से चले आते भारतीय ‘धर्म’ का कोई ज्ञान ही नहीं है ।वास्तविक हिंदू वही है जो धारण करने योग्य धारणाओं को धारण करता है और उनका अपने जीवन में निर्वाह करता है!
    वास्तविक संसद का निर्माण धर्म के आधार पर ही होता है। यदि न्यायालय न्याय नहीं करता तो वह भी अधर्म करता है हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे उदार ,सर्वव्यापी ,मानव हितकारी हिंदू धर्म वाली परंपरा में जन्मे हैं।
    अति उपयोगी संपादकीय के लिए एक बार फिर हार्दिक साधुवाद।

    • सरोजिनी जी आपने अपनी टिप्पणी में बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं। पुरवाई के पाठक अवश्य इनसे लाभान्वित होंगे। आभार।

  8. यदि प्रत्येक हिंदू सुनक के इस व्यक्तित्व को समझ ले, तो निश्चय ही हर हिंदू को अपने हिंदुत्व और हिंदू होने पर गर्व होगा। उसके बाद कोई तथाकथित हिन्दू धर्मनिरपेक्षता की ढोल पीटकर हिंदुओं में विभाजन नहीं करेगा।

  9. Your Editorial applauds both the Prime Minister n the general public of UK.
    And rightly so.
    Rishi Sunak feels free to speak what he believes in n the Britishers give him full freedom to profess his religion !
    Very heartwarming indeed to appreciate it all with you.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  10. आज का संपादकीय वास्तव में हृदयस्पर्शी है । नाम लिए बिना आप ने इस में धर्म निरपेक्षता और निष्पक्षता के नाम पर बवाल मचाने वाले अयाचित तत्वों की अच्छी धज्जियां उड़ाई हैं और इस के लिए आप साधुवाद के पात्र भी हैं। आदरणीय
    यहां के इलेक्ट्रानिक मीडिया या तथाकथित भारतीय मीडिया ऐसे इवेंट्स को तूल दे कर प्रसारित करता है क्योंकि भारतीय दर्शक भारतीय श्रोता भारतीय पाठक भावविभोर होकर इसे देखता सुनता और पढ़ता है … आपके यहां लोगों में वर्क कल्चर का कतई अभाव नहीं और अपने काम में लोगों का दिल लगता है ।काम से निकल कर लोग अपना मनोरंजन करते और दायित्व वहन कर संतुष्ट रहते हैं परन्तु अधिकांश स्तर पर भारतीय मानसिकता सदैव उस तरफ आकर्षित होती हैं जिसका उनकी जाती जिंदगी से कुछ लेना-देना नहीं… उन्हें कुछ नया चाहिए हर-दिन, मसालेदार सुनने को , डिस्कस करने को और कुछ दिनो में भूल जाने को … सो ऋषि सुनक प्रधानमंत्री के तौर पर कितना महत्वपूर्ण काम करते हैं यह आपके वर्तमान देश के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है.. उनके निजी जीवन, धर्म, संस्कार,सोच, दृष्टिकोण, कर्मकांड का उन पर प्रभाव नहीं। इसलिए बेचारे विदेशी मीडिया को इसे भुनाने का अवसर भी नहीं मिलता । यह वास्तव में बहुत सराहनीय भी है । मैं भारतीय परिवेश को और नहीं कोसूंगी क्यों कि मुझे इसी में रह कर अपने स्तर पर जितना हो सके सुधार करना होगा। यही मेरी भारतीयता है।

    आपने अपने कुछ निजी अनुभव सांझा किये … आपके जीवन में आदरणीया इंदु जी के परलोकवासी के पश्चात आयी रिक्तता ने आप को एकांतवासी बना दिया है… शायद जहां केवल आप ही सहज हो किसी दूसरे भाव का अभाव अब आपको नहीं खलता । ऐसा मानव स्वभाव है भी ।
    सबसे ख़तरनाक और चिन्तानीय व चिन्तननीय है वह तथ्य जो एक मुस्लिम युवक के एक प्रश्न से आपके सजग सृजक मस्तिष्क में पैदा हुआ कि क्या किसी पढ़ें लिखे माडर्न हिंदू को पूजा नहीं करनी चाहिए ? ” जबकि यही सवाल वह अपने समुदाय के उच्च शिक्षित,वैल सैटल्ड और वैल प्लेसड किसी व्यक्ति से करने का साहस नहीं कर सकता। यही वास्तविकता है और यही मानसिकता हमें और आपको ( क्यों कि आप साहित्यकार हैं और अपनी लेखनी से जनमत का निर्माण करते हैं) को बदलनी होगी ।
    जब यह मानसिकता बदलेगी तब भारत में भी फर्क नहीं पड़ेगा कि उनके राजनेता किस धर्म के हैं।

