श्रापित किन्नर उपन्यास में किन्नरों को अपने श्रापित होने का दंश झेलना पड़ता है। यही श्रापित का दंश उन्हें समाज से लड़ने को प्रेरित करता है। उसमे अकरम (पुरुष) सहायता करता है। नरगिस , हिना और जावेद तीनो ” मैं भी इंसान हूँ ” कहते हुए , अपना अस्तित्व बेहतर व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करते है।  अंततः श्रापित का दाग अपनी  कर्मठता से  धो लेते हैं।”
श्रापित किन्नर उपन्यास में तीन मुख्य किन्नर पात्रों का संघर्ष वर्णित है।नरगिस,हिना और जावेद। उसमें किन्नर नरगिस भाग्यशाली किन्नर  प्रतीत होती है, जबकि हिना और जावेद दोनों का जीवन नरगिस से अधिक सँघर्षमय  होता है। नरगिस को अपने मातापिता या भाई बहन से किसी तरह की उपेक्षा नहीं मिलती बल्कि उनकी वह बहुत ही प्रिय बेटी है। नरगिस को परेशानी उठानी पड़ती है; अपने स्कूली जीवन में।वहां पर उसकी अध्यापिका उससे प्यार करती है जोकि उसे स्कूल जाने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन साथ के बच्चे उससे दूर भागते हैं उसके साथ खेलना नहीं चाहते और उसको बुराभला कहते हैं।
नरगिस यह बात घर आकर बताती है तो उसकी मां परेशान हो जाती है और उसको मानसिक विकलांग बच्चों के विद्यालय में दाखिला दिलाने का सोचती हैं और उसे वहां लेकर जाती है;लेकिन वहां की प्रधानाचार्या यह कहकर मना कर देती है कि यह मानसिक विकलांगों का स्कूल है न कि किन्नरों के लिए। उसके मातापिता उसका दाखिला पास के ही सरकारी स्कूल में करा देते हैं।जहां पर बच्चे उसके साथ अभद्र व्यवहार करने के साथसाथ मारपीट भी करते हैं।यह बात घर आकर बताती है।
उसका भाई फैजल गुस्से में उन बच्चों को पीटने की बात करता है और अगले दिन विद्यालय में जाकर उन बच्चों को मारनेपीटने की कोशिश भी करता है तभी वह बच्चे बोलते हैं कि यह न लड़की है ना लड़का।यह बात फैसल को परेशान कर देती है और इसी झगड़े के कारण आसपास के लोगों में यह बात फैल जाती है कि नरगिस किन्नर है और किन्नर समाज के व्यक्ति आकर नरगिस को घसीट कर ले जाते हैं, अपने डेरे में।जहां वह खुद तो अपना जीवन अंधकारमय  जी ही रहे होते हैं,वहीं वह नरगिस को भी ले जाते हैं।नरगिस चिल्लाती है कि मुझे मातापिता के पास जाना है लेकिन किन्नरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और धीरेधीरेवह उस जीवन को स्वीकार लेती है;परंतु अपनी पढ़ने की इच्छा गुरु मां से व्यक्त करती है।
हीं डेरे में उसके पढ़ने की व्यवस्था करा दी जाती है। पढ़ने में तो होशियार है ही साथ ही वह कर्मठ भी है।नए काम को सीखने की ललक भी उसमें होती है इसलिए वह किन्नर समाज के तौर तरीके सीख लेती है ताकि उसकी पढ़ाई में कोई बाधा ना आए। इसलिए वह समयसमय पर बधाई के कार्य में भी चली जाती है।
वह इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करती है और उसके बाद  गुरु माई से कॉलेज में एडमिशन की गुहार लगाती है,जो मान ली जाती है और उसको कॉलेज में प्रवेश दिला दिया जाता है। वहां पर उसे अकरम नाम का लड़का मिलता है। दोनों में अच्छी दोस्ती होती है और दोनों का रिश्ता प्यार में बदल जाता है। अकरम उससे प्यार ही नहीं करता बल्कि शादी भी करना चाहता है। लेकिन; नरगिस उससे यह कहते हुए मना करती है कि मेरे जीवन की सच्चाई शायद तुम्हें नहीं पता और शायद तुम्हें पता चले तो तुम मुझसे नफरत करने लगो। वह सच्चाई जानना चाहता है और जब वह बताती है कि मैं किन्नर हूं । अकरम थोड़ी देर के लिए स्तब्ध हो जाता है,लेकिन वह शादी करने का निश्चय अटल रखता है और बहुत सी परेशानियों को सहन करते हुए अपनी मां के विरोध के चलते हुए वह नरगिस से शादी कर लेता है।
