Saturday, July 27, 2024
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डॉ. देवेन्द्र गुप्ता की कलम से – ज्वलंत प्रश्नों से जूझतीं : चित्रा की चिठ्ठी और अन्य कहानियाँ

पुस्तक : चित्रा की चिठ्ठी तथा अन्य कहानियां : (अनुवादित कहानियाँ संग्रह) अनुवाद एवं सम्पादन : उषा बंदे  प्रकाशक : के. एल .चौधरी प्रकाशन, गाजियाबाद मूल्य : 350/-  पृष्ठ : 134
कथाकार असगर वजाहत का यह मानना वाजिब है कि एक समय के बाद कथा साहित्य लिखने वाले कथेतर साहित्य की और आकर्षित होते है | कहानी और उपन्यास लिखते लिखते जब वह ऊब  जाते है तब उस से पीछा छुड़ाने  के लिए संस्मरण, रेखाचित्र, डायरी, पत्र आदि कथेतर शैलियों की और मुड़ते है | लेकिन उषा बन्दे ने कथा से इतर न जाते हुए गद्य को अनुवाद के माध्यम से विभिन्न भाषाओँ से जोड़ने के काम को अंजाम दिया है | ’चित्रा की चिठी तथा अन्य कहानियाँ’ उषा बन्दे का एक अनुवादित संग्रह है | इस संग्रह में उषा बन्दे द्वारा विभिन्न लेखको की कहानियों का संकलित किया गया है | उषा बन्दे अंग्रेजी और हिंदी में सामान रूप से लिखती रहीं हैं | वह भारतीय अंग्रेजी साहित्य का जाना माना नाम है और हिंदी के पाठकों में भी वह उतने  ही आदर के साथ गद्य साहित्य में समादृत है | बच्चों के लिए लिखी कहानियों के तीन संग्रह तो बाल कहानियों /साहित्य की विशिष्ट थाती है | लेकिन इनकी सृजनात्मक साहित्य की यात्रा  में एक विशेष पड़ाव अनुवाद का आता है  और अनुवाद में इनका मन बहुत रम गया लगता भी है | मराठी मातृभाषा होने के कारण  और अंग्रजी की प्राध्यापिका  तथा हिंदी भाषी हिमाचल प्रदेश में बसाव  की पृष्ठभूमि– ये सब कारक रहे कि इन्होने मराठी  से हिंदी और अंग्रेजी या हिंदी से अंग्रेजी और मराठी में अनुवाद की पथरीली राह पकड़ी है | अनुवाद कार्य में अनेक पड़ाव पार करते हुए एक सफल अनुवादक के तौर पर भी आपने अच्छा मुकाम हासिल कर लिया है |
‘अनुवाद’ शब्द को सुनते ही ऐसा जान पड़ता है कि  यदि आपको मात्र दो भाषाओँ का अच्छा ज्ञान है तो आप यह कार्य आसानी से कर सकते है | दो से अधिक भाषाओँ का ज्ञान है तो सोने पर सुहागा | लेकिन सुनने या पढने में यह शब्द “अनुवाद” आपको जितना आसान  और सरल जान पड़ता है उतना यह है नहीं | यदि मैं कहूँ कि एक भाषा की किसी रचना को दूसरी भाषा मे अक्षरश: व्यक्त करना उतना भी सहज और सरल कार्य नहीं है जितना समझा जाता है | किसी भी भाषा में मूल रचना एक विशेष परिवेश में अपनी विविध ध्वनियों रुपात्मकता, शब्द छवियों और मिठास के साथ मौजूद रहती है | एक अच्छा अनुवादक ऐसी रचना में मौजूद विचारों को पूरी कोशिश के साथ दूसरी भाषा के मूल रूप से लाने का भरपूर प्रयास करता है | जिससे मूल रचना अपने अनुवादित भाषा रूप में मौलिकता के साथ गुणवता और पठनीयता की ठसक को बनाए रखती है |
विचाराधीन पुस्तक में प्रवेश करते ही उषा बन्दे ने भी भूमिका स्वरुप ‘दो शब्द अनुवाद पर भी’ लिखे है | लेखिका ने अनुवाद के बारे में पुरातन मान्यताओं को नकारा है | ऐसी मान्यता  थी कि जहाँ सृजन एक मौलिक प्रक्रिया है वहां अनुवाद केवल नक़ल है | सृजन में उत्स्फूर्ती है जिसे अंग्रेजी में स्पोन्टेनिअटी (SPONTANIETY) कहते है , वहां अनुवाद मकेनिकल होता है | किन्तु अब इस अवधारणा में बदलाव आया है | उषा बन्दे लिखती है “अब यह सर्वमान्य है कि अनुवादक को भी मानसिक और बोद्धिक स्तर पर उसी रचनात्मक संघर्ष से गुजरना पड़ता है जो मूल रचना का अनुभव कर चूका है तभी अनुवाद में जान आती है’ |
‘चित्रा की चिठ्ठी यथा अन्य कहानिया’ पढने के बाद उषा बन्दे की अनुवाद कला की सराहना इसलिए भी करनी बनती है जो शब्द उन्होंने अनुवाद कला  पर  व्यक्त किये है वह उन पर अक्षरश: खरे  उतरते है | प्रस्तुत कहानी संग्रह में 14 कहानियों का अनुवाद दिया गया है | इसमें अंग्रेजी, मराठी  कहानियों के लेखक, भारत के विभिन्न प्रान्तों से है और उन कहानियों में उस देश प्रदेश की सांस्कृतिक झलक मिलना स्वाभाविक है | सबसे बड़ी बात यह है कि  दुसरे देशों ,अपने प्रदेशों, बंगला देश, सिंगापुर तक अर्थात विभिन्न जगहों के सांस्कृतिक परिवेशों यह कहानिया संकलित की गयी है | और यह भी कि  यह कहानियाँ किसी संग्रह विशेष से नहीं ली गई है |