    • किरण जी आपने संपादकीय को पूरी तरह से खंगाल कर विस्तृत और सारगर्भित टिप्पणी लिखी है। हार्दिक आभार।

  11. एक “मॉडर्न” समझे जाने वाले हिंदू का पूजा करना किसी को भी अचंभित कर देता है __ ऐसा माहौल किसी एक साल या शतक के परिवर्तन का परिणाम नहीं हो सकता । किसी ” सोचे समझे षड़यंत्र” की भांति सालों-साल लगाये गये होंगे ऐसी सोच तैयार करने के लिए । सोच बदलने के लिए शिक्षा का सहारा सर्वाधिक लिया गया होगा। गहराई में उतरें तो कारण स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे। ऊपर से राजनैतिक माहौल का छिछोरापन , विपक्षी दलों की अपरिपक्वता और तथाकथित बुद्धिजीवियों (एक विशेष वर्ग की ओर इंगित) की सतही बुद्धि और दोगलापन माहौल को तीव्रता से बिगाड़ने में अत्यधिक सहायक हैं ।
    परिवर्तन की शुरुआत कहां से हो, पता नहीं , लेकिन ऋषि सुनक से भारतवासियों को प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए।
    विचारोत्तेजक संपादकीय के लिए साधुवाद!

  12. हिंदी न्यूज़ चैनल में चलने वाले ‘संवाद’ या कहें ‘मात्र विवाद’ के किसी कार्यक्रम में एक जनाब मोरारी बापू को सबसे बड़ा ‘सेक्यूलर’ कह रहे थे, क्योंकि वे अपने प्रवचनों में उर्दू शायरों के शेर बोलते हैं । ऐसी हास्यास्पद टिप्पणी पर उन श्रीमान की बुद्धि पर तरस खाने के सिवा क्या किया जा सकता था?

    • यह विरोध मुरारी बापू की राम कथा में अललाह हु की कव्वाली के पथ के बाद से शुरू हुआ और उसके बाद से उनके फॉलोवर में बहुत बड़ी कमी आयी गई। उन्हें भी जो कि एक धार्मिक व्यक्तित्व हैं हर कदम सोच कर उठाना चाहिए

  13. इस उत्तम संपादकीय टिप्पणी के लिए आपको साधुवाद। अंग्रेज‌ चाहे‌ जैसे हों, वे अपने कानून की मर्यादा और नागरिकों की निजता का सम्मान करते हैं। ऋषि सुनक भारत में होते‌ तो यहाँ के कुटिल राजनेता उन्हें किसी गाँव का प्रधान भी न बनने देते।
    यह अंग्रेजों की उदारता ही है कि आद हिन्दू‌ धर्मावलंबियों की अच्छी‌- खासी संख्या‌ ब्रिटेन में है।
    ईसाइयत‌ को ऋषि सुनक से‌ शिकायत न हो, ऐसा तो चाहे हो‌ भी जाए, पर इस्लाम को जरूर कुछ खटका होता होगा।

    सेक्युलर होना या कहलाना‌ भारत‌ में‌ आधुनिक होने का पैमाना‌ मान लिया गया है। कितना बड़ा‌ दुर्भाग्य है इस देश का!

  14. जिन्हें अपने धर्म और संस्कृति की समझ है वे ही उसे साथ लेकर चल रहे हैं, चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहते हैं। देश में रहते हुए भी जो अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से अनभिज्ञ हैं और फिर भी आधे अधूरे और अधकचरे ज्ञान के आधार पर उसकी भर्त्सना करते हैं, उन्हें कुछ पल ठहरकर इस बात पर गौर करना चाहिए और समझना चाहिए।
    आपने इसे संपादकीय में लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साधुवाद

    • शिवानी आपकी टिप्पणी हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि युवा पीढ़ी की ओर से है।

  15. संपादकीय बहुत ही सारगर्भित है , इसमें कुछ छोटे छोटे जीवन पाठ हैं . केवल पूजा करने से कोई व्यक्ति धार्मिक नहीं हो जाता है . धर्याति इति धर्मा. लेकिन अपनी परंपरा और संस्कृति के साथ जुड़ना अच्छी बात है