नरगिस का जीवन मुझे भाग्यशाली इस रूप में प्रतीत होता है कि उसे बाकी किन्नरों की भांति मातापिता से उपेक्षा नहीं प्राप्त होती और वह भी सामान्य नारी की भांति एक सामान्य लड़के से शादी कर पाती है।हालांकि उसके समाज में वह हंसी की पात्र बनती है क्योंकि किन्नर समाज में किन्नरों की शादी सिर्फ अरावन भगवान से ही की जाती है, सामान्य पुरुष से नहीं। अकरम उसे जीवन की हर खुशी देना चाहता है और उसे कभी हारने नहीं देता।अकरम की मां नरगिस को कभी स्वीकार नहीं करती है। वह दोनों माँ के साथपरिवार में ही रहते हैं ।
इस उपन्यास में हिना और जावेद की जो कहानी वर्णित है वह नरगिस से बहुत अलग सी प्रतीत होती है क्योंकि हिना का जन्म श्राप के कारण हुआ होता है जैसा कि उपन्यास में बताया गया कि उसके दादाजी के द्वारा किन्नरों को बधाई के पैसे मुंह मांगे न दिए जाने पर उनके द्वारा श्राप दे दिया जाता है और उसी की परिणति उसके दादाजी तो मर ही जाते हैं। साथ ही परिवार में किन्नर बच्ची पैदा होती है और उस किन्नर बच्ची अर्थात हिना का जीवन दुर्भाग्य से जुड़ा हुआ होता है,क्योंकि हिना के जन्म के बाद उसकी दादी फिर उसकी मां मर जाती हैं और इन कारणों के चलते उपेक्षा का शिकार हिना को होना पड़ता है। हिना का दुर्भाग्य यहीं तक सीमित नहीं है हिना के पिता दूसरी शादी कर लेते हैं और उसकी सौतेली मां होती है। वह उससे घर का सारा कार्य कराती है और एक दिन हद तब हो जाती है जब वह उसका हाथ जला देती है।
मां के द्वारा हाथ का जला देना ऐसा लगता है कि हिना ने किन्नर के रूप में जन्म  लिया हैलेकिन परिवार के सदस्यों ने उसे मानव के रूप में स्वीकार ही नहीं किया है। हिना का दुर्भाग्य यहीं तक सीमित नहीं है। उसको अकरम अपने साथ ले आता है और दोनों उसे गोद लेने कीक योजना बनाते हैं जब वह नरगिस के पास आती है तो नरगिस कहती है कि तुम मुझे मां कह सकती हो ,मैं तुम्हारी मां हूं और नरगिस अकरम उसका पालनपोषण अच्छे तरीके से करने की सोचते ही हैं कि तभी पता चलता है कि नरगिस का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।अकरम उसे अस्पताल ले जाता है।जब नरगिस अस्पताल में होती है तो अकरम की मां हिना को किन्नरों को सौंप देती है।हिना का दुर्भाग्य ही उसके साथ ही होता है क्योंकि जब उसे मां के रूप में नरगिस का प्यार मिलना शुरू होता है नरगिस बीमार हो जाती है। यह उसके श्राप का कारण है या नियति है, समझ नहीं आता।
लेकिन उपन्यास में इसेश्रापित किन्नर ही कहा गया है हिना के लिए नरगिस तड़पती है लेकिन वह किन्नरों के समाज में जा चुकी है। अब वह वहीं की है। वह ही उसका पालनपोषण करेंगे। लेकिन हिना किन्नर समाज में रहना नहीं चाहती और एक दिन वह जहर खा लेती है।नरगिस उससे मिलने जाती है तब वह कहती है मां मैं श्रापित हूं,मुझे जीने का अधिकार नहीं है, मैं समाज के लिए बोझ हूं इसलिए मेरा मर जाना ही उचित है और उसकी हालत जब ज्यादा खराब होने लगती है तब यह बताती है कि उसने जहर खा लिया है।इस हादसे से हिना मरणासन्न हालत में पहुंच जाती है नरगिस को लगता है हिना उसे छोड़कर चली गई लेकिन हिना का जाना नरगिस के हौसले को कम नहीं कर पाता और नरगिस निश्चय करती है कि अब वह दुनिया को दिखाएगी कि किन्नर श्रापित नहीं होते किन्नर भी मानव ही होते हैं।इस हौसले का कारणनरगिस को परिवार का साथ हमेशा मिलता रहना था।