लक्ष्मण गायकवाड की “म्हसंणजोगी की पंचफूली” (मराठी ) उठाईगिरी करने वाली एक जनजाति का रेखाचित्र अत्यंत मार्मिक जान पड़ा है | यह इतना जीवंत है कि  उनके जीवन की भयानक विरूपता और जीवन के प्रति उनका रवैय्या चोंकाने वाला लगता है | युवा बहू का बलात्कार हो जाना और शुद्धी के नाम पर जीभ पर जलते अंगार रखना और दुबारा पति के हवाले कर दिया जाना, इस  सारे प्रकरण में स्त्रीसमाज की मूक स्वीकृति है जो पुरुष प्रधान समाज व समय ने सिखलाई है | ’शिवप्पा की किशनी’ मराठी कहानीकार ज्ञानेश्वर कोल्वेकर की है जिसमें परिस्थियों से सुलह करने की प्रवृति यह दर्शाती है कि बेटी कृष्णा के एक्सीडेंट से मिले मुआवजे से माँ बाप जीवन में टूटे बिखरे सूत्रों को जोड़ कर पुन:जीवन की एक नयी शरुआत करते हैं | “रोबिन ही क्यों” (अंग्रेजी )शशिदेश पाण्डे ने आत्म विश्वास खो चुकी नारी की वेदना को एक साधारण सी घटना के माध्यम से व्यक्त किया है—-बच्ची से महिला होने की प्रक्रिया को रजोधर्म की घटना के माध्यम से माँ – बेटी निकट तो आते ही हैं पर बेटी की दुनिया में पिता यानी पुरुष का स्थान थोडा पीछे रह जाता है | ’जाल में फंसी एक मुक्त़ा’ ज्योति कुंकुलकर ,चित्र की चिट्ठी’ अंग्रेजी ,’ छोटी बहिन’ मराठी –नलिन भूजंग आदि कहानियों में नारी की विवशता ,अविवाहित जिंदगी का अकेलापन और दो बहनों के आपसी मतभेद टकराव के साथ साथ परम्परा और आधुनिकता के द्वंद्व को यथार्थ और कल्पना के संयोग से चित्रित किया गया है | इसी तरह ‘उसकी गुडिया’ मराठी –बी.मनोहर राव , ‘मार्कु के  पिता’ अंग्रेजी- अंकुर बंटागेरी, ‘तितली’ मराठी-शुभांगी भडभडे, ‘कलंक’ अंग्रेजी- उषा बन्दे, आदि कहानियों में मनोविश्लेषण पद्धति  का प्रयोग करते हुए चरित्र गढ़े गए है |
बांगला देशी कथाकार रशीद अस्करी की दो कहानियाँ “गाभिन गाय” और “एक लम्बा ट्रैफिक जाम”  बंगला देश के दो अलग समाजों ग्रामीण और नागर समाज की कथा व्यथा व्यक्त करते है | ग्रामीण समाज में  गाँव में गरीबी से जूझता किसान है और आधुनिक शहर ढाका की ट्राफिक जाम  की समस्या को दर्शाता है | ‘गाभिन गाय’ का मार्मिक बिम्ब पाठक के मन को अंदर तक बींध जाता है | हल के एक और जोतो गयी गाय और दूसरी ओर कासिम  किसान की बीबी अम्बिया के चित्र ऐसे शब्दजाल में गढ़े गए है कि दोनों की किस्मत एक सी लगने लगती है | ”अकेला युद्ध’’ अंग्रेजी-जफर अंजुम, “हरा चंपा” मनोहर बन्दे- मराठी,”नील कृष्ण” जेम्स लोंग-अंग्रेजी आदि कहानियाँ भी विषयवस्तु और  अलग कहन  से अपना ध्यान आकर्षित करती है |
इन गैर हिंदी कहानियों के अनुवाद हिंदी में पढ़ कर ऐसा लगता है कि मराठी,अंग्रेजी, बंगला में लिखी गयी यह कहानियाँ मानो मूल भाषा हिंदी में ही लिखी गयी है | यह है अनुवाद की शक्ति जो दूसरी भाषाओँ में लिखा पाठको को समझा पाने में सक्षम होती है | सफल अनुवादक के नाते उषा बन्दे यह सिद्ध करने में समर्थ रही है कि मूल भाषा और अनुवाद की भाषा दोनों पर उनका समान अधिकार है और और सबसे पहले वह मूल भाषा के साथ रागात्मक सम्बन्ध स्थापित करते हुए सूक्ष्म संवेदनाओं को आत्मसात करने में भी निपुण हैं | जीवन की चुनौतियों और संघर्षों तथा सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूकता से सम्पन्न इन अनुवादित कहानियों को संकलित कर के उषा बन्दे ने इन्हें वास्तव में “काल के गर्त में खो जाने” से बचा लिया है |
कुल मिला कर,किताब संग्रहणीय है और उसकी पठनीयता का श्रेय उषा बन्दे की अनुवाद की भाषा को जाता है | इस भाषा में अनुवाद की मांग के अनुरूप बदलाव को भी महसूस किया जा सकता है | अनुवाद की गरिमा भंग किये बिना भाषा ओए शैलीगत प्रयोग दृष्टव्य है और पुस्तक की पूंजी है |
डॉ. देवेंद्र गुप्ता
आश्रय, अप्पर खलीनी चौक,
शिमला-2 हिमाचल प्रदेश 171002
मोबाइल : 9418473675
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