  16. सम्पादकीय प्रासंगिक है ,इंग्लैड में धर्म, प्रेम, विवाह ये सभी मामले व्यक्तिगत रुचि के होते हैं इसलिए इंसान के काम या पद को अलग नज़र से देखने की परंपरा है ,किसी के व्यक्तिगत जीवन से
    मीडिया को कोई लेना देना नहीं ।
    जिस कार्य को करने के लिए नियुक्त किया गया है या चुना गया है बस उस कार्य के प्रति निष्ठावान होना जरूरी है ।
    अनुशासन ही विकास को परिभाषित करता है ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी आप तो ब्रिटेन में कई बार आ चुकी हैं। यहां के समाज को समझती हैं। हार्दिक आभार।

  17. बहुत बढ़िया लिखा है।
    आप के प्रधानमंत्री सब के लिए मिसाल है।
    गर्व से कह सकते हैं कि हम हिंदू हैं और हिंदू लोगों में धर्म के प्रति श्रद्धा कूट कूट कर भरी है।
    अपनी परंपरा और संस्कृति के साथ जुड़ा यह बहुत बड़ी बात है।
    धन्यवाद

  18. रविवार और सम्पादकी, जैसे भोर और रौशनी… कभी झकझोरता हुआ, कभी चेताता हुआ और कभी साहस और प्रेरणा देता, जीवन का एक हिस्सा बन गया है। पढ़ तो सुबह सवेरे ही लिया था, लेकिन लिखने का समय अब मिला, सबसे पहले आभार और आपकी लेखनी को शुभकामनायें।
    दासता से अधिक सेकुलर बना दिया गाँधी और शासन में आयी विदेशी और मुस्लिम परस्त कॉन्ग्रेस ने। विजातीय गाँधी नेहरू परिवार के शासकों ने।
    हिंदुओं के लिए बने देश में हिंदू निर्वासित से डरे हुए सांँस लेते रहे। शासक और संभावित शासक हिन्दुओं को दबा कर मुस्लिमों की आराधना कर के शासन का मार्ग खोजते रहे। रास्ता गाँधी ने दिखाया था नेतागीरी चमकाने के लिए।
    अच्छा है ब्रिटेन इसाई राष्ट्र है सेकुलर नहीं। इसीलिए वहांँ की विपक्षी पार्टियांँ और समाचार पत्र शान्त रहे। श्री सुनक जी के साहस और आस्था की प्रशंसा करती हूं,वैसे श्री सुनक को भी इसका लाभ मिलेगा, वहां भारतीय मूल के काफ़ी मतदाता हैं और भारत से राजनीतिक रिश्तों पर भी थोड़ा मरहम लग गया होगा। एक राजनीतिज्ञ के तौर पर यह अच्छा कार्य था।
    काश आपका सन्देश भारत के प्रमुख न्यूज़ चैनल में दिखाया जाता तो केजरीवाल, ममता बनर्जी, अखिलेश और स्टालिन जैसों को कुछ सीखने को मिलता। रवीश जैसे पत्रकार भी कुछ देर सोचते। धनयवाद

  19. प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का मुरारी बापू द्वारा सुनाई जा रही श्री राम कथा में जाना व्यक्तिगत निष्ठा है। जिस पर वास्तव मे कोई सवाल उठाना बनता भी नहीं है। क्यूंकि धर्म पूर्णतया निजी होता है। किन्तु मॉडर्न होकर भी पूजा पाठ पर पूछा गया सवाल देश के उस माहौल को उजागर करता है जिसमें तथाकथित सेक्युलरिज्म घुसा हुआ है। सेक्युलरिज्म का कीड़ा हिन्दू धर्म को निजी नहीं रहने देता। तिस पर हमारा मीडिया भी अक्सर आधारहीन विवादित चर्चा में पारंगत दिखाई देता है। ब्रिटेन का विपक्ष और जनता इस परिपक्व सोच के लिए बधाई के पात्र हैं।
    भारतीय स्थिति उस एक प्रश्न में स्पष्ट परिलक्षित है। सादर