उसको उसका परिवार भाई की शादी में निमंत्रण पत्र देने स्वयं जाता है और वह वहां जाती है।लोगों के हीन विचारों को सुनती है। कुछ लोग कहते हैं कि यह यहां क्यों आई है? नरगिस की मां ही उन लोगों को जवाब देती है कि वह उनकी बेटी है। वह अपने भाई की शादी में क्यों नहीं आती? अकरम नरगिस को समझाता है कि अभी तुम्हें बहुत सी समस्याओं से जूझना है। इन लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना है इन लोगों की फितरत ही ऐसी हैं।
उपन्यास का तीसरा पात्र जावेद जास्मिन की सहेली जो कश्मीर में रहती है।उसका बेटा है, वह भी किन्नर है।जावेद का जन्म एक निम्न वर्ग के परिवार में होता है।कश्मीर में किन्नरों के लिए डेरे की व्यवस्था भी नहीं होती। जावेद को भी नरगिस की भांति स्कूल में बच्चों की नफरत का शिकार होना पड़ता है। यहां तक कि बच्चे और उनके मातापिता यह कह देते हैं कि अगर जावेद स्कूल में पढ़ेगा तो वह उस स्कूल में नहीं पढ़ेंगे। जावेद अपनी अध्यापिका के रिश्तेदार के यहां काम करने लगता है। उसको भी वैसी ही बेचैनी होती है जैसी एक आम बच्चे को होती है, अपने मातापिता से दूर होकर, उसका भी मन करता अपने मातापिता से मिलने का और वह छुट्टी लेकर अपने माता पिता से मिलने जाता है।  उसके पड़ोस के बच्चे उसको बुलाते हैं।जावेद यह कहकर मना कर देता है कि वह आज भी किन्नर है।
उपन्यास की तीनों मुख्य किन्नर पात्र स्कूल में नफरत का शिकार हुए होते हैं। उपन्यास में नरगिस और हिना की कहानी तो मुझे आपस में जुड़ी हुई लगती है लेकिन जावेद की कहानी  लेखिका के कश्मीर से संबंध होने को जोड़ते हुए कश्मीर में किन्नरों के लिए कोई डेरे की व्यवस्था नहीं है और किन्नर भी आतँकवादियों से सामान्य मानव की भांति डरते हैं।इस बात को बताने के लिए जोडी गई लगती है।
जावेद भी नरगिस और हिना की भांति स्वयं को साबित करने की ठानता है। वह भी समाज को दिखाना चाहता है कि किन्नर समाज का अंग है। उनसे भिन्न नहीं है।वह भी उद्देश्य पूर्ण जीवन जीने का हकदार है।
तीनों किन्नर पात्र किन्नर समाज के हक के लिए कार्य करना चाहते हैं।लेकिन हिना जो दुर्भाग्य को साथ लेकर पैदा हुई थी।वह उसका पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेता।वह मौत को तो मात् देकर आ जाती है;लेकिन डेरे से भाग आती है और जब डेरे से भाग जाती है तो किन्नर नरगिस के यहां आते हैं। नरगिस  उन्हें यह कहते हुए फटकारती है कि हिना उनके  पास नहीं है और अगर वह उसके घर में घुसे तो वह उनकी टांगे तोड़ देगी।एक आम व्यक्ति के जीवन जैसी घटना को यहां प्रस्तुत किया गया है एक आम मां के भाव को प्रस्तुत किया गया है।
हिना भी स्कूल में नरगिस और जावेद की भांति उपेक्षा का शिकार होती है लेकिन वह स्कूल से भागती नहीं है बल्कि बच्चों को मुंहतोड़ जवाब देती है इसमें लेखिका ने कविता के माध्यम से हिना की बात को रखा है –  
ताली है सहारा इससे हमारी पहचान ,सब ने ठुकराया यह बनी जान, जब ताली बजाते हैं अपनी शान बढ़ जाती, ताली की खाते गर्व पाते हैं!” 
