मुझे चिदम्बरम पर हैरानी तब हुई जब देश के इस पूर्व गृहमन्त्री एवं वित्त मंत्री ने जग ज़ाहिर कर दिया कि उसे भारतीय कानून व्यवस्था में कोई विश्वास नहीं है। जैसे ही उनकी एंटिसिपेटरी बेल की अर्ज़ी ख़ारिज हुई और सीबीआई ने उनकी गिरफ़्तारी के आदेश निकाले, चिदम्बरम सीन से ग़ायब हो गये और दिल्ली में रहते हुए भी जांच एजेंसियों से बचते फिरते दिखाई दिये।
जब जब किसी राजनेता पर भ्रष्टाचार का मुकद्दमा चलता है उसकी पार्टी शोर मचाती है कि बदले की कार्यवाही हो रही है। क्या वे कहना चाहते हैं कि मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, कमलनाथ, गान्धी परिवार, लालू प्रसाद यादव परिवार, रॉबर्ट वाड्रा और भूपेन्द्र हुड्डा दूध के धुले हैं और उन्हें फंसाया जा रहा है। यदि ये सब लोग भ्रष्ट हैं और सीबीआई और प्रवर्त्तन निदेशालय उन पर कार्यवाही कर रहा है तो चिल्ल पौं क्यों मच रही है।
चिदम्बरम से मेरी पहली मुलाक़ात गोविन्द मिश्र के उपन्यास ‘फूल, इमारतें और बंदर’ से हुई थी। मैं भी उनकी अंग्रेज़ी का फ़ैन था और उस पर सादगी से दक्षिण भारतीय लुंगी या धोती तो सोने पर सुहागे का काम करता था। मैं यूपीए और काँग्रेस के तमाम मंत्रियों को भ्रष्ट मान सकता था मगर चिदम्बरम का ‘औरा’ कुछ ऐसा था कि मैं उनके बारे में कुछ ग़लत नहीं सोच पाता था।
जब सुब्रमण्यम स्वामी ने चिदम्बरम के विरुद्ध न्यायालय में केस दर्ज किया तो मुझे अच्छा नहीं लगा। जब राहुल गान्धी और उनकी ब्रिगेड के अन्य सिपाही मोदी सरकार पर कीचड़ उछालते तो मैं आसानी से उनके आरोपों के विरुद्ध तर्क ढूंढ लेता। मगर जब जब चिदम्बरम ने मोदी सरकार की आलोचना की तो मैं उसके पक्ष-विपक्ष में तर्क और आंकड़े ढूंढने को मजबूर हो गया।
फिर आर्थिक अनियमितताओं के आरोप उनके पुत्र कार्ती चिदम्बरम पर लगे और उन्हें गिरफ़्तार किया गया तो मैं सोच में पड़ गया। मोदी का वाक्य दिमाग़ पर बजने लगा… भ्रष्टाचारियों को नहीं छोडूंगा। कार्ती को जब जब सी.बी.आई. या एन्फ़ोर्समेण्ट डायर्क्टेट के अधिकारी पकड़ कर ले जा रहे होते, कार्ती हवा में ऐसे हाथ ऊंचा करते जैसे कोई देशभक्त गिरफ़्तारी दे रहा हो। आरोप केवल और केवल चिदम्बरम पर नहीं लगे, उनका पुत्र और उनकी पत्नी नलिनी भी एन्फ़ोर्समेण्ट अधिकारियों के शक़ के दायरे में हैं और उनकी जांच भी चल रही है।
मुझे चिदम्बरम पर हैरानी तब हुई जब देश के इस पूर्व गृहमन्त्री एवं वित्त मंत्री ने जग ज़ाहिर कर दिया कि उसे भारतीय कानून व्यवस्था में कोई विश्वास नहीं है। जैसे ही उनकी एंटिसिपेटरी बेल की अर्ज़ी ख़ारिज हुई और सीबीआई ने उनकी गिरफ़्तारी के आदेश निकाले, चिदम्बरम सीन से ग़ायब हो गये और दिल्ली में रहते हुए भी जांच एजेंसियों से बचते फिरते दिखाई दिये।
उनके सिपहसालार, देश के सबसे महंगे वकील कपिल सिब्बल और सिंघवी भी उन्हें भारत की सुप्रीम कोर्ट राहत नहीं दिलवा सके। चिदम्बरम क्योंकि स्वयं एक शातिर वकील रहे हैं, इसलिये उनका भ्रष्टाचार भी सबसे हटकर था। समझ यह नहीं आ रही थी कि जो आदमी सुप्रीम कोर्ट की एक पेशी का इतना पैसा लेता है, उसे भ्रष्ट होने की क्या आवश्यक्ता है। मगर मामला जब पुत्र-प्रेम का हो जाए तो उसके लिये तो ऐसे ऐसे ढंग निकाले जाते हैं कि सामने वाला दांतों तल उंगली दबाने को मजबूर हो जाए।
भारत के इतिहास में पुत्र-प्रेम की बहुत सी गाथाएं मौजूद हैं जिनसे साबित होता है कि पुत्र-प्रेम में पिता किस कदर ग़लत काम करने को मजबूर हो जाता है। धृतराष्ट्र ने दुर्योधन-प्रेम में क्या क्या नहीं किया। चिदम्बरम ने अपने पुत्र को लाभ पुहंचाने के लिये देश को एक किनारे पर कर दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का काल ऐसे रूप में याद किया जाएगा जब प्रधानमन्त्री स्वयं तो ईमानदार था मगर अपने मंत्रियों के भ्रष्टाचार की ओर आंखें बन्द किये रहते थे। इसलिये उनके कार्यकाल में जम कर आर्थिक भ्रष्टाचार पनपा।
चिदम्बरम के विरुद्ध एयरसेल मैक्सिस मामले में जांच आगे बढ़ रही है। पत्नी नलिनी पर सारदा चिट फ़ण्ड के मामले में जांच चल रही है और कार्ती तो चल ही ज़मानत पर रहे हैं। कानून अपनी राह चल रहा है। काँग्रेस को तय करना होगा कि भ्रष्टाचार का समर्थन करना है या देश के हित में सच्चाई का साथ देना है।