  20. मैं भी छुट्टी लेकर 2 घंटे की ड्राइव कर कथा में पहुंचा था। ऋषि सुनक नें जो कहा उस के लिए हिम्मत चाहिए। अभी ऊपर कमेंट् में किसी नें इस आलेख के लिए आपको साम्प्रदायिक घोषित कर दिया। हिन्दुओं की यही स्थिति है।

    • मज़ेदार बात यह है कि हिंदू को बहुत आसानी से सांप्रदायिक घोषित किया जा सकता है। हम पर गुलामी का पानी काफ़ी गहरा चढ़ा है।

  21. आज का आपका संपादकीय,’ ब्रिटेन में सेक्युलेरिज़्म
    खतरे में नहीं पड़ता भारतीयों के लिए आँखें खोलने वाला है। दरअसल यहाँ सेक्युलेरिज़्म
    नहीं वरन छदम धर्मनिरपेक्षता है। जिसकी जड़े अंग्रेजों ने ही रोपी थीं।
    यहाँ मैं लॉर्ड मैकाले की बात बताना चाहूँगी जो उन्होंने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में भारत के संदर्भ में कहा था,”भारत का विस्तृत भ्रमण करने पर मैंने पाया कि वहां एक भी व्यक्ति बेईमान नहीं है। लोगों के अंदर उच्च नैतिक आदर्श एवं चरित्र वहां के सामाजिक संरचना की पूंजी है जैसा कि मैंने और कहीं नहीं देखा। लोगों के मन में आध्यात्मिकता, धार्मिकता एवं अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति अटूट आस्था है । वे बड़े मनोबली हैं। लोगों के आपसी विश्वास एवं सहयोग की भावनाओं को तोड़ें बिना, उन्हें भ्रष्ट किए बिना भारत को जीतना और उसपर शासन करना असंभव है। अतः मैं प्रस्ताव रखता हूँ कि नई शिक्षा नीति बनाकर वहां की प्राचीन शिक्षा प्रणाली एवं संस्कृति पर हमला किया जाए ताकि लोगों का मनोबल टूटे, वे विदेशी खासकर अंग्रेजी और अंग्रेजियत को अपनी तुलना में महान समझने लगें। तब वही होगा जैसा कि हम चाहते हैं। अपनी संस्कृति और स्वाभिमान को खोया हुआ भारत पूर्णतः गुलाम और भ्रष्ट भारत होगा।”
    अपनी योजना के अनुरूप मैकाले ने ‘अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत’ (Downward Filtration Theory) दिया। जिसके तहत, भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था। जिससे, एक ऐसा वर्ग तैयार हो, जो रंग और खून से भारतीय हो, लेकिन विचारों और नैतिकता में ब्रिटिश हो। यह वर्ग सरकार तथा आम जनता के मध्य एक कड़ी की तरह कार्य करे।
    मैकाले खुले तौर पर धार्मिक तटस्थता की नीति का दावा करते थे, लेकिन उसकी आंतरिक नीति का खुलासा वर्ष 1836 में अपने पिता को लिखे एक पत्र से होता है। जिसमें मैकाले ने लिखा है कि,”मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा की यह नीति सफल हो जाती है तो 30 वर्ष के अंदर बंगाल के उच्च घराने में एक भी मूर्तिपूजक नहीं बचेगा।” ( गुगुल से साभार)
    और यह सच हुआ। यह आपके संस्मरण तथा अपने आस -पास के माहौल को देखकर प्रतीत होता है कि एक सुशिक्षित व्यक्ति पूजा कैसे कर सकता है?

    जहाँ तक ऋषि सुनक की बात है, उनसे भारतीयों को सबक लेना चाहिए। किसी धर्म में आस्था व्यक्ति का निजी मामला है जबकि देशप्रेम तथा देश भक्ति उस देश के प्रति व्यक्ति का उत्तरदायित्व जिसमें वह रहता है।

    • सुधा जी आपने तो पुरवाई का संपादकीय हमारे पाठकों के लिए इस तरह गहराई से समझाया है कि सबको सभी कोण समझ आ गये होंगे! हार्दिक आभार।

  22. एकता -अखंडता के मायने, निर्भयता, निश्चिंतता के मानक यों ही नहीं गढ़े जाते । वह बहुत अच्छी तरह जानते हैं, भारतीय विश्वासपात्र होते हैं,उनका निश्चिंत होना ,आपकी विश्वनीयता का द्योतक है ।
    भारत में अनेक धर्म संप्रदाय इत्यादि का सम्मिलित समूह है और शिक्षा के उच्च शिखर को छूने में सभी समर्कथ नहीं । स्वस्थ राजनीति होनी बंद हो गई है ।
    व्यक्तिवादी विचारधारा, मैं और मैं……!
    प्रत्येक वर्ग की अपनी समस्या है, अपना उचित विचार ।
    कुछ लोग दूसरों के घर जलाकर अपना आंगन रोशन करने में कामयाब होते रहे हैं ।