लेखिका ने किन्नर के ताली बजाने को भी उसका गर्व बताया है और हिना कहती है कि वह अपने माथे से श्रापित का दाग हटाएगी ।
वह विदेश जाती है डॉक्टरी की पढ़ाई करती है और वह एक श्रेष्ठ किन्नर बनती है। नरगिस सशक्त किन्नर के रूप में चित्रित है वह एक किन्नर बच्चे को पढ़ातीलिखाती है। विभिन्न विरोधों के बावजूद वह एक सफल किन्नर और मां साबित होती है।यह बात लेखिका हिना कि मुंह से भी कहलवा दी कि हम खुशकिस्मत हैं जिसे आप जैसी अम्मी मिली मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे लोग श्रापित बोलते हैं क्योंकि मेरे साथ मेरा परिवार है।
एक वक्तव्य किन्नरों को स्वयं समर्थ होने की तरफ इशारा करता है। इन अमानवीय ऊपर से मानवीय दिखने वाले चेहरों की वास्तविकता से रूबरू हो जाएंगे तो शायद अपनी इज्जत और स्वाभिमान की रक्षा करने में पूर्णता समर्थ हो जाएंगे।लेखिका ने इस बात को किन्नर पात्रों द्वारा प्रस्तुत कराया है कि हमें समझना होगा फिर मानवीय दिखते चेहरे वास्तव में अमानवीय हैं और अपने इज्जत और स्वाभिमान की रक्षा हमें स्वयं करनी होगी।
हिना का जीवन एक विद्रोही और क्रान्तिकारी किन्नर का जीवन है। किन्नरों के लिए सम्मानित और मर्यादित जीवन जीने के नियम बहुत कड़े हैं, परंतु हिना ने विचारधारा ही बदल दी। रूढ़ियों को लाँघने की हिम्मत हिना में थी।हिना ने उन जड़ताओं को तोड़ा और जनता ने उसे भरपूर आदर दिया।
हालांकि लेखिका ने उपन्यास के अंत में भी हिना को श्रापित से जोड़ते हुए दिखाया है क्योंकि आकिब आखिर उसके विवाह से पहले ही आतंकवादियों के हाथों शहीद हो जाता है लेकिन हिना ने यह साबित कर दिया कि वह ना ही कमजोर है ना ही श्रापित है बल्कि वह एक मानव है और किन्नर समाज और मानव के उत्थान के लिए कार्य कर रही है।
इस उपन्यास में  बहुत जगह पाठक वर्ग की संवेदना को झकझोरने का कार्य और सोचने के लिए विवश किया गया हैं जैसे किन्नर कहते हैंतुम इंसानों को तो हमारी कीमत का पता ही नहीं है भगवान ने आप लोगों को सब कुछ दिया है। परिवार है सुख है। हमसे तो सब कुछ छीन लिया अगर हमें भी पूर्ण इंसान बनाया होता तो क्या आपकी चौखट पर आते?
