पुख़्ता हो हर सड़क भी, कुशादा भी चाहिए
सर पे हमें दरख़्तों का साया भी चाहिए
क्या क्या तुझे अता करूं ऐ दिल मुझे बता
है चांद की तलब भी,सवेरा भी चाहिए
इस दिल की ख़्वाहिशों की कोई इंतहा नहीं
जब मिल गया है साथ,सहारा भी चाहिए
बच्चों पे कुछ तो रहम किया कर ऐ मुफ़लिसी
रोटी के साथ उनको खिलौना भी चाहिए
फ़ितरत हमारी औरों से बिल्कुल जुदा नहीं
सस्ता भी चाहिए हमें अच्छा भी चाहिए
मरती नहीं है भूख सुख़नवर की दाद से
भूखे शिकम को उनके निवाला भी चाहिए।

गज़ाला तबस्सुम की ग़ज़ल - बच्चों पे कुछ तो रहम किया कर ऐ मुफ़लिसी 3

गज़ाला तबस्सुम
संपर्क – talk2tabassum@gmail.com

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