    • पूर्णिमा, आपकी टिप्पणी भारत की चिन्ताजनक स्थिति प्रस्तुत करती है। सबको इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा।

  23. तेजेन्द्र भाई, आपके इस सम्पादकीय के लिये आपको भी बहुत बहुत वधाई और साधुवाद।
    भारत के प्रथम राष्ट्रपति आदरणीय डॉक्टर राजेन्द्र प्रशाद जी के जब नेहरू ने सोमनाथ मन्दिर के उदघाटन पर जाने पर रोक लगानी चाही तो आदरणिय राष्ट्रपति जी ने कुछ ऐसा कहा था कि मन्दिर के उदघाटन पर वो एक राष्ट्रपति न होकर एक हिन्दु की हैसयत से जायेंगे। इतने वर्षों बाद ऐसे ही शब्द ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री ऋषी सुनक से सुनकर किस हिन्दु का सीना गर्व से चौड़ा नहीं होगा। सैकुलरिज़्म के नाम पर हिन्दुओं को अपने ही धर्म को मानने पर मुग़लों ने और ब्रितानियों ने हिन्दुओं को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने आपको हिन्दु कहने में गर्व तो क्या करेंगे बल्कि शर्म महसूस करते हैं और सनातन धर्म को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। अपनी कुर्सी कायम रखने के लिये अब तक सत्ताधारियों ने क्या क्या हथकण्डे नहीं अपनाये। लोग अपने आप को हिन्दु कहते हुये भी लज्जा महसूस करते थे। ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री ऋषी सुनक ने खुले आम अपने आपको हिन्दु कहना और उस पर गर्व करना हिन्दुओं के लिये एक बहुत बड़ी सीख है। जागो हिन्दुओ और सीखो कुछ ऋषी सुनक से।

    • विजय भाई आपने ऋषि सुनक के ख़ूबसूरत कृत्य की तुलना भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद से करके विश्व भर के भारतीयों को संदेश दिया है। हार्दिक आभार।

  24. बहुत सुन्दर संपादकीय, सचमुच स्वयं को हिंदू कहना, मंदिर जाना, पूजा करने का तात्पर्य यह नहीं कि हम सांप्रदायिक हैं, यह हमारा विश्वास है हमारा मार्ग है और प्रधानमंत्री ऋषि सुनक इसे पूरी तरह समझते हैं लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में इस बात को लेकर कई तथाकथित बुद्धिजीवि हो हल्ला करते हैं।

    • ठीक कहा जया। जी अमरीका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार विवेक रामास्वामी भी गर्व से कह पाते हैं कि वे हिन्दू हैं। और ईसाई अमरीका को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

  25. आदरणीय सर, आपके इस आलेख की मैं तहेदिल से प्रशंसा करती हूँ।
    ये आलेख जहाँ कई अहम सवाल उठाता है, वही तमाम सवालों का करारा जबाब भी है।
    साथ ही आपकी लेखकीय स्पष्टता और दृढ़ता का
    बहुत सुन्दर नमूना भी।
    इस आलेख को भारत के उन कथित बुद्धिजीवियों को जरूर पढ़ाया जाना चाहिए
    जो सेकुलरिज्म के नाम पर सिर्फ हिन्दू और हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने और उसका विरोध करने की जुगत में दिन- रात लगे रहते हैं।
    बहुत-बहुत बधाई सर!