किन्नरों को मुंह मांगे पैसे ही दिए जाए तभी वह बधाई और आशीर्वाद देते हैं। वरना क्या वह श्राप ही देते हैं?कहीं यह महज इत्तेफ़ाक़ तो नहीं कि किन्नरों ने हिना के दादाजी को श्राप दिया और वह उस श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए और उनके घर में किन्नर बच्चे का जन्म हुआ। लोगों के मन में उसी बात ने डर उत्पन्न किया हो।
किन्नर समाज के लोगों को क्या पढ़ने का हक नहीं है क्योंकि जब नरगिस कॉलेज में पढ़ने जाती है तो आसपास के लोग ताना मारते हैं कि अब किन्नर भी पड़ेगी जाओ आज मोहल्ले में लड़का पैदा हुआ है, नाचकर बधाई ले आओ।
हिना का अपने ही घर में अपने भाई के जन्म पर बधाई लेने जाना और पिता के द्वारा उसे वहां भी बेइज्जत करने से नहीं चूकना।बेइज्जत करने के साथसाथ वह उसे कहता हैबकवास मत करो बधाई लो निकलो इधर से और हिना को धक्का मार देता हैपिता की मानवीयता तो जैसे खत्म हो चुकी होती है और किन्नरों को मानवीयता के वास्तविक गुणों के साथ दर्शाया है किन्नरों को इस बात पर गुस्सा आता है और वह उसके पिता को फटकारते हुए कहती हैं कि आपकी हिम्मत कैसे हुई इस बच्ची पर हाथ उठाने की इस पर से आप अपना हक  खो चुके हैं और जिस पत्नी पर आप को अहंकार है! उसका सुख नहीं भोग पाएंगे।मतलब किन्नर यहां पर भी श्राप देने से इस उपन्यास में नहीं चूकते ऐसा लगता है कि किन्नरों के द्वारा श्राप बधाई ना देने के कारण नहीं बल्कि पुरुष या स्त्री की मानवीयता खो जाने पर दे रहे हैं।
जावेद को जब विद्यालय में अपने साथ के लड़कों से मार खानी पड़ती हैं और वह उसको पीटने के साथसाथ उसकी औकात तक याद दिलाते तेरी औकात क्या है चल हिजड़ा साला!मैं हिजड़ा नहीं हूं….. जावेद चिल्लाता है। मैं भी इंसान हूंलेकिन फिर भी वह उसे मारते रहते हैं ऐसा लगता है कि नर या नारी ही पढ़ सकते हैं और वह बच्चे सिर्फ उन्हें ही स्वीकार करेंगे।अगर उनसे भिन्न मानव उनके बीच होगा तो वह उसका तिरस्कार करेंगे।
अकरम के द्वारा नरगिस को यह कहना कि किन्नरों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। नया जन्म उन्हें खुद ही लेना होगा यह बात कही ना कही किन्नर समाज पर सार्थक लगती है कि किन्नर समाज को अपने उत्थान के लिए सामने आना होगा अपने जीवन शैली में बदलाव करना होगा और अपने अधिकारों के लिए कानून  के साथसाथ सामाजिक स्तर पर ज्यादा लड़ना होगा।
अकरम के द्वारा नरगिस को यह कहना कि तुम पढ़ीलिखी किन्नर हो तो मैं समाज में तुम्हारा हक दिलवा कर दम लूंगा कहीं ना कहीं समाज की सोच में परिवर्तन की तरफ इशारा है।
उपन्यास के नामकरण की सार्थकता तीनों मुख्य पात्रों के द्वारा साबित की गई है क्योंकि तीनों पात्र श्रापित हूं वाली दशा में जीते हुए नजर आते हैं ।जब तक वह अपने लिए संघर्ष नहीं करते समाज से नहीं लड़ते तब तक वह अपना एक मुकाम भी हासिल नहीं कर पाते और तीनों पात्र संघर्ष करते हैं।अपना एक स्थान समाज के मध्य बनाते हैं और उपन्यास के अंत में श्रापित हूं का दाग धो लेते हैं।
उपन्यास की भाषा  सरल और सहज है। आवश्यकता के अनुसार कहावतों और कविताओं का भी उपयोग किया गया है।
श्रापित किन्नर उपन्यास समाज को एक नवीन दृष्टि देने में भी सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि अभी तक किन्नरों के प्रति सामान्य मानव की संवेदना शून्यता का वर्णन करते आए हैं लेकिन किन्नर खुद अपने ऊपर लगे दाग को मिटा रहे हैं यह श्रापित  किन्नर उपन्यास की सार्थकता है।
उपन्यास का नाम : श्रापित किन्नर
लेखिकाडॉ मुक्ति शर्मा 
समीक्षक – राखी काम्बोज

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