    • मधु जी हम आपके दिल की भावनाओं को महसूस कर पा रहे हैं। कुछ मित्रों को हमारा संपादकीय सांप्रदायिक भी लगा है। मगर मैंने केवल और केवल सच बोलने का प्रयास किया है।

  26. आपके संपादकीय का इंतजार रहता है सर! हर बार आप सामयिक एवं विमर्श के महत्वपूर्ण विषय के साथ उपस्थित होते हैं।
    ऋषि सुनक के बारे में सब जानकर ,और पढ़कर भारत में भी कम से कम समझदारों ने महसूस किया होगा कि *ब्रिटेन में सेक्युलरिज्म खतरे में नहीं पड़ता।*
    काश यहांँ का नेतृत्व और लोग विचार करते कि हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?
    ऋषि सुनक के मोरारी बापू की रामकथा में जाने से और वहांँ उन्होंने जो भी कहा और किया उस पर हमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि जब वह ब्रिटिश प्रधानमंत्री बने थे तो उनके और उनके परिवार के बारे में काफी पढ़ा व जाना। बात परिवार से मिले संस्कार व अपनी संस्कृति के प्रति संबद्धता की है
    सेक्यूलरिज्म को हिंदुस्तान में लोग सही अर्थों में समझते ही कहाँ हैं सर?अब उसका अस्तित्व सिर्फ नाम का है। जो धर्म को ही नहीं समझते वह धर्मनिरपेक्षता को क्या समझेंगे!
    धर्म के विस्तृत अर्थ हैं।कृष्ण तो गीता में धर्म का अर्थ कर्तव्य से बताते हैं और कहते हैं कि हर व्यक्ति का अपना-अपना धर्म होता है और समय और परिस्थिति के अनुरूप वह थर्म बदलता रहता है।एक उदाहरण से इसे अच्छे से समझा जा सकता है।
    मान लीजिए कोई बेटा पितृभक्त है।वृद्ध पिता की बहुत सेवा करता है और उसके पिता बहुत बीमार, मरणासन्न हालत में हैं ।पीने के लिए तत्काल पानी की आवश्यकता है ।बेटा पानी लेकर जा ही रहा है और इसी बीच वह देखता है कि उससे थोड़ी ही दूर पर एक कन्या को तीन चार लोग परेशान कर रहे हैं और उसे निर्वस्त्र करने पर तुले हैं और वह सहायता के लिये गुहार लगा रही है।उसे तत्काल बचाना बहुत जरूरी है अन्यथा कुछ भी हो सकता है और वह तत्काल उस कन्या की रक्षा के लिए दौड़ पड़ता है और उसे बचाता है।
    यहाँ समय और परिस्थितियों के कारण उसका धर्म बदल गया। प्राथमिकता किसी लड़की के सतीत्व को बचाने को दी जबकि वह पितृभक्त था और बुजुर्ग और बीमार पिता के प्राण उस एक गिलास पानी पर टिके थे। अतः धर्म वास्तव में कर्तव्य ही है।
    आज धर्म पूजा और धर्म के प्रकार के रूप में सांप्रदायिकता में सीमित होकर रह गया है। वह मुद्दा बन गया है साम्प्रदायिक भेदभाव बढ़ाने और राजनीतिक लाभ का । संस्कारों से परहेज और अपनी संस्कृति के प्रति उदासीनता ही नैतिक पतन का कारण है। और यह नजर भी आ रहा है।
    जो इसका सही अर्थ समझते हैं वो ही जागरूक रहते हैं। ईश्वर पर अपनी आस्था और विश्वास गलत कार्य करने से रोककर सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, साथ ही हमारे आत्मविश्वास को इससे बल मिलता है ।ऋषि सुनक ने यह साबित किया। वास्तव में भारत के लिए यह गौरवान्वित होने वाला पल तो है ही। शायद भारतवंशियों को इससे कुछ प्रेरणा मिले।किसी के दिमाग के बुझे हुए बल्ब जल उठें।
    हम इसे सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद भी विकसित और समझदारीपूर्ण वैचारिक क्षमता से परिपूर्ण बात समझते हैं।अहं से परे,इंसानियत से परिपूर्ण, सौहार्द्यपूर्ण व्यक्तित्व के धनी हैं सुनक।हमारे संस्कार हमारे व्यक्तित्व के परीचायक होते हैं।
    हमारी संस्कृति पूजन और अर्चन के मामले में उदार है ।अगर आप मानवता पूर्ण व्यवहार करते हैं, परोपकारी है और आप पूजा- अर्चना नहीं कर पाते, तब भी आप भगवान का ही कार्य कर रहे होते हैं। और उनके समीप ही होते हैं!
    भारत में नेताओं के लिए शैक्षणिक योग्यता शायद उतनी मायने नहीं रखती जबकि होना चाहिये। जब हर पद पर नियुक्ति शैक्षणिक योग्यता के आधार पर होती है तो नेताओं के लिए यह बाध्यता जरूरी क्यों नहीं हैं?
    आपके मॉडर्न वाली बात को पढ़कर मन में विचार आया कि वास्तव में मॉडर्न का अर्थ क्या है? आधुनिकता? फिर आधुनिकता की परिभाषा क्या है? क्या कहीं ऐसा लिखा है कि जो आधुनिक होगा वह भगवान की पूजन और अर्चना से, उनके प्रति आस्था से विमुख होगा? पर जो हो रहा है वह दिख रहा है लोग सच मान लेते हैं और जब सच्चाई देखते या सुनते हैं वह उनके लिए आश्चर्य बन जाता है। इसीलिए आपके पूजन की बात सामने वाले को आश्चर्य जनक लगी
    यह भारतीय संस्कृति के उदार भाव का प्रभाव ही रहा कि आर्य समाजी होकर भी इंदू ने आपकी शंकर की पूजा का विरोध नहीं किया।
    नियमों की कट्टरता धर्म में दिखाई देती है, महसूस भी होती है, प्रभाव भी डालती है किंतु उदारता इतनी सहजता से किसी को न दिखाई देती है, न महसूस होती और न ही समझ आती है। यह दुखद है। कहीं न कहीं इसमें हमारी दोषपूर्ण शिक्षा नीति का भी हाथ है।

    जो अज्ञानी हो उसे समझाया जा सकता है पर दिग्भ्रमित और अहं से भरे ज्ञानी को कोई नहीं समझा सकता। मालवा खंड में कहावत है “गणेश जी को कौन ज्ञान दे?”
    अर्थात् जो अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझता है उसे कौन समझा सकता है?

    संपादकीय पढ़ना हमें बहुत प्रिय है ।न्यूज़पेपर के हाथ में आते हैं सबसे पहले संपादकीय ही पढ़ते रहे। आपको पढ़ते हुए समृद्ध हो रहे हैं!बहुत-बहुत शुक्रिया आपका सर!

    • नीलिमा जी, आपकी टिप्पणी तो लगभग समानांतर संपादकीय ही है। इस विस्तृत एवं सार्गर्भित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

  27. आपके इस संपादकीय ने मुझे भावुक कर दिया l इसके माध्यम से आपने दो महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, एक निजी स्तर पर और एक मीडिया के स्तर पर l कहीं ना कहीं इसके पीछे हमारी धर्मनिरपेक्षता की गलत परिभाषा है, जहाँ दूसरे धर्म के आदर सम्मान के साथ अपने धर्म के पालन की जगह अपने धर्म, पूजा पाठ, परंपराओं के पालन को नीची नजर से देखना हो जाता है l निजी स्तर पर एक समय जहाँ बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा यह स्थापित कर दिया गया था कि अगर आप उच्च शिक्षित हैं या उच्च वर्ग से होने के बाद पूजा पाठ/धर्म पालन करते हैं तो मानसिक रूप से पिछड़े हैं l आपके अनुभव कहीं ना कहीं हम सब ने भी महसूस किए हैं l इसी स्थापना के कारण आज भी एक बड़ा वर्ग दोहरा चरित्र जी रहा है, जो घर में पूजा पाठ करता है और बाहर नकारता है l मीडिया और राजनीति ने तो धर्म को एक हथियार बना दिया है l किस नेता ने कहाँ, कब, कैसे पूजा की ये सार्वजनिक चर्चा का विषय है l यहीं से आम जन अपना हीरो और विलेन तय करता है l धर्म एक निजी मसला है और हमारा काम सार्वजनिक दायित्व, बेहतर हो की हमारे देश में भी इसे अलग-अलग रखा जाए l आपके संपादकीय से गुजरते हुए मुझे एक आशा की किरण दिखाई दी… अगर हमारे देश का मीडिया भी इन खबरों पर यूँ ही ध्यान ना दे तो कर्तव्य पालन के साथ अपने धर्म का पालन हमें हमारे देश के नियंताओं को किसी खास कटघरे में खड़ा नहीं करेगा, तब ही शायद सच्चे अर्थों में हम धर्म निरपेक्ष होंगे l मन में उठ रहे इस काश के साथ एक बेहतरीन संपादकीय के लिए बहुत बधाई सर

    • वंदना जी, आपने संपादकीय की समीक्षा बेहतरीन ढंग से की है। एक एक कोण को हमारे पाठकों के लिए स्पष्ट किया है। हार्दिक आभार।

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